Wednesday 16 December 2009

-कण्वाश्रम : समृद्ध सभ्यता का मौन साक्षी

-अस्सी के दशक में प्रकृति ने दिए थे मालिनी घाटी सभ्यता के संकेत -जमीं में दफन हैं खजुराहो मंदिर शैली से मिलती-जुलती मूर्तियां व स्तंभ -10वीं से 12-वीं सदी के मध्य की हैं कण्वाश्रम में मिली मूर्तियां कोटद्वार महर्षि कण्व की तपस्थली व देश के नामदेव चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्मस्थली ऐतिहासिक कण्वाश्रम भले ही अपनी पहचान का मोहताज है, लेकिन यह जमीं स्वयं में इतिहास को समेटे हुए है। इतिहासकारों की मानें, तो कण्वाश्रम ही नहीं, पूरी मालन घाटी पुरातात्विक दृष्टि से बेहद अहम है। यहां प्राचीन समृद्ध सभ्यता का इतिहास भी दफन है। उल्लेखनीय है कि लंबे समय तक चले शोध के बाद उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. संपूर्णानंद ने वर्ष 1954 की बसंत पंचमी पर पौड़ी जनपद के कोटद्वार नगर स्थित कण्वाश्रम को देश के नामदेव चक्रवर्ती सम्राट भरत की जन्मस्थली के रूप में प्रामाणिक करार दिया था। इसके तहत यहां राजा दुष्यंत के पुत्र भरत व कण्वाश्रम से जुड़ी जानकारियों को लेकर शिलान्यास भी किया था। इसके बावजूद कण्वाश्रम आज भी अपनी पहचान को मोहताज है। स्थिति यह है कि कण्वाश्रम व उसके आसपास के क्षेत्र स्वयं में मालिनी घाटी की पूरी सभ्यता को समेटे हैं, लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। जानकारों के अनुसार, अस्सी के दशक में कण्वाश्रम क्षेत्र में बरसाती नाले ने भयंकर तबाही मचाई और जब नाले का प्रकोप शांत हुआ तो जमीं पर फैली नजर आई कई पुरानी मूर्तियां व प्रस्तर स्तंभ। प्रशासन को जानकारी मिलने से पहले ही स्थानीय ग्रामीण कई मूर्तियों व स्तंभों को साथ लेकर चलते बने। बाद में प्रशासन ने मौके से मिली कुछ मूर्तियों व स्तंभों को कण्वाश्रम स्थित स्मारक में रख दिया। तत्कालीन समाचार पत्रों में छपी खबर के आधार पर गढ़वाल विवि के प्राचीन इतिहास, संस्कृति के पुरातत्व विभाग की टीम ने प्रशासन से वार्ता कर पत्थर की तीन मूर्तियों व दो स्तंभों को अपने संग्र्रहालय में रख दिया। जांच में पता चला कि उक्त मूर्तियां व स्तंभ 10वीं व 12वीं शताब्दी के थे। गढ़वाल विवि के पुरातत्व विभाग ने कण्वाश्रम में मिली मूर्तियों व स्तंभों को जिस काल का बताया है, उस काल में उत्तराखंड में कत्यूरी वंश का एकछत्र साम्राज्य था। इसी दौर में मध्य भारत में चंदेल राजाओं ने खजुराहो के मंदिर बनाए थे। इतिहासविदों के मुताबिक, कण्वाश्रम में मिली मूर्तियां व स्तंभों की निर्माण शैली खजुराहो में बने मंदिरों की शैली से काफी मिलते-जुलते हैं। उनके मुताबिक, यदि मालन घाटी को खंगाला जाए, तो खजुराहो के समान मंदिरों की श्रृंखला भी मिल सकती है। माना जाता है कि सदियों पूर्व मालिनी नदी के तट पर बसी यह सभ्यता मालन नदी में उसी तरह समा गई होगी, जैसे सिंधु व नर्मदा घाटी सभ्यताएं। इतिहास में इस बात का भी जिक्र है कि 10वीं सदी में उत्तर भारत में मोहम्मद गजनी के भीषण नरसंहार से त्रस्त काष्ठ, मृतिका, धातु, शिला की प्रतिमाओं के निर्माताओं को कत्यूरी नरेशों ने शरण दी थी। बाद में इन कलाकारों ने उत्तराखंड में भव्य मंदिरों व प्रतिमाओं की रचना की। गढ़वाल विवि पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष डा.बीएम खंडूड़ी ने बताया कि यदि इस क्षेत्र में उत्खनन किया जाए, तो न सिर्फ एक समृद्ध सभ्यता के प्रमाण मिलेंगे बल्कि, कण्वाश्रम राष्ट्रीय/ अंतर्राष्ट्रीय पटल पर भी आ जाएगा। क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी बीपी बडोनी ने भी स्वीकारा कि कण्वाश्रम व उसके आसपास के क्षेत्र इतिहास समेटे हैं, लेकिन क्षेत्र में संग्रहालय न होने के कारण इसकी खोज नहीं हो पा रही है। उधर, क्षेत्रीय विधायक शैलेंद्र सिंह रावत ने बताया कि कण्वाश्रम के विकास हेतु तैयार की गई योजनाओं में यहां संग्रहालय निर्माण किया जाना भी प्रस्तावित है। उन्होंने बताया कि इस संबंध में शासन को प्रस्ताव भेजा गया है।

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