Saturday 25 April 2009

घर में ही फंसे क्षत्रप

साथी की मदद को मांद से बाहर आने की जुटा ही नहीं पा रहे हिम्मत इस बार चुनाव का अंदाज ही कुछ निराला है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्र्रेस दोनों ही दलों के क्षत्रप अपनों घरों में ही फंसे है। पड़ोस की सीट पर जाकर पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में कुछ कर दिखाने की कुव्वत तो है पर अपनी ही फिक्र में इस कदर मशगूल हैं कि बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं। नतीजा यह है कि पार्टी के स्टार प्रचारकों पर ही सभी की नजरें टिकीं हैं। दिग्गज भी हंै और जनता के बीच प्रभाव भी। इसके बाद भी अपनी पार्टी या फिर अपने साथी प्रत्याशी के लिए कुछ करने की स्थिति में नहीं हैैं। जी हां, उत्तराखंड के सियासी महासमर में इस मर्तबा इलाकई क्षत्रपों की कुछ ऐसी ही तस्वीर उभर रही है। पहले बात पौड़ी सीट की। भाजपा ने यहां से टीपीएस रावत को प्रत्याशी बनाया है। ये जनाब कांग्र्रेस की सरकार में पूरे पांच साल कई खास मंत्रालय संभाले रहे। फिर पिछले सवा साल से भाजपा के टिकट पर सांसदी भी कर रहे हैैं। पूर्व सैन्य अफसर होने के नाते इनकी अपील पूर्व सैनिकों पर असरकारी हो सकती है। मौजूदा टिहरी सीट में देहरादून पहले पौड़ी सीट का हिस्सा था। इस लिहाज से नेताजी अन्य सीटों पर भी प्रभाव छोड़ सकते थे पर ऐसा हो नहीं पा रहा है। अपने घर में ही इस कदर फंसे हैैं कि पड़ोस में झाांकने तक का वक्त नहीं है। इसी सीट से कांग्र्रेस प्रत्याशी सतपाल महाराज आध्यात्म क्षेत्र में भी पहचान रखते हैैं। फिर केंद्र में राज्यमंत्री रहने के साथ ही पौड़ी सीट से कई चुनाव लड़ चुके हैैं। महाराज कम-से-कम हरिद्वार और टिहरी के देहरादून वाले हिस्से में अपील कर सकते हैैं। धार्मिक प्रवचन करने वाले ये नेताजी कुमाऊं में भीड़ खींचने की कुव्वत रखते है। अपने फेर में ऐसे फंसे कि इन्हें भी मांद से निकलने का अभी तक वक्त नहीं मिल सका है। टिहरी सीट से चुनाव लड़ रहे विजय बहुगुणा की गिनती भी सूबाई क्षत्रपों में की जाती है। फिर पिता स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा की राजनीतिक विरासत भी उन्होंने ही संभाल रखी है। कई मायनों में श्री बहुगुणा पौड़ी संसदीय सीट पर खासे इफेक्टिव साबित हो सकते हैं पर अभी तक उन्हें अपना क्षेत्र संभालने में ही पसीना आ रहा है। पौड़ी जाकर महाराज की मदद करने की बात ही बेमानी हो रही है। इस सीट से भाजपा ने निशानेबाज जसपाल राणा को खड़ा किया है। निश्चित रूप से वे एक सेलेब्रिटी हैैं पर भाजपा उन्हें इस रूप में प्रोजेक्ट ही नहीं पा रही है। फिर पहली बार चुनावी समर में कूदे जसपाल का अपने घर में ही पूरा समय दे पाना मजबूरी बनता जा रहा है। हरिद्वार से चुनाव लड़ रहे हरीश रावत की यूं तो पूरे प्रदेश में पहचान है पर नैनीताल और अल्मोड़ा संसदीय सीटों पर उनका खासा प्रभाव माना जाता है। श्री रावत हरिद्वार में इस कदर उलझो हैैं कि अल्मोड़ा से चुनाव लड़ रहे अपने प्रिय शिष्य प्रदीप टम्टा की चाहते हुए भी मदद नहीं कर पा रहे हैं। आलम यह है कि नेताजी ने अपने खास लोगों को प्रदेशभर से बुलाकर हरिद्वार में जिम्मेदारी थमा दी। हां, एक बार अल्मोड़ा का दौरा करके शिष्य को यह समझााने की कोशिश जरूर कर डाली जमे रहो, सब ठीक होगा। जाहिर सी बात है कि पहले अपना घर मजबूत किया जाएगा। नैनीताल सीट से भाजपा प्रत्याशी बची सिंह रावत यूं तो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैैं पर इस समय उनके लिए अपना संसदीय क्षेत्र ही प्रदेश बन चुका है। चार बार सांसद और एक बार केंद्र में राज्य मंत्री रह चुके बचदा को प्रदेश अध्यक्ष के नाते पूरे उत्तराखंड में घूमना था पर इस समय तो वे अपने पुराने क्षेत्र अल्मोड़ा तक के लिए समय नहीं निकाल पा रहे है। बचदा ने प्रत्याशी के नामांकन वाले रोज कुछ घंटों के लिए अल्मोड़ा जाकर रस्म अदायगी जरूर कर दी है। भाजपा ने काबीना मंत्री अजय टम्टा को प्रदेश में सूबे में दलित नेता के रूप में प्रोजेक्ट किया था। मंशा चुनाव में दलित वोटों को रिझााने की थी। बाद में श्री टम्टा को अल्मोड़ा सीट से प्रत्याशी क्या बनाया, वे संसदीय सीट से बाहर निकलना ही भूल गए। जाहिर है कि किसी के पास किसी के लिए वक्त ही नहीं है। हर कोई फंसा है तो बस अपने ही क्षेत्र में। अब यह तो चुनाव परिणाम ही बताएगा कि सूबाई क्षत्रपों की यह रणनीति कितनी कारगर रही। -------- ये हैैं सूबाई स्टार भाजपा- मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी और सांसद भगत सिंह कोश्यारी कांग्र्रेस- प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य और नेता प्रतिपक्ष डा. हरक सिंह रावत उक्रांद- कबीना मंत्री दिवाकर भट्ट और पूर्व विधायक काशी सिंह ऐरी

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