Friday 17 September 2010
हिंदू-मुस्लिम एकता का गवाह है डांगी और बेडूबगड़ गांव
सौहार्द के साथ मनाया रमजान का महीना
अगस्त्यमुनि। हिन्दू-मुस्लिम एकता और आपसी भाईचारे का परिचय देते हुए मंदाकिनी घाटी के डांगी सिनघटा और बेडूबगड़ गांव में इन दिनों रमजान का पवित्र महीना सौहार्द के साथ मनाया गया। वर्षों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन करते हुए ग्रामीण धर्म के नाम पर देश को बांटने वालों के सामने एक मिसाल कायम कर रहे हैं।
सिनघटा और बेडूबगड़ गांव में हिन्दू-मुस्लिम परिवार कई वर्षों से साथ-साथ रह रहे हैं। इतना ही नहीं सभी तीज-त्यौहार को ग्रामीण मिलजुल कर मनाते हैं। आजादी से पहले गढ़वाल के राजाओं ने यहां पर कु छ मुस्लिम परिवारों को बसाया था, जो आज भरे-पूरे गांव के रूप में विकसित हो गए हैं। ये परिवार न केवल मुस्लिम सभ्यताओं को संजोए हुए हैं, बल्कि साथ ही गढ़वाल की संस्कृति का भी निर्वहन कर रहे हैं। लोक संस्कृति के बीच रचे-बसे इन गांवों में मुस्लिम लोग ठेठ स्थानीय गढ़वाली बोली बोलते हैं।
गढ़वाल की पारंपरिक तिबारी, पठालों (पत्थर) की छत और खान-पान यहां तक की रिश्ते-नाते भी आम गांवों की तरह हैं। ये लोग हिंदुओं के देवी-देवताओं के साथ ही त्योहारों का भी ये पूरी तरह से सम्मान करते हैं। जिस उत्साह से स्थानीय निवासी ईद और रमजान मनाते हैं, उसी उत्साह से होली, दीपावली, श्रावण व बसंत का आगमन भी मनाते हैं।
डांगी और सिनघटा गांवों में हिंदुओं और मुस्लिम परिवारों के मकान आस-पास ही हैं। दोनों बस्तियों के बीच गांव की कुल देवी शाकुंभरी देवी मंदिर और इसके ऊपर मस्जिद और ईदगाह स्थित है। इन दिनों जहां गांव में शारदीय नवरात्रों की तैयारियां चल रही हैं, वहीं मुस्लिम परिवार क्षेत्र की खुशहाली के लिए नेम्मते मांगते हुए रमजान के पवित्र महीने में रोजा अदा किया।
पंचायती कार्यों में मुस्लिम परिवार भी देते हैं साथ
अगस्त्यमुनि। गांव के प्रत्येक पंचायती कार्य में सभी अपनी हिस्सेदारी निभाते हैं। मां भगवती के मंदिर में यज्ञ के अवसर पर मुस्लिम परिवार भी अपनी फाट (हिस्सा) देते हैं। गांव के प्रत्येक परिवार के जन्म से लेकर मृत्यु तक के हर संस्कार में इनकी सहभागिता देखने लायक है।
दिलों में बसता है प्यार
अगस्त्यमुनि। ग्राम पंचायत सिनघटा की मुस्लिम प्रधान सबाना और प्रधान डांगी मोहम्मद यूसुफ कहते हैं कि दुनिया चाहे कितनी भी मजहब की दीवारें खड़ी कर दे, इसका असर ग्रामीणों पर नहीं पड़ेगा। क्योंकि यहां पर हर किसी के दिल में मजहब से बढ़कर प्यार बसता है। दीवाली में अली और रमजान में राम का नाम मिला हुआ है।
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