Saturday 23 October 2010

एलटी संवर्ग के रिक्त पदों के लिए आवेदन की मियाद बढ़ाई 27नवंबर

आवेदन की मियाद बढ़ाई नैनीताल: एलटी संवर्ग के रिक्त पदों के लिए आवेदन की मियाद शासन ने 5 से बढ़ाकर 27 नवंबर कर दी है। मंडल में सामान्य के 679 व महिला वर्ग के 60 पदों के लिए आवेदकों में होड़ मची हुई है। प्रवेश परीक्षा केंद्रों का निर्धारण भी कर दिया गया है। उल्लेखनीय है 30 सितंबर को शिक्षा विभाग की ओर से एलटी के रिक्त पदों के लिए नियुक्ति की अधिसूचना जारी की गयी। गढ़वाल मंडल में सामान्य के 515 व महिला संवर्ग के 50 तथा कुमाऊं में सामान्य वर्ग के 679 व महिला वर्ग के 60 पदों के लिए विज्ञप्ति जारी की गई। मंडल में सामान्य वर्ग में हिंदी के 109, अंग्रेजी के 108, संस्कृत के 35,गणित के 53, विज्ञान के 90, सामान्य विषय के 86, कला के 108, शारीरिक शिक्षा के 84 व गृह विज्ञान के 6 पद शामिल हैं। जबकि महिला वर्ग में हिंदी व गणित के 5-5, अंग्रेजी व संस्कृत के 3-3, शारीरिक शिक्षा के 16, कला के 21, गृह विज्ञान के 6 व विज्ञान विषय के एक पद के लिए नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गई है। पूर्व में शासन ने आवेदन पत्र जमा करने की अंतिम तिथि 5 नवंबर निर्धारित की थी, जिसे अब बढ़ाकर 27नवंबर कर दिया गया है। उत्तराखंड प्राविधिक शिक्षा परिषद के तत्वावधान में होने वाली एलटी की प्रवेश परीक्षा के लिए परीक्षा केंद्रों का निर्धारण कर लिया गया है। परीक्षा के लिए मंडल में नैनीताल, हल्द्वानी, रुद्रपुर, काशीपुर, खटीमा, अल्मोड़ा, द्वाराहाट, बागेश्र्वर, पिथौरागढ़ को केंद्र बनाया गया है। परीक्षा तिथि का ऐलान आवेदन जमा होने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद होने की संभावना है।

Thursday 14 October 2010

नियुक्तियों का पिटारा

प्रदेश में एक बार फिर शिक्षा महकमे में रिक्त सैकड़ों पदों पर नियुक्तियों का पिटारा खुल गया है। प्रशिक्षित बेरोजगार युवा लंबे अरसे से एलटी शिक्षकों के पदों पर नियुक्तियों की बाट जोह रहे हैं। तकरीबन चार महीने की कड़ी मशक्कत के बाद नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गई है। हालांकि, इस प्रक्रिया में आवेदन तो मांगे गए, लेकिन रिक्त पदों का ब्योरा नहीं दिया गया। इस संबंध में शिक्षा महकमे को एलटी से प्रवक्ता पदों पर पदोन्नत किए गए शिक्षकों के कार्यभार ग्रहण करने का इंतजार है। इसके बाद रिक्त पदों में इजाफा हो सकता है। एक बार पदों की संख्या विज्ञापित करने के बाद उसमें संशोधन को काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है। सरकार ने नियुक्ति के साथ ही महकमे में पदोन्नति की राह भी साफ कर दी है। निदेशक से लेकर अपर निदेशक, संयुक्त निदेशक, उप निदेशक और प्रधानाचार्यों के पद काफी संख्या में रिक्त हैं। पदोन्नति के लिए तय समय सीमा में पचास फीसदी छूट देने के कैबिनेट के निर्णय से शिक्षा महकमे को लाभ मिलना तय है। अभी महकमे में विभिन्न स्तरों पर चुस्त-दुरुस्त मुआयने की कमी महसूस की जा रही है। इससे प्राइमरी से लेकर माध्यमिक स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता पर असर तो पड़ा ही, शिक्षा से संबंधित राष्ट्रीय परियोजनाओं के क्रियान्वयन की गति मंद हो रही है। इसके मद्देनजर पदोन्नति और नियुक्ति को लेकर सरकार का फैसला अच्छा कदम है लेकिन ऐसे कदमों के बेहतर परिणाम तब ही दिखेंगे, जब उन पर सूझबूझ के साथ ही जल्द अमल किया जाए। पिछले कुछ अरसे से शिक्षा के क्षेत्र को खासी तवज्जो दी गई है। तकनीकी शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा के साथ विद्यालयी शिक्षा को लेकर हाल ही में लिए गए फैसलों ने इन क्षेत्रों में शैक्षिक सुधार की उम्मीदें बढ़ाई हैं। स्कूल गवर्नेंस के लिए शिक्षकों, अभिभावकों के मध्य संवाद को सशक्त करने की जरूरत भी है। विभिन्न योजनाओं में इसका प्रावधान है, लेकिन उन पर अमल को लेकर संजीदगी दिखाई नहीं दे रही। सरकार को चाहिए कि इस मामले में शिक्षा से जुड़े महकमों की कार्यप्रणाली में बुनियादी बदलाव पर भी ध्यान दे, ताकि प्रदेश में मानव संसाधन की कमी जल्द पूरी की जा सके। -

उत्तराखण्ड अधीनस्थ शिक्षा (प्रशिक्षित स्नातक श्रेणी) सेवा में सहायक अध्यापक/अध्यापिका के पदों एवं जमा करने की अन्तिम तिथि 05 नवम्बर 2010

कार्यालय निदेशक, विद्यालयी शिक्षा, उत्तराखण्ड, ननूरखेड़ा, देहरादून विज्ञापन संख्याः/एल0टी0/ 01 /2010-11 दिनांक 30, सितम्बर, 2010 विज्ञप्ति उत्तराखण्ड अधीनस्थ शिक्षा (प्रशिक्षित स्नातक श्रेणी) सेवा में सहायक अध्यापक/अध्यापिका के पदों एवं जमा करने की अन्तिम तिथि 05 नवम्बर 2010 के सायं 5 बजे तक है। आवेदन पत्र मात्र पंजीकृत डाक से सचिव, उत्तराखण्ड प्राविधिक शिक्षा परिषद् रूड़की (हरिद्वार), पिन कोड-247 667 के पते पर ही भेजा जाना है। पूरी जानकारी के लिए देखे-http://gov.ua.nic.in/schooleducation/Announcement/vigyapan%20LT%2070%25.pdf

Friday 8 October 2010

दुनिया की नामचीन हस्तियों में शुमार आचार्य बालकृष्ण

हरिद्वार योग और आयुर्वेद में प्रसिद्धि की पताका फहराने वाले पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण को दुनिया की नामचीन हस्तियों की सूची में शुमार किया गया है। अमेरिका की बहुचर्चित पत्रिका हू-इज-हू बॉयोग्राफी ने आचार्य बालकृष्ण को योग और आयुर्वेद में बेहतर काम करने के लिए चुना है। हू-इज-हू पत्रिका अपने 29वें संकलन में आचार्य बालकृष्ण की पूरी बॉयोग्राफी प्रकाशित करेगी। पूरी दुनिया के करीब 215 देशों की जानी-मनी हस्तियों की जीवनी से सजी से किताब नवम्बर में प्रकाशित होगी। बेहद शांत स्वभाव और काम के प्रति गंभीर व्यक्तित्व के धनी आचार्य बालकृष्ण की प्रतिभा का लोहा दुनिया मानने लगी है। योग गुरु बाबा रामदेव के सबसे करीबी आचार्य बालकृष्ण को योग और आयुर्वेद पर अनूठा काम करने के लिए अमेरिका की हू-इज-हू मैगजीन ने वर्ष 2010-11 के अंक के लिए चुना है। हू-इज-हू मैगजीन के लिए कला, विज्ञान, बिजनेस, स्वास्थ्य आदि क्षेत्र में असाधारण कार्य करने वाली शख्सियतों का चयन करने वाली निर्णायक मंडली ने आचार्य बालकृष्ण को आयुर्वेद में उनके प्रयासों और मेहनत को आधार बनाया है। पत्रिका नवम्बर में प्रकाशित की जाएगी। 345 डॉलर की इस वार्षिक पत्रिका को अमेरिका के साथ-साथ दुनियाभर में सर्कुलेट किया जाएगा। हू-इज-हू में चयनित होने पर आचार्य बालकृष्ण ने बताया कि इस सफलता का सारा श्रेय उनके मिशन के साथ जुड़े हजारों लोगों को जाता है। उन्होंने बताया कि वे कर्म को ही प्रधान मानते हैं। पूरी दुनिया में योग और आयुर्वेद का प्रचार हो रहा है। एक बार फिर भारत विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर है। ये है हू-इज-हू हरिद्वार: अमेरिका की जानी-मानी वार्षिक पत्रिका हू-इज-हू पूरे विश्व से कला, स्वास्थ्य और विज्ञान में अनूठा कार्य करने वाले लोगों की बॉयोग्राफी प्रकाशित करती है।

संस्कृति से जुड़े हैं परंपरागत जलस्रोत

नौलों में दिखती है आस्था, संस्कृति व परंपरा की जीवंतता नवीन बिष्ट, अल्मोड़ा: जल, वायु, अग्नि में जीवन निहित है। आदिकाल से ही मानव तीनों जीवनदायिनी तत्वों का पूजक रहा है। हमारी संस्कृति से परंपरागत जलस्रोतों के संरक्षण, संवद्र्धन से गहरा रिश्ता है। संस्कृति के साथ ही जलस्रोतों का संरक्षण, संवद्र्धन आज तक अनवरत चल रहा है। जल ही जीवन है की उक्ति को लेकर आदिमानव से ही चिंतन की शुरूआत हुई थी। इस बात को अनेक शोधकर्ताओं ने अपने शोध पत्रों में उल्लिखित किया है। पर्वतीय क्षेत्रों में जब मानव विकास की दिशा में कदम रख रहा था तो सबसे पहले उसने ऐसे स्थानों में अपना आवास या आश्रय बनाया जहां जल था। इस विषय पर पुरातत्ववेत्ता डा.चन्द्र सिंह चौहान ने अपने शोध में परंपरागत जलस्रोत व संस्कृति विषय पर हर पहलू को छुआ है। उनका कहना है कि साधारणतया जल व्यवस्था प्रकृति द्वारा संचालित है। नदी, नाले, जलस्रोतों की स्थिति को देखकर मानव ने अपनी बस्तियां बसाई। जहां-जहां जलस्रोत सूखते गए बस्तियां भी जलस्रोतों के साथ वीरान हो गई। प्राचीनकाल से ही मानव ने प्राकृतिक जल प्रणाली में परिवर्तन के प्रयास किए। डा.चौहान ने गंगा के उद्गम पर भगीरथ का भी उल्लेख किया है। अपने शोध पत्र में देवल शिलालेख में पीलीभीत के छिन्दवंशी राजा लल्ल द्वारा कठ नदी के जल को अपनी राजधानी तक मिट्टी के पाइपों द्वारा पहुंचाने का जिक्र किया है। इसके अतिरिक्त गढ़वाल में चांदपुर गढ़ी, कुमाऊं में चंपावत के लोहाघाट के पास चौमेल, दौनकोट, पिथौरागढ़ में दुगईआगर, अल्मोड़ा के कुंवाली नैणी में भी मिट्टी के पाइप मिले हैं। उनका कहना है कि मध्यकाल से लेकर कुमाऊं में अंग्रेजों के हस्तक्षेप से पूर्व पर्वतीय क्षेत्र में जल के उपयोग के लिए अनेक व्यवस्थाएं थी। जिसमें संचय के लिए नौलों की तकनीकी पर्वतीय क्षेत्रों में ही देखने को मुख्यत: मिलती है। पर्वतीय क्षेत्रों में नदी, घाटी, नालों, गधेरों को छोड़कर संभवत: ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में जब मानव ने बसना शुरू किया तो शुद्ध जल संचय के लिए छोटे-छोटे चुपटौले बनाए गए होंगे। मध्य घाटी में जहां पानी नहीं मिलता होगा चुपटौलों का ही उपयोग किया होगा। लंबे समय तक यह प्रक्रिया चलने के बाद विकास के साथ नौलों का विकास यहां तक हुआ कि उसमें आस्था, कला, संस्कृति व परंपराओं का अनूठे दर्शन देखने को मिलते हैं। हालांकि आज नौलों की परंपरा धीरे-धीरे समाप्त हो रही है। पानी के संरक्षण के लिए चाल, खाल व खंती की परंपरा नई नहीं है, बल्कि आदिमानव द्वारा खोजी गई विधि है। जो आज के वैज्ञानिक युग में पहले से ज्यादा महत्व रख रही है। प्राचीनकाल से आधुनिककाल तक पर्वतीय क्षेत्र में विभिन्न राजवंशों ने शासन किया। प्राकृतिक जलस्रोतों, नौलों, धारों के संरक्षण को लेकर राजशाही के दौरान सैकड़ों ताम्र पत्र आज भी जल के संरक्षण के प्रति चिंता व जागरूकता को प्रदर्शित करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं जल के संरक्षण, संवद्र्धन के साथ संस्कृति का गहरा रिश्ता है।

-पौड़ी की रामलीला पहुंची यूनेस्को

पौड़ी गढ़वाल,\ संस्कृति नगरी के तौर पर जानी जाने वाली पौड़ी ने रंगमंचीय स्तर पर एक और मुकाम हासिल कर लिया है। पौड़ी की 112 वर्ष पुरानी रामलीला अब यूनेस्को में पहुंच गई है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला मंच ने रामलीला को नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में स्थान देकर इसे पुरातात्विक धरोहर घोषित किया गया है। 112 वर्ष पूर्व पौड़ी में रामलीला शुरू की गई थी, तब आज जैसी बिजली व अन्य तकनीकी सुविधाएं मौजूद नहीं थीं। ग्रामीण छिलके जलाकर रामलीला देखा करते थे। उस समय चंद लोगों की पहल पर शुरू हुआ यह आयोजन अब विस्तृत रूप ले चुका है। आधुनिक तकनीक, विद्युत प्रकाश व अन्य सुविधाएं उपलब्ध हो गई हैं, लेकिन स्वरूप आज भी वही पुराना है। अंतर है तो बस इतना कि अब महिला पात्रों की भूमिकाएं महिलाएं ही निभाती हैं। पौड़ीवासियों में हर वर्ष होने वाले रामलीला आयोजन को लेकर उत्साह देखते ही बनता है। महीनों पहले से लोग आयोजन की तैयारियों में जुट जाते हैं। रामलीला से जुड़े कुछ कलाकारों ने अपनी अभिनय क्षमता की ऐसी छाप छोड़ी कि आज भी वे अपने पात्रों के नाम से ही जाने जाते हैं। एजेंसी मोहल्ले में राशन की दुकान चलाने वाले श्रीधर ऐसे ही शख्स थे। रावण की भूमिका में उन्होंने ऐसा जीवंत अभिनय किया कि उनका नाम ही रावण लाला पड़ गया। वह जब तक जीवित रहे, लोग उन्हें इसी नाम से पुकारते रहे। यहां यह भी बता दें कि पौड़ी की रामलीला अन्य जगहों की अपेक्षा खास है। यहां शास्त्रीय रागों पर आधारित गेय शैली में लीला आयोजित होती है। विशेषत: रागदेश, राग विहाग, जैजवंती, मालकोश, जौनपुरी, आशावरी, बागेश्री, रागदरबारी आदि शामिल हैं। रामलीला समिति से लंबे समय जुड़े उमाचरण बड़थ्वाल, अरविंद मुदगिल बताते हैं कि वरिष्ठ रंगकर्मी व कमेटी अध्यक्ष हरीश रावत के नेतृत्व में वर्ष 2008 में 40 सदस्यों ने इंदिरा गांधी कला केंद्र नई दिल्ली में मंचन किया था। इसके बाद केंद्र ने पौड़ी की रामलीला को संग्रहालय में स्थान तो दिया ही, इसे यूनेस्को में भी भेजा। अब यूनेस्को इसे धरोहर के रूप में संग्रहीत कर रही है। इस वर्ष आठ अक्टूबर से शुरू हो रही रामलीला के दौरान इंदिरा गांधी केंद्र समेत यूनेस्को के अधिकारी भी पहुंच रहे हैं। वे यहां रामलीला का रेकार्ड तैयार करेंगे। रामलीला कमेटी के अध्यक्ष हरीश रावत बताते हैं कि वे रामलीला मंचन को और अधिक आकर्षक बनाना चाहते हैं, लेकिन धन की कमी इसमें बड़ा रोड़ा है।

Friday 1 October 2010

एलटी शिक्षकों की भर्ती

एलटी शिक्षकों की भर्ती परीक्षा यूटीयू के हवाले करीब 1500 एलटी शिक्षकों की होनी है भर्ती Pahar1- एलटी शिक्षकों की भर्ती परीक्षा का जिम्मा उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय को सौंपा गया है। विद्यालयी शिक्षा विभाग ने मंगलवार को इसका जीओ जारी कर दिया। परीक्षा कराने और रिजल्ट जारी करने की सारी प्रक्रिया अगले तीन महीने में पूरी की जानी है। विवि के अधिकारी इस जीओ से अनभिज्ञ हैं। विद्यालयी शिक्षा विभाग में एलटी की करीब 1400 वैकेंसी है। उच्चीकरण से भी काफी पद रिक्त हुए हैं। इन पदों के साथ ही राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा मिशन और शिक्षा का अधिकार कानून के तहत और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए करीब 1700 पदों के लिए भर्ती परीक्षा कराने का निर्णय हुआ है। इन्हीं के साथ 5 प्रतिशत वे पद भी शामिल किए जाएंगे जो सीधी परीक्षा से भरे जाने हैं। सचिव विद्यालयी शिक्षा, मनीषा पवार के मुताबिक शनिवार को हुई बैठक में मुख्यमंत्री ने विशेष रूप से एलटी भर्ती प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया। इसके लिए परीक्षा एजेंसी तकनीकी विश्वविद्यालय को बनाए जाने को कहा। इसी को ध्यान में रखते हुए मंगलवार को जीओ जारी कर दिया गया। 30 सितंबर से पहले हर हाल में इसकी विज्ञप्ति जारी होनी है। अगले तीन महीने में विवि परीक्षा कराकर रिजल्ट देगा। दूसरी ओर, तकनीकी विवि के अधिकारियों को विद्यालयी शिक्षा विभाग के इस जीओ की जानकारी तक नहीं। कुलपति प्रो. दुर्ग सिंह चौहान का कहना है कि इस बारे में विवि से कोई राय-मशविरा भी नहीं हुआ। अक्तूबर में विवि के सेमेस्टर एग्जाम हैं। नवंबर में दीक्षांत समारोह कराना है। ऐसे में भर्ती परीक्षा कराना सहज नहीं लगता।