Thursday, 10 June 2010

-शिलाएं खुद का उद्धार कर बन गईं अहिल्या

-राज्य की 26 विधवाओं ने फिर मांग भरने का दिखाया साहस -पहाड़ में भी धीरे-धीरे टूटने लगी हैं रूढिय़ां -समाजशास्त्रियों की नजर में साहसिक एवं जायज कदम हल्द्वानी (नैनीताल): एक दरिया तूफानी है वो, झांसी वाली रानी है वो, कोई पढऩे वाला हो तो, खुद में एक कहानी है वोÓ। हम बात कर रहे हैं उस कहानी की जिसमें राज्य की अबलाओं ने अपने जज्बे से सबला बनने की ठान ली है। इस राह पर वे नित नये मील के पत्थरों को पीछे छोड़ रही हैं। वह भी उस पर्वतीय क्षेत्र के मार्ग पर जहां रूढिय़ों की गहरी खाई और मान्यताओं के दुर्गम रास्ते हैं। अब अल्मोड़ा जिले की नीलिमा (काल्पनिक नाम) को ही देखें। शादी में लगी मेहंदी का रंग भी नहीं छूटा कि खुशियों को ग्रहण लग गया। मार्ग दुर्घटना में घायल पति की मौत ने जिदंगी जीने के सभी रास्ते बंद कर दिये। रूढिय़ों की जंजीर में कैद वह मानसिक मौत की गिरफ्त में थी, लेकिन एक दिन उसने सबला बनने की ठान ली। उसने फिर से शादी रचाई और आज नजीर बन समाज के सामने आ गई। अल्मोड़ा की नीलिमा तो महज एक उदाहरण है। इस तरह का साहस और मान्यताओं को आइना दिखाने में राज्य की 26 महिलाओं को सरकार ने भी अपनी प्रोत्साहन योजना से 11-11 हजार रुपये से पुरस्कृत किया है। आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि पिछले एक दशक में राज्य में विधवा विवाह का ग्राफ उत्तरोत्तर बढ़ रहा है। समाज कल्याण निदेशालय के आंकड़े गवाह हैं कि गुजरे वित्तीय वर्ष (2009- 10) में राज्य भर में 26 (35 वर्ष से कम आयु) विधवाओं ने पुर्नविवाह किया। इन्हें प्रोत्साहन के रूप में सरकार ने 2 लाख 86 हजार रुपये दिये। भले ही कुछ लोग विधवा विवाह के पक्ष में न हों लेकिन समाजशास्त्रियों ने इसे वक्त व समय की जायज मांग बताया है। पिथौरागढ़ निवासी समाजशास्त्री एवं वरिष्ठ पत्रकार गणेश पाठक कहते हैं कि अगर समाज तरक्की के रास्ते पर है तो उसकी आलोचना नहीं बल्कि उसे प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। श्री पाठक विधवा विवाह को प्रोत्साहन के लिए जागरूकता की वकालत करते हैं। उनका मानना है कि कम उम्र में (जब बच्चे भी न हों) अगर इस विपत्ति का पहाड़ टूट पड़े तो महिला अपने ही घर में (भले वह हर तरह से सम्पन्न हो) उपेक्षित हो जाती है। उसका पूरा सामाजिक ताना-बाना बिखर जाता है, कुदृष्टि का दंश ऊपर से उसे और असुरक्षित कर देता है। कमोवेश इसी तरह की राय हल्द्वानी के ललित बल्लभ सनवाल रखते हैं। मैदानी क्षेत्रों को छोड़ दें तो पर्वतीय क्षेत्र में आज भी मान्यता और रूढिय़ां ही पूरी सामाजिक व्यवस्था का संचालन कर रही हैं। इसमें लोग बदलाव की वकालत करने लगे है। बदलाव की हवा पर्वतीय क्षेत्र में बह चली है। 26 में 17 विधवा विवाह के मामले पर्वतीय जिले से ही सामने आये हैं। अपर निदेशक समाज कल्याण आरपी पंत कहते हैं कि सरकार भी इस दिशा में प्रोत्साहन देने में पीछे नहीं है। बजट में इस मद में अलग से प्रावधान किया जाता है। पिछले दो वर्षो में विभाग ने विधवा विवाह प्रोत्साहन में 5 लाख 83 हजार रूपये खर्च किये हैं। इस दिशा में अभी और जागरूकता की जरूरत है। प्रोत्साहन राशि पाने वाले विधवा विवाह के मामले टिहरी- 2 उत्तरकाशी- 3 देहरादून- 1 हरिद्वार- 1 अल्मोड़ा- 4 बागेश्वर- 1 चंपावत- 4 ऊधमसिंह नगर-9

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