Tuesday 21 April 2009
जल, जंगल, जमीन बने चुनाव का मुख्य मुद्दा
उत्तराखंड नदी बचाओ आंदोलन ने जारी किया जन घोषणापत्रदेहरादून, : चुनाव के इस मौसम में भले ही सियासी दल और प्रत्याशी वोटरों को रिझााने के लिए उन मुद्दों को उछाल रहे हों, जिनसे उनके वोटों में इजाफा होगा, लेकिन पर्यावरणप्रेमी भी मौके की नजाकत भांप नसीहत दे रहे हैं कि पर्यावरण से जुड़े मसले भी चुनाव के मुद्दे बनने चाहिए। पर्यावरणरणविद सुंदर लाल बहुगुणा के बाद अब उत्तराखंड नदी बचाओ आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने यह आवाज बुलंद की है। उत्तराखंड नदी बचाओ आंदोलन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि जल, जंगल और जमीन पर जनता काअधिकार चुनाव का मुख्य मुद्दा बनना चाहिए। सोमवार को इन कार्यकर्ताओं ने जनता व सियासी दलों को जागरूक करने की पहल की और जन घोषणा पत्र जारी किया। गांधी पार्क में आयोजित कार्यक्रम में नदी बचाओ आंदोलन के सुरेश भाई ने कहा कि यह घोषणा पत्र टोलियों के जरिए गांव-गांव पहुंचाया जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश के सभी प्रमुख दल जनता के मुद्दों पर गंभीर नहीं हैं। पिछले दिनों उन्होंने नदियों के मुद्दे को लेकर सभी सियासी दलों के विधायकों से संपर्क कर उन्हें इन मुद्दों पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया था, मगर उसमें महज एक विधायक शामिल हुए। उन्होंने कहा कि जल, जंगल और जमीन पर जनता का अधिकार होना चाहिए। सरकार को कोई भी बड़ी परियोजना बनाने से पहले स्थानीय जनता की राय लेनी चाहिए। प्रदेश में 200 बांध बन रहे हैं, लेकिन प्रभावित लोगों के पुनर्वास व रोजगार नीति पर बात नहीं हो रही। बदलता पर्यावरण भी जल संकट खड़ा कर रहा है। सरकार को पारंपरिक जल स्रोत संरक्षित करते हुए प्रकृति से सामंजस्य बिठाती एक हिमालय नीति बनानी चाहिए। जनकवि अतुल शर्मा ने कहा कि यह घोषणा पत्र इसलिए जारी किया गया क्योंकि जल, जंगल और जमीन सियासी दलों की चिंता में शामिल नहीं। हमने लोक सभा चुनाव के लिए 'हमारा वोट, हमारी मर्जी, हमारा गांव हम सरकार, गांव में लाओ ग्रामस्वराज' का नारा भी दिया है, ताकि देश में सच्चा लोकतंत्र स्थापित हो। स्वाधीनता सेनानी रमा शर्मा ने घोषणा पत्र को मतदाताओं को असली मुद्दों पर सोचने के लिए जागरूक करने की महत्वपूर्ण पहल बताया। इस मौके पर प्रेम पंचोली आदि भी मौजूद थे।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment