Saturday, 30 January 2010
अब दुनिया जानेगी गढ़वाली बोली
-अब दुनिया जानेगी गढ़वाली बोली
-जल्द आने वाला है 'गढ़वाली-हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोष'
-गत पांच वर्ष से निर्माण में जुटे हैं चार साहित्यकार
-अब तक 45 हजार गूढ़ गढ़वाली शब्दों को शामिल किया
-अखिल गढ़वाल सभा देहरादून की पहल पर हो रही है इसकी रचना
गोपेश्वर(चमोली)
गढ़वाली लोकधुनों में पिरोए कर्णप्रिय गीत सुनने अच्छे लगते हैं, लेकिन इसके बोल समझ नहीं आते, तो परेशान होने की जरूरत नहीं। गढ़वाली बोली में रुचि रखने वालों के लिए अच्छी खबर है। अखिल गढ़वाल सभा देहरादून की पहल पर सूबे के चार नामी साहित्यकार गत पांच वर्ष से 'गढ़वाली-हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोष' (डिक्शनरी) तैयार करने में जुटे हुए हैं। मई- जून तक यह शब्दकोष बाजार में आने की उम्मीद है। अब तक 45 हजार गढ़वाली शब्द इसमें संग्रहित किए जा चुके हैं।
'गढ़वाली भाषा एवं साहित्य समिति' पिछले कई वर्ष से गढ़वाली बोली के संरक्षण और संवर्धन के भरसक प्रयास कर रही है। यह समिति अखिल गढ़वाल सभा, देहरादून की साहित्य इकाई है। समिति की तत्कालीन अध्यक्ष रजनी कुकरेती और संरक्षक भगवती प्रसाद नौटियाल ने वर्ष 2005 में गूढ़ गढ़वाली शब्दों के संरक्षण और उनका अर्थ समझाने के लिए शब्दकोष बनाने की योजना तैयार की। इसके बाद समिति की बैठक में चार साहित्यकारों का एक पैनल बनाया गया। भगवती प्रसाद नौटियाल देहरादून को शब्दकोष का संयोजक, डा. अचलानंद जखमोला देहरादून, शिवराज सिंह रावत 'नि:संग' गोपेश्वर और प्रोफेसर डा. रुक्मसिंह असवाल उत्तरकाशी को सम्पादक मंडल का सदस्य बनाया गया। ये चारों लोग पिछले पांच वर्ष से गूढ़ और कठिन गढ़वाली शब्दों का चयन कर शब्दकोष में संग्रहित कर रहे हैं। कोष में इन शब्दों का हिंदी और अंग्रेजी में शब्दार्थ दिया गया है।
निर्माणाधीन शब्दकोष के संपादक मंडल के सदस्य शिवराज सिंह रावत 'नि:संग' का कहना है कि कोष में अब तक सभी सदस्यों ने लगभग 45 हजार गढ़वाली शब्दों को शामिल कर लिया है। कोष की रचना आगामी मार्च माह तक पूर्ण कर ली जाएगी। इसके बाद शब्दों की स्क्रूटनी करके इसका प्रकाशन किया जाएगा। 'नि:संग' ने यह भी दावा किया कि कई हिन्दी और अंग्रेजी शब्दों की उत्पत्ति गढ़वाली बोली से ही हुई है।
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un sab logo tai dhanyabad ju apni bhasha tai aganai badhana ki koshish ma lagya cchana.
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