Friday, 29 January 2010

-खतरे में हैं उत्तराखंड के मखमली बुग्याल

-एचआरडीआई और वन विभाग की आरएमई रिपोर्ट में हुआ खुलासा -वनस्पति प्रजातियों की संख्या में आ रही है भारी गिरावट -पादपों के कम होने से बढ़ सकता है भूस्खलन कर खतरा गोपेश्वर(चमोली), उत्तराखंड के मखमली बुग्यालों का अस्तित्व संकट में है। मवेशियों का अनियंत्रित चुगान और जड़ी-बूटियों का अवैज्ञानिक दोहन आनेवाले समय में इन बुग्यालों का वजूद खत्म कर सकता है। यह खुलासा जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान (एचआरडीआई) और वन विभाग द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई शोध रिपोर्ट 'रेंडम मैपिंग एक्सरसाइज(आरएमई) में हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक बुग्यालों में कई घास और औषधीय पादपों की प्रजातियां तेजी से कम हो रही हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल हिमायल में हिमशिखरों की तलहटी में टिंबर लाइन (पेड़ों का उगना) समाप्त हो जाती है और मखमली घास के मैदान शुरू हो जाते हैं, जिन्हें बुग्याल कहा जाता है। बुग्याल आमतौर पर आठ से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित होते हैं। शीतकाल में ये बुग्याल बर्फ से लकदक रहते हैं, जिससे प्राकृतिक सौंदर्य और निखरकर सामने आता है। इन बुग्यालों में मखमली घास के साथ औषधीय पादपों की 250 से 300 तक प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से अधिकांश दुर्लभ हैं। पिछले कुछ वर्षों में बुग्यालों में मानवीय दखल बढ़ा है, जिसका प्रतिकूल प्रभाव यहां की वनस्पति पर पड़ रहा है। जड़ी- बूटी एवं विकास संस्थान गोपेश्वर और वन विभाग ने हाल ही में स्थानीय बुग्यालों पर एक रेंडम मैपिंग एक्सरसाइज की, जिसकी रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। रिपोर्ट के अनुसार नंदा देवी, फूलों की घाटी, गंगोत्री राष्ट्रीय पार्क और कुछ वन पंचायतों को छोड़कर कई बुग्यालों में स्थानीय तथा घुमंतू चरवाहे मवेशियों को चराने और जड़ी-बूटियां ढूंढऩे जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार उत्तराखंड के बुग्यालों में करीब डेढ़ लाख भेड़- बकरियां और करीब दस हजार गाय-भैंस व घोड़े-खच्चर चरते हैं। नतीजतन, बुग्याल में वनस्पतियों का आवरण घटने के साथ खरपतवारों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है, जिसका बुग्यालों के वजूद पर बुरा असर पड़ रहा है। जड़ी बूटी शोध एवं विकास संस्थान के निदेशक डा. आरसी सुन्दरियाल का कहना है कि इन दो कारणों से बुग्याल में अतीश, कटुकी, जटामासी, वनककड़ी, मीठा, सालमपंजा, सुगन्धा आदि प्रजातियों की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है। दूसरी ओर, केदारनाथ वन प्रभाग के डीएफओ धीरज पांडे के मुताबिक बुग्यालों में मवेशियों के चुगान से भूस्खलन का खतरा बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि बुग्यालों के संरक्षण के लिए विभाग की ओर से एक प्रोजेक्ट तैयार कर शासन को भेजा गया है। उत्तराखंड के प्रमुख बुग्याल, अनुमानित क्षेत्रफल और मवेशियों की संख्या प्रमुख बुग्याल क्षेत्रफल (वर्ग मीटर में) मवेशियों की संख्या 1. पलंग गाड़, छियालेख-गब्र्याल, कालापानी, नाबी, ढांग, लीपूलेख, नम्पा, कुटी, सेला यांगती ज्योलिंग कॉग 365 15000 भेड़-बकरी व 250 गाय-भैंस 2. चोरहोती, कालाजोवार, नीती, तिमर सेन, गोथिंग, ग्यालडुंग, ढामनपयार, मलारी 280 188500 भेड़-बकरी व 350 गाय भैंस 3. सुंदर ढुंगा, पिण्डारी, कफनी, नामिक 125 2000 भेड़-बकरी व 350 गाय भैंस 4. धरांसी, सरसो पातल, भिटारतोनी वेदनी औली, रूपकुंड 215 4500 भेड़-बकरी व 500 गाय भैंस 5. सतोपंथ, ढानू पयार, सेमखरक, देववन, नीलकंठआधार, खीरोंघाटी, फूलों की घाटी, राजखर्क, कागभुसण्डी 220 4800 भेड़-बकरी व 300 गाय भैंस 6. रूद्रनाथ, तुंगनाथ, विसूरी ताल, मनिनी, खाम, मदमहेश्वर, केदारनाथ, वासुकीताल 235 14000 भेड़-बकरी व 1500 गाय भैंस

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