Wednesday 19 June 2013

बरसों सुनी सुनाई जाती रहेंगी इस कयामत की कहांनियां

बादलों के दरम्यां... कुछ ऐसी साज़िश हुई
मेरा घर मिट्टी का था...मेरे ही घर बारिश हुई
उसको भी जिद है,बादलों को गिराने की और
हमें भी जिद है... वहीं घर बसाने की
कयामत की झलक तो आपने उत्तराखंड में देख ली. पर यकीन मानिए कयामत के बाद की तस्वीरें भी किसी कयामत से कम नहीं हैं

. गुस्साए बादल में लिपटी मौत के बाद आंसुओं की सुनामी जब थमी तो लरजती जमीन और खामोश नदी की लहरें अपने पीछे वो कहानियां छोड़ गईं जो बरसों सुनी और सुनाई जाती रहेंगी. क्या कयामत इसी को कहते हैं? क्या कयामत ऐसे ही आएगी? क्या दुनिया के खात्मे की तस्वीर ऐसी ही होगी? एक साथ हिंदुस्तान ने अपनी आंखों से तबाही की ऐसी दहला देने वाली तस्वीर इससे पहले शायद ही देखी हो. गुस्साए फूटे बादल की ऐसी बेलगाम और कातिलाना लहरें शायद ही कभी नजरों के आगे से इस तरह गुजरी हों. ऐसा लगता है मानो नदी शहर में उतर आई हो. ये सफेद तूफान कुछ और नहीं, गंगा, भागीरती और अलकनंदा की गुस्साई लहरें हैं, जो शहर-शहर, कसबे-कसबे को रौंदते हुए बस आगे बढ़ी जा रही हैं. रास्ते में जो भी मिला उसे कुचलते हुए, बहाते हुए, भगाते हुए, बर्बाद करते हुए. क्या घर, क्या बिल्डिंग, क्या गाड़ियां, क्या खेत-खलिहान और क्या इंसान. जो भी इसके रास्ते में आया वही तबाह हो गया. लहरों की रफ्तार इतनी तेज है कि लोगों को अहसास हो उससे पहले ही वो उन्हें बहा कर मलबे में तब्दील कर देतीं. लहरों के बीच में घर, गाडि़यां बह रही है डूब रही हैं. इन बेलगाम लहरों ने पूरी-पूरी कालोनी को लील लिया. लोग जान बचाने के लिए घरों से भागे, सड़कों को छोड़ा, पहाड़ों पर पनाह ली. मदद मांगते रहे पर जब पूरा इलाका ही समंदर बन जाए तो मददगार कहां से पहुंचेगा? जो कल तक चमोली जिले का एक खुशहाल इलाका हुआ करता था, उसके अब चारों तरफ पानी ही पानी. बस निशानी के तौर पर बचे-खुचे उजड़े घर बचे हैं. तस्वीरें गवाह हैं कि पूरा इलाका मलबे में तब्दील हो चुका है. अब सवाल ये उठता है कि इलाके के लोंगों का क्या हुआ? तो फिलहाल खबर यही है कि हजारों लोग गुम हैं. कहां हैं किस हाल मे हैं. पता नहीं. पर तबाही की ये खौफनाक तस्वीर सबको एक ही डर से डरा रही है. गुस्साई लहरें थमने और मलबा हटने के बाद. कयामत सिर्फ चंद मिनट की थी. पर उस कयामत से उबरने में उत्तराखंड को सालों लग जाएंगे. एक-एक बस्ती को बसाने और संवारने में सदियां लग जाती हैं. पर उजड़ने में फकत चंद मिनट. गुस्साए बादल में लिपट कर आई तमतमाई लहरों ने उत्तराखंड के कई जिलों और बस्तियों के नामो-निशान तक मिटा दिए हैं. एक आशियाना बनाने में पूरी जिंदगी बीत जाती है. तो जरा सोचिए कि पूरी बस्ती बसाने में कितना वक्त लगा होगा? बस्ती कैसे और कितनी मुद्दत में बसती है ये तो नहीं दिखा. पर एक पूरी की पूरी बस्ती कैसे और कितनी देर में बर्बाद हो सकती है कैसे उस बस्ती का नामोनिशान मिटा सकता है ये इस प्रलय में जरूर दिखा. नदी की खौफनाक लहरें अपने साथ कोई कचरा नहीं, बल्कि पूरी की पूरी बसती को उखाड़ कर ले गई. सदियों से क़ुदरत ने जब-जब अपना तेवर बदला तो तबाही के ऐसे निशान छोड़े जो एक पल में इंसान और इंसानी बस्तियों को मिटा गए. कुदरत के कहर ने कई कई बार अनगिनत ज़िन्दगियों को हमेशा के लिये ख़ामोश कर दिया. मासूम और बेगुनाह कुदरती कहर के आगे बेबस और लाचार नजर आए. कुदरत हर बार बेधड़क कहर बरपाती रही और इंसान उजड़ते रही. क्योंकि कुदरत की ताकत पर इंसानी कानून का बस नहीं चलता. माफ कीजिएगा, लेकिन अगर कुदरत भी कहीं इंसानी कानून की ज़द में आता और इंसानों के लिए कुदरत को सज़ा दे पाना मुम्किन होता तो ना मालूम उसे अब तक कितनी बार सजा-ए-मौत मिल चुकी होती. उत्तरकाशी में गंगा किनारे बने चार मंजिला इमारत में कल तक इंसान बसते थे. पूरा का पूरा कुनबा पलता था. लेकिन 16 जून की सुबह होते-होते गंगा ने वो विकराल रूप धारण कर लिया कि ये मकान ताश के पत्तों की तरह ढह गया. वो तो भला हो, उत्तरकाशी प्रशासन और आस-पास के लोगों का, जिनकी बदौलत इस इमारत में रहनेवाले लोगों को हादसे से पहले ही बाहर निकाल लिया गया. ये बात है 16 जून की सुबह करीब सात बजे की. गंगा की लहरें लगातार इस इमारत की बुनियाद को कमज़ोर कर रही थी. यहां रहनेवाले लोग भले ही इस मकान को पहले ही खाली कर चुके थे. लेकिन जिंदगी भर तिनका-तिनका जोड़ कर इस मकान को बनानेवाले और यहां रहनेवाले बेबसी से अपनी जमापूंजी पर नजर जमाए हुए थे. लेकिन आखिरकार वो वक्त भी आया, जिसका डर सभी को था. पहले इस मकान का एक छोटा सा हिस्सा गंगा की तेज थपेड़ों का शिकार बन कर टूट गया और फिर अगले ही पल देखते ही देखते पूरी इमारत धराशाई होकर गंगा में समा गई. कुदरत के इस गुस्से के आगे आखिर किसका जोर चलता. सो, सभी बस तमाशबीन बने तबाही का ये मंजर देखते रहे. लेकिन बारिश और गंगा का गुस्सा अभी बाकी था. आसमान से बूंदों की शक्ल में तबाही नीचे उतरती रही और गंगा हर गुजरते लम्हे के साथ विकराल होती गई. एक वक्त ऐसा भी आया, जब अस्सीघाट पर मौजूद इस मंदिर की दिवारें पानी के थपेड़ों से कमजोर होने लगी. पुजारी और भक्तों ने जब मंदिर से दूरी बनाईं तो फिर भला भगवान को कैसे छोड़ा जाता. लिहाज़ा, इस मंदिर में स्थापित भगवान शंकर की मूर्ति भी हटा ली गई और अगले ही पल विकराल लहरों ने इस छोटे से मंदिर को भी लील लिया. उफनती नदियों और इन नदियों के साथ बह कर चट्टानों ने गाड़ियों का वो हाल किया है, जिसे देख कर यहां मची तबाही का अंदाजा लगाया जा सकता है. कई जगहों पर तो राहत के दौरान अचानक आई बाढ़ ने जेसीबी मशीन और ट्रकों तक को अपनी चपेट में ले लिया. ये हालत उत्तराखंड के महज़ किसी एक इलाके में नहीं रही. पूरे सूबे में अब तक कितनी गाड़ियां बही या बरबाद हुई, इसका पक्के तौर पर कोई आंकड़ा तो फिलहाल किसी के पास नहीं है. लेकिन एक अंदाजे के मुताबिक अब तक 300 से ज्यादा चार पहिया और उससे बड़ी गाड़ियां बह चुकी हैं. इंसानों की गिनती होनी अभी बाकी है. साजिश आसमानी थी आफत जमीन ने झेली. बादलों के बीच झगड़ा था. तबाही ज़मीन को झेलनी पड़ी. गुस्सा ऊपर आसमान में फूटा. सैलाब नीचे जमीन पर आया. कुदरत का कहर तो अपना काम कर चुका. बस्ती की बस्ती बर्बाद हो चुकी. अब कुछ बचा है तो बस बर्बादी का मंजर. वो मंजर जिसमें इंसान और भगवान सब एक से दिख रहे हैं. जिन भगवान शंकर ने कभी गंगाजी को अपनी जटाओं में धारण कर इस पृथ्वी की रक्षा की थी, कलियुग में उसी गंगाजी के प्रचंड वेग के सामने भगवान शंकर की ये मूर्ति अब डूबती हुई नजर आ रही है. पिछले 50 घंटों से भी ज्यादा वक्त से उत्तराखंड और हिमाचल समेत हिमालय की तराई में चल रही भयानक बारिश ने ना सिर्फ इंसान की ज़िंदगी मुहाल कर दी है, बल्कि लग रहा है कि गंगा ऋषिकेश में इंसानों की बनाई इस मूर्ति को भी अपने साथ बहाकर ले जाना चाहती है. लेकिन गंगा, भागीरथी, अलकनंदा, पाताल गंगा और पिंडर जैसी इन नदियों का गुस्सा इंसानों पर यूं ही नाजिल नहीं हुआ. बल्कि इसके पीछे एक ऐसी आसमानी साजिश रही, जिसने इन नदियों को अपने साहिलों से आगे बढ़ कर बहने को मजबूर कर दिया. जानकारों की मानें तो हिंदुस्तान में मानसून ने 16 जून को ही अपनी पहली दस्तक दी, लेकिन हिमालय के ऊपर मानसूनी हवाएं इससे एक दिन पहले यानि 15 जून को ही पहुंच चुकी थी. उधर, इस बार इत्तेफाक ये रहा कि भूमध्य सागर की ओर से पैदा हुआ एक पश्चिमी विक्षोभ यानि वेस्टर्न डिस्टर्बेंस भी अचानक ही हिंदुस्तान के आसमान पर आ धमका और ये दोनों हवाएं ऊपर क्या टकराईं, नीचे तबाही मच गई. इस टक्कर का नतीजा ये हुआ कि बादल एक नहीं, बल्कि कई जगह फटे और आसामन से पानी की वो धार उतरी, जिसने नदी तो नदी, रास्तों और आबादी को भी नदियों में तब्दील कर दिया... हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में लगातार हो रही भयानक बारिश का नतीजा ये हुआ कि इसमें फंस कर 8 लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे, जबकि आस-पास के पहाड़ी इलाकों में मौसम का लुत्फ उठाने पहुंचे 15 सौ से ज्यादा सैलानी जहां थे, वहीं फंस गए. उत्तराखंड के उत्तरकाशी, जोशीमठ, चमोली, पिथौरागढ़, टिहरी, रुद्रप्रयाग, और पौड़ी जैसे इलाकों में ना मालूम कितने ही रास्ते, कितने ही पुल, कितनी ही गाड़ियां बह गईं और कितने ही मकान जंमीदोज हो गए. और तो और राहत के काम में लगाई गई जेसीबी मशीनें, ट्रक और दूसरी गाड़ियां भी लहरों में समा गई. अकेले हेमकुंड साहिब में 200 बाइक और 80 अलग-अलग गाड़ियां उफनती अलकनंदा नदी का शिकार बन गईं. बारिश के साथ-साथ रह रह कर जमीन धंसने से भी आफ़त और बढ़ी. बद्रीनाथ और केदारनाथ के रास्ते में कई जगहों पर सड़कें ऐसे गायब हुईं कि देख कर समझना मुश्किल हो गया कि इन जगहों से कभी लोग और गाड़ियां भी गुज़रती होंगी. अब हालत ये है कि सरकार ने आईटीबी से लेकर सेना तक सभी से मदद मांगी हैं और जगह-जगह लोगों को निकालने के साथ-साथ सड़कों को फिर से चलने लायक बनाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन हालात कब सामान्य होंगे, ये दावे से कोई भी नहीं बता सकता. इसे कहते हैं मुसीबत का बादल फट पड़ना. जिस चमोली और धनोल्टी में खूबसूरती और सकून पसरा था, वहां आज दहशत फैली हुई है. मौत बनकर बरसे पानी ने राहत के तमाम रास्ते बंद कर दिए और वहां पहुंचे सैलानी जहां-तहां फंसे हुए हैं. चमोली जिले में गोविंदघाट पर अलकनंदा में इतना पानी आ गया है कि नदी की धारा गरजते हुए पूरी रफ्तार से बह रही है. यहां भूस्खलन की वजह से रास्ता बंद हो गया और बड़ी तादाद में यात्री यहां फंस गए. यहां से 18 किलोमीटर दूर जोशीमठ है. तीर्थयात्रियों को पैदल ही जोशीमठ की ओर रवाना कर दिया गया. चमोली, उत्तरकाशी, केदारनाथ, बदरीनाथ, टिहरी, रुद्रप्रयाग, पौड़ी, देहरादून, पिथौरागढ और नैनीताल जिलों में कई इलाके भारी बारिश की भयंकर मार झेल रहे हैं. हालात इस कदर बिगड़ गए हैं कि 200 से ज्यादा दो पहिया वाहन और 80 के करीब दूसरी छोटी बड़ी गाड़ियां देखते देखते अलकनंदा की धारा में समा गईं. एक पुल, 5 होटल और यहां तक कि एक हेलीकॉप्टर भी नदी में बह गया. हेमकुंड पर्वत घाटी में 5 हज़ार से ज्यादा यात्रियों की जान पर बन आई है. बिजली और टेलीफोन सेवाएं तबाह हो चुकी हैं. उधर, मसूरी के ऊपर धनोल्टी में बादल फटने से लगभग 400 सैलानी फंस गए हैं. कौन कहां है और किस हाल में है कहना मुश्किल है. जो लोग हेमकुंड साहिब की यात्रा पर जा रहे थे या वहां से लौट रहे थे, उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि कब इस मुसीबत से निकल पाएंगे, क्योंकि डराने वाला मंजर उन्होंने अपनी आंखों से देखा. उत्तरकाशी में एक मंदिर तूफानी सैलाब के आगोश में समा गया. यहां गंगा की धारा बौखलाई हुई है, जो कुछ उसके रास्ते में आता है उसे मिटा देने पर आमादा है. एक 4 मंजिला इमारत यहां पहले ही पानी में गिरकर मिट चुकी है. और बारिश है कि थमने का नाम नहीं ले रही. मुसीबत की इस घड़ी में सेना राहत और बचाव के काम में कूद पड़ी है. सेना ने उत्तरकाशी, जोशीमठ, रुद्रप्रयाग, गोविंदघाट, हनुमानचेट्टी और धारचूला में अपने शिविर लगाए हैं जहां यात्रियों के खाने, पीने और इलाज की जरूरतें पूरी करने की कोशिश की जा रही है. सेना ने फंसे हुए यात्रियों की सहायता के लिए हेल्पलाइन नंबर मुहैया करा दिए हैं. ये नंबर हैं 1800 180 5558 और 1800 419 0282. इन नंबरों पर संपर्क करके, सेना की मदद हासिल की जा सकती है. साथ ही जिन परिवारों के लोग उत्तराखंड की यात्रा पर गए हैं, वे भी हेल्पलाइन पर अपने लोगों की खोज खबर ले सकते हैं. हालांकि उत्तराखंड के पहाड़ों पर आई इस प्रलय में जगह-जगह टेलीफोन नेटवर्क भी ध्वस्त हो गए हैं.

2 comments: