Friday, 6 July 2012

पहाडि़यों ने बनाया जापानियों को बटर चिकन का दीवाना

उत्तराखंड का टिहरी जिला. यहां पंगरियाना, बागर, बड़ियार और सरपोली गांवों के ज्‍यादातर युवा आज जापान में शेफ के रूप में काम कर रहे हैं. वे भारतीय व्यंजनों से जापानियों की स्वाद-ग्रंथियों को छेड़ रहे हैं और इस तरह खुद सफलता का स्वाद चख रहे हैं.

एक समय था, जब उत्तराखंड में ज्‍यादातर परिवारों में से कम-से-कम एक सदस्य भारतीय सेना की नौकरी में जरूर जाता था. लेकिन अब ऐसा नहीं है. पहाड़ी राज्‍यों के गठीले नौजवानों ने अब सेना की राइफल और जैतूनी हरी वर्दी छोड़कर शेफ की कलछुली और सफेद एप्रन को अपना लिया है. अब बंकर के बजाए रसोईघर में शेफ का काम करना उन्हें ज्‍यादा रास आ रहा है. सेना में भर्ती होने की पारिवारिक परंपरा को छोड़ पेशेवर शेफ के रूप में काम करने वाले युवाओं की लगातार बढ़ती संख्या में सबसे आगे है उत्तराखंड का टिहरी जिला. यहां पंगरियाना, बागर, बड़ियार और सरपोली गांवों के ज्‍यादातर युवा आज जापान में शेफ के रूप में काम कर रहे हैं. वे भारतीय व्यंजनों से जापानियों की स्वाद-ग्रंथियों को छेड़ रहे हैं और इस तरह खुद सफलता का स्वाद चख रहे हैं. उन्हीं के बूते सुशी के मुरीद जापानी अब तंदूरी चिकन और बटर नान के दीवाने बनते जा रहे हैं और अपनी स्टिक्स को परे रखकर नंगे हाथों से भारतीय व्यंजनों के मजे लूट रहे हैं.देवदार, बुरांश और ओक के जंगलों के बीच स्थित टिहरी जिले के इन गांवों के तकरीबन 240 पुरुष इस समय विदेशों में काम कर रहे हैं. इनमें से 100 के करीब लोग जापान में शेफ और रेस्तरां मालिक के तौर पर काम कर रहे हैं. गांवों के इस छोटे से समूह को अब उत्तराखंड का 'मिनी जापान' कहा जाने लगा है. ग्रामीण फतेह सिंह राणा कहते हैं, ''इन चार गांवों की कुल जनसंख्या करीब 12,000 है. अगर जनसंख्या के अनुपात के लिहाज से देखें तो संभवतः विदेशों में होटलों और रेस्तरांओं में काम करने वाले यहां के युवाओं की संख्या देश में सबसे अधिक है.'' ये युवक जापान में सिर्फ शेफ बनकर ही संतुष्ट नहीं हैं. उनमें से कुछ लोगों ने तो अपना काम इतना बढ़ाया है और सफलता की ऐसी ऊंचाइयों पर चढ़े हैं कि खुद रेस्तरां के मालिक बन गए हैं. जापान में तकरीबन 10 ऐसे रेस्तरां हैं, जिनके मालिक उत्तराखंड के गांवों के रहने वाले हैं. टोक्यो का ज्‍योति करी रेस्तरां और ओसाका का स्पाइस किंगडम इन रेस्तरांओं में शुमार हैं. इन दिनों अपने गांव में छुट्टियां बिता रहे जापान में काम करने वाले एक शेफ भगत सिंह का कहना है, ''जापानियों को तंदूरी चिकन और बटर नान बहुत पसंद है. जापानी बहुत दोस्ताना मिजाज के होते हैं, लेकिन थोड़े रूढ़िवादी भी होते हैं. अब बड़ी संख्या में इन गांवों में रहने वाले युवा विदेशों में काम कर रहे हैं और हमारे यहां के युवाओं का एकमात्र उद्देश्य सेवा क्षेत्र में अपना बढ़िया करियर चुनना है.'' उनकी सफलता से प्रेरित होकर पंगरियाना, बागर, बड़ियार और सरपोली से कई और युवा जापान जाने की तैयारी कर रहे हैं. अपनी उम्मीदों को लेकर वे आश्वस्त हैं, क्योंकि जैसा कि वे कहते हैं, भारतीय होटलों में काम करने का काफी अनुभव उन्हें प्राप्त हो चुका है और ऐसी प्लेसमेंट एजेंसियां हैं, जो उनकी यात्रा की औपचारिकताओं की चिंता संभाल लेती हैं. बड़ियार के एक सरकारी शिक्षक दिलीप सिंह नेगी गांव के युवकों को जापान में पाक कला में मिली सफलता के किस्से सुनाते हैं. इन किस्सों से होटल प्रबंधन के पाठ्यक्रमों के लिए एक जुनून पैदा हो गया है. वे कहते हैं, ''ज्‍यादा से ज्‍यादा युवक होटल प्रबंधन का कोर्स करना चाहते हैं. आज के युवक अपने करियर विकल्पों के प्रति ज्‍यादा जागरूक हैं.'' विदेशों में काम कर रहे युवा लड़कों द्वारा अपने गांवों में पैसा भेजने से इन इलाकों में समृद्धि आई है. ऊपर से तो पंगरियाना, बागर, बड़ियार और सरपोली अब भी सामान्य पहाड़ी गांवों जैसे नजर आते हैं, जहां महिलाएं घरेलू कामों में और कृषि कार्यों में व्यस्त रहती हैं और पुरुष खेतों या जानवरों को चराने में व्यस्त रहते हैं, लेकिन ग्रामीणों के पास अब पहले से ज्‍यादा पैसे हैं. 70 वर्ष के हुकुम सिंह कैंतुरा खुश हैं. उनके तीन बेटे जापान में हैं. वे कहते हैं, ''यह एक अद्भुत एहसास है कि उन्होंने एक अलग क्षेत्र में अपने आप को साबित कर दिखाया है.'' एक और ग्रामीण भगवान सिंह पंवार कहते हैं, ''हमारे इलाके से शेफों की भारी संख्या को देखते हुए राज्‍य सरकार को इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए और होटल प्रबंधन से जुड़े छोटी अवधि के पाठ्यक्रम चलाने चाहिए, जिससे यहां के लड़कों को मदद मिल सके.''(साभार इंडिया टुडे)

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