Tuesday 21 July 2015

राज्य आंदोलनकारियों को नहीं मिलेगा दस प्रतिशत आरक्षण

अपर महाधिवक्ता ने हाईकोर्ट को बताया वापस होगा शासनादेश
नैनीताल। राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी में दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिए जाने संबंधी शासनादेश को राज्य सरकार वापस लेने जा रही है। अपर महाधिवक्ता ने इस संबंध में हाईकोर्ट को अवगत कराया है। हाईकोर्ट ने इस संबंध में शासनादेश वापस लेने संबंधी दस्तावेज दाखिल करने के लिए 24 जुलाई की तिथि नियत की है। इस समय चिह्नित आंदोलनकारियों की संख्या करीब 12000 है।
न्यायमूर्ति आलोक सिंह व सर्वेश कुमार गुप्ता की संयुक्त खंडपीठ के समक्ष सोमवार को मामले की सुनवाई हुई। देहरादून निवासी मनोज चौधरी व अन्य ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा कि सरकार की ओर से राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी में दस प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का प्रावधान किया गया है, जिसके लिए शासनादेश भी जारी किया गया है।
याचिकाकर्ताओं ने शासनादेश को चुनौती देते हुए कहा गया था कि यह जीओ संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है। इस पर अपर महाधिवक्ता ने हाईकोर्ट को अवगत कराया कि इस संबंध में जारी शासनादेश को वापस लेने के लिए सरकार विचार कर रही है। पक्षों की सुनवाई के बाद अपर महाधिवक्ता की ओर से दिए गए बयानों के आधार पर अगली सुनवाई के लिए 24 जुलाई की तिथि नियत की है।
आरक्षण पर ईमानदार नहीं रहीं राज्य सरकारें
आरक्षण पर एक नजर
सबसे पहले एनडी तिवारी सरकार ने जेल जा चुके आंदोलनकारियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की।
2011 में खंडूड़ी सरकार ने चिह्नित आंदोलनकारियों को लाभ देने का निर्णय लिया।
26 अगस्त 2013 को हाईकोर्ट ने सरकार के इस फैसले पर रोक लगा दी।
24 तक शासनादेश वापस लेने संबंधी दस्तावेज दाखिल करने का आदेश
जनहित याचिका के जरिये आरक्षण के फैसले को दी गई थी चुनौती
देहरादून। राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरियों में दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने के सरकार के फैसले पर हाईकोर्ट ने 26 सितंबर 2013 में रोक लगा दी थी। इसके बाद यह मामला सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय नैनीताल के बीच झूलता रहा। राज्य में रही सरकारों ने इस मामले को लेकर ईमानदारी नहीं बरती। सरकार ने आरक्षण दिया तो उसने नियमों में ईमानदारी नहीं बरती, इसलिए न्यायालयों में आदेश गिरते रहे।

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