Thursday 13 August 2009

-जन्माष्टमी: 'धियांणियों' के हाथों कराई जाती है पूजा

-गढ़वाल में नवविवाहिता पुत्री को पुकारा जाता है धियांणी -जन्माष्टमी के मौके पर 'धियांणी' को मायके बुलाने की है परंपरा -विभिन्न पूजा आयोजनों में भाग ले धियांणी करती है मायके व ससुराल की उन्नति की कामना नई टिहरी, : पहाड़ में कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर धियांण (नवविवाहित बेटी) को मायके बुलाने की परम्परा काफी पुरानी है। नवविवाहिताएं मायके आकर भादो के महीने मायके व ससुराल की मंगलकामना के लिए गीत गाती हैं। भादो माह में धियांणी को मायके बुलाने की परंपरा पहाड़ की अधिष्ठात्री देवी भगवती नंदा के समय से मानी जाती है। लोकश्रुतियों में नंदा को प्रतिवर्ष मायके बुलाने की परंपरा रही है। नंदा को धियांण के रूप में आज भी पूजा जाता है। इस परंपरा के पीछे कृषि प्रधान समाज की झालक भी दिखाई देती है। दरअसल, भादो के महीने खेती के काम पूरे हो चुके होते हैं। ऐसे में महीने भर के लिए बेटी को मायके बुलाया जाता है। इस अवसर पर पहाड़ के खेतों में फसलें लहलहा रही होती है। इन्हीं फसलों के पौध को घर में लाकर पूजा की जाती है। पूजा में पूरी और पकौड़ी जिसे स्थानीय भाषा में 'स्वांला-पकौड़ी' कहा जाता है का भोग लगाया जाता है। भादो में गांवों में दूध घी की प्रचुरता रहती है। ऐसे में धियाणों के लिए विशेष रूप से दूध, दही व स्थानीय फलों से खातिरदारी की जाती है। परिवार की अहम हिस्सा रही बेटी को एक महीने तक घरों में लगी ककड़ी, मक्का और च्यूरा दिया जाता है। इस दौरान सहेलियों के साथ इकट्ठा होकर धियांण चाचरी, झाुमैलो, बाजूबंद जैसे क्षेत्रीय लोक गीत गाती हैं। इन गीत नृत्यों में फसलों की पैदावार बढ़ाने, पशुधन के उन्नति और देवताओं की स्तुति होती है।

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