Tuesday 9 October 2012

35 फीसद से ज्यादा आबादी ने छोड़ा उत्तराखंड!

अरविन्द शेखर देहरादून।- राज्य गठन के बाद से उत्तराखंड में पलायन की समस्या ने भयावह रूप ले लिया है
। प्रदेश की 35 फीसद से ज्यादा आबादी प्रदेश छोड़ चुकी है। प्रदेश के पर्वतीय इलाकों से बेहतर शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सुविधाओं की तलाश में आबादी का बड़ा हिस्सा मैदानों की ओर पलायन कर चुका है। प्रदेश के योजना विभाग के तहत आने वाले सांख्यिकी विभाग की ओर से राज्य गठन के बाद पहली बार किए गए सव्रेक्षण से यह तथ्य उजागर हुआ है। सव्रेक्षण के मुताबिक 1000 में से 350.71 प्रदेशवासी अच्छी शिक्षा और नौकरी की तलाश में दूसरे राज्यों में जा चुके हैं, जबकि 7.014 फीसद लोग दूसरे देशों की ओर पलायन कर चुके हैं। करीब चार माह पहले किए गए इस सव्रेक्षण में 390 ग्रामीण क्षेत्रों से 22402 और 65 शहरी क्षेत्रों से 4739 नमूने लिए गए। सव्रेक्षण में प्रदेश के तीन जिलों के तीन विकास खंडों के 10 राजस्व ग्राम और हर जिले की पांच-पांच शहरी निकायों को शामिल किया गया। सांख्यिकी विभाग के निदेशक वाईएस पांगती का कहना है कि सव्रेक्षण से इस धारणा की पुष्टि नहीं हुई कि मुख्यत: रोजगार के अभाव के कारण लोग पलायन कर रहे हैं, बल्कि यह तथ्य सामने आया है कि शिक्षा का कमजोर ढांचा पलायन का मुख्य कारण है। पांगती का कहना है कि प्रदेश के गठन के बाद पलायन को लेकर यह पहला सव्रेक्षण है। उनके मुताबिक दिलचस्प बात यह भी है कि राज्य गठन के बाद दूसरे राज्यों से प्रदेश में बहुत सी महिलाएं आई हैं। शादी आदि के जरिये प्रदेश में 1000 की आबादी पर 708.21 महिलाएं आई हैं। जबकि राज्य बनने के बाद 1000 की आबादी पर महज 271.78 पुरुष ही राज्य में निवास करने आए। विभाग के निदेशक का कहना है कि शिक्षा की सुविधाओं की कमी, अच्छी नौकरियों का अभाव और स्वास्थ्य सुविधाओं की अनुपलब्धता लोगों को पहाड़ छोड़ने को मजबूर कर रही है। उनका कहना है कि पुरुष आबादी के शहरों की ओर पलायन की मुख्य वजह सेवानिवृत्ति, संविदा की नौकरी, शहरों में घरों का निर्माण, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, नौकरी की तलाश और भूस्खलन और बाढ़ आदि पाई गई हैं। पलायन के जो ताजे आंकड़े सामने आए हैं उनसे प्रदेश में अपनाए गए विकास के मॉडल पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। बता दें कि पिछले वर्ष केंद्र सरकार के नेशनल सैंपल सव्रे ऑग्रेनाइजेशन (एनएसएसओ) की रिपोर्ट ‘माइग्रेशन इन इंडिया’ में यह दिलचस्प तथ्य सामने आया था कि उत्तराखंड में गांवों से नहीं बल्कि शहरों से ज्यादा पलायन हो रहा है। माइग्रेशन इन इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड में प्रति हजार लोगों पर शहरों से 486 लोग पलायन कर रहे हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह तादाद 344 व्यक्ति प्रति हजार है। इसमें बड़ा हिस्सा उन लोगों का है जो रोजगार की तलाश में अपना गांव-शहर छोड़ रहे हैं। शहरों से प्रति हजार पुरुषों में 397 तो प्रति हजार महिलाओं में 597 पलायन कर रही हैं, जबकि गांवों में तस्वीर यह है कि प्रति हजार पुरुषों में से 151 और प्रति हजार महिलाओं में 539 महिलाएं गांवों से पलायन कर रही हैं। वैसे देखा जाए तो प्रदेश में हर साल लगभग 415 लोग गांव और शहर छोड़ रहे हैं। यह हाल चिंताजनक भी है क्योंकि देश में यह औसत करीब 307.5 का है। देश में प्रति हजार लोगों पर पलायन की दर शहरों में 354 और गांवों में 261 है। देश में शहरों में प्रति हजार पर 259 महिलाएं और 402 पुरुष पलायन कर रहे हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर पुरुषों में प्रति हजार 54 पुरुष और महिला की दर प्रति हजार 477 है। रिपोर्ट से पता चला था कि ग्रामीण क्षेत्रों में पूरे परिवार का पलायन काफी कम है, जबकि शहरों में यह ग्रामीण दर से काफी ज्यादा है। परिवार का पलायन जहां केवल राज्य के भीतर ही है जबकि शहरों में पलायन करने वाले लोगों में से अधिकांश गांवों से आए हैं। 1000 में से 350.71 प्रदेशवासी अच्छी शिक्षा और नौकरी की तलाश में बाहर गये सांख्यिकी विभाग के सव्रेक्षण के मुताबिक 7.014 फीसद लोगों का दूसरे देशों की ओर पलायन साभार-अरविन्द शेखर/एसएनबी(राष्ट्रीय सहारा देहरादून)

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