Thursday, 10 June 2010

तिब्बती रिफ्यूजी भी विदेशी अधिनियम के दायरे में

बेरोकटोक आ-जा नहीं सकेंगे, प्रावधानों को मानना होगा , रुद्रपुर- तिब्बती नागरिक देश में बेरोक-टोक नहीं आ जा सकेंगे। उन्हें बाकायदा विदेशी अधिनियम (दॅ फॉरेनर्स एक्ट) 1946 के प्रावधानों के तहत स्पेशल एंट्री परमिट प्राप्त करना होगा। उन पर वे सभी नियम-कानून लागू होंगे, जो सामान्यत: विदेशियों पर लागू होते हैं। हालांकि इस किस्म की व्यवस्था पहले से भी थी, किंतु सख्ती के साथ लागू नहीं हो पा रही है। अब इसे समुचित तरीके से लागू करने के लिए विदेश मंत्रालय ने राज्यों को एक बार फिर दिशा-निर्देश दिये हैं। इन निर्देशों में कहा गया है कि सन 1959 में तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा को भारत में राजनीतिक शरण दी गयी थी। इस दौरान हजारों तिब्बतियों को भी देश में रिफ्यूजी की तरह रहने की अनुमति दी गयी थी। इन रिफ्यूजियों को यहां राहत तथा पुनर्वास के तौर पर जमीन तथा अन्य सुविधायें मुहैया कराई गयी थीं। यह सब इसलिये किया गया था, ताकि सामान्य परिस्थितियां होने पर वे तिब्बत लौट सकें। उस दौरान यह भी साफ किया गया था कि रिफ्यूजियों को विध्वंसकारी व चीन के खिलाफ राजनीतिक गतिविधियां संचालित करने की अनुमति नहीं दी जायेगी। साथ ही उन्हें अन्य विदेशियों की तरह ही समझा जायेगा। मंत्रालय के मुताबिक चूंकि तिब्बती रिफ्यूजी विदेशी माने गये हैं, लिहाजा उनको भी यहां आने, ठहरने तथा लौटने के लिए विदेशी अधिनियम के प्रावधान मानने होंगे। लेकिन देखने में आ रहा है कि 1980 तथा 90 के दशक में यहां आये रिफ्यूजी भारत के आर्थिक तथा सांस्कृतिक जीवन में इस तरह रच-बस गये हैं कि वे स्वयं को विदेशी ही नहीं मानते। यही नहीं वे यहां संपत्ति खरीदने तथा भारतीय नागरिक की तरह बर्ताव को भी अपना अधिकार समझने लगे हैं। इससे कई स्थानों पर स्थानीय नागरिकों के साथ टकराव की स्थिति भी पैदा हो रही है। कुल मिलाकर इसका कानून एवं शांति व्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है। मंत्रालय का यह भी मानना है कि तिब्बतियों के यहां प्रवेश का उद्देश्य व पंजीयन के साफ दिशा-निर्देश हैं, लेकिन बॉर्डर पर इमीग्र्रेशन चेक पोस्ट और फॉरेनर्स रजिस्ट्रेशन अफसरों की कोताही से दिशा-निर्देश समुचित तौर पर लागू नहीं हो पा रहे हैं। साथ ही देश के भीतर तिब्बतियों के एक से दूसरे स्थान पर होने वाले मूवमेंट से संबंधित प्रावधानों का भी इस्तेमाल नहीं हो रहा है। मंत्रालय के अनुसार 1959 तक भारत में आने वाले अस्थायी रिफ्यूजी ही पुनर्वास का लाभ लेने के हकदार हैं। 1959 तक भारत आने वालों के 1987 तक जन्मे बच्चे भी इस सुविधा के हकदार हैं। मौजूदा दौर में तिब्बतियों की आवाजाही बढ़ी तो वर्ष 2000 में इनके लिए स्पेशल एंट्री परमिट की व्यवस्था की गयी है। यह परमिट काठमांडू स्थित तिब्बती स्वागत केंद्र की सिफारिश पर भारतीय दूतावास जारी करेगा। यह परमिट तिब्बतियों के बच्चों को भी लेना होगा। देश में प्रवेश के बाद इन लोगों के 14 दिन के भीतर संबंधित क्षेत्र के फॉरेनर्स रजिस्ट्रेशन ऑफिसर को रिपोर्ट करनी तथा पंजीकरण कराना होगा। एंट्री, स्टे तथा एग्जिट को रेगुलेट करने के लिए तिब्बतियों को उत्तर प्रदेश के सोनौली तथा बिहार के रक्सौल के चेक पोस्ट से ही देश में आने की अनुमति होगी। जब वे वापस जायेंगे तो उन्हें इसके बारे में बताना होगा। जो लंबे समय से स्पेशल एंट्री परमिट पर रह रहे हैं उन्हें अवधि समाप्त होने पर इसका नवीनीकरण कराना होगा। अध्ययन, शोध, चिकित्सा या तीर्थाटन के लिए आने वाले तिब्बतियों पर भी वे सभी नियम व कानून लागू होंगे जो अमूमन विदेशियों पर लागू होते हैं। मंत्रालय ने जिन इलाकों में तिब्बतियों की मौजूदगी अधिक है वहां प्रावधान लागू हों इसके लिए संबंधित जिलाधिकारियों व पुलिस अधीक्षकों का संवेदीकरण करने पर भी जोर दिया। :::: ">

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