Thursday, 22 April 2010

जब रासलीला की चाह में शिव बने 'गोपीÓ

-श्रीकृष्ण का रास देख उपजी महादेव में भी यह भावना -श्रीकृष्ण ने पहचाना और नाम दिया गोपीनाथ -इसी नाम पर गोपेश्वर का भी नाम रखा गया Pahar1-गोपेश्वर (चमोली) रुद्र हिमालय में स्थित गोपेश्वर को प्राचीन एवं पवित्रतम तीर्थ माना जाता है। पुराणों के अनुसार इंद्रियों के नियंता और पशुओं के पति भगवान शिव को यहां गोपेश्वर या गोपीनाथ भी कहा जाता है और इन्हीं के नाम पर चमोली जिले के इस कस्बे को गोपेश्वर नाम मिला। शिव का नाम गोपीनाथ पडऩे के पीछे एक रोचक कहानी है। लोकमान्यता है कि सृष्टि रचनाकाल में जब गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण राधा के साथ महारासलीला में निमग्न थे, तो उन्हें देख भगवान शिव में भी गौरी के साथ रासलीला करने की इच्छा जाग्रत हुई, परन्तु भगवान त्रिपुरारी, स्वयं त्रैलोक्यनाथ कृष्ण नहीं बन सकते थे और उनकी अद्र्धांगिनी गौरी भी राधा नहीं बन सकती थी। इसलिए भगवान शिव स्वयं गोपी बन गए और गौरी ने गोप का रूप धारण किया और दोनों रासलीला में मग्न हो गए, लेकिन अंतर्यामी भगवान श्रीकृष्ण को उन्हें पहचानने में देर नहीं लगी और उन्होंने मुस्कराते हुए भगवान शिव को गोपीनाथ की उपाधि प्रदान की। गोपीनाथ का मंदिर स्थित होने के कारण गोपेश्वर को यह नाम दिया गया। इसकी एक और वजह मानी जाती है। कहते हैं कि राजा सगर की सात हजार गायें थीं। उसके ग्वाले आसपास के क्षेत्र में इन गायों को चराते थे। उनमें से एक गाय हमेशा जंगल में स्थित एक शिवलिंग को अपने दूध से नहलाती थी। ग्वाले ने जब यह बात राजा को बताई, तो उन्होंने स्वयं मौके पर पहुंचकर यह नजारा देखा। चूंके उस समय ग्वालों को गोप कहा जाता था, इसलिए राजा ने उस शिवलिंग अथवा भगवान शिव को गोपेश्वर नाम से पुकारा और गोपीनाथ मंदिर की स्थापना की गई। मान्यता के मुताबिक गोपीनाथ मंदिर के कारण ही गोपेश्वर का भी नाम रखा गया।

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