Tuesday 27 September 2011

आखिर कनकै बचलि भाषा’-

कोटद्वार: धाद लोक भाषा एकांश के तत्वावधान में ‘आखिर कनकै बचलि भाषा’(आखिर कैसे बचेगी भाषा) विषय पर आयोजित व्याख्यान माला में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी गढ़वाली,
कुमाऊंनी भाषा को बचाने के लिए सामूहिक प्रयास करने की जरूरत पर जोर दिया गया।
बीईएल के सामुदायिक भवन में आयोजित व्याख्यान माला में मुख्य अतिथि भाषा वैज्ञानिक एवं गढ़वाली शब्द कोश के संपादक डॉ. अचलानंद जखमोला ने कहा कि लोकभाषाएं हमारी संस्कृति की पहचान की अनिवार्य कड़ी है। भाषा के विकास में सरकार, समाज, साहित्यकार व संपादक अपनी-अपनी भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार जिन भाषाओं को मान्यता देती है। आम जनता का ध्यान उन्हीं भाषाओं की ओर जाता है। उन्होंने कहा कि गद्य लेखन से भाषा में निखार आता है व वह स्वत:स्फूर्त होकर मानक भाषा की ओर प्रवृत्त होती है।
मुख्य वक्ता विमल नेगी ने कहा कि यूनेस्को की एक रिपरेट के अनुसार विश्व स्तर पर कई बोली-भाषाएं विलुप्त होने की कगार पर है, उनमें गढ़वाली व कुमाऊंनी भाषा भी शामिल है। उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण, उदारीकरण व भूमंडलीकरण के कारण लोग अपनी मातृभाषा से अलग-थलग हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य निर्माण के दस वषरे बाद भी सूबे की सत्तासीन सरकारों ने भाषा को बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए। उन्होंने भाषा को बचाने के लिए गढ़वाली व कुमाऊंनी भाषाओं को आठवीं अनुसूचित में शामिल करने के लिए दबाव बनाना होगा।
साहित्यकार योगेश पांथरी की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में धाद महिला सभा की अध्यक्ष शैल जखमोला, सचिव माधुरी रावत, एपी डंगवाल, डा.नंदकिशोर ढौंढियाल, धाद संस्था के महासचिव तन्मय मंमगाई, अशोक उनियाल, डा.शक्तिशैल कपरवाण, सुरेंद्र सिंह नेगी, प्रकाश कोठारी, स्वर्णिका नेगी, जेएस रावत, वीरेंद्र पंवार, वीरेंद्र बहुगुणा, दर्शन सिंह बिष्ट आदि मौजूद रहे। संचालन राजेंद्र कोटनाला ने किया।

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