Thursday 12 November 2009

-सरू की प्रेम कहानी का गवाह है 'क्वीलीगढ़'

-घर से भागकर रचाया था सरू ने गढ़पति से विवाह -पति के संदेह करने पर ताल में कूदकर दे दी थी जान नई टिहरी, गढ़वाल के इतिहास में बावन गढ़ों का विशेष महत्व है। सदियों पुराने इन सभी गढ़ों से कोई न कोई ऐतिहासिक आख्यान भी जुड़ा हुआ है, जो इन गढ़ों की विशेषता को भी दर्शाते हैं। ऐसा ही एक गढ़ है, टिहरी जिले में स्थित क्वीलीगढ़। जिला मुख्यालय के करीब 65 किलोमीटर दूर स्थित इस गढ़ की कहानी सरू का जिक्र किए बिना अधूरी है, बल्कि अगर यह कहा जाए कि सरू के कारण ही क्वीलीगढ़ जाना जाता है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। विभिन्न लोकगीतों में सरू की प्रेम कहानी का वर्णन मिलता है। बताया जाता है कि सोलहवीं सदी में दिल्ली में मुगलों का प्रभाव बढ़ गया था। तब जौरासीगढ़ के अधिपति भगत सिंह सजवाण थे। एक दिन उनके स्वप्न में भगवान घंटाकरण आए व उन्हें दिल्ली में स्थित अपनी शिला गढ़वाल में लाकर स्थापित करने का निर्देश दिया। भगत सिंह दिल्ली से शिला लेकर जौरासीगढ़ की ओर आए। रास्ते में रात होने पर उन्होंने हेंवल नदी के किनारे ठाईगला में विश्राम किया। यहां रघु चमोली का निवास था। भगत सिंह ने यहीं शिला को एक ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया। रघु चमोली की भैंस हर रोज इस शिला के ऊपर स्वयं दूध की धार डालकर शिला को स्नान कराया करती थी। यह देख चमोली ने शिला को कुल्हाड़ी से खंड-खंड कर दिया। इसका एक खंड सुरकंडा में, दूसरा कुंजापुरी में व तीसरा चंद्रबदनी में गिरा, जबकि चौथा घंडियाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बाद में सजवाणों ने जौरासीगढ़ छोड़ दिया और कोट नामक स्थान में क्वीलीगढ़ की स्थापना की। यहीं से शुरू होती है सरू की कहानी। वह दोगी पट्टी की कुमारी थी और क्वीलीगढ़ के सजवाण शासक पर मोहित हो गई। उसके पिता ने कई जगह उसका विवाह कराने की कोशिश की, लेकिन सरू घर से भागकर क्वीलीगढ़ आ गई। गढ़ाधिपति ने उससे विवाह कर लिया। इसके बाद दोनों प्रेमपूर्वक रहने लगे। एक दिन सजवाण की अनुपस्थिति में सरू का जीजा उसके घर पहुंचा। सरू ने उसकी खूब आवभगत की। बाद में जब सजवाण वापस आया, तो वह सरू को लेकर शंकित हो गया व उसके साथ मारपीट की। क्षुब्ध सरू घर से रोते हुए निकल गई और गढ़ के पास ही बने ताल में कूदकर जान दे दी। यह ताल आज भी सरू के ताल नाम से जाना जाता है। सजवाण को गलती का अहसास होता है, तो वह सरू की तलाश में निकल जाता है। लोकगीतों में इसका वर्णन इस तरह मिलता है। सरू की मौत व अधिपति की मनोदशा खराब होने के बाद सजवाणों ने क्वीलीगढ़ को छोड़ दिया व अलग- अलग स्थानों पर जाकर बस गए।

1 comment:

  1. इस प्रेम कहानी में उत्तराखण्ड के पुरूष मानसिकता के दर्शन होते है।

    read on my blog-- kab tak sahugi....http://swastikachunmun.blogspot.com

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