Monday 11 May 2009

अपनी सस्कृति को बचाने के लिए सीख ऱहे है ढोल और संगीत के गुर

गढ़वाल विवि के लोक कला एवं संस्कृति निष्पादन केंद्र द्वारा संचालित लोक संगीत डिप्लोमा पाठ्यक्रम के छात्र ढोल आदि संगीत विधाओं के पारंगत पारंपरिक लोक कलाकारों से गुर सीख रहे हैं। लोक कला को संरक्षित रखने के लिए उन्होंने उ8ारकाशी में ढोल प्रशिक्षण केंद्र खोलने की मांग की है।नए जमाने की चकाचौंध और डीजे संस्कृति द्वारा ढोल, दमाऊं, मसकबीन आदि पारंपरिक वाद्य यंत्रों वाले लोक संगीत को पीछे धकेल दिए जाने से इस कला के पारंगत कलाकार भी सिमटते जा रहे हैं। गढ़वाल विवि के सेंटर फॉर फोक परफार्मिंग आर्ट एंड कल्चर विभाग द्वारा संचालित लोक संगीत डिप्लोमा पाठ्यक्रम में अध्ययनरत छात्र अब इसके संरक्षण के लिए आगे आए हैं। ढोल, मसकबीन और लोकनृत्य की शिक्षा प्राप्त कर रहे छात्रों ने कंकराड़ी पहुंच कर इन विधाओं के जानकार बचनदास, हुकमदास आदि पारंपरिक कलाकारों को गुरु बनाकर शिक्षा ग्रहण करनी शुरू की है। जयप्रकाश, दिनेश, सुरेंद्र, गणेश आदि छात्रों ने कहा अपनी संस्कृति को बचाए रखने के लिए लोक विधाओं का संरक्षण और कलाकारों का स6मान जरूरी है। उन्होंने इस पाठ्यक्रम को अकादमी स्तर पर मान्यता देकर हर महाविद्यालय में शुरू करने तथा राज्य के हर जनपद में प्रशिक्षण केंद्र खोलकर स्थानीय लोक कलाकारों के माध्यम से लोक संगीत को आगे बढ़ाने की आवश्यकता जताई। पारंपरिक कलाकार साबित होंगे अच्छे गुरु उ8ारकाशी। गढ़वाल विवि में लोक कला एवं संस्कृति निष्पादन केंद्र के निदेशक डा. डीआर. पुरोहित का कहना है कि लोक संगीत एवं वाद्य यंत्रों के पारंपरिक कलाकार ही अच्छे गुरु साबित हो सकते हैं। इनसे जहां छात्रों को संगीत की अच्छी शिक्षा मिल रही है, वहीं कलाकारों को स6मान एवं रोजगार मिलने के साथ ही लोक संस्कृति के संरक्षण में भी मदद मिल रही है। गुरु का दर्जा मिलने से गदगद हैं कलाकार उ8ारकाशी। गढ़वाल विश्वविद्यालय के छात्रों को ढोल, लोकगायन एवं मसकबीन का प्रशिक्षण दे रहे कंकराड़ी गांव के बचन दास और धौंतरी के हुकम दास गुरु का स6मानित दर्जा मिलने से गदगद हैं। उन्होंने कहा यूं तो लोग शादी 4याह में उन्हें बुलाते हैं, किंतु वहां कला का पूरा स6मान नहीं होता। छात्रों को सिखाने के लिए उन्होंने अपने पुराने गीतों व ज्ञान को खंगालना शुरू कर दिया है।

3 comments:

  1. achcha laga ki pahad ke liye aap log kuch kam kar rahe hai, i am aguniss world records holder
    for most letter to editor
    pooran chandra pande
    type gougle "pooran chandra pande"

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  2. Hi
    Juyal Sir, Good Morning How are you, my self Harish Sati i m from Chamoli Garhwal Uttaranchal but presently i m staying in RK Puram New Delhi. I like this site because here is full Information of Uttaranchal, and i m very thankful to you to creat this website, it gives yu the latest information about Uttaranchal.

    Harish Sati
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  3. Dear Juyalji,
    I really appreciate your efforts in bringing Garhwal at our doorstep though our PC or Notebook. The basic reasons for these instruments going out of fashion are (1) being associated with the cast system (2) new generation not interested (3) not a life fulfilling job because of low income . Unless the new generation without cast lable comes forward to learn and practice, this will go extinct.
    Lakhera

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