Tuesday 14 July 2009

सुविधाओं के अभाव में पहाड़ों से पलायन

एक वर्ष के अंतराल में हो पाया सिर्फ 60 करोड़ रुपये का निवेश रंग नहीं जमा पाई विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति विभिन्न कारणों के चलते उद्यमियों ने करीब डेढ़ सौ यूनिटों के प्रस्तावों से हाथ खींचे देहरादून, सूबे के पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। रीते होते गांव, बंजर होते खेत पहाड़ों की नियति बन गए हैं। उद्योग विहीन पहाड़ी क्षेत्र में औद्योगिक विकास को पिछले वर्ष घोषित विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति भी अभी रंग नहीं जमा पाई है। इसमें पर्वतीय क्षेत्र में उद्यमी रुचि नहीं दिखा रहे हैं। यह बात इससे भी तस्दीक होती है कि एक वर्ष के अंतराल में पर्वतीय जिलों में सिर्फ 60 करोड़ रुपये का ही निवेश हुआ। मंदी, आधारभूत सुविधाओं का अभाव समेत अन्य कारणों के चलते करीब डेढ़ सौ यूनिटों के प्रस्तावों से संबंधित उद्यमियों ने हाथ पीछे खींच लिए। हालांकि, उद्योग विभाग का दावा है कि चालू वित्तीय वर्ष में निवेश करीब 300 करोड़ रुपये हो जाएगा। इसके लिए स्थानीय युवाओं समेत प्रवासियों को प्रोत्साहित किया जाएगा। उत्तराखंड में देश के नामी उद्यमियों, उद्योग समूहों ने इकाईयां स्थापित की हैं, लेकिन यह औद्योगिक निवेश राज्य के मैदानी क्षेत्रों मुख्य रूप से ऊधमसिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून जिलों तक ही सिमटा है। इस मामले में पर्वतीय जिलों की उपेक्षा होती रही है। नतीजतन उद्योग विहीन पर्वतीय जिले लगातार पलायन का दंश झोल रहे हैं। औद्योगिक विकास से अछूते पर्वतीय क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित कर रोजगार के अधिकाधिक अवसर सृजित करने के मकसद से राज्य सरकार ने गत वर्ष पर्वतीय एवं दूरस्थ क्षेत्रों के लिए 'विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति' घोषित की। बीते एक वर्ष के दौरान आठ सौ यूनिटों के प्रस्ताव तो आए, लेकिन इनमें से डेढ़ सौ उद्यमियों ने हाथ पीछे खींच लिए। बताया गया कि वैश्विक मंदी के साथ ही पर्वतीय क्षेत्र में भूमि, सड़क, पानी, बिजली जैसी आधारभूत सुविधाओं के अभाव में उद्यमियों ने हाथ खींचे। एक साल में 60 करोड़ रुपये के निवेश के प्रस्ताव ही पर्वतीय जिलों में योजनांतर्गत आए। कुछेक यूनिटों में तो उत्पादन शुरू हो गया है, जबकि अन्य में कार्य प्रगति पर है। योजना का मकसद विषम भौगोलिक तथा आर्थिक दृष्टि से पिछड़े पर्वतीय क्षेत्रों का समन्वित विकास, पलायन रोकने के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसरों का सृजन, सामाजिक, आर्थिक दशा और पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखना, स्थानीय स्तर पर मिलने वाले कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन देना विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति के मुख्य उद्देश्यों में शामिल है। इस नीति की समयावधि 31 मार्च 2018 तक नियत है। श्रेणी-अ में पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, चमोली, चंपावत व रुद्रप्रयाग जिले शामिल हैं, जबकि श्रेणी-ब में पौड़ी, टिहरी, अल्मोड़ा, बागेश्वर के संपूर्ण भाग और देहरादून, नैनीताल जिलोंं के मैदानी क्षेत्रों को छोड़कर शेष पर्वतीय बहुल भाग शामिल हैं। इन उद्योगों को मिलेगा बढ़ावा हरित व नारंगी श्रेणी के अप्रदूषणकारी विनिर्माणक उद्योग। केंद्र के विशेष औद्योगिक प्रोत्साहन पैकेज में अधिसूचित थ्रस्ट सेक्टर के उद्योग। राज्य सरकार से उद्योग का दर्जा प्राप्त गतिविधियां। सेवा क्षेत्रांतर्गत होटल, साहसिक व अवकाशकालीन खेल व रोपवे, नर्सिंग होम, व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान, जैवप्रौद्योगिकी, संरक्षित कृषि एवं औद्यानिकी, कोल्ड स्टोरेज, पेट्रोल-डीजल पंपिंग स्टेशन, गैस गोदाम आदि गतिविधियां। प्रोत्साहन एवं सुविधाएं भूमि संसाधन विकास के तहत निजी क्षेत्र में औद्योगिक आस्थान के लिए भूमि की न्यूनतम सीमा दो एकड़ निर्धारित। औद्योगिक प्रयोजन के लिए भू-उपयोग परिवर्तन की प्रक्रिया का सरलीकरण। पांच करोड़ से अधिक अचल पूंजी निवेश के उद्योगों को मेगा प्रोजेक्ट का दर्जा। औद्योगिक आस्थानों-क्षेत्रों और इनसे बाहर उद्योग स्थापना को भूमि लीज पर लेने अथवा क्रय करने पर स्टांप शुल्क में छूट मेगा प्रोजेक्ट में अवस्थापना सुविधाओं के विकास को 50 लाख तक का अनुदान। श्रेणी-अ के जिलों में 25 फीसदी, श्रेणी-ब के जिलों में 20 फीसदी तक राज्य पूंजी निवेश उपादान सहायता। नये उद्यमों को विद्युत बिलों के भुगतान पर 30 से 75 फीसदी तक प्रतिपूर्ति सहायता। अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय प्रमाणीकरण, मानकीकरण पर वित्तीय प्रोत्साहन। स्थानीय संसाधनों पर आधारित उद्यमों को विशेष परिवहन उपादान सहायता। क्या आ रही हैं परेशानी योजना के अंतर्गत बड़े उद्योग लगाने के लिए उद्यमियों को अपेक्षित भूमि एक साथ नहीं मिल पा रही। जहां भूमि मिल रही है, वहां सड़क, पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। यही नहीं, पर्वतीय क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर कच्चे माल की अनुपलब्धता भी राह में रोड़े अटका रही है। कई जगह बैंक से फाइनेंस कराने के लिए संबंधित व्यक्ति को भूमि का संयुक्त खाता होने के कारण अन्य सदस्यों से एनओसी नहीं मिल पाती। सभी महकमों से करेंगे समन्वय उद्योग विभाग के अपर निदेशक एससी नौटियाल का कहना है कि विशेष एकीकृत औद्योगिक प्रोत्साहन नीति को मुकाम तक पहुंचाने के लिए संबंधित सभी महकमों से समन्वय स्थापित कर ठोस रणनीति बनाई जाएगी। साथ ही, स्थानीय लोगों को भी पर्वतीय क्षेत्र में औद्योगिक विकास के लिए आगे आना होगा। उन्होंने बताया कि इस सिलसिले में स्थानीय युवाओं को प्रशिक्षण देकर उनमें उद्यमिता और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित किया जाएगा। यही नहीं, योजना के तहत पर्यटन, पुष्पोत्पादन, औद्यानिकी पर आधारित उद्यम, संरक्षित कृषि, हर्बल एवं सगंध पौधों पर आधारित उद्यम, लेजर टूरिज्म, साहसिक पर्यटन आदि गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाएगा।

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