Tuesday 6 October 2009

-अलग पहचान के लिए प्रसिद्ध सुमाड़ी गांव

कई आईएएस, सैन्य अधिकारी, डाक्टर व शिक्षक निकले हैं इस गांव से गांव से जुड़ा पंथ्या दादा का ऐतिहासिक तथ्य मध्य हिमालय की पर्वत शंृखलाओं के बीच स्थित पौड़ी जनपद का सुमाड़ी गांव कई मायनों में अपनी अलग पहचान रखता है। इस गांव कई आईएएस अफसर, सैन्य अधिकारी, डाक्टर व शिक्षक निकले हैं, जिन्होंने गांव का नाम राष्ट्रीय स्तर पर ऊंचा किया है। इसके साथ ही इस गांव से कई ऐसे ऐतिहासिक तथ्य जुड़े हैं, जो इसे भिन्नता प्रदान करते हंै। पौड़ी से करीब 30 किमी दूर स्थित खिर्सू ब्लाक की कठूलस्यंू पट्टी का सुमाड़ी गांव कई मायनों में देश भर के उन गांवों की सूची में शामिल है, जो अपनी राष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान रखते हैं। इस गांव से अंग्रेजों के समय गढ़वाल में पहले आईएएस अधिकारी गोविंद राम काला बने थे। इसके साथ शुरू हुई पहल बेमिसाल रही, जिससे अब तक गांव से 22 आईएएस अफसर बन चुके हैं। इतना ही नहीं, गांव ने चिकित्सा के क्षेत्र में भी झांडे गाड़े हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में पदार्पण की शुरुआत भी अंगे्रजों के शासनकाल में ही हो गई थी। सुमाड़ी गांव निवासी डा. भोलादत्त काला गांव के पहले चिकित्सक बने, जिसके बाद गांव से अब तक करीब 50 एमबीबीएस बन चुके हैं। इस गांव की नई पीढ़ी अब इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अपने झांडे गाड़ रही है। इतना ही नहीं गांव की प्रतिभाओं ने अन्य क्षेत्रों में भी परचम लहराया है। एयर मार्शल के पद से तीन साल पूर्व सेवानिवृत्त हुए वेद प्रकाश काला भी इसी गांव के निवासी हैं। इस गांव से अब तक सौ लोग विभिन्न क्षेत्रों में पीएचडी की उपाधि हासिल कर चुके हैं। गांव से 15 प्रधानाचार्य सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इस गांव से अब तक 500 शिक्षक बने हैं। वर्ष 1978-79 में डा. सतीश चंद्र काला को पदमश्री पुरस्कार मिल चुका है। गांव से जुड़ा एक अन्य ऐतिहासिक तथ्य है, जो गांव को अलग ही पहचान प्रदान करते हैं। वह है पंथ्या दादा। माना जाता है कि टिहरी के राजा मेदनी शाह ने जब पूरे गढ़वाल में बेगार प्रथा लागू की और कई प्रकार के कर लगाए, तो सुमाड़ी गांव निवासी 14 वर्षीय पंथ्या राम काला ने इसका जमकर विरोध किया। इस पर आग बबूला हुए राजा ने कहा कि आदेश की अवहेलना होने पर गांव के आदमियों को अग्निकुंड में जलाया जाए। इसके साथ ही आदेश दिया कि इसकी शुरुआत गांव के सबसे बड़े परिवार से की जाए। संयोग से पंथ्या दादा का परिवार ही सबसे बड़ा निकला। बताते हैं करीब 350 साल पूर्व पंथ्या राम काला ने राजा के अधिकारियों को गांव में ही खूब-खरी खोटी सुनाई। उन्होंने अग्निकुंड में कूदकर अपनी जान दे दी। इससे आहत गांव के अन्य आठ लोगों ने उसी वक्त अग्निकुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी। इससे भयभीत होकर राजा ने अपना आदेश वापस ले लिया। साथ ही गांव में बेगार प्रथा व अन्य प्रकार के करों को भी समाप्त कर दिया। तब से हर साल इस गांव में पंथ्या राम काला की याद में धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किया जाता है। गांव के वयोवृद्ध नित्यानंद कगडियाल एवं विमल काला बताते हैं कि तरक्की के साथ ही गांव से पलायन का ग्राफ भी बढ़ा है, लेकिन गांव आज भी हर क्षेत्र में विकास कर रहा है।

1 comment:

  1. Maine kabhi padhaa hai ki Sumari naam 'Sur mani' kaa bigraa roop hai. Shaayad koyi mahaanubhaav kuch prakaash daalen.
    Sunil uniyal

    ReplyDelete