Saturday, 1 November 2008
पहाड़ में भी पैदा होगा लारा
चांडलर, फ्रेक्विट, लारा, फरनोर। ये अखरोट की विश्र्व स्तरीय नवीनतम किस्में हैं। जो अब न केवल उत्तराखंड में किसानों के चेहरों पर रौनक लाएंगी, बल्कि सूबे की आर्थिकी में अहम् रोल भी निभाएंगी। अखरोट की इन किस्मों की खास बात यह है कि इनसे तीसरे साल ही उत्पादन मिलने लगता है और फल भी गुच्छों में लगते हैं। एक पेड़ से कई गुना तक उत्पादन लिया जा सकता है। अखरोट उत्पादन के मामले में जम्मू-कश्मीर का कोई सानी नहीं है और वहां से हर साल ही दो सौ करोड़ का अखरोट एक्सपोर्ट होता है। इसकी जम्मू-कश्मीर की आर्थिकी में अहम् भूमिका है। इसे देखते हुए उत्तराखंड में भी जम्मू-कश्मीर की भांति अखरोट उत्पादन को बढ़ावा देने की कवायद प्रारंभ की गई है। हालांकि, सूबे में अखरोट उत्पादन ठीक-ठाक होता है, मगर अभी तक इंडस्ट्री का आकार नहीं ले पाया है। इसे देखते हुए उद्यान महकमा सूबे में विश्र्व की नवीनतम अखरोट प्रजातियों की पौध तैयार कर इसे लगाने हेतु किसानों को प्रेरित कर रहा है। विभाग का मानना है कि नवीन किस्मों से आने वाले तीन-चार सालों में अखरोट का उत्पादन खासा बढ़ जाएगा। सूबे के उद्यान निदेशक डा.डीआर गौतम बताते हैं कि नवीनतम किस्मों में शामिल चांडलर, फ्रेक्विट, लारा, फरनोर के लिए उत्तराखंड का वातावरण पूरी तरह अनुकूल है। ये किस्में तीन साल में फल देने लगती हैं और फल भी गुच्छों में लगते हैं। डा.गौतम के अनुसार उत्तराखंड के लिए ये किस्में बेहद लाभकारी हैं। पहाड़ में अधिकांश भूमि बंजर पड़ी है। ऐसे में अखरोट के पेड़ों का रोपण वहां के लोगों के लिए फायदेमंद साबित होगा। अखरोट की नवीनतम किस्में ऐसी हैं, जिन्हें चार से दस हजार फुट तक सूखे पहाड़ से लेकर नदी-नालों के किनारे तक लगाया जा सकता है। यही नहीं, इनमें कीड़ा लगने की समस्या भी नाममात्र की है।
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