Saturday 18 April 2009

गुच्चूपानी के पहरेदार

दून की धरती पर पग धरने वाले उसे गुच्चूपानी के पहरेदार के रूप में जानते हैं। चंद सालों में इसने एक दो या तीन नहीं, बल्कि बीस से अधिक लोगों को अकाल मौत का ग्रास बनने से रोक लिया है.

बारह सालों से वह, यहां चाहे अनचाहे लोगों पर परोपकार करता आया है. बदले में उसे न तो किसी इनाम की चाहत है और न ही शोहरत की तमन्ना. उफनाते बरसाती नालों की विकराल लहरों का सीना चीर कर यह पहरेदार कब लोगों की नजरों में मसीहा बन बैठा, इसकी उसे खबर तक नहीं है. चंद सालों में इसने एक दो या तीन नहीं, बल्कि बीस से अधिक लोगों को अकाल मौत का ग्रास बनने से रोक लिया है. मौत की राह रोकने का हौसला रखने वाली इस शख्सियत को गुच्चूपानी पिकनिक स्पॉट पर आने लोग अनूप कुमार घले के नाम से भी जानते हैं. दून के लोगों के लिए भले ही अंजान शख्सियत हों, लेकिन उनके विराट हौसले की दास्तान सुनाने वाले वाले पर्यटकों की गुच्चूपानी जैसे मशहूर पिकनिक स्पॉट पर कोई कमी नहीं है. उम्र के दोराहे पर खड़े अनूप कुमार घले का शिद्दत से साथ निभाने के लिए यहां एक और इंसान भी है, जिसे लोग श्याम थापा के नाम से जानते हैं. ये दोनों लोग बरसात के नाले का मिजाज अच्छी तरह से पहचानते हैं, और उनका यही ज्ञान कई बार लोगों का जीवन बचा लेता है. गुच्चूपानी का इतिहास इनकी जुबां पर रहता है. यहां आने वाले पर्यटकों को किसी प्रकार की जानकारी लेनी हो, तो इन दोनों से बेहतर जरिया दूसरा हो भी नहीं सकता. 12 वर्ष पूर्व डाला डेराठीक बारह साल पहले 1997 तक अनूप कुमार घले वाइल्ड लाइफ से जुडे़ थे. पशु और पक्षियों से इनके अथाह प्रेम की झलक आज भी इनके व्यवहार में नजर आती है. अनूप बताते हैं कि 12 साल पहले गुच्चूपानी के नाम से ही लोगों के पसीने छूट जाते थे. पर्यटक तो दूर यहां लोकल पर्सन भी दिन के उजाले में नजर नहीं आते थे. चारों ओर पहाड़ियां और ऊपर से बियाबान जंगल इस जगह की खास पहचान रहे. अनारवाला की आबादी भी तब इतनी अधिक नहीं थी कि यहां बसावट नजर आए. धीरे-धीरे लोगों ने यहां बसना शुरू किया तो इस जगह पर आवाजाही होने लगी. पिछले साल ही टूरिज्म डिपार्टमेंट ने गुच्चूपानी को एडॉप्ट किया है. सेविंग लाइफ अभियानअनूप कुमार घले और घुच्चुकपानी के ठीक मुहाने पर दुकान चलाने वाले श्याम थापा बताते हैं कि 2001 में दोपहर के वक्त दिल्ली के राजा गार्डन से आए एक ही परिवार के पंद्रह सदस्यों को उन्होंने लाख समझाया कि बारिश का मौसम यहां के लिए अनुकूल नहीं है. उन्होंने एक न मानी और गुच्चूपानी की गुफा में प्रवेश कर गए. अभी चंद मिनट ही बीते थे कि पानी के शोर ने दोनों के रोंगटे खड़े कर दिए. गुफा के अंदर पर्यटकों की चीख पुकार मच चुकी थी, समझ नहीं आ रहा था कि दुकान में रखे अपने सामान की रक्षा करें या फिर भीतर फंसे पर्यटकों की जान बचाएं. अंतर्मन की आवाज सुनकर दोनों ने पर्यटकों की जान बचाने का फैसला लिया. इसी बीच अंदर से पानी के साथ पर्यटकों के बहने का सिलसिला शुरू हो चुका था. जान की बाजी लगाते हुए दोनों पंद्रह लोगों की जान बचाने में कामयाब रहे. यहां से शुरू हुआ यह सिलसिला आज तक बदस्तूर जारी है. हर साल तीन चार पर्यटकों की जान ये दोनों बचा कर इंसानियत की मिसाल कायम करते हैं. रोचक है हिस्ट्रीगुच्चूपानी भी अपने आप में एक रोमांचक इतिहास समेटे हुए है. 650 मीटर लंबी पानी की गुफा वाले इस पिकनिक स्पॉट पर सबसे पहले 1936 में एक ब्रिटिश सेना के अफसर मिस्टर एल्टे की नजर पड़ी. एल्टे ने यहां एक चैक डेम की स्थापना की मुहिम शुरू की, लेकिन तकनीकी दिक्कतों के चलते यह काम बीच में ही रोकना पड़ा. इस डैम के अवशेष यहां आज भी मौजूद हैं. उस दौर में इस स्थान के इर्द-गिर्द साधु संतों की साधना चलती थी. इतिहास के पन्नों में जिस सुल्ताना डाकू का जिक्र सुनाई देता है, उसकी गिरफ्तारी भी अंग्रेज फौज ने इस स्थान से की और बाद में उसे फांसी पर लटकाया गया. मैग्नेशियम नाइट्रेट से बनी ऊंची पहाड़ियां यहां पयर्टकों को दूर से ही लुभाती हैं.

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