Saturday 31 October 2009

-उत्तराखंड के देवदार वृक्षों की एशिया में बादशाहत

-टौंस वन प्रभाग में 8.25 मीटर मोटा देवदार एशिया में अव्वल -6.35 मीटर मोटाई के कारण चकराता वन प्रभाग का देवदार एशिया में दूसरे नंबर पर विकासनगर (देहरादून) अगर आप एशिया का सबसे मोटा देवदार वृक्ष देखने की इच्छा रखते हैं, तो टौंस वन प्रभाग के कोठिगाड़ रेंज में आइए। एशिया में मोटाई में दूसरे नंबर का देवदार वृक्ष भी चकराता वन प्रभाग की कनासर रेंज में ही है। इसके कारण उत्तराखंड को भारत में एक गौरव हासिल हुआ है। एशिया में चीड़ एवं देवदार प्रजाति के वृक्षों में उत्तराखंड के जंगलों का दबदबा रहा है। एशिया का सबसे मोटा देवदार वृक्ष जनपद उत्तरकाशी के टौंस वन प्रभाग अंतर्गत कोठिगाड़ रेंज के बालचा वन खंड में स्थित है। यह वन क्षेत्र जनपद देहरादून की सीमांत तहसील त्यूणी से सटा हुआ है। देवदार के इस महावृक्ष की मोटाई (गोलाई) 8.25 मीटर और ऊंचाई 48 मीटर है। इस वृक्ष की आयु 400 साल से अधिक बताई जाती है। वर्ष 1994 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा इसे महावृक्ष के रूप में पुरस्कृत किया गया था। भारतीय वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआई) के म्यूजियम में देवदार वृक्ष की जो सबसे अधिक गोलाई की अनुप्रस्थ काट प्रदर्शित की गई है, वह वृत भी इसी खंड में स्थित थी, जिसके अवशेष अभी भी मौजूद हैं। देहरादून जिले के चकराता वन प्रभाग अंतर्गत कनासर रेंज में स्थित देवदार का एक और वृक्ष महावृक्ष बनने की होड़ में अपना आकार फैलाए जा रहा है। चकराता-त्यूणी मोटर मार्ग पर कोटी-कनासर वन खंड में स्थित इस देवदार वृक्ष की मोटाई (गोलाई) 6.35 मीटर है। इस वृक्ष की अनुमानित आयु 600 साल से अधिक बताई जाती है। देवदार एवं चीड़ प्रजाति के वृक्षों की चाहे ऊंचाई की बात रही हो या मोटाई की, महावृक्ष का खिताब पाने में पूरे एशिया में उत्तराखंड के जंगलों का ही दबदबा रहा है। एशिया के सबसे ऊंचे चीड़ महावृक्ष में भी उत्तराखंड राज्य के टौंस वन प्रभाग ने अपनी पहचान बनाई। 8 मई 2008 को क्षेत्र में आए भीषण आंधी-तूफान से यह महावृक्ष धराशायी हो गया था। मोटे वृक्ष की रोचक है कहानी एशिया के सबसे मोटे वृक्ष की कहानी रोचक है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कनासर रेंज के ठेकेदार ने मोटे देवदार के वृक्षों को काटने में हाथ खड़े कर दिए थे। बताया जाता है कि तब विभाग ने डायनामाइट की व्यवस्था कराई थी। पुराने वृक्ष कटने से पहले ही सरकार चेत गई और उसने वनों का विनाश रोकने के उद्देश्य से अनेक कारगर कदम उठाए। उस समय कनासर में मात्र 36 पेड़ ही बचे रह गए। उन्हीं में से एक वृक्ष आठ मीटर से ज्यादा मोटाई वाला है, जिसकी सुरक्षा के लिए वैज्ञानिक पूरी तरह से मुस्तैद हैं। ----------------- ''वन विभाग द्वारा देवदार व चीड़ के वृक्षों के संरक्षण के लिए समय-समय पर आवश्यक कदम उठाए जाते रहे हैं। ये वृक्ष प्रदेश ही नहीं, बल्कि एशिया की भी धरोहर हैं। इन वृक्षों को देखने के लिए हर वर्ष देश-विदेश से काफी संख्या में सैलानी उत्तराखंड आते हैं।'' बीपी गुप्ता वन संरक्षक यमुना वृत्त

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