Saturday 16 April 2011

History will be lost and Ssirane इतिहास में खो जाएंगे घोंटी और सिरांई

नई टिहरी - टिहरी बांध परियोजना में अनेक गांव जलमग्न हुए हैं, जो अपने विस्थापित इलाकों में उसी नाम से बसाये गए। विस्थापित होने वाले कस्बों में सिरांई और घोंटी ऐसे कस्बे रहे हैं जो कई पट्टियों के केन्द्र बिन्दु तो रहे हैं साथ ही यहां पर बड़ी जनसंख्या के भू-भाग के कभी व्यापारिक केन्द्र के रूप में भी जाने जाते थे। टिहरी बांध बनने के बाद न तो सिरांई आस पास के क्षेत्र में बसाया गया और न ही घोंटी।आने वाले समय में इन स्थानों का इतिहास से भी नाम मिट जाएगा। टिहरी बांध की झील बनने से पूर्व की बात करें तो टिहरी जिले के घोंटी और सिरांई नाम आते ही हर व्यक्ति के जेहन में यही दृश्य आता कि उक्त स्थान पर पहुंचने के बाद घोड़े-खच्चरों की ढूंढ शुरू हो जाती जो दर्जनों गांव के लिए हर रोज चलते। घनसाली के पास घोंटी एक ऐसा कस्बा था जिसमें करीबन चार दर्जन से अधिक दुकानें थी। इन दुकानों में वस्तुविनिमय भी होता था। लोग ग्रामीण क्षेत्रों से कृषि उपज यहां के दुकानदारों को बेचते और वहां से अपनी जरूरत का सामान ले जाते। यदि घोंटी की बात की जाए तो यह ढुंगमन्दार, धारमण्डल, कोटी फैगुल और पट्टी खास के करीबन एक लाख लोगों का व्यापारिक केन्द्र था। हर गांव से सुबह दर्जनों खच्चर और घोड़े यहां आते और शहरी क्षेत्रों से आने वाले लोगों का सामान के साथ साथ ग्रामीणों क्षेत्रों की रोजमर्रा की वस्तुएं गांव के लिए ले जाते। सैकड़ों लोगों का व्यवसाय घोड़े खच्चरों पर टिका था। टिहरी बांध में जलमग्न होने के बाद घोंटी अन्यत्र कहीं नहीं बस पाया। झील बन जाने से धारमण्डल और ढुंगमन्दार क्षेत्र के लोगों के लिए घोंटी से ऊपर डूब क्षेत्र से ऊपर कहीं भी आने के लिए कोई रास्ता ही नहीं है, जिससे नया घोंटी न तो कहीं बस पाया और न ही नये घोंटी के बसाये जाने का कोई शुलभ स्थान ही मिल पाया। रही सही कसर प्रस्तावित घोंटी पुल के निर्माण न होने से निकल गई। यह माना जा रहा था कि घोंटी और पिपोला के बीच पुल निर्माण होने से पुल के दोनों ओर घोंटी बाजार के रूप में एक कस्बा विकसित हो जाएगा, जो ढुंगमंदार व कोटी फैगुल के दर्जनों गांवों का व्यापारिक केन्द्र बन पाएगा। यही स्थिति सिरांई के साथ भी रही है, सिरांई कभी सारजूला, रैका पट्टी का मिलन केन्द्र रहा है। खासकर रैका के एक दर्जन से अधिक गांव के लिए यहीं से सामान के खच्चर लदते और इस पूरी पट्टी का यह मोटरहेड भी था। जहां पर लोग उतरते और आस-पास के अपने गांवों में सामान पहुंचाने के लिए घोड़े-खच्चरों की ढूंढ करते। ग्रामीण क्षेत्र से भी विभिन्न प्रकार कृषि उपजें सहित कई वस्तुओं का यहां पर विनिमय होता। नजदीक बसे टिहरी शहर से भी लोग ग्रामीण उपज को खरीदने को भी यहां आते। सिरांई कई गांवों का व्यापारिक केन्द्र था, जिसमें करीबन पांच दर्जन से अधिक दुकानें स्थापित थी। झील के बीच में आने के कारण सिरांई के डूब क्षेत्र से उपर बसने की कहीं गुजाइश ही नहीं बची। जिससे नया सिरांई आज तक स्थापित नहीं हो पाया है। यहां के व्यापारियों को पुनर्वासित स्थलों पर दुकानें देने की बात पुनर्वास विभाग ने की है लेकिन न तो सिरांई और न ही घोंटी नाम का कोई कस्बा बस पाया। इन कस्बों के स्थापित होने में भले ही सैकड़ों वर्ष लग गए हों लेकिन इतिहास के पन्नों मे अब कुछ वर्षों के बाद लोग इन कस्बों का नाम ही भूल जाएंगे। नहीं बस पाए इन नामों के कस्बे कभी ग्रामीण क्षेत्रों के बड़े व्यापारिक केंद्र थे ये कस्बे

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