
Thursday, 27 November 2008
कौथिग में दिखे भूले बिसरे गांव

Friday, 7 November 2008
लंदन में दिखेगी उत्तराखंड की खूबसूरती
इस बार लंदन के वर्ल्ड ट्रेड मार्ट में उत्तराखंड की खूबसूरती की देखी जा सकेगी। मार्ट में एक पंडाल प्रदेश का भी लगाया जा रहा है। पर्यटन मंत्री प्रकाश पंत कहते हैं कि यह सब सूबे को इंडिया टूरिज्म का ध्वजवाहक बनाने को किया जा रहा है। लंदन में 10 से 13 नवंबर तक वर्ल्ड ट्रेड मार्ट का आयोजन किया जा रहा है। इसमें उत्तराखंड भी हिस्सेदारी करने वाला है। पर्यटन मंत्री प्रकाश पंत के नेतृत्व में एक टीम वहां जा रही है। श्री पंत ने बताया कि मार्ट में दुनियाभर से लोग आते हैं। इस मार्ट में उत्तराखंड का भी एक पंडाल लगाया जा रहा है। इसमें औली समेत सूबे के अन्य स्कीइंग डेस्टीनेशन, एडवेंचर टूरिज्म जैसे रिवर राफ्टिंग, पैरा ग्लाइडिंग, कयाकिंग और कैनोइंग के साथ ही माउंटेन बाइकिंग स्थलों के बारे में विस्तृत जानकारी दी जानी है। श्री पंत ने बताया कि असली मकसद विदेशी सैलानियों को उत्तराखंड की तरफ आकर्षित करना है। मार्ट में औली में होने वाले विटंर सैफ गेम्स को भी केंद्र में रखा जाना है। कोशिश हो रही है कि दुनिया भर को बताया जा सके कि उत्तराखंड में नैसर्गिक सौंदर्य की भरमार है। कुदरत ने इस राज्य को दोनों हाथों से खूबसूरती से सजाया है। काबीना मंत्री ने बताया कि स्कीइंग के लिए औली तो पहले से जाना पहचाना नाम है। अब पिथौरागढ़ में मुनस्यारी के समीप खोलिया टाप और उत्तरकाशी में दियारा बुग्याल को भी स्कीइंग जोन के रूप में विकसित किया जा रहा है। इसके अलावा देहरादून में कृत्रिम बर्फ से आइस रिंक हाल का निर्माण अंतिम चरण में है। इसमें इंडोर स्कीइंग की सुविधा किसी भी मौसम में उपलब्ध हो सकेगी।
Saturday, 1 November 2008
पंचेश्वर डेवलपमेंट अथारिटी का ढांचा मंजूर
पंचेश्वर डेवलपमेंट अथारिटी का ढांचा मंजूर
पंचेश्वर डेवलपमेंट अथारिटी को केंद्र की हरी झंडी मिलने से इसे अंतिम रूप देने का रास्ता साफ हो गया है। उत्तराखंड ने बारह प्रतिशत फ्री पावर की मांग के साथ ही परियोजना की 25 प्रतिशत बिजली पर भी अपना पहला हक जताया है। नई दिल्ली में प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव टीके नायर की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में अथारिटी गठन को अंतिम रूप दिया गया। बैठक में परियोजना की लागत पर भी चर्चा हुई। परियोजना की लागत को सिंचाई तथा ऊर्जा में विभाजित किया जाना है। अब तक मोटे तौर पर 25 प्रतिशत लागत सिंचाई पर और 75 प्रतिशत ऊर्जा पर डालने की बात की जा रही थी। नेपाल इससे सहमत नहीं है। नेपाल सिंचाई पर 40 प्रतिशत और ऊर्जा पर 60 प्रतिशत व्यय भार डालने का पक्षधर है। परियोजना की कुल लागत भारत तथा नेपाल को आधा-आधा वहन करना है पर सिंचाई पर आने वाली संपूर्ण लागत भारत वहन करनी होगी, क्योंकि परियोजना से संपूर्ण सिंचाई का लाभ भारत को ही मिलना है। लागत संबंधी इस मामले में दोनों देश अंतिम रूप से फैसला करेंगे। दिल्ली बैठक में भारत की तरफ से अथारिटी को अंतिम रूप देने पर चर्चा की गई। इस बैठक में उत्तराखंड को भी अपना पक्ष रखने का मौका मिला। सूबे के ऊर्जा सचिव शत्रुघ्न सिंह ने परियोजना की कुल क्षमता का 12 प्रतिशत फ्री पावर का मामला बैठक में उठाया। 6000 मेगावाट क्षमता की इस परियोजना में से यदि 12 प्रतिशत फ्री पावर मिलेगी तो 720 मेगावाट मुफ्त बिजली पर उत्तराखंड का हक होगा। उत्तराखंड यह भी चाहता है कि परियोजना की 25 प्रतिशत बिजली पर पहला हक उत्तराखंड का हो। यानि 25 प्रतिशत बिजली केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग की निर्धारित दरों पर मिले। ऊर्जा सचिव ने बैठक में ये दोनों बिंदु रखे। सूबे का पक्ष रखते हुए श्री सिंह ने कहा कि परियोजना में उत्तराखंड को ही सबसे अधिक विस्थापन की मार झेलनी है। ऐसे में राज्य को उसके हक से महरूम नहीं रखा जा सकता है।
घराट बनेंगे बहुआयामी
घराट बनेंगे बहुआयामी
पहाड़ के घराट यानी गेंहूं पीसने वाली पारंपरिक पनचक्की से अब बिजली भी पैदा होगी। विशेषज्ञों का अनुमान है कि उत्तराखंड सहित देश के सभी पर्वतीय प्रदेशों में लगे करीब दो लाख घराटों से 20 लाख किलो वाट तक पनबिजली बनाई जा सकती है। इतना ही नहीं, ये घराट अब प्राचीन गंवई ज्ञान भर नहीं रह गए हैं, बल्कि इनसे रुई धुनने और धान कूटने तकनीक का भी विकास हो चुका है। घराटों के लिए विकसित नई तकनीक से टरबाइन चलाकर एक से 10 किलो वाट तक बिजली रोजाना बनाई जा सकती है। हर रोज तीन से 20 किलो तक गेंहू पीसने के साथ ही एक से पांच कुंतल तक धान कूटा जा सकता है और एक दिन में दो कुंतल रुई की धुनाई हो सकती है। खास बात यह भी है कि नई प्रौद्योगिकी में अब दो-तीन फीट गहरे-चौड़े पानी के बहते स्त्रोत से भी बिजली बनाना संभव है। ऐसे मंें घराट अब पहाड़ी क्षेत्र ही नहीं, मैदान मेंनहरों के किनारों पर भी कारगर हो सकते हैं। यही वजह है कि घराट की नई क्षमतापर केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की निगाह है। अंतरराष्ट्रीय घराट सम्मेलन कराने व उत्तराखंड को घराट हब बनाने पर दिल्ली में मंथन चल रहा है। सीमांत पहाड़ी क्षेत्रों में सैकड़ों सालों से घराट चल रहे हैं। घराट से बिजली बनाने का देश में पहला संयंत्र उत्तराखंड (मसूरी) में करीब सवा सौ साल पहले स्थापित हुआ था पर बात आगे नहीं बढ़ सकी। अब पनबिजली की नई विकसित माइक्रो तकनीक का उपयोग होने जा रहा है। पद्मश्री डा. अनिल जोशी की संस्था हिमालयन इंवायरमेंटल स्टडी एंड कंजर्वेशन आर्गेनाइजेशन घराट तकनीक हस्तांतरण की दिशा में काम रही है। डा. जोशी ने बताया कि दिल्ली में घराट तकनीक पर प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में दो दर्जन देशों के भाग लेने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि स्विटजरलैंड, चीन व न्यूजीलैंड आदि में घराट का स्वरूप भारत जैसा है। समझा जाता है कि पूरी दुनिया में इस तकनीक का विस्तार किसी एक ही केंद्र से तीसरी सदी में हुआ।
पहाड़ में भी पैदा होगा लारा
चांडलर, फ्रेक्विट, लारा, फरनोर। ये अखरोट की विश्र्व स्तरीय नवीनतम किस्में हैं। जो अब न केवल उत्तराखंड में किसानों के चेहरों पर रौनक लाएंगी, बल्कि सूबे की आर्थिकी में अहम् रोल भी निभाएंगी। अखरोट की इन किस्मों की खास बात यह है कि इनसे तीसरे साल ही उत्पादन मिलने लगता है और फल भी गुच्छों में लगते हैं। एक पेड़ से कई गुना तक उत्पादन लिया जा सकता है। अखरोट उत्पादन के मामले में जम्मू-कश्मीर का कोई सानी नहीं है और वहां से हर साल ही दो सौ करोड़ का अखरोट एक्सपोर्ट होता है। इसकी जम्मू-कश्मीर की आर्थिकी में अहम् भूमिका है। इसे देखते हुए उत्तराखंड में भी जम्मू-कश्मीर की भांति अखरोट उत्पादन को बढ़ावा देने की कवायद प्रारंभ की गई है। हालांकि, सूबे में अखरोट उत्पादन ठीक-ठाक होता है, मगर अभी तक इंडस्ट्री का आकार नहीं ले पाया है। इसे देखते हुए उद्यान महकमा सूबे में विश्र्व की नवीनतम अखरोट प्रजातियों की पौध तैयार कर इसे लगाने हेतु किसानों को प्रेरित कर रहा है। विभाग का मानना है कि नवीन किस्मों से आने वाले तीन-चार सालों में अखरोट का उत्पादन खासा बढ़ जाएगा। सूबे के उद्यान निदेशक डा.डीआर गौतम बताते हैं कि नवीनतम किस्मों में शामिल चांडलर, फ्रेक्विट, लारा, फरनोर के लिए उत्तराखंड का वातावरण पूरी तरह अनुकूल है। ये किस्में तीन साल में फल देने लगती हैं और फल भी गुच्छों में लगते हैं। डा.गौतम के अनुसार उत्तराखंड के लिए ये किस्में बेहद लाभकारी हैं। पहाड़ में अधिकांश भूमि बंजर पड़ी है। ऐसे में अखरोट के पेड़ों का रोपण वहां के लोगों के लिए फायदेमंद साबित होगा। अखरोट की नवीनतम किस्में ऐसी हैं, जिन्हें चार से दस हजार फुट तक सूखे पहाड़ से लेकर नदी-नालों के किनारे तक लगाया जा सकता है। यही नहीं, इनमें कीड़ा लगने की समस्या भी नाममात्र की है।
जज्बे के बूते झेलूंगी हर चुनौती

केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद

योगेंद्र प्रसाद को भारतीय शिरोमणी पुरस्कार
उत्तराखंड जलविद्युत निगम के चेयरमैन योगेंद्र प्रसाद को भारतीय शिरोमणी पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है। साथ ही जलविद्युत निगम को गोल्ड मेडल से नवाजा जाएगा। यह पुरस्कार अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए इंस्टीटयूट ऑफ इकॉनोमिक्स स्टडीज की ओर से दिया जा रहा है। श्री प्रसाद को 17 नवंबर को दिल्ली में वर्तमान आर्थिक परिदृश्य विषय पर होने वाले एक सेमिनार में पुरस्कार से नवाजा जाएगा।
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