Saturday, 30 January 2010

-खाली हो रही देश की द्वितीय रक्षा पंक्ति

-चमोली जिले में तिब्बत सीमा पर सटे गांवों से पलायन बढ़ा -सुरक्षा से लिहाज से माना जा रहा है खतरनाक -बार्डर विलेज के बाशिंदों को माना जाता है 'द्वितीय रक्षा पंक्ति' -भारतीय गांवों की अपेक्षा तिब्बती गांवों में विकास की गति तीव्र गोपेश्वर(चमोली) राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से यह समाचार बेहद चिंताजनक है। उत्तराखंड के तिब्बत की सीमा से सटे भारतीय गांवों में पलायन तेजी से बढ़ रहा है। आलम यह है कि कई सीमांत गांवों में वर्तमान में जनसंख्या वर्ष 1991 के मुकाबले महज आधी रह गई है। इन गांवों का अपेक्षित विकास न होना पलायन का मुख्य कारण माना जा रहा है। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर द्वितीय रक्षा पंक्ति माने जाने वाले ग्रामीणों की संख्या में तेजी से आ रही कमी को लेकर प्रशासन और सेना के अफसर भी चिंतित नजर आ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि भारत-तिब्बत सीमा पर चमोली जनपद के माणा, नीती, गमशाली, बाम्पा, मलारी, कैलाशपुर, जेलम, जुम्मा समेत दस गांव बसे हुए हैं। इन गांवों के लोग शीतकाल में छह महीने के लिए जिला मुख्यालय के आसपास बसे गांवों में आ जाते हैं और गर्मी के मौसम में वे फिर वहीं लौट जाते हैं, लेकिन सीमा पर स्थित होने के बावजूद इन गांवों का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है। लिहाजा, यहां के परिवार एक के बाद एक पलायन करते जा रहे हैं। हालात इस कदर खराब हो चुके हैं कि अधिकांश गांवों की जनसंख्या 1991 से आधी कम हो चुकी है। सीमांत गांवों के विकास पर विशेष फोकस न किया जाना इसकी एक सबसे बड़ी वजह मानी जा रही है। इनमें से अधिकांश गांव तो मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित हैं। ऐसी विकट स्थिति में ग्रामीण गांव छोड़कर रोजगार और सुविधा की तलाश में बड़े पैमाने पर बाहर जाने लगे हैं। दूसरी ओर, इन गांवों से लगे तिब्बती गांवों की बात करें, तो वहां चीन (वर्ष 1959 में कब्जे के बाद) पर्यटन विकास की दिशा में उल्लेखनीय कदम बढ़ा रहा है। वहां के गांवों में संचार सुविधाएं मुहैया कराने के बाद न सिर्फ सड़कों का चौड़ीकरण किया गया, बल्कि ल्हासा से किघाई प्रांत तक रेलवे लाइन तक बिछा दी गई, जिससे इन गांवों के लोगों को जनजीवन में आमूल-चूल परिवर्तन देखने को मिला। यहां यह भी बता दें कि अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर बसे गांवों की भूमिका सुरक्षा की दृष्टि से अहम मानी जाती है। भौगोलिक परिस्थितियों से भलीभांति वाकिफ होने की वजह से यहां के लोगों को द्वितीय रक्षा पंक्ति के रूप में देखा जाता है। इसके बावजूद भारत के गांवों का विकास न होना भविष्य के लिए खतरा बढ़ाता है। जोशीमठ में तैनात सेना के अफसर भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि सीमांत गांवों से ग्रामीणों का पलायन सुरक्षा के लिहाज से अच्छा नहीं है। हालांकि उनका कहना है कि यह देखना होगा कि ये गांव बार्डर पर फ्रंट, इंटरमीडिएट अथवा डैप्थ जोन में से किसमें बसे हैं। ''यह बेहद गंभीर विषय है। सीमांत गांवों से पलायन रोकने के लिए नई योजना तैयार की जाएगी। इस सम्बंध में सैन्य अधिकारियों के साथ बैठक कर उनसे भी सुझाव लिए जाएंगे'' - नीरज सेमवाल, जिलाधिकारी चमोली। माणा और नीति घाटियों की आबादी वर्ष 1991 वर्ष 2001 गांव परिवार जन परिवार जन माणा 199 942 186 594 नीती 47 123 54 98 गमशाली 71 208 78 147 बाम्पा 35 97 46 74 मलारी 128 564 89 434 कैलाशपुर 41 143 44 245 जेलम 100 409 85 315 जुम्मा 82 214 27 98 कागालगा 21 72 14 58 गरपक 09 49 08 33 -

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