Wednesday 25 August 2010

प्रसिद्ध रंगकर्मी गिरीश तिवारी गिर्दा नहीं रहे

- उपचार के दौरान एसटीएच में हुआ निधन - जनकवि के रूप में भी थे विख्यात हल्द्वानी:प्रसिद्ध रंगकर्मी व जनकवि गिरीश तिवारी गिर्दा ने रविवार को सुशीला तिवारी चिकित्सालय में अंतिम सांस ली। उनके निधन की सूचना से शोक की लहर दौड़ गयी। पिछले कई दिनों से उनकी तबीयत खराब चल रही थी। नैनीताल में निवास कर रहे जाने-माने रंगकर्मी 67 वर्षीय गिरीश तिवारी गिर्दा को गत 20 अगस्त को पेट में तेज दर्द होने पर सुशीला तिवारी चिकित्सालय में भर्ती कराया गया था। अगले दिन पेट का सफल ऑपरेशन भी हुआ, लेकिन उनकी तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ। आज दोपहर 11 बजकर 31 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली। वे अपने पीछे पत्नी हेमलता व दो बेटे प्रेम पिरम व तुहिन्नासु को छोड़ गये हैैं। उनका अंतिम संस्कार 23 अगस्त को पाइन्स श्मशान घाट नैनीताल में होगा। उनके निधन की सूचना से चारों तरफ शोक की लहर दौड़ गयी। अस्पताल में ही पद्मश्री डॉ. शेखर पाठक, राजीव लोचन साह समेत रंगकर्मी, लेखक एवं शिक्षाविदों का जमावड़ा लग गया। वर्ष 1945 में अल्मोड़ा के ज्योली गांव में माता जीवन्ती व पिता हंसा दत्त तिवारी के घर जन्मे गिरीश तिवारी को जनमानस गिर्दा उपनाम से पुकारते थे। गिर्दा बचपन से ही जनआंदोलनों से भी जुड़े रहे। मेहनतकश अभावों से जूझती जिन्दगी को स्वर देने वाले गिर्दा का दर्द लोक गीतों में भी झलकता है। रंगकर्म के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले गिर्दा को युगों-युगों तक याद किया जाएगा। पर्यावरण को बचाने के लिए भी जुझारूपन से लगे रहे तथा पहाड़ के हर संघर्ष में लोगों का भरपूर साथ दिया। क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में लेखों के माध्यम से उन्होंने अपने विचार व्यक्त किये। लोक गायक झूसिया दमाई पर शोध कार्य भी किया। राजीव कुमार निर्देशित फिल्म वसीयत में गिर्दा का अभिनय भी यादगार रहेगा। वर्ष 1996 में गिर्दा को उत्तराखंड लोक संस्कृति सम्मान से नवाजा गया। जनवादी लेखन के लिए भी मसूरी में भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) ने उन्हें सम्मानित किया। उनके निधन पर मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक, पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी, राज्य सभा सदस्य तरुण विजय एवं परिवहन मंत्री बंशीधर भगत ने गहरा दु:ख व्यक्त किया है।

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