सीएम के फेसबुक पेज पर तस्वीरें शेयर कर लिखा गया है कि पलायन आयोग की अंतरिम रिपोर्ट का लोकार्पण किया गया। पलायन की वास्तविक स्थिति जनता के सामने रखने से पलायन रोकने के लिए भविष्य की योजनाओं का सही तरह से क्रियान्वयन किया जा सकेगा। उत्तराखंड में मौजूद स्थानीय संसाधनों का समुचित उपयोग कर हम रोजगार सृजन पर कार्य कर रहे हैं।
10 साल में एक लाख से ज्यादा लोग मैदान में बसे
ग्राम पंचायत स्तर पर मुख्य व्यवसाय कृषि (43%) और मजदूरी (33%) है। रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 सालों में 6338 ग्राम पंचायतों से तीन लाख 83 हजार 726 व्यक्ति अस्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं। यह लोग घर में आते-जाते रहते हैं, लेकिन अस्थायी रूप से रोजगार के लिए बाहर रहते हैं। इसी अवधि में 3946 ग्राम पंचायतों से एक लाख 18 हजार 981 लोग स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं।
रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य तीन प्रमुख कारण बताए
रिपोर्ट में पलायन के कारणों का भी उल्लेख किया गया। इसमें बताया गया है कि ग्राम पंचायतों से 50 फीसदी लोगों ने आजीविका और रोजगार की समस्या के कारण पलायन किया। जबकि 15 फीसदी लोगों ने शिक्षा सुविधा और आठ फीसदी ने चिकित्सा सुविधा के अभाव में पलायन किया है। सीएम ने कहा कि इन तीनों बिंदुओं पर फोकस किया जाएगा। ताकि पलायन को रोका जा सके।
पलायन करने वालों में सबसे ज्यादा युवा वर्ग
ग्राम पंचायतों से पलायन करने वालों में सबसे ज्यादा संख्या युवाओं की है। रिपोर्ट के अनुसार 26 से 25 आयु वर्ग के 42 फीसदी लोगों ने पलायन किया। 35 से अधिक आयु वर्ग के 29 फीसदी और 25 वर्ष से कम आयु वर्ग के 28 फीसदी लोग पलायन कर चुके हैं। ग्राम पंचायतों से 70 फीसदी लोग प्रवासित होकर राज्य के अन्य स्थानों पर गए, 29 फीसदी राज्य से बाहर और 1 फीसदी देश से बाहर गए।
चीन सीमा के गांवों से पलायन चिंताजनक
उत्तराखंड में लगभग 734 राजस्व ग्राम/तोक/मजरा 2011 की जनगणना के बाद गैरआबाद हो गए हैं। इनमें से 14 अंतरराष्ट्रीय चीन सीमा के निकट हैं। राज्य में 580 ऐसे गांव हैं, जहां पिछले 10 वर्षों में अन्य गांव, शहर, कस्बों से पलायन कर लोग बसे हैं। राज्य में 565 ऐसे राजस्व गांव, तोक, मजरा है, जिनकी आबादी 2011 के बाद 50 फीसदी घटी है। इनमें छह गांव अंतरराष्ट्रीय सीमा से हवाई दूरी के 5 किमी भीतर हैं।
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