Monday 12 October 2009

-न्याय के देवता को संरक्षण की दरकार

-न्याय के देवता के रूप में विख्यात है पौड़ी स्थित कंडोलिया मंदिर -ऐतिहासिक मंदिर के सौंदर्यीकरण के प्रति सरकार व पर्यटन विभाग का रवैया उदासीन पौड़ी: पर्यटन नगरी पौड़ी की सुरम्य वादियों में स्थित कंडोलिया देवता का मंदिर खास पहचान रखता है। स्थानीय लोगों समेत श्रद्धालुओं में न्याय के मंदिर के रूप में विख्यात इस ऐतिहासिक मंदिर पर अब तक पर्यटन विभाग की नजरें इनायत नहीं हो पाई हैं। नतीजतन मंदिर वर्षों से जीर्णाेद्धार की बाट जोह रहा है। खास बात यह है कि प्रतिवर्ष यहां करीब एक लाख श्रद्धालु मनौतियां मांगने के लिए पहुंचते हैं। इसके बावजूद सरकार इसके संरक्षण व सौंदर्यीकरण की ओर ध्यान नहीं दे रही है। पौड़ी मुख्यालय में समुद्रतल से करीब 1800 मीटर की ऊंचाई पर सघन देवदार, सुराई, बांज बुरांश समेत विभिन्न वृक्षों से आच्छादित कंडोलिया देवता मंदिर न्यायप्रियता के विख्यात है। धार्मिक मान्यता है कि कई वर्ष पूर्व कुमाऊं की एक युवती का विवाह पौड़ी गांव में डुंगरियाल नेगी जाति में हुआ था। विवाह के बाद वह युवती अपने इष्ट देवता को कंडी (छोटी टोकरी) में रखकर लाई थी। इसके बाद से कुमाऊं के इन देवता को कंडोलिया देवता के नाम जाना जाने लगा और उनकी पूजा पौड़ी गांव में भी शुरू कर दी गई। मान्यता है कि बाद में देवता गांव के ही एक व्यक्ति के स्वप्न में आए और आदेशित किया कि मेरा स्थान किसी उच्च स्थान पर बनाया जाए। इसके बाद कंडोलिया देवता को पौड़ी शहर से ऊपर स्थित पहाड़ी पर प्रतिष्ठित किया गया। स्थापना के बाद से ही कंडोलिया मंदिर न्याय देवता के रूप में प्रसिद्ध हो गया। वर्ष 1989 में पौड़ी गांव निवासी पद्मेंद्र सिंह नेगी, पृथ्वी पाल सिंह चौहान एवं सुरेंद्र नैथानी ने कंडोलिया देवता के मंदिर में विधिवत रूप से पूजा अर्चना करने की परंपरा शुरू की, तब से हर साल यहां तीन दिवसीय पूजा-अर्चना होती है। इस तीन दिवसीय आयोजन में यहां सैकड़ों श्रद्धालु मनौतियां मांगने आते हैं, तो कई मनौतियां पूर्ण होने पर घंटा, छत्र आदि चढ़ाते हैं। आयोजन के पहले दिन रिंगाल के ध्वज को वैदिक मंत्रोचारण के साथ शहर की परिक्रमा करने के उपरांत कंडोलिया मंदिर में चढ़ाया जाता है। इसी दिन मंदिर में रामायण पाठ का भी आयोजन किया जाता है। दूसरे दिन रामायण पाठ का समापन होने के साथ ही विभिन्न कीर्तन एवं महिला मंगलों की ओर से मंदिर में कंडोलिया देवता की स्तुति की जाती है, और पूरी रात जागरण किया जाता है। अंतिम दिन मंदिर के पुजारी वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ भूमि पूजन करने के बाद यज्ञ करते हैं और विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। ऐतिहासिक महत्व के इस मंदिर को कई मायनों में कई प्रकार की पहचान है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि कंडोलिया मंदिर का हर साल आयोजित होने वाला तीन दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान पर बलि प्रथा से जैसी कुप्रथा की काली छाया नहीं पड़ी है। बेहद सौहार्दपूर्ण एवं शांतिपूर्ण माहौल में आयोजित होने वाले इस तीन दिवसीय आयोजन में करीब 30-35 हजार श्रद्धालुगण पहुंचते हैं। इसके अलावा यहां हर साल करीब एक लाख से अधिक श्रद्धालुगण मनौतियां मांगने के लिए इस मंदिर में माथा टेकने के लिए पहुंचते हैं। इस सबके बावजूद इस मंदिर की ओर पर्यटन विभाग की नजरें इनायत नहीं हो पाई हैं। ऐसे में मंदिर सौंदर्यीकरण व जीर्णोद्धार की बाट जोह रहा है। इस बाबत प्रभारी क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी हीरा लाल टम्टा का कहना है कि विभाग की ओर से करीब चार माह पूर्व मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए पांच लाख रुपये का प्रस्ताव भेजा गया है। शासन से स्वीकृत मिलने एवं धनराशि अवमुक्त होने के बाद ही मंदिर का सौंदर्यीकरण किया जाएगा।

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