Monday 30 April 2012

उत्तराखंड: रनवे है, पर हवाई उड़ानें नहीं

उत्तराखंड में पर्यटन और उद्योगों के विकास का हर रोज दावा किया जा रहा है. राज्‍य बनने के बाद से यहां 30,000 करोड़ रु. से ज्‍यादा का पूंजी निवेश कर कई औद्योगिक इकाइयां लगाई गई हैं,
मगर पर्यटन और औद्योगिक विकास के लिहाज से खासा महत्व रखने वाली उड्डयन सेवाएं हर रोज दम तोड़ रही हैं. राजधानी देहरादून को छोड़कर प्रदेश के किसी भी स्थान से कोई हवाई सेवा कहीं के लिए भी उपलब्ध नहीं है. यहां औद्योगिक विकास के लिए उत्तराखंड राज्‍य औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड (सिडकुल) की स्थापना हुई, जिसके बाद ऊधमसिंह नगर के रुद्रपुर, काशीपुर, पंतनगर के साथ ही हरिद्वार के बहादराबाद और देहरादून के सेलाकुई में औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना की गई. पंतनगर, रुद्रपुर और काशीपुर की औद्योगिक इकाइयों में तो देश के नामचीन उद्योगपतियों टाटा और बजाज ने भी निवेश किया. इस क्षेत्र में बाहरी निवेशकों की 1,000 से ज्‍यादा औद्योगिक इकाइयां हैं, लेकिन इसके बावजूद हवाई सेवा बिल्कुल जर्जर है. राज्‍य में हवाई सेवाओं के विस्तार के लिए चार हवाई पट्टियां ज्‍यौलीग्रांट (देहरादून), पंतनगर (ऊधमसिंह नगर), नैनीसैनी हवाई पट्टी (पिथौरागढ़) और गौचर (रुद्रप्रयाग) बनाई गईं, लेकिन देहरादून के ज्‍यौलीग्रांट एयरपोर्ट को छोड़ बाकी तीनों हवाई अड्डों के रनवे पर बच्चे साइकिल चला रहे हैं और मवेशी घास चर रहे हैं. 
पंतनगर एयरपोर्ट से दो बार नियमित उड़ानों की कोशिश हो चुकी है, पर कभी सफल नहीं हुई. स्थिति यह है कि पंतनगर, रुद्रपुर और काशीपुर क्षेत्रों में पूंजी निवेश करने वाले उद्योगपति खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. या तो उन्हें निजी विमान किराए पर लेकर यहां आना पड़ता है या सड़क मार्ग से कहीं ज्‍यादा समय खर्च करना पड़ता है.
सिडकुल की स्थापना और तराई में उद्योगीकरण के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुखिया नारायणदत्त तिवारी की पहल पर जैग्सन एयरलाइंस ने 2005 में पंतनगर एयरपोर्ट से अपनी सेवाएं शुरू की थीं.
कंपनी का 18 सीटर (डॉर्नियर 228) 2008 तक यहां से उड़ता रहा. इस सेवा के लिए राज्‍य सरकार कंपनी को 9 सीट की सब्सिडी भी दे रही थी. इस दौरान 2008 में हवाई अड्डे के विस्तार के बहाने सरकार ने सब्सिडी से हाथ खींच लिए, जब तत्कालीन नागरिक उड्डयन सचिव पी.सी. शर्मा ने 25 मार्च, 2008 को डेक्कन एयरलाइंस को पंतनगर-दिल्ली उड़ान सेवा शुरू करने के लिए एप्रोच किया, नतीजा सिफर रहा.
दो साल तक बाधित रहने के बाद पंतनगर से हवाई सेवाएं 11 जून, 2011 को फि र शुरू हुईं. जब पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' की पहल पर किंगफि शर ने अपनी नियमित उड़ानें शुरू कीं. लेकिन करीब छह माह चलने के बाद एक बार फिर इस एयरपोर्ट से 31 दिसंबर, 2011 से उड़ानें बंद पड़ी हैं.
किंगफिशर एयरलाइंस पंतनगर एयरपोर्ट से अपना एटीआर-42, 48 सीटर विमान चला रही थी. पंतनगर एयरपोर्ट के कार्यकारी मैनेजर टी.एस. बृजवाल का कहना है कि घाटे के कारण उड़ानें बंद नहीं की गई हैं. यहां से दिल्ली के लिए रोजाना एक उड़ान थी, जिसका औसत प्रतिदिन 80 प्रतिशत सवारी से ज्‍यादा था. अब केवल वही लोग यहां से उड़ान भरते हैं जो निजी विमान लेकर आते हैं.
पंतनगर से चल रही हवाई सेवाएं बंद होने से तराई में उद्योग लगा चुके उद्योगपति भी खासे नाराज हैं. कुमांऊ गढ़वाल चैंबर ऑफ  कॉमर्स के अध्यक्ष दरबारा सिंह कहते हैं कि आज के जमाने में बिना कनेक्टिविटी के डेवलपमेंट के बारे में सोचना बेकार है.
बकौल दरबारा तराई से विमान सेवा शुरू करने के लिए कस्टमर हैं, पैसेंजर हैं. उसके बाद भी इस क्षेत्र का यह दुर्भाग्य है. वे कहते हैं कि पिछली राज्‍य सरकार डीजीसीए और एयरपोर्ट अथॉरिटी को इस मामले में सहमत नहीं कर पाई. अब नई सरकार को इस बारे में पहल करनी होगी, नहीं तो राज्‍य में हो रहे पूंजी निवेश पर भी जल्दी ही इसका बहुत बुरा असर नजर आएगा.
ज्‍यौलीग्रांट और पंतनगर के अलावा राज्‍य में दो हवाई पट्टियां सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के नैनीसैनी और रुद्रप्रयाग जिले के गौचर में बनाई गई हैं. दोनों ही विस्तार की बाट जोह रही हैं. 1,500 मीटर की पिथौरागढ़ हवाई पट्टी छोटे विमानों के उतरने के लिए उपयुक्त है. हालांकि सरकार ने उसके विस्तार के लिए 22 करोड़ रु. की नई योजना बनाकर धन अवमुक्त कर दिया है. पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी डॉ. आर. राजेश कुमार के मुताबिक, जल्दी ही हवाई पट्टी के विस्तार का काम शुरू किया जाएगा.
पिथौरागढ़ में भी हवाई सेवाओं के विस्तार को लेकर राजनीति कम नहीं हुई. इस बार के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नवंबर, 2011 में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री और स्थानीय विधायक प्रकाश पंत ने एक 22 सीटर विमान हवाई पट्टी पर उतारकर दावा किया था कि पिथौरागढ़ में हवाई सेवाएं अगले महीने से शुरू हो जाएंगी.
चुनाव से ठीक पहले हवाई पट्टी पर उतारा गया यह विमान एक निजी कंपनी का था. दरअसल वोट बैंक बनाने के लिए ऐसा किया गया. हालांकि यह 22 सीटर विमान मंत्री जी की नैया पार नहीं करा पाया और वे अपना चुनाव हार गए. यही हाल गौचर में बनी हवाई पट्टी का भी है. सरकार यहां से सेवाएं शुरू करने को लेकर कभी गंभीर नहीं रही, जबकि यहां से पवन हंस और प्रभातम जैसी निजी कंपनियां यात्रियों को चारधाम की यात्रा कराकर लोगों के लिए उपयोगी सेवा दे रही हैं.
राज्‍य गठन के 11 साल में उत्तराखंड में तीसरी निर्वाचित सरकार बन गई है. इस दौरान भाजपा और कांग्रेस राज्‍य में बारी-बारी से सत्ता का सुख भोग चुकी हैं, लेकिन हवाई सेवाओं के विस्तार के लिए किसी भी सरकार द्वारा कोई पहल नहीं की गई. उड्डयन सेवाओं को लेकर वर्तमान सरकार भी कितनी गंभीर रहेगी, इसका अंदाजा इस बात से हुआ जब 1 अप्रैल को मंत्रिमंडल विस्तार में नागरिक उड्डयन विभाग किसे मिलेगा, इसका जिक्र तक नहीं हुआ. क्योंकि प्रदेश सरकार अभी भी नागरिक उड्डयन को विभाग ही नहीं मानत
प्रवीण कुमार भट्ट | सौजन्‍य: इंडिया टुडे

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