Thursday 16 April 2009

अपना ग्रिड

उत्तराखंड राज्य बने नौ साल होने जा रहे हैं। अभी तक कई मामलों में राज्य की दूसरों पर निर्भरता बनी हुई है। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण मामला राज्य के अपने बिजली ग्रिड भी है। अपने अपार जल संसाधनों की वजह से आज नहीं तो कल उत्तराखंड बिजली उत्पादन में देश का अग्रणी राज्य बनने जा रहा है। बिजली उत्पादन में कोई राज्य कितनी भी प्रगति कर ले यदि उसकी पारेषण लाइनें सुदृढ़ और समुचित नहीं होंगी तो इसका कोई लाभ उस राज्य को नहीं मिलेगा। बिजली को निरंतर प्रवाह के लिए सुव्यवस्थित पारेषण लाइनों की जरूरत होती है। क्योंकि बिजली को संरक्षित नहीं किया जा सकता है। अतिरिक्त बिजली उत्पादन का लाभ लेने के लिए मजबूत पारेषण प्रणाली होना तो जरूरी है ही साथ ही अपनी सुदृढ़ ग्रिड प्रणाली की भी उतनी ही जरूरत होती है। तभी राज्य उत्पादित बिजली का समुचित उपयोग कर पाने में सफल हो सकेगा। इस मामले में दूसरे राज्यों पर निर्भरता स्थिति को ही खराब करती रहेगी। 2004 में अपना ग्रिड तैयार करने का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया तो इसकी वजह पिटकुल में मौजूद खामियां हो सकती हैं। दरअसल हाईटेंशन लाइनों का निर्माण करने वाले कांट्रेक्टरों की संख्या देश में बहुत कम है। निगम बनने के बाद भी राज्य के तीनों बिजली से संबंधित निगमों में उतनी व्यावसायिकता अभी नहीं आई है, जिसके लिए इनका गठन किया गया था। इसका खामियाजा जरूरी काम में पिछडऩे के रूप में देखा जा सकता है। अपने ग्रिड के मामले में भी यही हो रहा है। खास बात यह है कि सरकार ने भी इस ओर कभी गंभीरता से सोचने की जरूरत नहीं समझाी। इसकी वजह लक्ष्य के चार साल पिछडऩे के रूप में सामने आई है। अब तो ऐसे मामलों को गंभीरता से लेने की कोशिश की जानी चाहिए

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