Wednesday, 25 August 2010
तो कह दिया अलविदा 'बबा
परम्परा को तोड़ महिलाओं ने भी दिया गिर्दा की अर्थी को कंधा
, नैनीताल: शव यात्रा 'गिर्दाÓ की थी, तो परम्पराएं टूटनी ही थी। महानायक की तरह रंगकर्मी व जनकवि को हर किसी ने अलविदा 'बबाÓ कहा। हर आंख में आंसू..हर हाथ अर्थी छूने को आतुर थे। महिलाओं ने परम्पराएं तोड़ कर न केवल उनकी अर्थी को कंधा दिया बल्कि घाट पहुंच कर उन्हें अंतिम विदाई भी दी। जनगीतों के साथ निकली उनकी अंतिम यात्रा में हर कोई एक दूसरे के कंधे पर सिर रख जार-जार रो रहा था।
यह गिरीश तिवारी 'गिर्दाÓ का मानव चुम्बकीय प्रभाव था, वह हमेशा लोगों को कुमाऊंनी शब्द 'बबाÓ कह कर पुकारते थे। सोमवार को उनकी शव यात्रा में प्रशासनिक अधिकारी, पत्रकार, रंगकर्मी, साहित्यकार, राजनेता, छात्र, न्यायाधीश, विभिन्न संगठनों के लोग, शिक्षक, महिलाएं, मजदूर तबका और सभी धर्मों के लोग शामिल थे। इससे झलक रहा था कि गिर्दा वह हस्ती थे जो कभी मिटेंगे नहीं। लग रहा था मानो उनकी शव यात्रा में नैनीताल ही नहीं, पूरा उत्तराखंड शामिल है। दिल्ली व लखनऊ से आये लोग भी शामिल थे। इस विराट व्यक्तित्व की अर्थी को हर हाथ छू लेना चाहता था। इस दौरान जो भी मार्ग में मिला वह यात्रा में शामिल हो गया और काफिला बढ़ता गया। गिर्दा की अन्तिम इच्छा थी कि उनकी शव यात्रा में उनके गीतों को अवश्य गाया जाय, साथियों ने यही किया भी। फिंजा में उनके लिखे, गाये जन मानस की पसंद बन चुके गीत 'जागो, जागो हो म्यारा लाल, म्यार हिमाल...Ó, 'हम ओड़, बारूड़ी, ल्वार, कुल्ली कबाड़ी, जता एक दिना तो आलो उ दिन य दुनि मां, एक हांग न मांगूलौ, एक पांख न मांगूलौ, सार खसरा खतौनी किताब ल्यूलौ..Ó, 'गिली है लकड़ी कि गिला धुंआ है, मुश्किल से आमा का चूल्हा जला है, साग क्या छौंका है पूरा गौं महका है...Ó जैसे गीत गूंज रहे थे। जन आंदोलनों के दौरान जब गिर्दा सड़कों में उतर कर अपने लिखे जन गीतों को गाते थे तो हजारों की भीड़ उन्हें घेर लेती थी। मगर आज वह गा नहीं रहे थे, तो भी हजारों लोग उन्हें घेरे हुए थे। हर तबका उनके साथ उसी तरह जुड़ा था जैसे जन आंदोलनों के दौरान उनके साथ लोग जुड़ जाते थे।
इस साल खो गये पहाड़ के दो लाल
नैनीताल: पहले सिने अभिनेता निर्मल पांडे और अब गिरीश तिवारी 'गिर्दाÓ दुनिया के मंच से रुखसत हो गये। पहाड़ ने इस साल दो लाल खो दिये यह क्षति कभी पूरी नहीं हो सकती। दोनों लोग मूल रूप से अल्मोड़ा जनपद के थे, लेकिन उनकी कर्मभूमि नैनीताल रही। निर्मल पांडे रंगमंच के साथ ही सिने जगत से भी जुड़े थे। उनका निधन इसी वर्ष 19 फरवरी को मुम्बई में हो गया। गिर्दा रंगमंच के अलावा प्रख्यात जनकवि भी थे। अच्छे लेखक व अच्छे वक्ता भी थे। रविवार को इस बहुआयामी व्यक्तित्व ने भी अलविदा कर दिया।
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