Saturday 26 September 2009

-अफगानिस्तान में कार्य कर रहे हैं सैकड़ों दूनवासी

- जल्द और ज्यादा पैसा कमाने के फेर में जान जोखिम में डाल जाते हैं अफगानिस्तान - भारत में नार्थ इंडिया और साउथ के हैं ज्यादा लोग - महीनों कैंप में रहते हैं बेरोजगार - दलाल बना देते हैं नकली वीजा - मामले में सैकड़ों वीजा नकली पाए गए देहरादून : अफगानिस्तान के बदतर हालात में बेहतर भविष्य का सपना लेकर भारत से वहां गए लोगों में दून से भी खासी संख्या है। दलालों के फेर में फंसे इनमें से कई ने तो फर्जी पासपोर्ट पर अफगानिस्तान में प्रवेश किया है। कई लोग महीनों से वहां खाली बैठे हुए हैं। एजेंटों के चुंगल में पडऩे के चलते ये लोग वहां से वापस आने की स्थिति में भी नहीं हैं। शांति बहाली को लेकर संयुक्त राष्ट्र की ओर से चलाए जा रहे अभियान में दर्जनों विदेशी कंपनियां अफगानिस्तान में डेरा जमाए हुए हैं। इन कंपनियों को बड़ी संख्या में मैन पावर की जरूरत होती है। उनकी यह जरूरत वर्तमान में भारत व नेपाल से पूरी हो रही है। ये कंपनियां अपने यहां कार्य करने वाले कर्मचारियों को उनके कार्य के हिसाब से पांच सौ डालर से लेकर तीन हजार डालर तक वेतन के रूप में प्रतिमाह देती हैं। भारतीय मुद्रा में यह राशि 25 हजार रुपए से लेकर डेढ़ लाख रुपए तक है। इसके अलावा रहना व खाना कंपनी की ओर से ही दिया जाता है। शुरुआत में इन कंपनियों में काम करने वाले लोगों ने अपने यार दोस्तों को भी यहां काम दिलाया। मगर धीरे-धीरे इसने धंधे का रुप अख्तियार कर लिया। चूंकि कंपनियों में हर प्रकार की मैन पावर चाहिए होती है इसलिए एजेंटों के पास हर प्रकार के लोग आते हैं। ये एजेंट दो प्रकार से कार्य करते हैं। एक तो विदेश भेजने का कार्य करते हैं और दूसरे विदेश भेजने से नौकरी लगाने तक की जिम्मेदारी लेते हैं। इसकी एवज में एक लाख से लेकर डेढ़ लाख रुपए की वसूली की जाती है। एजेंट अपनी सेटिंग से इन लोगों को वीजा और पासपोर्ट दिलाने में मदद करते हैं। अफगानिस्तान में एजेंटों के ही संपर्क सूत्र इन लोगों को रिसीव कर कैंप में ठहराते हैं। कैंप में रहने और खाने पीने का पैसा अलग से लगता है। स्थिति यह है कि कई लोगों को तो महीनों रोजगार नहीं मिलता। इसके चलते ये कैंप में रहने पर मजबूर हो जाते हैं। जहां इनका पासपोर्ट आदि छीन लिया जाता है। इतना ही नहीं खतरा हमेशा बना रहता है। कंपनियों की चहारदीवारी के बाहर आतंकी घात लगाए बैठे रहते हैं। सूत्रों की मानें तो अब इस खेल में रिस्क बढ़ गया है। कारण यह कि अफगानिस्तान में एजेंटों ने बड़ी संख्या में नकली वीजा बना डाले। दरअसल अफगानिस्तान में छह माह का वर्किंग वीजा मिलता है, लेकिन ये लोग एक-एक साल का वीजा बना रहे हैं। मामले की जांच हुई तो खुफिया एजेंसी कंपनियों तक पहुंचीं । इसके चलते कंपनियों ने नई भर्ती पर रोक लगा दी। भर्ती पर रोक लगने के बाद सैकड़ों लोग अफगानिस्तान के कैंपों में ही पड़े हुए हैं। अफगानिस्तान से लौटे लोगों की मानें तो इस समय देहरादून के सैकड़ों लोग अफगानिस्तान में है। इनमें से सबसे अधिक संख्या क्लेमनटाउन, रायवाला, डोईवाला, अनारवाला, गढ़ी कैंट, कौलागढ़ व प्रेमनगर आदि क्षेत्रों की है। जो कुछ पैसों के फेर में अपनी जिंदगी का दांव लगाए बैठे हैं। कबूतरबाजी में पुलिस को मिले अहम सुराग देहरादून: काबुल में नौकरी दिलाने के नाम पर दून के युवकों से कबूतरबाजी की घटना में पुलिस को महत्वपूर्ण सुराग हाथ लगे हैं। इस बारे में एसएसपी अभिनव कुमार ने बताया कि दिल्ली भेजी गई टीम ने एक ट्रैवलिंग एजेंसी के बारे में गहन पूछताछ की है। श्री कुमार ने कहा कि काबुल स्थित आरोपी कंसलटेंसी एजेंसी व उसकी सिक्किम निवासी मैनेजर जैनी की जांच की जा रही है। चूंकि मामला दूसरे देश से जुड़ा है, ऐसे में हर पहलू को ध्यान में रखा जा रहा है। हिरासत में लिए गए युवक राकेश थापा से भी गहनता से पूछताछ की जा रही है।

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