चमोली जिले में बारह वर्षों में एक
बार होने वाली विश्व प्रसिद्ध धार्मिक नंदा राजजात यात्रा इस वर्ष 29 अगस्त से शुरू होगी
.जिले के नौटी इलाके में स्थित
नंदादेवी सिद्धपीठ में गुरूवार को इस यात्रा का विधिवत कलैंडर जारी करते हुए
नंदादेवी राजजात समिति के महासचिव भुवन नौटियाल ने बताया कि 29 अगस्त को नौटी से चार सींग वाले मेढ़े के साथ नंदादेवी
यात्रा शुरू होगी जो हिमालय की 19 दिन की दुर्गम
यात्रा के बाद 16 सितंबर को पूरी होगी. बसंत पंचमी के
मौके पर राजजात यात्रा के परंपरागत आयोजक की ओर से राकेश कुंवर की अगुवाई में आये
कांसुवा गांव के कुंवरों के प्रतिनिधिमंडल की उपस्थिति में राजजात यात्रा का
कलैंडर घोषित किया गया. नंदादेवी राजजात उत्तराखंड में होने
वाले विश्व प्रसिद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सवों में एक है. इस आयोजन के पीछे
नंदा के रूप में पार्वती को हिमालय की ओर विदा किये जाने की परंपरा रही है.प्रत्येक 12 साल में होने वाले इस आयोजन की परंपरा का निर्वहन पहले गढ़वाल के पाल
राजाओं द्वारा किया जाता था. बाद में राजधानी बदल जाने के बाद इस परंपरा के
निर्वहन की जिम्मेदारी कांसुवा गांव के कुंवरों को सौंपी गयी जो पिछली कई सदियों
से इस परंपरा को जारी रखे हुए हैं.इस यात्रा में अलग-अलग स्थानों से
यात्री हिमालय में होने वाली इस महायात्रा का हिस्सा बनते हैंतकरीबन एक हफ्ते के
दुर्गम हिमालयी रास्ते से होकर यह यात्रा समुद्रतल से 15 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित होमकुंडी में चार सींग वाले मेढे की विदाई के
साथ पूरी होती है.यहां तक पहुंचने के लिये यात्रा दल को हिमालय की रहस्यमयी झीलों
में से एक मानी जाने वाली रूपकुंड झील व 70 हजार फुट
की ऊंचाई पर स्थित ज्यूरागली दर्रे को पार करना पड़ता
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बारह साल बाद आयोजित होने वाली हैं
नंदा देवी राजजात
बारह साल बाद हिमालयी महाकुंभ के रूप
में आयोजित होने वाली नंदा देवी राजजात में गढ़वाल एवं कुमाऊं क्षेत्र के कई
देवी-देवताओं की छंतौलियां भाग लेती हैं। इस ऐतिहासिक धार्मिक यात्रा में बाबा
केदारनाथ एवं श्री बदरीनाथ धाम से भी भगवान शिव एवं विष्णु की छंतौली भी शामिल
होती है। गढ़वाल में मां नदा और कुमाऊं में मां सुनंदा के नाम से पूज्य देवी को कई
रूपों में पूजा जाता है। राजजात में देवी के साथ ही आठ रूप भी शामिल होते हैं।
चमोली से कुरुड़ की डोली दशोली डोली के साथ कुरुड़ की डोली बधाण डोली के साथ
यात्रा में शामिल होती है। देवाल ब्लाक के नंदकेशरी में इन छंतोलियों एवं डोलियों का
मिलन होता है। जबकि कुमाऊं से अल्मोड़ा, नैनीताल
से मां सुनंदा की छंतोली और डोलियां
श्रीनंदा राजजात में हिस्सा लेती हैं। वर्ष 2000 में हुई राजजात में क्षेत्र की 150 से अधिक देव डोलियों और छंतौलियों
ने शिरकत की थी।
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