Tuesday 30 November 2010

एक आंदोलन से नदी में बहने लगा पानी

हल्द्वानी। एक आंदोलन चिपको, जिसने हरियाली को बचा लिया। एक आंदोलन ‘नशा नहीं रोजगार दो’ जिसने बहुतों को पीना भुला दिया। एक आंदोलन उत्तराखंड राज्य आंदोलन, जिसने अपना राज्य दिला दिया। ऐसा ही एक और आंदोलन जिसने सूखी नदियों में पानी ला दिया। यह ऐसी तसवीर है जिसमें अपना उत्तराखंड देश में हो रहे जन आंदोलनों का अगवा दिखाई देता है। राज्य स्थापना के इस दशक में पानी के लिए मारामारी मची, तो उत्तराखंड ‘पानी बचाओ, नदी बचाओ’ की मुहिम में भी सबसे आगे निकल गया। प्रेरणा भले ही मध्यप्रदेश के‘नर्मादा बचाओ’ आंदोलन से मिली हो, लेकिन सबसे अधिक असर अल्मोड़ा की कोसी घाटी में हुआ। वर्ष 2007-2008 में कोसी से कुछ जागरूक लोगों के साथ पदयात्रा के रूप में चला यह आंदोलन आज पूरे उत्तराखंड में पानी की तरह फैल गया है। अल्मोड़ा की कोसी, मनसारी और लोध घाटी, चंपावत की पंचेश्वर, बागेश्वर की सरयू घाटी, पिथौरागढ़ की गोरी और काली के अलावा गढ़वाल के उत्तरकाशी, चमोली और पौड़ी में इस आंदोलन का व्यापक असर है। लाखों लोग गैर हिमालयी नदियों बचाने के लिए आगे आए हैं। प्रदेश की 27.5 प्रतिशत कृषि भूमि को सिंचित करने वाली गैर हिमालयी नदियों को बचाने की यह अनूठी पहल है। ध्यान रहे कि इन छोटी नदियों से ही इस पहाड़ी राज्य का अस्तित्व है, वरन बड़ी नदियां तो हमेशा महानगरों के ही काम आईं हैं। हमेशा की ही तरह इस आंदोलन में भी जान महिलाओं ने ही फूंकी है। सैकड़ों महिला संगठन इस पर काम कर रहे हैं। कौसानी की तीन घाटियों में 200 से अधिक महिला संगठनों में हजारों महिलाएं चाल-खालों को बचाने में जुटी हैं। मेहनत रंग भी लाई है। गत गर्मियों में पानी के लिए भटकने वाले कोसी घाटी के करीब दो लाख लोगों को इस बार मशक्कत नहीं करनी पड़ी। कत्यूर घाटी के गोमती और गरुड़ गंगा ठ्ठके किनारे बसे कई गांवों के 25 हजार लोग इस आंदोलन के बाद अब अपनी गैर हिमालयी नदियों को बचाने निकल पड़े हैं। कभी वन विभाग से खुन्नस खाए लोग, आज विभाग के सहयोग से चाल-खाल बना रहे हैं। आंदोलन से प्रेरणा लेते हुए गगास में 300 से 500 तक चालें विकसित हो चुकी हैं। इस दशक की इससे बड़ी उपलब्धी और क्या हो सकती है कि हम अब तक दो बार देश की प्रमुख 44 नदियों को बचाने के लिए मेजबानी कर चुके हैं। इसी मंथन के निचोड़ से निकला पानी सूख चुकी उत्तराखंड की 28 गैर हिमालयी नदियों में बह रहा है। गत दिनों हुई झमाझम बरसात इंद्रदेव का आशीर्वाद बनकर बरसी। नदियों रीचार्ज हुईं तो, लोगों को समुचित पानी भी उपलब्ध हो पा रहा है। क असर -

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