Friday 8 May 2009

उत्तराखंड में ही रहेगा हरिद्वार

दिल्ली, हरिद्वार उत्तराखंड का ही हिस्सा रहेगा, इस पर अब सुप्रीम कोर्ट की भी मुहर लग गई है। हरिद्वार को उत्तराखंड राज्य में शामिल करने को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि किसी नए राज्य के गठन और उसकी सीमाएं तय करने का अधिकार संसद के पास है। संसद इस संबंध में राज्य विधानसभा से विचार मांग सकती है, लेकिन उसे मानने के लिए बाध्य नहीं है। यह फैसला न्यायमूर्ति एस.बी. सिन्हा व न्यायमूर्ति सीरिक जोसेफ की पीठ ने हरिद्वार निवासी प्रदीप चौधरी व अन्य की ओर से दाखिल याचिकाओं को खारिज करते हुए सुनाया है। हाईकोर्ट से स्थानांतरित होकर आयी याचिका में उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 की धारा-तीन को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि हरिद्वार जिले को उत्तराखंड में शामिल करने के मामले में संविधान के अनुच्छेद 3 के प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है। इस मामले में उत्तराखंड को अलग राज्य बनाए जाने की मांग पर उत्तर प्रदेश सरकार ने कौशिक समिति का गठन किया था और नए राज्य में शामिल किए जाने वाले जिलों पर सुझाव मांगा था। समिति ने विभिन्न वर्गो से विचार-विमर्श के बाद जो रिपोर्ट दी उसमें उत्तराखंड के लिए प्रस्तावित जिलों में हरिद्वार का नाम नहीं था लेकिन अनुच्छेद-तीन की प्रक्रिया के मुताबिक राज्य विधानसभा से सुझाव लेने के लिए राष्ट्रपति ने अधिसूचना जारी कर जो प्रस्तावित राज्य पुनर्गठन विधेयक भेजा था उसमें हरिद्वार भी शामिल था। राज्य विधानसभा ने विधेयक पर विचार-विमर्श के बाद जो सुझाव केंद्र सरकार को भेजे उसमें हरिद्वार को उत्तराखंड की सूची से बाहर रखे जाने की बात कही। हालांकि अगस्त 2000 में संसद ने दोनों सदनों ने उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन विधेयक पास कर दिया और राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी भी दे दी। नए कानून में हरिद्वार उत्तराखंड का हिस्सा था। याचिकाकर्ता की दलील थी कि राज्य का सुझाव नहीं माने जाने से अनुच्छेद-तीन में दी गई प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ है। जबकि केंद्र सरकार की दलील थी कि निर्धारित कानून के मुताबिक किसी भी नए राज्य की सीमाएं तय करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को है। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि केंद्र सरकार राज्य का सुझाव मांगती है, लेकिन उसे मानने के लिए बाध्य नहीं है। भले ही सुझाव समय पर क्यों न मिल गए हों। इस मामले में सुझाव समय पर नहीं मिले थे।

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