Thursday 22 April 2010

दाल ही नहीं दवा भी है 'गहथ

-पथरी रोगियों के लिए रामबाण की तरह है यह दाल -कम पानी व पथरीली जमीन पर भी मिलता है अच्छा उत्पादन Pahar1- पहाड़ के किसान सदियों से अपने सीढ़ीदार खेतों में विविधतापूर्ण फसलें उगाते आ रहे हैं। यहां की पारंपरिक फसलों का विशेष महत्व है। दलहनी फसलों की बात करें, तो गहथ सबसे उपयोगी फसल है। इसे दाल ही नहीं, औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। पथरी के रोगियों के लिए तो यह दाल रामबाण की तरह है। गहथ को वैज्ञानिक भाषा में मैक्रोटाइलोमा कहते है। लगभग पंद्रह सौ से दो हजार मीटर तक की ऊंचाई पर इसकी फसल उगाई जाती है। खास बात यह है कि कम पानी वाली व पथरीली भूमि पर ही इसका बेहतर उत्पादन प्राप्त होता है। यह भी बता दें कि पर्वतीय अंचलों में गहथ को सिर्फ दाल के तौर पर ही भोजन में शामिल नहीं किया जाता, बल्कि इसके कई औषधीय गुण भी हैं। एक लोकगीत से गहथ का महत्व परिलक्षित होता है 'बरखा बथ्वाणी, ह्यूंद कू गथ्वाणीÓ यानी सर्दी का मौसम है, तो सर्दी-जुकाम व अन्य मौसमी बीमारियां घेर सकती हैं, लेकिन चिंता की कोई बात नहीं, क्योंकि हमारे पास गहथ है। पहाड़ी घरों में गहथ की दाल तो बनती ही है, कई अन्य पकवान भी तैयार किए जाते हैं। इनमें गथ्वाणी (गहथ की दाल को उबालकर तैयार पानी), फाणा (भीगी गहथ को सिलबट्टे पर पीसकर तैयार होने वाला पकवान) और भरवां रोटियां मुख्य हैं। यह सर्दियो में उर्जा पैदा करने वाली दाल है। जुकाम-खांसी के इलाज के लिए ग्रामीण गहथ की पटंूगी (पकोडिय़ां) बनाकर खाते हैं। पहाड़ से गहथ का अभिन्न रिश्ता है। गहथ से पथरी रोग के इलाज की जानकारी के पीछे पर्वतीय किसानों का पारंपरिक ज्ञान है। पुराने जमाने में पहाड़ों में जब लोग घरों का निर्माण करते थे, तो पथरीली जमीन होने के कारण खासी दिक्कतें होती थीं। तब विस्फोटक नहीं थे। ऐसे में पत्थरों को तोडऩे के लिए उन्हें लकड़ी के ढेर से ढक दिया जाता था और आग लगा दी जाती थी। बाद में गर्म पत्थर पर गहथ का उबलता पानी डाला जाता था, तो पत्थर टुकड़े-टुकड़े हो जाता था। कालांतर में ग्रामीणों ने पथरी रोग पर भी गहथ के पानी का प्रयोग शुरू किया, तो फायदे मिले। बता दें कि एक माह तक गहथ का सूप पीने व दाल खाने से पुरानी से पुरानी पथरी भी टूटकर प्राकृतिक प्रक्रिया के तहत मूत्र विसर्जन के साथ निकल जाती है। गुर्दे की पथरी के लिए तो यह रामबाण है। पर्वतीय परिसर रानीचौरी के वैज्ञानिक डा. एम. दत्ता का कहना है कि गहथ औषधीय गुणों से भरपूर होने के अलावा खाद्य सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। गहथ के पौधों व फलियों के सूखे अवशेष पशुओं के लिए उत्तम चारा है। इनसेट प्रति सौ ग्राम गहथ से मिलने वाले पोषक तत्व (मिग्रा में) प्रोटीन 22.0 वसा 0.5 खनिज 3.2 रेशा 5.3 कार्बोहाइड्रेट 57.2 ऊर्जा 32 कैलोरी फास्फोरस 311 कैल्शियम 280 आर्द्रता 11.8 लोहा 8.4 कैरोटीन 71.0 विटामिन ए 118.3

3 comments:

  1. गहाथ और कुल्थी एक ही होती है या अलग अलग

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  2. गहथ और कुल्थी एक ही होती है या अलग अलग

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  3. Both are same..kulthi is called gahath in uttrakhand.

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