Thursday 20 August 2009

-मेडिकल में सीट नहीं, इंजीनियरिंग को छात्र नहीं

-उत्तराखंड के मेडिकल संस्थानों में सिर्फ एक हजार सीटें, इंजीनियरिंग में करीब 15 हजार -तकनीकी विवि से संबद्ध कालेजों में दो बार काउंसिलिंग के बावजूद रिक्त हैैं 1500 सीटें देहरादून- मेडिकल शिक्षा के लिए उत्तराखंड के कालेजों में सीटें नहीं हैैं और इंजीनियरिंग कालेजों को सीटें भरने के लिए छात्र नहीं मिल रहे। मेडिकल शिक्षा के विभिन्न संस्थानों में लगभग एक हजार सीटें हैैं, जबकि इंजीनियरिंग कालेजों में इनकी तादाद करीब 15 हजार है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी बड़ी वजह मेडिकल व इंजीनियरिंग कालेज शुरू करने के मानकों में अंतर का होना है। उत्तराखंड तकनीकी विवि से संबद्ध 27 कालेजों, ग्र्राफिक एरा विवि, इक्फाई विवि, यूनिवर्सिटी आफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज समेत विभिन्न संस्थान राज्य में तकनीकी शिक्षा प्रदान कर रहे हैैं। बीटेक, एमटेक, बीआर्क समेत विभिन्न पाठ्यक्रमों में करीब 15 हजार सीटें उपलब्ध हैैं। अकेले तकनीकी विवि से संबद्ध कालेजों में ही 7061 सीटें है, जिन्हें दो बार काउंसिलिंग कराने के बावजूद भरा नहीं जा सका है। आलम यह है कि अभी भी स्टेट कोटे की 1500 से ज्यादा सीटें रिक्त पड़ी हैैं। प्रबंधन कोटे की रिक्त सीटों का आंकड़ा तो इससे कहीं अधिक है। यही हाल निजी एवं डीम्ड विवि की सीटों का भी है। तकनीकी विवि के कुलसचिव डा. मृत्युंजय कुमार मिश्रा का कहना है कि प्रदेश में इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने वाले छात्रों की संख्या उतनी नहीं है, जितने संस्थान खुल गए हैैं। फिर भी बीते सत्र के मुकाबले इस वर्ष करीब एक हजार ज्यादा छात्रों ने प्रवेश लिया। इस सत्र में दस नए कालेज खुले हैैं, जिससे लगभग 2500 सीटें बढ़ी हैैं। उन्होंने कहा कि एआईसीटीई से मान्यता मिलने के बाद विवि मात्र संबद्धता देने वाली एजेंसी रह गया हैै। अब आते हैं मेडिकल शिक्षा पर। प्रदेश में एमबीबीएस, बीडीएस, बीएएमएस व बीएचएमएस की उपाधियों के लिए सरकारी, सहायता प्राप्त व स्ववित्त पोषित संस्थानों की संख्या ग्यारह है। इस सत्र के लिए इनमें से दो को डेंटल काउंसिल आफ इंडिया से अनुमति नहीं मिल पाई। शेष बचे नौ कालेजों में से तीन सरकारी, एक सहायता प्राप्त और पांच स्ववित्त पोषित हैैं। इन कालेजों की कुल 760 सीटों में से 505 सरकारी कोटे की हैैं। एमबीबीएस के लिए एक सरकारी, एक सहायता प्राप्त व एक निजी कालेज है। इन कालेजों में कुल तीन सौ सीटें हैैं। बीएएमएस के लिए हरिद्वार में दो सरकारी कालेज और देहरादून में दो निजी कालेज हैैं। इनमें 260 छात्रों को प्रवेश मिलेगा। बीएचएमएस के लिए सूबे में केवल एकमात्र संस्थान है, जिसमें 50 सीटें हैैं। इसके अलावा जौलीग्र्रांट स्थित हिमालयन डीम्ड विवि में विभिन्न पाठ्यक्रमों की लगभग तीन सौ सीटें हैैं। मेडिकल कालेज खोलना टेढ़ी खीर मेडिकल कालेज खोलने के मानक इतने सख्त हैं कि शिक्षण संस्थाएं इसमें कदम रखने से बचती हैं, जबकि तकनीकी कालेज खोलना आसान है। यही वजह है कि प्रदेश में इंजीनियरिंग कालेज तो धड़ल्ले से खुल रहे हैैं, लेकिन मेडिकल कालेज नहीं। इस संबंध में दून विवि के कुलपति प्रो.गिरिजेश पंत का कहना है कि कालेज के साथ ही अस्पताल खोलने की बाध्यता और शिक्षकों की कमी के कारण विभिन्न संस्थाओं का मेडिकल शिक्षा की ओर रुझाान कम ही रहता है। वहीं, तकनीकी शिक्षा के लिए कालेज खोलने के मानक बेहद सरल हैैं। साथ ही शिक्षकों की कमी भी नहीं है।

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