Saturday, 1 November 2008
घराट बनेंगे बहुआयामी
घराट बनेंगे बहुआयामी
पहाड़ के घराट यानी गेंहूं पीसने वाली पारंपरिक पनचक्की से अब बिजली भी पैदा होगी। विशेषज्ञों का अनुमान है कि उत्तराखंड सहित देश के सभी पर्वतीय प्रदेशों में लगे करीब दो लाख घराटों से 20 लाख किलो वाट तक पनबिजली बनाई जा सकती है। इतना ही नहीं, ये घराट अब प्राचीन गंवई ज्ञान भर नहीं रह गए हैं, बल्कि इनसे रुई धुनने और धान कूटने तकनीक का भी विकास हो चुका है। घराटों के लिए विकसित नई तकनीक से टरबाइन चलाकर एक से 10 किलो वाट तक बिजली रोजाना बनाई जा सकती है। हर रोज तीन से 20 किलो तक गेंहू पीसने के साथ ही एक से पांच कुंतल तक धान कूटा जा सकता है और एक दिन में दो कुंतल रुई की धुनाई हो सकती है। खास बात यह भी है कि नई प्रौद्योगिकी में अब दो-तीन फीट गहरे-चौड़े पानी के बहते स्त्रोत से भी बिजली बनाना संभव है। ऐसे मंें घराट अब पहाड़ी क्षेत्र ही नहीं, मैदान मेंनहरों के किनारों पर भी कारगर हो सकते हैं। यही वजह है कि घराट की नई क्षमतापर केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की निगाह है। अंतरराष्ट्रीय घराट सम्मेलन कराने व उत्तराखंड को घराट हब बनाने पर दिल्ली में मंथन चल रहा है। सीमांत पहाड़ी क्षेत्रों में सैकड़ों सालों से घराट चल रहे हैं। घराट से बिजली बनाने का देश में पहला संयंत्र उत्तराखंड (मसूरी) में करीब सवा सौ साल पहले स्थापित हुआ था पर बात आगे नहीं बढ़ सकी। अब पनबिजली की नई विकसित माइक्रो तकनीक का उपयोग होने जा रहा है। पद्मश्री डा. अनिल जोशी की संस्था हिमालयन इंवायरमेंटल स्टडी एंड कंजर्वेशन आर्गेनाइजेशन घराट तकनीक हस्तांतरण की दिशा में काम रही है। डा. जोशी ने बताया कि दिल्ली में घराट तकनीक पर प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में दो दर्जन देशों के भाग लेने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि स्विटजरलैंड, चीन व न्यूजीलैंड आदि में घराट का स्वरूप भारत जैसा है। समझा जाता है कि पूरी दुनिया में इस तकनीक का विस्तार किसी एक ही केंद्र से तीसरी सदी में हुआ।
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