Saturday 18 April 2009

मेला-थौलों मां सजी-धजी जाणि होली

नई टिहरी। मेला-थौलों मां सजिधजी कैं जाणि होली, धकद्यांदी जिकूड़ी रगर्यांदी आंखी कैतै खोजणी होली। लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के गीत के यह बोल खूब चरितार्थ हो रहे हैं। बैशा2ा का महीना शुरू होते ही यहां मेलों का आयोजन शुरू हो जाता है। जिसमें ग्रामीण बड़ी सं2या में अपने कुलदेवताओं के मंदिरों में चढ़ावा चढ़ाकर मनौतियां मांगते हैं।पहाड़ में मेले सदियों से लगते रहे हैं। इस महीने कृषक अपनी गेहूं की फसल काटने के बाद फसल का पहला 5ाोग प्रसाद के रूप में अपने कुल देवता को चढ़ाते हैं। अपनी खेती के कार्यों से निपटने के बाद उनके लिए यह एक मनोरंजन का भी माध्यम बनता रहा है, लेकिन समय के साथ-साथ अब इसका महत्व भी घटने लगा है। खेती-किसानी छोड़ लोग शहरों में जा बसे हैं। फिर भी गांव में रहने वाले कुछ मेहनतकशों ने इस परंपरा को जीवंत रखा है। जो कि चैत, बैशाख से जेठ के महीने तक हर क्षेत्र में अलग-अलग दिनों में लगते रहे हैं। जौनसार क्षेत्र में तो यह कई दिनों तक चलता रहता है। सिद्धपीठ सुरकंडा,चंद्रबदनी, कुंजापुरी और माधो सिंह भंडारी, बीसी ग4बर सिंह, बूढ़ाकेदार तथा सेममुखेम सहित जिलेभर में ६० से अधिक धार्मिक और ऐतिहासिक मेले स्वत: स्फूर्त लगते हैं। संस्कृति विभाग भी अब इन मेलों को विकास मेले के रूप में प्रोत्साहन देकर खेती-किसानी व स्वास्थ्य की जानकारी दे रहा है।

1 comment:

  1. baisakh maina thaula melo ku hamari bhi aash tak lagi chha. par kya kara dur desh ma chawa yee naukari ka baana. abhi hamaru uttarakhand ma pahli jitna bhid bhad hondi chi melo ma dhire dhire kam honi chha. log etna interest nee chan lena jitna ki pahli lenda chin. sarkar tai chayendu ki uttarakhandi melo tai protsahan de. dhanykhal
    Regares!!
    Vinod Jethuri
    Dubai (U.A.E)

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