Thursday 30 April 2009

टिहरी का दर्द अभी खत्म नहीं हुआ।

ग्र्रेवांस सेल में पड़े 1940 मामलों का निपटारा अभी होना है लेकिन इतने पर भी इसकी इतिश्री नहीं हुई। अफसरशाही की लापरवाही के चलते 45 और गांवों पर विस्थापन की तलवार लटक गयी है। गलती किसी की और खामियाजा भुगतना पड़ेगा किसी को। जब भी कोई परियोजना बनती है, विस्थापन व अधिग्र्रहण आदि का सर्वे पहले ही हो जाता है लेकिन इस परियोजना के मामले में अधिकारियों की लापरवाही के चलते ये गांव जो डूब क्षेत्र में शामिल थे, सर्वे में छोड़ दिये गये। अब परियोजना तो पूरी की ही जानी है। लिहाजा इन गांवों के करीब 118 परिवारों को गांवों से रुखसत होना पड़ेगा। विचारणीय प्रश्न यह है कि कैसे यह लापरवाही हुई। टिहरी बांध कोई छोटी-मोटी परियोजना नहीं है। बहुत बड़ी मशीनरी ने इसे तैयार किया है। डूब क्षेत्र का पूरा सर्वे किया गया। नई टिहरी शहर बसाया गया। मूल टिहरी शहर हमेशा के लिए गंगा के आगोश में समा गया। फिर कैसे डूब क्षेत्र के इन गांवों को सर्वे में रेखांकित नहीं किया गया। अधिकारियों का वह वर्ग जिसने इस परियोजना की आधारशिला रखी, उसने कैसे इतनी बड़ी भूल कर दी। इन 45 गांवों को विस्थापित तो होगा ही क्योंकि ये परियोजना का हिस्सा हैैं, लेकिन क्या इतनी बड़ी चूक करने वाले अधिकारियों के वर्ग से कुछ नहीं कहा जाना चाहिए। उन्हें इसलिए बख्श दिया जाना चाहिए क्योंकि वे अधिकारी हैैं। यह इतना अहम प्रश्न है कि इसे यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता। विस्थापित होने जा रहे 118 और परिवार अगर उसी समय विस्थापित हुए होते तो शायद ये अब तक स्थापित हो चुके होते। जब किसी को राष्ट्र या सूबे के हित में अपने गांव, अपनी जमीन से बेदखल किया जाता है तो उसके भविष्य की जिम्मेदारी सूबे या राष्ट्र की बन जाती है लेकिन सरकार या प्रशासन को संभवत: विस्थापन के दंश का दर्द महसूस नहीं होता। तभी तो अभी तक पुराने मामलों का ही निस्तारण नहीं हुआ। अब यह नहीं स्थिति उपजी है। 118 परिवार अपने गांव से देर-सबेर बेदखल होने जा रहे हैं। इन्हें किस तरह स्थापित किया जाएगा, फिलहाल इसका जवाब किसी के पास नहीं है। सरकार को सिर्फ अपनी परियोजना ही नहीं, विस्थापितों के भविष्य की योजना पर भी ध्यान देना चाहिए। इस बात को नहीं भूला जाना चाहिए कि इस परियोजना में विस्थापितों का सबसे अहम योगदान है।

-जेपी पर 11 करोड़ व थापर पर 7 लाख का जुर्माना

-दोनों कंपनियों को सरकारी भूमि से बेदखल करने के आदेश नई टिहरी, हित प्राधिकारी न्यायालय ने सरकारी भूमि पर कब्जा कर उसके व्यावसायिक उपयोग के मामले में टिहरी बांध का निर्माण करने वाली जय प्रकाश पर करीब ग्यारह करोड़ व थापर कंपनी पर सात लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। विहित प्राधिकारी न्यायालय में प्रशासन की ओर से 26 दिसंबर 2008 को जय प्रकाश कंपनी व 13 जनवरी 2009 को थापर कंपनी के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। प्रशासन का कहना था कि थापर कंपनी ने ग्राम गाजणा में कुल 2.006 हेक्टेयर भूमि सन 2005 से अवैध कब्जा कर रखा है। इस भूमि पर कब्जेदार द्वारा कर्मचारी आवास, कार्यालय, अतिरिक्त भवन का निर्माण कर रखा है। इससे कंपनी व्यवसायिक लाभ ले रही है। तीन वर्षों में कंपनी ने सात लाख दो हजार का लाभ अर्जित किया है। विहित प्राधिकारी की अदालत ने इस राशि को सरकार को देने के आदेश दिए हैं। वहीं जय प्रकाश कंपनी ने बांध की झाील के समीप खांडखाला में 15.767 हेक्टेयर सरकारी भूमि पर कब्जा कर उसमें भवन, अतिथि गृह, पेट्रोल पंप, हेलीपैड, गोशाला व गोदाम आदि का निर्माण किया है। इस सब से कंपनी ने 11 करोड़ 31 लाख 71 हजार 200 रुपये का लाभ अर्जित किया। न्यायालय विहित प्राधिकारी ने सरकारी भूमि से जय प्रकाश कंपनी द्वारा अर्जित की गई उक्त धनराशि सरकार को देने के आदेश दिए हैं और सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा करने से कंपनी को बेदखल करने के आदेश भी दिए गए हैं।

-सूचना आयोग-शासन का तर्क खारिज

राजधानी आयोग का मामला आठ मई को राज्य के मुख्य सचिव को देनी होगी सफाई राजधानी आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करने के मामले में शासन अपनी ही लापरवाही की वजह से फंस गया है। राज्य सूचना आयोग ने शासन के तर्क खारिज कर दिए हैं। इस मामले में आयोग ने आठ मई को मुख्य सचिव को भी तलब किया है। शासन ने तर्क दिया कि 28 अप्रैल को राजधानी आयोग की रिपोर्ट को कैबिनेट के एजेंडे में शामिल कर लिया गया है, इसलिए उसकी प्रति नहीं दी जा सकती। आयोग ने यह कहकर शासन का तर्क खारिज कर दिया कि जब सूचनाधिकार की अर्जी आई थी व विभागीय अपील की सुनवाई हुई, उस वक्त दीक्षित आयोग की रिपोर्ट कैबिनेट के विचाराधीन नहीं थी। इसलिए उसे सूचना कानून के तहत प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता। मालूम हो कि भाकपा माले नेता इंद्रेश मैखुरी ने पिछले साल अगस्त में शासन से सूचनाधिकार के तहत वीरेंद्र दीक्षित आयोग की रिपोर्ट की मांग की थी, जो उन्हें नहीं मिली। इस मामले में आयोग ने शासन को रिपोर्ट मुहैया कराने व उसे वेबसाइट पर सार्वजनिक करने के आदेश दिए, मगर शासन ने अब तक ऐसा नहीं किया। इस मामले में आयोग सामान्य प्रशासन विभाग को अर्थदंड की चेतावनी दे चुका है। मजेदार बात यह है कि लोक सूचनाधिकारी ने जुर्माने व हर्जाने के विरोध में कोई तर्क ही पेश नहीं किया। आयोग ने आदेश में कहा है कि अगर अगली सुनवाई में प्रतिवादी कोई तर्क पेश नहीं करते तो मान लिया जाएगा कि सामान्य प्रशासन विभाग को लोक सूचनाधिकारी पर 25 हजार रुपये जुर्माना और इंद्रेश मैखुरी को 50 हजार रुपये मुआवजा देना मंजूर है। वहीं, इसी तरह के एक अन्य मामले में सामान्य प्रशासन विभाग पर अर्थदंड हो चुका है।

वीर चक्र विजेता का अधूरा रहा सपना

टनकपुर: हर बार चुनाव में लुभावने वादे व आश्वासन जनता को दिये जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में यह वायदे कितने साकार होते हैं यह किसी से छिपा नहीं है। एक वादा जो साढे तीन दशक पूर्व सीमा पर दुश्मनों के दांत खटटे करने वाले उस जांबाज वीर चक्र सूबेेदार चन्द्री चंद को वीरता के लिए दिया गया था। जो उनके मरने के बाद भी साकार नहीं हो पाया। हम बात कर रहे हैं उस जांबाज सैनिक की जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अहम भूमिका निभाई थी। चंपावत जिले के एक मात्र वीर चक्र विजेता सूबेदार चन्द्री चंद को उनकी बहादुरी के लिए सरकार से इनाम में मिली जमीन पर कब्जा पाने का सपना लिए 22 नवंबर 2007 को दुनिया से विदा हो गये। शासन -प्रशासन की लचर व्यवस्था को इस योद्घा ने कई दशकों तक करीब से महसूस किया। सीमा की रक्षा को मुस्तैद रहने वाले सैनिकों के उत्थान के लिए सरकार समय-समय पर घोषणाएं तो जरुर करती है लेकिन इन पर अमल नहीं होता। स्वर्गीय चंद की कहानी भी इसी का जीता जागता उदाहरण है। मूल रुप से पिथौरागढ जिले के उखडी सेरी गांव में 13 अक्टूबर 1920 को जन्मे वीर चक्र विजेता चन्द्री चंद का परिवार नगर से सटे गांव आमबाग में जैसे-तैसे गुजर बसर कर रहा है। मात्र 18 वर्ष की उम्र में स्व.चंद 13 अक्टूबर 1938 को पहली कुमांऊ राइफल्स (इन्फैन्ट्री यूनिट) में भर्ती हुए। महज तीन वर्ष बाद ही उन्हें दूसरे विश्व युद्घ में भाग लेने का मौका मिला। 25 जुलाई 1941 को ईरान स्थित विश्व के सबसे बडे तेल भंडार अबादान शहर पर कब्जा करने में श्री चंद ने अहम भूमिका निभाई थी। 14 मार्च 1948 को सूबेदार चंद के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सेना को पीछे खदेडते हुए झाांगर भूमि पर तिरंगा फहराया। प्रतिक्रिया में दुश्मनों की ओर से की गई बमबारी में एक बम श्री चंद के बंकर के पास गिरा। जिससे वह मलवे में दब गये। इस पर भी वह मोर्चे पर डटे रहे। जान की बाजी लगाकर दुश्मनों से लोहा लेने के लिए उन्हें पहले गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने उन्हें वीर चक्र उपाधि से नवाजा। भारत सरकार ने उनकी बहादुरी के लिए सत्तर के दशक में उन्हें ऊधमसिंह नगर जिले के तहसील खटीमा के गांव बिलहरी चकरपुर में बीस बीघा जमीन इनाम में देने की घोषण की। लेकिन यह घोषणा आज तक पूरी नहीं हो पाई है। जिंदा रहते हुए वीर चक्र विजेता चंद ने हर राजनीतिक दलों के नेताओं,शासन व प्रशासन से पुरस्कार में मिली जमीन को दिलाने के लिए ऐडी-चोटी एक की। लेकिन दुश्मनों को हर मोर्चे पर नाकाम करने वाला यह योद्घा नाकारा व्यवस्था के आगे हार गया।

Wednesday 29 April 2009

पैरामेडिकल तकनीकी पदों पर साक्षात्कार 2 से

श्रीनगर (पौड़ीे गढ़वाल )। राजकीय मेडिकल कालेज श्रीनगर में स्टाफ नर्स, लैब टेक्नीशियन, मेडिकल सोशल वर्कर, पब्लिक सोशल वर्कर, लाइब्रेरियन आदि पैरामेडिकल तकनीकी पदों पर नियुक्ति के लिए द्वितीय चरण की साक्षात्कार प्रक्रिया 2 मई से शुरू हो रही है। मेडिकल कालेज के प्राचार्य डा. यूके सिंह ने बताया कि यह साक्षात्कार 5 मई तक चलेगा। चतुर्थ श्रेणी पदों के लिए साक्षात्कार बाद में होगा। स्टाफ नर्स के 125 पदों के लिए 184 आवेदक हैं। स्टाफ नर्स के 78 सामन्य श्रेणी पदों के लिए 146 आवेदक और अनुजाति के 24 पदों के लिए केवल 2 आवेदक, अनु.जनजाति के पांच पदों के लिए 4 आवेदक और ओबीसी के 18 पदों के लिए 27 आवेदक हैं। लैब टेक्निशियन के 46 पदों के लिए 378 आवेदक हैं जिनमें बीएससी एमएलटी उपाधि प्रथम श्रेणी में प्राप्त अभ्यर्थियों की ही संख्या 82 है। लैब टैक्निशियन के 19 पद सामान्य श्रेणी के हैं जबकि 9 अनुजाति के लिए, 2 अनु. जनजाति के लिए और 6 ओबीसी के लिए हैं। लाइब्रेरियन के एक पद के लिए 160 आवेदक हैं।

बादशाही थौल परिसर को विवि के दर्जे की तैयारी!

देहरादून। गढ़वाल मंडल में पौने दो सौ से ज्यादा स्ववित्तपोषित शिक्षण संस्थाओं को संबद्धता और सात सौ से ज्यादा अस्थायी शिक्षकों व कर्मियों का दबाव सरकार व राजनीतिक दलों पर भारी है। समाधान के तौर पर विवि परिसर बादशाही थौल को नए विवि का दर्जा मिल सकता है। केंद्रीय विवि के हाथों झटका मिलने के अंदेशे के मद्देनजर राज्य सरकार इस विकल्प को आजमाने की तैयारी में है। मौजूदा अध्यादेश के मुताबिक केंद्रीय विवि का कार्य क्षेत्र सात जिलों में होगा या पौने दो सौ से ज्यादा स्ववित्तपोषित शिक्षण संस्थान संबद्ध रहेंगे या नहीं, यह तस्वीर डेढ़ माह के भीतर साफ हो जाएगी। फिलवक्त केंद्रीय विवि के समक्ष उच्च शिक्षा की गुणवत्ता के साथ राज्य की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की चुनौती भी है। यह तकरीबन तय माना जा रहा है कि केंद्रीय दर्जे के बाद गढ़वाल विवि का मौजूदा स्वरूप बदलेगा। जिस अध्यादेश से केंद्रीय विवि बना है, उसकी अवधि छह महीने में पूरी होनी है। इस दौरान विवि अधिनियम को अस्तित्व में आना होगा। लिहाजा, आगामी जून माह के पहले पखवाड़े तक नीति तय कर ली जाएगी। इस बाबत विवि की कार्य परिषद की मई माह में प्रस्तावित बैठक पर सभी की नजरें टिकी हैं। कार्य परिषद के निर्णयों पर केंद्र के रवैये की छाप साफतौर पर नजर आएगी। विवि सूत्रों के मुताबिक उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और इस संबंध में केंद्र सरकार के मानकों के मुताबिक फैसला होने की स्थिति में केंद्रीय विवि का कार्य क्षेत्र गढ़वाल मंडल के सात जिलों से तो सिमटेगा ही, बड़ी तादाद में स्ववित्तपोषित शिक्षण संस्थानों को भी संबद्धता से हाथ धोना पड़ेगा। संस्थानों को नए सत्र में प्रवेश प्रक्रिया शुरू नहीं करने की विवि प्रशासन की चेतावनी को इसी तरह देखा जा रहा है। शासन के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक स्ववित्तपोषित शिक्षण संस्थानों को संबद्धता के मामले के समाधान के लिए दून विवि और उत्तराखंड तकनीकी विवि के विकल्पों पर विचार किया गया। सेंटर आफ एक्सीलेंस को लेकर दून विवि की प्रतिबद्धता बरकरार रखने की वजह से इस विकल्प पर सरकार ने कदम पीछे खींच लिए हैं। तकनीकी विवि के साथ तकनीकी शिक्षा से जुड़े निजी संस्थानों की संबद्धता में तो परेशानी पेश नहीं आने वाली, लेकिन उच्च शिक्षा व अन्य रोजगारपरक कोर्स की संबद्धता के लिए विवि के एक्ट में संशोधन की दरकार है। सूत्रों के मुताबिक सरकार की नजरें अब तीसरे विकल्प के तौर पर बादशाही थौल परिसर पर टिकी हैं। यह माना जा रहा है कि केंद्रीय एचएनबी गढ़वाल विवि की ईसी की बैठक में उक्त तीसरे परिसर को विवि झटक सकता है। इस हालात में उस परिसर को राज्य सरकार अपने पाले में लेकर विवि का दर्जा देने पर विचार कर रही है। इससे गढ़वाल विवि में फिलवक्त सात सौ से ज्यादा अस्थायी शिक्षकों व कर्मचारियों के समायोजन को लेकर दिक्कतें दूर होंगी। केंद्रीय विवि में उक्त शिक्षकों व कर्मचारियों के खपने की संभावना नगण्य ही है।

कठिन यात्रा है रुद्रनाथ की

समुद्रतल से 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है, जबकि संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ में की जाती है। रुद्रनाथ मंदिर के सामने से दिखाई देती नंदा देवी और त्रिशूल की हिमाच्छादित चोटियां यहां का आकर्षण बढाती हैं। इस स्थान की यात्रा के लिए सबसे पहले गोपेश्वर पहुंचना होता है जो कि चमोली जिले का मुख्यालय है। गोपेश्वर एक आकर्षक हिल स्टेशन है जहां पर ऐतिहासिक गोपीनाथ मंदिर है। इस मंदिर का ऐतिहासिक लौह त्रिशूल भी आकर्षण का केंद्र है। गोपेश्वर पहुंचने वाले यात्री गोपीनाथ मंदिर और लौह त्रिशूल के दर्शन करना नहीं भूलते। गोपेश्वर से करीब पांच किलोमीटर दूर है सगर गांव। बस द्वारा रुद्रनाथ यात्रा का यही अंतिम पडाव है। इसके बाद जिस दुरूह चढाई से यात्रियों और सैलानियों का सामना होता है वो अकल्पनीय है। सगर गांव से करीब चार किलोमीटर चढने के बाद यात्री पहुंचता है पुंग बुग्याल। यह लंबा चौडा घास का मैदान है जिसके ठीक सामने पहाडों की ऊंची चोटियों को देखने पर सर पर रखी टोपी गिर जाती है। गर्मियों में अपने पशुओं के साथ आस-पास के गांव के लोग यहां डेरा डालते हैं, जिन्हें पालसी कहा जाता है। अपनी थकान मिटाने के लिए थोडी देर यात्री यहां विश्राम करते हैं। ये पालसी थके हारे यात्रियों को चाय आदि उपलब्ध कराते हैं। आगे की कठिन चढाई में जगह-जगह मिलने वाली चाय की यही चुस्की अमृत का काम करती है। पुंग बुग्याल में कुछ देर आराम करने के बाद कलचात बुग्याल और फिर चक्रघनी की आठ किलोमीटर की खडी चढाई ही असली परीक्षा होती है। चक्रघनी जैसे कि नाम से प्रतीत होता है कि चक्र के सामान गोल। इस दुरूह चढाई को चढते-चढते यात्रियों का दम निकलने लगता है। चढते हुए मार्ग पर बांज, बुरांश, खर्सू, मोरु, फायनिट और थुनार के दुर्लभ वृक्षों की घनी छाया यात्रियों को राहत देती रहती है। रास्ते में कहीं कहीं पर मिलने वाले मीठे पानी की जलधाराएं यात्रियों के गले को तर करती हैं। इस घुमावदार चढाई के बाद थका-हारा यात्री ल्वीटी बुग्याल पहुंचता है जो समुद्र तल से करीब 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ल्वीटी बुग्याल से गापेश्वर और सगर का दृश्य तो देखने लायक है ही, साथ ही रात में दिखाई देती दूर पौडी नगर की टिमटिमाती लाइटों का आकर्षण भी कमतर नहीं। ल्वीटी बुग्याल में सगर और आसपास के गांव के लोग अपनी भेड-बकरियों के साथ छह महीने तक डेरा डालते हैं। अगर पूरी चढाई एक दिन में चढना कठिन लगे तो यहां इन पालसियों के साथ एक रात गुजारी जा सकती है। यहां की चट्टानों पर उगी घास और उस पर चरती बकरियों का दृश्य पर्यटकों को अलग ही दुनिया का अहसास कराता है। यहां पर कई दुर्लभ जडी-बूटियां भी मिलती हैं। ल्वीटी बुग्याल के बाद करीब तीन किलोमीटर की चढाई के बाद आता है पनार बुग्याल। दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित पनार रुद्रनाथ यात्रा मार्ग का मध्य द्वार है जहां से रुद्रनाथ की दूरी करीब ग्यारह किलोमीटर रह जाती है। यह ऐसा स्थान है जहां पर वृक्ष रेखा समाप्त हो जाती है और मखमली घास के मैदान यकायक सारे दृश्य को परिवर्तित कर देते हैं। अलग-अलग किस्म की घास और फूलों से लकदक घाटियों के नजारे यात्रियों को मोहपाश में बांधते चले जाते हैं। जैसे-जैसे यात्री ऊपर चढता रहता है प्रकृति का उतना ही खिला रूप उसे देखने को मिलता है। इतनी ऊंचाई पर इस सौंदर्य को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता है। पनार में डुमुक और कठगोट गांव के लोग अपने पशुओं के साथ डेरा डाले रहते हैं। यहां पर ये लोग यात्रियों को चाय आदि उपलब्ध कराते हैं। पनार से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों का जो विस्मयकारी दृश्य दिखाई देता है वो दूसरी जगह से शायद ही दिखाई दे। नंदादेवी, कामेट, त्रिशूली, नंदाघुंटी आदि शिखरों का यहां बडा नजदीकी नजारा होता है। पनार के आगे पित्रधार नामक स्थान है पित्रधार में शिव, पार्वती और नारायण मंदिर हैं। यहां पर यात्री अपने पितरों के नाम के पत्थर रखते हैं। यहां पर वन देवी के मंदिर भी हैं जहां पर यात्री श्रृंगार सामग्री के रूप में चूडी, बिंदी और चुनरी चढाते हैं। रुद्रनाथ की चढाई पित्रधार में खत्म हो जाती है और यहां से हल्की उतराई शुरू हो जाती है। रास्ते में तरह-तरह के फूलों की खुशबू यात्री को मदहोश करती रहती है। यह भी फूलों की घाटी सा आभास देती है। पनार से पित्रधार होते हुए करीब दस-ग्यारह किलोमीटर के सफर के बाद यात्री पहुंचता है पंचकेदारों में चौथे केदार रुद्रनाथ में। यहां विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर में शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति है। यहां शिवजी गर्दन टेढे किए हुए हैं। माना जाता है कि शिवजी की यह दुर्लभ मूर्ति स्वयंभू है यानी अपने आप प्रकट हुई है। इसकी गहराई का भी पता नहीं है। मंदिर के पास वैतरणी कुंड में शक्ति के रूप में पूजी जाने वाली शेषशायी विष्णु जी की मूर्ति भी है। मंदिर के एक ओर पांच पांडव, कुंती, द्रौपदी के साथ ही छोटे-छोटे मंदिर मौजूद हैं। मंदिर में प्रवेश करने से पहले नारद कुंड है जिसमें यात्री स्नान करके अपनी थकान मिटाता है और उसी के बाद मंदिर के दर्शन करने पहुंचता है। रुद्रनाथ का समूचा परिवेश इतना अलौकिक है कि यहां के सौदर्य को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। शायद ही ऐसी कोई जगह हो जहां हरियाली न हो, फूल न खिले हों। रास्ते में हिमालयी मोर, मोनाल से लेकर थार, थुनार और मृग जैसे जंगली जानवरों के दर्शन तो होते ही हैं, बिना पूंछ वाले शाकाहारी चूहे भी आपको रास्ते में फुदकते मिल जाएंगे। भोज पत्र के वृक्षों के अलावा ब्रह्मकमल भी यहां की ऊंचाइयों में बहुतायत में मिलते हैं। यूं तो मंदिर समिति के पुजारी यात्रियों की हर संभव मदद की कोशिश करते हैं। लेकिन यहां खाने-पीने और रहने की व्यवस्था स्वयं करनी पडती है। जैसे कि रात में रुकने के लिए टेंट हो और खाने के लिए डिब्बाबंद भोजन या अन्य चीजें। रुद्रनाथ के कपाट परंपरा के अनुसार खुलते-बंद होते हैं। शीतकाल में छह माह के लिए रुद्रनाथ की गद्दी गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में लाई जाती है जहां पर शीतकाल के दौरान रुद्रनाथ की पूजा होती है। आप जिस हद तक प्रकृति की खूबसूरती का अंदाजा लगा सकते है, यकीन मानिए यह जगह उससे ज्यादा खूबसूरत है। रविशंकर जुगरान रुद्रनाथ यात्रा: अन्य जानकारियां कैसे पहुंचे देश के किसी कोने से आपको पहले ऋषिकेश पहुंचना होगा। ऋषिकेश से ठीक पहले तीर्थनगरी हरिद्वार दिल्ली, हावडा से बडी रेल लाइन से जुडी है। देहरादून के निकट जौली ग्रांट में हवाईअड्डा भी है जहां दिल्ली से सीधी उडानें हैं। हरिद्वार या ऋषिकेश से आपको चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर का रुख करना होगा जो ऋषिकेश से करीब 212 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऋषिकेश से गोपेश्वर पहुंचने के लिए आपको बस या टैक्सी आसानी से उपलब्ध हो जाती है। एक रात गोपेश्वर में रुकने के बाद अगले दिन आप अपनी यात्रा शुरू कर सकते हैं। कहां ठहरें गोपेश्वर में टूरिस्ट रेस्ट हाउस, पीडब्ल्यूडी बंगले के अलावा छोटे होटल और लॉज आसानी से मिल जाते हैं। गोपेश्वर से करीब पांच किलोमीटर ऊपर सगर नामक स्थान तक आप बस की सवारी कर सकते हैं। इसके बाद रुद्रनाथ पहुंचने के लिए यात्रियों को करीब 22 किलोमीटर की खडी चढाई चढनी होती है। यही चढाई श्रद्धालुओं की असली परीक्षा और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए चुनौती होती है। रास्ता पूरा जंगल का है लिहाजा यात्रियों को अपने साथ पूरा इंतजाम करके चलना होता है। यानी खाने-पीने की चीज से लेकर गर्म कपडे हरदम साथ हों। बारिश व हवा से बचाव के लिए बरसाती पास होनी चाहिए क्योंकि मौसम के मिजाज का यहां कुछ पता नहीं चलता। पैदल रास्ते में तो पालसी मिल जाते हैं लेकिन रुद्रनाथ में रुकना हो तो इंतजाम के बारे में सोचकर चलें। कब जाएं यूं तो मई के महीने में जब रुद्रनाथ के कपाट खुलते हैं तभी से यहां से यात्रा शुरू हो जाती लेकिन अगस्त सितंबर के महीने में यहां खिले फूलों से लकदक घाटियां लोगों का मन मोह लेती हैं। ये महीने ट्रेकिंग के शौकीन के लिए सबसे उपयुक्त हैं। गोपेश्वर में आपको स्थानीय गाइड और पोर्टर आसानी से मिल जाते हैं। पोर्टर आप न भी लेना चाहें लेकिन यदि पहली बार जा रहे हैं तो गाइड जरूर साथ रखें क्योंकि यात्रा मार्ग पर यात्रियों के मार्गदर्शन के लिए कोई साइन बोर्ड या चिह्न नहीं हैं। पहाडी रास्तों में भटकने का डर रहता है। एक बार आप भटक जाएं तो सही रास्ते पर आना बिना मदद के मुश्किल हो जाता है।

हर की दून फूलों की घाटी यह भी

फूलों की घाटी का नाम तो आपने सुना ही होगा। जी हां चमोली जनपद की प्रसिद्ध तीर्थ स्थली बद्रीनाथ धाम के पास गंधमादन पर्वत पर स्थित फूलों की घाटी या वैली ऑफ फ्लावर्स। इतनी ही सुंदर पर अपेक्षाकृत कम प्रसिद्ध फूलों की एक और घाटी उत्तराखंड राज्य में उत्तरकाशी जनपद के मौरी विकास खंड स्थित टांस घाटी में है जो हर की दून के नाम से पर्यटकों के बीच लोकप्रिय होती जा रही है। हर की दून जाने के दो मार्ग हैं। एक मार्ग हरिद्वार से ऋषिकेश, नरेन्द्र नगर, चंबा, धरासू, बडकोट, नैनबाग से पुरौला तक और दूसरा देहरादून से मसूरी, कैंप्टी फाल, नौगांव, नैनबाग से पुरौला तक जाता है। पुरौला सुंदर पहाडी कस्बा है और चारों ओर पहाडों से घिरा बडा कटोरा जैसा लगता है। बस्ती के चारों ओर धान के खेत, फिर चीड के वृक्ष और उनके ऊपर से झांकती पर्वत श्रृखलाएं। पुरौला से आगे है सांखरी जोहर की दून का बेस कैंप है। यहां तक बसें और टैक्सियां आती हैं। इसके बाद शुरू होती है लगभग 35 किमी. की ट्रैकिंग यानी पद यात्रा। यह खांई बद्यान क्षेत्र कहलाता है और यहां के सीधे-सादे निवासी अब भी आधुनिक सुख-सुविधाओं से वंचित हैं। सांखरी में आपको पोर्टर और गाइड मिल जाएंगे और आप रात्रि विश्राम के बाद सुबह अपनी रोमांचक यात्रा शुरू कर सकते हैं। सांखरी समुद्रतल से 1700 मीटर की ऊंचाई पर है और यहीं से प्रारंभ होता है गोविंद पशु विहार का क्षेत्र, जिसमें प्रवेश करने के लिए वन विभाग की अनुमति लेनी पडती है। सूपिन नदी को पार करते ही आप स्वप्न लोक में पहुंच जाते हैं। चीड, सुरमई, बंाझ, बुरांस के घने जंगल और सूपिन नदी के किनारे-किनारे वन्य जीव-जंतुओं को निहारते 12 किमी. का सफर तय करके आप 1900 मीटर की ऊंचाई वाले कस्बे तालुका पहुंचते है। तब थोडा विश्राम का मन करने लगता है। चाहें तो यहां रात्रि विश्राम भी कर सकते हैं, गढवाल मंडल पर्यटन निगम के विश्राम गृह में जिसकी बुकिंग हरिद्वार से ही हो जाती है। तालुका से सवेरे थोडा जल्दी निकलना पडेगा क्योंकि अगला पडाव है ओसला गांव जो लगभग 13 किलोमीटर की पद यात्रा के बाद आता है। सूपिन नदी ही आपकी मार्ग दर्शक रहेगी और पथरीली पगडंडियां कई बार पहाडी झरनों के बीच से आपको ले जाएंगी जहां आपको ट्रैकिंग शूज आपको उतारने पड सकते हैं। यहां से देवदार के जंगल शुरू होते हैं। रई, पुनेर, खर्सो और मोरू के पेडों पर मोनाल, मैना और जंगली मुर्गियां आपको कैमरा निकालने के लिए विवश कर देंगी। बीच में एक छोटा सा गांव पडेगा गंगाड जहां की लकडी के बने सुंदर छोटे-छोटे घर आपका मन मोह लेंगे। यहां आप चाय पी सकते हैं जो आपको तरोताजा कर देगी और आप शाम ढलने से पहले ही ओसला पहुंच जाएंगे। ओसला की समुद्र तल से ऊंचाई है लगभग 2800 मीटर। यहां रात्रि विश्राम की सुविधाएं हैं। प्रात: सूपिन नदी को पार लगभग 200 मीटर की खडी चढाई चढ कर आप बुग्यालों में पहुंच जाते हैं। सूपिन का साथ यहीं तक है। दूर तक फैले हरे घास के मैदानों में हवा में झूमते लहराते रंग बिरंगे फूलों की छटा देख कर लगता है जैसे आप किसी और लोक में आ गए हैं। बर्फीले पर्वतों की चोटियां इतने पास लगती हैं मानो आप हाथ बढा कर छू लेंगे। नीचे देवदार के जंगल और दूर तक दिखती टेढी-मेढी सूपिन नदी को अलविदा कर फूलों के गलीचों, दलदलों जमीन पर बने पथरीले रास्तों पर कूदते-फांदते बंदर पुंछ, स्वर्गरोहिणी और ज्यूधांर ग्लेशियर से घिरी फूलों की घाटी में पहुंचते ही मन प्रफुल्लित हो जाता है। ओसला से यहां की दूरी लगभग 10 किमी है। सारा मार्ग बहुत ही मनोहर है। पहाडी ढलानों पर दूर तक एक ही रंग के फूलों की कई चादर। बीच-बीच में चट्टानों और कहीं कहीं भोजपत्र के पेड। इन्हीं भोज वृक्षों की ढाल पर हमारे ऋषि-मुनियों ने वेद, उपनिषद और आरण्यकों की रचनाएं लिखी थी। हर की दून समुद्रतल से लगभग 3500 मीटर की ऊंचाई पर है। रात्रि विश्राम के लिए विश्राम गृह हैं। रात्रि में जब ग्लेशियर टूटते हैं तो लगता है मानों भगवान शंकर का डमरू बज रहा है। रंग बिरंगे फूलों के गलीचे, चांदी सी चमकती नदियां और चारों ओर बर्फीली चोटियां.. क्या स्वर्ग की परिकल्पना इससे अलग हो सकती है? खास बातें द्वहर की दून का ट्रैक बहुत कठिन नहीं, इसके लिए ज्यादा अभ्यास की जरूरत नहीं पडती। शरीर मौसम व ऊंचाई के अनुकूल हो तो अच्छी सेहत वाले इसे बिना किसी खास तकलीफ के कर सकते हैं। द्व21 हजार फुट की ऊंचाई वाली स्वर्गारोहिणी चोटी के लिए बेस कैंप के तौर पर भी हर की दून का इस्तेमाल किया जाता है। द्वहर की दून के लिए यूथ हॉस्टल जैसी कई संस्थाएं हर साल ट्रैकिंग अभियान चलती हैं। आप चाहें तो अपने स्तर पर भी वहां जा सकते हैं। साखंरी में गाइड व पोर्टर मिल जाएंगे। द्वयहां जाने का सर्वोत्तम समय अप्रैल से अक्टूबर के बीच है। रास्ते में कई जगहों पर (यहां तक की हर की दून में भी) गढवाल मंडल विकास निगम के रेस्टहाउस मिल जाएंगे। लेकिन इनके लिए बुकिंग पहले करा लें। देहरादून या ऋषिकेश, कहीं से भी पुरौला-सांखरी के लिए सडक मार्ग का सफर शुरू किया जा सकता है।

चलो गंगाधाम

अक्षय तृतीया का दिन उत्तरकाशी के लिए विशेष महत्व रखता है। इस तिथि को प्रत्येक वर्ष उत्तराखण्ड के चार में से दो धाम गंगोत्री और यमनोत्री के पट यात्रियों के लिए खुल जाते हैं। इसी के साथ चारधाम यात्रा का शुभारंभ हो जाता है। अक्षय तृतीया को गंगाजी डोली में सवार होकर अपने शीतकाल के निवास मुखिमठ से गंगोत्री स्थित गंगा मंदिर पहुंचकर वहां अपना ग्रीष्मकालीन निवास स्थापित कर लेती हैं। मुखिमठ को आम भाषा में लोग मुखबा के नाम से जानते हैं। ऐसी मान्यता है कि मुखबा गंगाजी का मायका है जहां वह साल के छह माह रहती हैं। अक्षय तृतीया से एक दिन पहले गंगाजी की डोली मुखबा से गंगोत्री के लिए प्रस्थान करती है। हमारे एक मित्र का परिवार मुखबा में रहता है, वह हमें डोली यात्रा में भाग लेने का निमंत्रण दे गए थे। हमने तुरंत उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया और यात्रा से एक दिन पूर्व संध्या के समय मुखबा पहुंच गए। मुखबा अत्यंत ही सुंदर गांव है। यहां अधिकतर भवन लकडी से निर्मित हैं। यह क्षेत्र अपनी काष्ठ कला के लिए प्रसिद्ध है जिसके उत्कृष्ट नमूने मुखबा के भवनों पर स्थित हैं। भवनों पर की गई नक्काशी देखने लायक है। हम गांव को देख कर ही खुश हो गए और बेसब्री से सुबह के जलसे का इंतजार करने लगे। सुबह से ही गांव में हलचल शुरू हो गई। सूर्योदय से पहले ही ढोल बजने लगे और उनकी थाप से सारा गांव जग गया। गंगोत्री के पंडे, जिन्हें रावल कहते हैं, सभी मुखबा के ही मूल निवासी हैं। गंगाजी की डोली वे ही सजाते है। सुबह से ही आसपास के गांवों से लोगों का तांता लग गया था, सभी गंगाजी को विदा करने आए थे। गांव के सब लोग सुबह ही नहा-धो कर मंदिर में दर्शन के लिए पहुंच गए, मंदिर के बाहर भीड लग गई थी, हम भी इसी भीड में शामिल हो गए। पहाडों की परंपरा के अनुसार बेटी की विदा के समय गांव में सभी कुछ न कुछ भेंट करते हैं। आज गंगाजी कि विदाई के समय भी सभी गांव के लोग यथासंभव अनाज का दान मंदिर में चढा रहे थे। प्रत्येक वर्ष वे अपनी इस दिव्य पुत्री को पूरे सम्मान के साथ उसकी ससुराल गंगोत्री विदा करते हैं। दिन चढते-चढते मंदिर के प्रांगण में खूब भीड लग गई। सब से पहले गांव के ग्राम देवता-सोमेश्वर की डोली आई और उसे मंदिर के सामने एक चबूतरे पर रख दिया गया, फिर उनकी पूजा अर्चना की गई और सबने उनका आशीर्वाद लिया। इतने में सेना का बैंड आ गया। सेना के जवान भी देवी को विदा करने आते हैं और उनके बैंड की धुनों के साथ ही डोली गंगोत्री के लिए रवाना होती है। हम सभी मंदिर की सीढियों पर बैठ कर डोली को सजते देखने लगे। लकडी से बनी डोली को लाल वस्त्रों, फूल और पत्तियों से सजाने के बाद उसमें गंगाजी और सरस्वती जी कि प्रतिमाएं स्थापित की जातीं हैं, फिर उसे लाल वस्त्र से ढक कर उस पर चांदी की पेटी बांधी जाती है। डोली को चांदी के छत्रों, फूलों और गंगा तुलसी से सजाया जाता है। अभी डोली को सजा ही रहे थे कि इतने में धराली गांव से भी एक देवता की डोली आ गई, अब गंगाजी का लश्कर तैयार था, हम सब उत्सुकता से गंगाजी के बाहर आने की प्रतीक्षा करने लगे। हमें अधिक इंतजार नहीं करना पडा। शीघ्र ही मंत्रोच्चार प्रारंभ हो गया और पंडों के कंधों पर सवार होकर गंगाजी कि डोली मंदिर से बाहर आ गई। हम सभी डोली से आशीर्वाद लेने के लिए आगे बढे। फूल और गंगा तुलसी चढा कर हमने भी अन्य सभी के साथ डोली का स्वागत किया। दोनों स्थानीय देवता ने गंगा डोली का स्वागत किया और सेना के बैंड ने संगीत से देवी का अभिवादन किया। सबसे आगे सेना का बैन्ड चला उसके बाद सोमेश्वर की डोली, फिर गंगाजी की डोली और फिर धराली से आई डोली थी। डोलियों के पीछे गंगोत्री के रावल और उनके पीछे श्रद्धालु जनों की भीड थी। जै गंगा मैया की- के उद्घोष के साथ ही जुलूस मुखबा से रवाना हुआ। गांव की महिलाएं और बच्चे, सभी जन अपनी देवी को विदा करने उमड पडे। बैंड की धुन और ढोल की थापों के साथ डोली मुखबा से अपने पहले पडाव मार्कंडेय की ओर बढी। मार्कंडेय मुखबा से दो किलोमीटर दूर भागीरथी के किनारे पर स्थित प्राचीन मंदिर है। यहां डोली को रख कर मंदिर में पूजा-अर्चना की जाती है और आसपास के गांव के लोग आकर गंगा जी के दर्शन करते हैं। यहां से डोली फिर झाला के लिए रवाना हुई। अधिकतर लोग मार्कंडेय से वापस लौट गए और कुछ लोग ही यहां से डोली के साथ आगे बढे। भागीरथी के किनारे बनी पतली पगडंडी के रास्ते सब झाला पहुंचे, यहां से पुल पार करने के बाद हम गंगोत्री राजमार्ग पर आ गए। रास्ते में जगह जगह रोक कर लोग प्रसाद बांट रहे थे और डोली का स्वागत शंखध्वनि से कर रहे थे। मंदिर के पट खुलने के अवसर पर वहां रहने वाले साधू संन्यासी भी अपनी कुटियों में लौट आए थे और सभी देवी की डोली का स्वागत करने रास्ते पर खडे थे। चारों ओर से- जै गंगा मैय्या की- और शंखों की आवाज आ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे सारी भागीरथी घाटी देवी को नमन कर रही हो। हमारा अगला पडाव कोपांग था जहां सेना का कैंप और मंदिर है। सेना के जवानों ने डोली के साथ आए भक्तों के लिए भंडारे का प्रबंध किया था। पूरी सब्जी और मिठाई का भोजन करने के बाद हम आगे बढे। यहां से हमने डोली का साथ छोड दिया और गाडी से डोली के रात्रि विश्राम स्थल भैरोंघाटी पहुंच गए। यहां पर बडी रौनक थी। जगह-जगह पर अलाव जल रहे थे और भंडारे की तैयारी चल रही थी। हम सभी यहां पर रुक कर डोली के आने की प्रतीक्षा करने लगे। शीघ्र ही बैंड, ढोल आदि की आवाज आने लगी और डोली भैरोंघाटी पहुंच गई। डोली को रात के लिए मंदिर के अंदर रख दिया गया। संध्या आरती की गई और प्रसाद बांटा गया। सबने चाय पी और नाश्ता किया इसके बाद रात में सोने का प्रबंध किया जाने लगा। भैरोंघाटी में भैरों जी के मंदिर और एक गढवाल मंडल विकास निगम के होटल के अलावा रहने का कोई स्थान नहीं है। होटल अभी बंद था और मंदिर में रहने की जगह भी सीमित थी इसलिए अधिकतर लोग डोली को रात के लिए भैरोंघाटी छोड कर गंगोत्री चल दिए। हमने भी गंगोत्री में रात बिताना ठीक समझा। हम वहां से गंगोत्री के लिए रवाना हो गए। गंगोत्री पहुंचने पर देखा कि एक या दो स्थान छोड कर सभी कुछ बंद था। लोग आने वाले कल की तैयारियों में लगे थे और मंदिर के खुलने के साथ शुरू होने वाली चारधाम यात्रा का इंतजार कर रहे थे। उस रात हमें बिडला धर्मशाला में रहने की जगह मिली। खाने के लिए कहीं कोई प्रबंध नहीं था, हम ईशावास्यम आश्रम पहुंचे और वहां स्वामी जी की अनुकंपा से हमें भोजन नसीब हुआ। रात में बहुत ठंड थी, हमारे पास गर्म बिस्तर थे इसलिए हमारी रात आराम से कटी। हम अपने गर्म बिस्तरों में बैठकर डोली के साथ मंदिर मे रुके लोगों के विषय में सोच रहे थे कि वे कैसे इतनी ठंड में सो रहे होंगे। आस्था हो तो मनुष्य कुछ भी कर जाता है। ठंड, गर्मी या बरसात सभी सहने की शक्ति आ जाती है। सुबह उठने पर बाहर निकल कर देखा कि कई जगह अभी तक बर्फ थी। धर्मशाला के पीछे भी करीब दो फुट बर्फ जमी थी। हम नहा-धो कर जल्दी से मंदिर के अहाते में पहुंच गए। दिन चढने के साथ ही गंगोत्री मे भीड बढने लगी। यात्री मंदिर के पट खुलते देखने के लिए एकत्रित हो रहे थे। दस बजे तक गाडियों की कतारें लग गईं थीं। सभी डोली का भैरोंघाटी से आने की बाट देख रहे थे। आखिर साढे दस बजे डोली आ ही गई। बैंड की धुन और ढोल की थापों ने देवी के अपनी ससुराल और ग्रीष्मकालीन निवास गंगोत्री में आगमन का संदेश दिया। सभी डोली देखने के लिए उमड पडे। डोली को लाकर मंदिर के बारामदे में रख दिया गया। पट मुहुर्त के अनुसार खोले जाते हैं, मुहुर्त में अभी कुछ समय शेष था इसलिए डोली को बाहर ही रखा गया था। सभी जाकर देवी के दर्शन कर रहे थे और उनका आशीर्वाद ले रहे थे। समय बीतने के साथ ही भीड भी बढती जा रही थी। हम सभी मंदिर में ही बैठकर भीड को देख रहे थे। कहीं टीवी वाले थे तो कहीं अखबारवाले, विदेशी भी काफी संख्या में उपस्थित थे। हमारे पास बैठे कुछ लोग तो हिमाचल से पैदल पहाड पार करके आए थे। इतने में ढोल-नगाडों की आवाज आई और साथ ही एक देवता की डोली और उसके साथ एक बस भर कर लोग थे। वे पास के किसी गांव से आये थे और अपने देवता को देवी के दर्शन कराने लाए थे। मुहुर्त का समय आ ही गया। मंदिर समिति के कार्यालय में हलचल देख कर हम मंदिर के सामने आ कर बैठ गए। ढोल-नगाढों-तुरही की आवाज और मंत्रोच्चार के साथ ही मंदिर के पट खुले। सभी ने अखंड ज्योति के दर्शन किए। साथ ही देवी की प्रतिमा को पूरे सम्मान के साथ ही मंदिर के गर्भगृह में स्थापित कर दिया गया। देवी आखिर अपने ससुराल पहुंच गई। उनके ससुराल पहुंचने के साथ ही एक और यात्रा सीजन का आरंभ हुआ। अगले छह माह तक देवी अपने प्रताप से गंगोत्री में रौनक बनाए रखेंगीं। हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन उनके दर्शन के लिए भारत ही नहीं, बल्कि संसार के कोने-कोने से आकर उनके चरणों से आशीर्वाद लेकर जाएंगे। हम भी उनका आशीर्वाद लेकर वापस अपने घर लौट गए। हमारी यात्रा पूरी हो गई थी। --------------------------------------- गंगाधाम: खास बातें - इस साल गंगोत्री और यमुनोत्री के पट 27 अप्रैल को खुल रहे हैं। चारधाम यात्रा उसी दिन से शुरू हो जाती है। हालांकि बद्रीनाथ व केदारनाथ के पट बाद में खुलते हैं। - गंगोत्री समुद्र तल से 3200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां का मौसम खासा ठंडा रहता है। जाते समय कपडे उसी हिसाब से लेकर जाएं। - गंगोत्री मंदिर के पट सवेरे 6.15 बजे से दोपहर 2 बजे तक और फिर दोपहर 3 बजे से रात साढे नौ बजे तक खुलते हैं। मंगलाआरती सवेरे 6 बजे होती है लेकिन उस समय पट बंद रहते हैं। संध्याआरती शाम 7.45 बजे और ठंड बढने पर 7 बजे होती है। - गंगोत्री जाने के लिए सबसे निकट का हवाईअड्डा जौली ग्रांट (ऋषिकेश से 26 किलोमीटर दूर) है। ऋषिकेश (249 किलोमीटर) ही आखिरी रेल स्टेशन भी है। उत्तरकाशी, टिहरी गढवाल और ऋषिकेश से गंगोत्री के लिए आसानी से बसें मिल जाती हैं। -ठहरने के लिए गंगोत्री में हर किस्म के इंतजाम हैं। लग्जरी होटल, बढिया होटल, सस्ते होटल, गेस्ट हाउस, धर्मशालाएं, आश्रम- सब कुछ। लेकिन यात्रा के दिनों में यहां भीड भी खासी रहती है।

बलिया नाला: 22 करोड़ का प्रोजेक्ट तैयार

जेएनएनयूआरएम योजना में रखा गया नाला, अब ब्रेबरी पुल तक बनेगा -भू-गर्भीय अस्थिरता जरूर, लेकिन नैनीताल के खतरे से इंजीनियरों ने किया इंकार हल्द्वानी: नैनीताल झाील से निकलने वाले बलिया नाले की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) बनकर तैयार हो गई है। जवाहर लाल नेहरू ग्र्रामीण शहरी विकास योजना (जेएनएनयूआरएम) के तहत अधबने नाले को पूरा बनाने के लिए करीब 22 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान है। इसमें धसाव की बात को स्वीकारी है, लेकिन किसी भी बड़े खतरे की आशंका से इंकार किया है। अब यह प्रोजेक्ट आईटीआई रुड़की और शासन दोनों को भेजा जायेगा। नैनीताल झाील से निकलने वाला बलिया नाला अंग्र्रेजों के समय का है। 2004 में यह सिंचाई विभाग ने करीब एक किलोमीटर तक साइड और तल पक्का करा दिया था। लेकिन अभी हाल में नाले के इर्द-गिर्द कुछ आबादी वाले स्थानों पर भू-स्खलन और जगह-जगह कटाव की शिकायतें मिली। जिस पर भाजपा विधायक खडग़ सिंह बोरा ने शासन को पत्र लिखकर चिंता जताई और एक किमी हिस्से की तरह ही पूरे नाले को पक्का करने की सिफारिश भी की। शासन ने उस पर तत्काल सिंचाई विभाग से डीपीआर मांगी। जिसे बनाकर विभागीय इंजीनियरों ने तैयार कर दिया है। मुख्य अभियंता उत्तर एबी पाठक ने बताया कि तैयार हुए प्रोजेक्ट के अनुसार दो किमी तक यानि ब्रेबरी पुल तक नाले की साइडें और तल दोनों ही आरसीसी पक्के किए जायेंगे। इस पर 22 करोड़ रुपये की लागत का अनुमान है। डीपीआर जल्द ही रुड़की आईआईटी व शासन को भेजी जायेगी। श्री पाठक ने बताया कि पूर्व बने नाले की गुणवत्ता में कहीं कोई शंका नहीं है। इसकी पुष्टि आईआईटी रुड़की की इंजीनियर्स टीम कर चुकी है। यही टीम पूर्व में ही साफ कर चुकी है कि यह क्षेत्र अत्यंत अस्थिर है और तीव्र ढाल वाला है। यहां पहाड़ कमजोर होने के कारण भू-धसाव से छुटपुट क्षति होना स्वाभाविक है। श्री पाठक ने बताया कि इंजीनियर्स टीम ने जब 2004 में इस नाले को एक किमी तक बनाया था, उसी समय ही उन्होंने पूरा नाला बनाने की सिफारिश की थी। लेकिन रूड़की की इंजीनियर्स टीम ने तब मना कर दिया। लेकिन जिस तरह नाले के ऊपर पहाड़ पर आबादी बढ़ी और बसी है, उससेे यह अस्थिरता और बढ़ गई है। बावजूद उन्होंने अधीक्षण अभियंता सिंचाई नैनीताल से दौरा करके रिपोर्ट मांगी थी, जिसमें सामान्य भू-धसाव की बात सामने आई लेकिन खतरा जैसी कोई बात नहीं है। इंसेट::::::::::::::::: दो ग्र्रामों को शिफ्ट करने की सिफारिश हल्द्वानी: सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता उत्तर एबी पाठक का कहना है कि बलिया नाले के ऊपर पहाड़ पर हरिनगर एक व हरिनगर दो छोटे गांव बसे हुए हैैं। यह दोनों गांव अवैध हैैं। इन गांव में रहने वाले लोगों का पानी और सीवर सभी पहाड़ में ही समा रहा है। इसीलिए पहाड़ से धीरे-धीरे भू-स्खलन हो रहा है। जबकि इंजीनियर्स पहाड़ को पहले ही कमजोर बता चुके हैैं और इन गांव को कहीं अन्यत्र बसाने की सिफारिश कर चुके हैैं। अगर यह हट जाते हैैं और यहां प्रशासन वनस्पति उगा देता है तो कटाव की समस्या कम हो जायेगी। रही बात नाले की मरम्मत की तो झाील विकास प्राधिकरण और विभाग से पांच साल में एक भी रुपया नहीं मिला। अब जाकर पांच लाख रुपये मिले हैैं जिससे सफाई और जहां-तहां मरम्मत करा दी गई है।

कांग्रेस को सपा का अघोषित समर्थन

प्रदेश की दो सीटों पर ही लड़ रही सपा कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में टिहरी से नामांकन भी वापस , हल्द्वानी लोकसभा चुनाव के इस राजनीतिक अखाड़े में समाजवादी पार्टी कांग्रेस के पहलवानों को धूल चटाने का दम भर रही है। मगर सूत्रों की मानें तो पार्टी ने अंदरखाने कांग्रेस को समर्थन दे रखा है। नतीजतन पार्टी ने प्रदेश के दो लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं। बाकी सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशी उतारे ही नहीं हैं। लोकसभा चुनाव पश्चात सपा के राजनैतिक कैरियर के ग्राफ को देखें, तो वर्तमान में हरिद्वार सीट पार्टी के पास है। एक महीने पहले तक पार्टी इस सीट को बचाए रखने और सूबे की अन्य चार सीटों पर मजबूती के साथ चुनाव लडऩे का दावा कर रही थी। इसके लिए पार्टी ने सभी सीटों से टिकट के दावेदारों के नामों की अंतरिम सूची हाईकमान को भेज दी थी। मगर लोकसभा चुनाव के लिए पर्चा भरने व नाम वापस लेने की प्रक्रिया खत्म होने के बाद स्थिति बिल्कुल साफ हो चुकी है। पार्टी केवल हरिद्वार और नैनीताल संसदीय सीट से चुनावी मैदान में है। बाकी सीटों पर पार्टी चुनाव क्यों नहीं लड़ रही है? यह बात सभी के जेहन में कौंध रही है। इसके लिए दो समीकरण उभरकर सामने आ रहे हैं। पहला यह कि पर्वतीय क्षेत्रों में पार्टी अपने जनाधार को बेहद कमजोर मानती है। इस वजह मजबूत जनाधार वाला प्रत्याशी मिलना पार्टी के लिए मुश्किल था। दूसरा समीकरण यह कि अंदरखाने पार्टी ने कांग्रेस को समर्थन दे रखा है। इस पर लोग यकीन भी कर रहे हैं, क्योंकि टिहरी लोकसभा सीट से सपा प्रत्याशी के तौर पर हुसैन अहमद ने नामांकन भी करवाया था, जिसे बाद में हाईकमान के आदेश पर कांग्रेस प्रत्याशी के समर्थन में वापस ले लिया। जबकि अल्मोड़ा व पौड़ी सीट से पार्टी ने प्रत्याशी ही नहीं उतारा। बताया जाता है कि पार्टी के महासचिव अमर सिंह ने प्रदेश हाईकमान को निर्देश दिए थे कि उन्हीं सीटों पर मजबूती के साथ चुनाव लड़ा जाए, जहां से सीट निकलने की गुंजाइश हो। सपा के कुमाऊं मंडल प्रभारी अब्दुल मतीन सिद्दीकी बताते हैं कि सपा का एकमात्र उद्देश्य है, भाजपा को सत्ता में आने से रोकना। इस वजह से पार्टी ने तीन सीटों पर प्रत्याशी नहीं उतारे हैं।

अभागे 111 गांव, 20 साल में भी नहीं बदली तकदीर

-राजकीय पशु संरक्षण की कीमत चुका रहे हैं ग्रामीण -गड्ढा खोदने को भी लेनी पड़ती है वन मंत्रालय की इजाजत -तहसील मुख्यालय पहुंचने में ही लग जाते हैं तीन दिन पिथौरागढ़: राज्य के सीमावर्ती जिले में 111 गांवों का दुर्भाग्य ने दो दशक बाद भी पीछा नहीं छोड़ा है। गांवों की न तस्वीर बदल रही है और न ही यहां के वाशिंदों की तकदीर। ये गांव राज्य के अस्कोट कस्तूरा मृग विहार सीमा के अंतर्गत आते हैं। इसकी सीमा में इन्हें गड्ढा भी खोदना होता है तो पहले केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति लेनी पड़ती है। इन गांवों से सड़क भी विकास की तरह कोसों दूर है। वर्षों से गांवों के लोग अस्कोट मृग विहार की सीमा घटाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन वे सीमा के फंदे से निकल नहीं पा रह हैं। दुर्लभ प्रजाति का कस्तूरा मृग उत्तराखण्ड में दस हजार फिट से ऊपर स्नो लाइन (बर्फ की सीमा रेखा) के आस-पास मिलता है। सीमांत जिला पिथौरागढ़ के अंतर्गत आने वाले उच्च हिमालयी क्षेत्र में कस्तूरा मृग की अच्छी तादात है। इस दुर्लभ प्रजाति के मृग क ो संरक्षित करने के उद्ेश्य से सरकार ने वर्ष 1985 में धारचूला और डीडीहाट तहसील के 600 वर्ग मील क्षेत्रफल कोमिलाकर अस्कोट कस्तूरा मृग विहार अभयारण्य बनाया। अभयारण्य के नोटिफिकेशन में तीन हजार फिट से लेकर 17 हजार फिट तक की ऊंचाई वाले क्षेत्र क ो शामिल कर लिया गया। नोटिफिकेशन में इस बात को ध्यान में नहीं रखा गया कि कस्तूरा मृग दस हजार फिट की ऊंचाई वाले क्षेत्र में ही मिलता है। इस सीमा के अंतर्गत आने वाले 111 गांवों क ो भी अभयारण्य में शामिल कर लिया गया। बस यहीं से इन गांवों के लोगों का दुर्भाग्य ने ऐसा पीछा पकड़ा जो अब तक नहीं छोड़ रहा है। अभयारण्य में गैर वानिकी कार्य पूरी तरह प्रतिबंधित हैं। बहुत जरूरी होने पर गैर वानिकी कार्यों के लिए केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति जरूरी है। मंत्रालय से अनुमति मिलने में भी वर्षों का समय लगना सामान्य बात है। इस उलझान भरी प्रक्रिया के चलते अस्कोट अभयारण्य के अंतर्गत आने वाले 111 गांवों का विकास ठप पड़ा हुआ है। इन गांवों को बिजली, पानी, संचार जैसी सुविधायें भी नहीं मिल पा रही हैं। अभयारण्य के अस्तित्व में आने से पूर्व बनी सड़कों पर ही लोग निर्भर हैं। लोगों को सड़कों तक पहुंचने के लिए कई किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। अभयारण्य की सीमा में आने वाले गुंजी, बूंदी, नाभी सहित दर्जनों गांवों के लोगों को तहसील मुख्यालय तक पहुंचने के लिए तीन दिन का समय लगता है। 111 गांवों के लोग पिछले दो दशकों से गांवों को अभयारण्य की सीमा से बाहर करने की मांग कर रहे हैं। वन विभाग भी मानता है अभयारण्य के चलते इन गांवों का विकास प्रभावित हो रहा है। विभाग ने इन गांवों को अभयारण्य की सीमा से बाहर करने के लिए प्रस्ताव तैयार कर केन्द्र सरकार को भेजा है, जिस पर अब तक अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। राजनैतिक दल भी इस मुद्दे पर खामोश हैं। बीस साल में केन्द्र और राज्य में कई सरकारें आयी-गईं, लेकिन इन अभागे ग्रामीणों की सुधि किसी ने नहीं ली। इसी वजह से चुनाव के दौर में भी कोई प्रमुख दल इस मुद्दे को उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है।

-उद्यान घोटाला: एक्शन को हरी झांडी

कैबिनेट ने गहन मंथन के बाद लिया फैसला देहरादून, कैबिनेट में आज राजधानी आयोग की रिपोर्ट,शर्मा जांच आयोग की रिपोर्ट और आईएल एंड एफएस के साथ हुए एमओयू में परिवर्तन पर चर्चा हुई। कैबिनेट ने शर्मा आयोग की रिपोर्ट के अनुसार दोषियों के खिलाफ एक्शन की सहमति बनी है। बैठक सबसे पहले स्थायी राजधानी को बने दीक्षित आयोग की रिपोर्ट पर चर्चा हुई। काफी विचार के बाद भी किसी एक बिंदु पर सहमति नहीं बन सकी तो इसे लंबित कर दिया गया। एजेंडे का दूसरा अहम बिंदु शर्मा जांच आयोग की उद्यान विभाग से संबंधित दो रिपोर्ट थीं। चर्चा के बाद कैबिनेट ने तय किया इसके आधार पर एक्शन लिया जाए। कैबिनेट ने उद्यान विभाग को निर्देशित किया कि आयोग की रिपोर्ट के अनुसार दोनों मामलों में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू की जाए। तीसरा महत्वपूर्ण बिंदु आईएल एंड एफएस तथा सरकार के बीच हुए एमओयू के आधार पर बने संयुक्त उपक्रम यूआईपीसी का था। इस संयुक्त उपक्रम के एमओयू में सरकार के पक्ष को कमजोर था। कैबिनेट ने एमओयू में परिवर्तन कर दोनों भागीदारों को लाभ एवं हानि की स्थिति में बराबर का हिस्सा देने का क्लाज एमओयू में जोडऩे और पर्यटन विकास निधि में दो करोड़ की राशि बढ़ाकर चार करोड़ करने का निर्णय लिया। एक अन्य मामले में गन्ना मूल्य निर्धारित करने के लिए कमेटी गठित करने पर सहमति व्यक्त की गई। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए थे कि गन्ना मूल्य निर्धारण के लिए एक समिति का गठन किया जाए। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य बिंदुओं पर भी कैबिनेट ने चर्चा की। चुनाव आचार संहिता के कारण किसी ने भी कैबिनेट बैठक की ब्रीफिंग नहीं की।

-अतिथियों का सत्कार उत्तराखंड की परंपरा : कपूर

संयुक्त रोटेशन यातायात समिति ने चार धाम यात्रा का विधिवत शुभारंभ किया ऋषिकेश (देहरादून) : उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष हरबंस कपूर ने कहा कि उत्तराखंड की परंपरा अतिथियों के सत्कार की रही है। इस परंपरा को संजोए रखना आवश्यक है। उत्तराखंड के प्रसिद्ध चार धाम के लिए यात्रा संचालित करने वाली एशिया की सबसे बड़ी निजी परिवहन संस्था संयुक्त रोटेशन ने चार धाम यात्रा का पारंपरिक रूप से विधिवत शुभारंभ किया। इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष श्री कपूर ने चार धाम के लिए यात्रियों की बस को हरी झांडी दिखाकर रवाना किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि यात्रियों के प्रति सही व्यवहार ही सबसे बड़ी सेवा है। यातायात एक व्यवसाय ही नहीं, सच्ची सेवा भी है। इस अवसर पर संयुक्त रोटेशन के अध्यक्ष संजय शास्त्री ने संस्था से जुड़े लोगों से तीर्थयात्रियों के प्रति अच्छा व्यवहार बनाए रखने की अपील की। यात्रा रवाना करने से पूर्व गढ़वाल के पारंपरिक वाद्य यंत्र ढोल-दमाऊं व रणसिंघा की धुनों के साथ तीर्थयात्रियों का स्वागत किया गया।

टिहरी बांध: 45 और गांव होंगे विस्थापित

जीएसआई व सर्वे आफ इंडिया की रिपोर्ट के बांध विस्थापन की तैयारी शुरू -118 परिवारों की करीब 3150 नाली भूमि का होगा अधिग्रहण नई टिहरी- टिहरी बांध की झाील भरने के के बाद 45 और गांवों के 118 परिवारों को विस्थापन की त्रासदी झोलनी होगी। यह गांव पूर्व में हुए गलत सर्वे के कारण डूब क्षेत्र में शामिल होने से छूट गए थे। भिलंगना व भागीरथी घाटी में जीएसआई व सर्वे आफ इंडिया द्वारा किए गए सर्वे मे यह बात सामने आई है। टिहरी बांध की झाील में अधिकतम जलभराव क्षेत्र 835 आरएल मीटर है। विस्थापन की श्रेणी में आने वाले सभी गांव इससे नीचे बसे हैं लेकिन पूर्व में किए गए सर्वे में इन गांवों को 835 से ऊपर बताया गया जिससे यह गांव डूब क्षेत्र में आने छूट गए थे। प्रशासन द्वारा फिर से कराए गए सर्वे में 45 गांवों के 118 परिवार प्रभावित की श्रेणी में आए हैं, जिसमें ग्रामीणों की करीब 3150 नाली सिंचित- असिंचित भूमि शामिल है। प्रशासन ने डूब क्षेत्र में विस्थापन की तैयारी शुरू कर दी है। पहले चरण में पांच गांवों सरोठ, डोबन, जसपुर मध्य चक, नकोट व चांठी के ग्रामीणों का सहमति के आधार पर विस्थापन हो चुका है। शेष चालीस गांवों के विस्थापन के लिए शासन को रिपोर्ट भेजी गई है। इस बाबत पुनर्वास निदेशक व जिलाधिकारी सौजन्या ने बताया कि विस्थापित होने वाले अधिकांश गांव भिलंगना घाटी के हैं, इनके विस्थापन की कार्रवाई शीध्र आरंभ की जाएगी। पुराने मामले ही नहीं हुए निस्तारित नई टिहरी: टिहरी बांध से 125 गांवों के 5187 परिवारों के करीब 85 हजार लोग विस्थापित हुए हैं। विस्थापितों के 2806 मामले गे्रवांस सेल में पहुंचे, जहां अभी भी 1940 मामले लंबित हैं। जब विस्थापन के पुराने मामले ही अब तक नहीं सुलझा पाए हैं तो ऐसे में नए विस्थापित 118 परिवारों की समस्याएं कैसे सुलझोगी यह सवाल बना हुआ है।

Tuesday 28 April 2009

मां गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिर के कपाट खुले

देव डोलियों की मौजूदगी से माहौल बना भ1ितमय पहले ही दिन दोनों धामों में पहुंचे हजारों श्रद्धालु उतरकाशी। विश्व प्रसिद्ध गंगोत्री और यमुनोत्री तीर्थधाम के कपाट अक्षय तृतीया के अवसर पर वैदिक अनुष्ठान के साथ श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोल दिए गए। सोमवार को पहले ही दिन दोनों धामों में देश-विदेश से बड़ी सं2या में श्रद्धालु पहुंचे। यमुनोत्री में यमुना के भाई शनि देव की डोली तथा गंगोत्री में सेकेंड राजपूत के बैंड की धुन और बार्सू, गणेशपुर एवं बाड़ागड्डी के देवी-देवताओं की डोलियों की मौजूदगी ने माहौल को भक्तिमय बना दिया। इस दौरान यहां'जय मां गंगे' और 'जय मां यमुना' के जयकारे गूंजते रहे। यमुना के मायके खरसाली से प्रात: साढ़़े आठ बजे यमुना जी की डोली उनके भाई शनिदेव की डोली के साथ यमुनोत्री के लिए रवाना हुई। ११ बजे यमुनोत्री पहुंचकर मूर्ति के स्नान और श्रृंगार के बाद गर्भगृह में प्राण प्रतिष्ठा कर मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोले गए। इस मौके पर मंदिर को भव्य तरीके से सजाया गया। यमुनोत्री विधायक केदार सिंह रावत सहित करीब तीन हजार श्रद्धालुओं ने पहले ही दिन मां युमना के दर्शन किए। शनि महाराज की डोली यमुना को विदा करने के बाद वापस खरसाली लौट आई। जानकीचट्टी के निकट स्थित राम मंदिर में यात्रियों के लिए भोजन की व्यवस्था की गई थी। इधर, बीते रोज मुखबा से भैरोंघाटी पहुंची गंगा जी की डोली यात्रा के गंगोत्री पहुंचने पर दोपहर साढ़े बारह बजे मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोल दिए गए। सेना की द्वितीय राजपूत रेजीमेंट ने बीते सालों की भांति इस बार भी यात्रियों के लिए लंगर की व्यवस्था की। इस बार पहले ही दिन पांच हजार से अधिक तीर्थयात्रियों ने गंगोत्री पहुंचकर दर्शन किए। चार धामों में से दो अन्य धाम केदारनाथ मंदिर के कपाट तीस अप्रैल और बदरीनाथ धाम के कपाट एक मई को खुलेंगे।

पहाड़ में बढ़ा मेडिकल का क्रेज

श्रीनगर। राज्य के पहले राजकीय मेडिकल कालेज श्रीकोट की स्थापना के बाद पहाड़ों के छात्रों का रुझाान मेडिकल क्षेत्र की ओर तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। पहले जहां कुछ प्रतिशत छात्र ही सीपीएमटी आदि मेडिकल की परीक्षाओं के लिए आवेदन करते थे वहीं इसका ग्राफ अब बढ़ गया है। अकेले श्रीनगर पोस्ट ऑफिस से 1० दिनों के अंदर ४०० से अधिक यूपीएमटी के फार्म बिके हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र भी यूपीएमटी परीक्षा में बैठने के लिए आवेदन कर रहे हैं। गढ़वाल के मु2य केंद्र श्रीनगर में मेडिकल कालेज की स्थापना के बाद पहाड़ में छात्रों का मेडिकल के क्षेत्र में जाने के प्रति रुझाान बढ़ रहा है। अन्य राज्यों की अपेक्षा यहां पर शुल्क में भारी छुट मिलने के कारण अभिभावक भी अपने पाल्यों को यूपीएमटी परीक्षा में बैठने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। मेडिकल कालेज बनने के बाद यहां पर खुले मेडिकल कोचिंग सेंटर में जाकर छात्र तैयारियां कर रहे हैं। यूपीएमटी परीक्षा तैयारियों में जुटी मेघा रावत, विवेक गैरोला का कहना है कि उनके ग्रुप के अधिकांश बच्चे इंटर के बाद उच्च शिक्षा से हटकर मेडिकल लाइन में जाने के लिए तैयारियों में लगे हुए हैं। मेडिकल के बढ़ते के्रज को देखते हुए अकेले श्रीनगर पोस्ट ऑफिस से चार सौ से अधिक छात्रों ने फार्म खरीदे हैं, मेडिकल कालेज के डीन प्रो. यूके सिंह का कहना है कि पहाड़ी क्षेत्र में मेडिकल कालेज का खुलना यहां के छात्रों के सुनहरे भविष्य के लिए बेहतर विकल्प है। उन्होंने कहा कि इससे छात्रों को कम शुल्क में मेडिकल की पढ़ाई करने का अवसर मिला है। वो अपने करियर को बेहतर मुकाम दे सकते हैं।

Monday 27 April 2009

-आज खुलेंगे गंगोत्री यमुनोत्री के कपाट

उत्तरकाशी : अक्षय तृतीया पर सोमवार को दोपहर 12 बजकर 25 मिनट पर यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले्र दिए जाएंगे। रविवार को मुखीमठ और खरसाली गांव में देवियों की मूर्तियों का अभिषेक, श्रृंगार, अन्न व रसों से सुसज्जित कर किया गया। साथ ही उन्हें सोने व चांदी के आभूषणों से अलंकृत किया गया। गंगा व यमुना की पूजा अर्चना के बाद उन्हें डोलियों में सजा दिया गया है। ढोल, रणसिंघा के साथ दोनों देवियां अपने पौराणिक मंदिरों में सोमवार को ही पहुंचेंगी। गंगोत्री व यमुनोत्री मंदिर समिति के पदाधिकारियों के साथ ही जिला प्रशासन भी यात्रा सुरक्षा व्यवस्थाओं में व्यस्त है। जिलाधिकारी डा. बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने बताया कि 28 अप्रैल को राज्यपाल बीएल जोशी गंगोत्री मंदिर पहुंचकर पूजा अर्चना करेंगे। गंगोत्री व यमुनोत्री की शोभा यात्रा में बड़ी संख्या में यात्री भी उत्तरकाशी पहुंचे हैं, इस साल कपाट खुलने पर गत वर्षों की अपेक्षा अधिक भीड़ उमडऩे की संभावना है।

सड़क: एडीबी से मिले दो सौ मिलियन डालर

-दूसरे चरण में बनने वाली सड़कों को हरी झांडी -मौसम के कारण समय से काम पूरा करने की मुश्किल देहरादून, एशियाई विकास बैैंक(एडीबी) की सहायता से राज्य में दूसरे चरण में करीब एक हजार किलोमीटर सड़कों का सुधार तथा निर्माण किया जाएगा। प्रथम चरण में करीब छह सौ किलोमीटर सड़क निर्माण का कार्य किया गया। मौसम के अनुकूल नहीं होने के कारण निर्माण एजेंसियों के समक्ष निर्धारित समय सीमा में काम पूरा करने की चुनौती बनी हुई है। राज्य में सड़क निर्माण के कार्य को गति देने के लिए एडीबी ने राज्य को दो चरणों में सहायता प्रदान की है। प्रथम चरण में एडीबी ने 74 मिलियन डालर की सहायता दी। इससे राज्य में करीब छह सौ किलोमीटर की सड़कों का निर्माण किया गया। यह कार्य फरवरी में पूरा होने के साथ ही एडीबी ने दूसरे चरण की सहायता को हरी झांडी दे दी है। इस चरण के लिए राज्य को 200 मिलियन डालर की सहायता मिली है। इससे 967 किलोमीटर की सड़कों का सुधार व निर्माण कार्य प्रस्तावित है। हालांकि द्वितीय चरण से हासिल होने वाली धनराशि पिछले वर्ष दिसंबर में मिलनी थी, लेकिन पहले चरण का कार्य पूरा नहीं होने के कारण इसमें विलंब हुआ। दरअसल मौसम के साथ सड़क निर्माण व सुधार के काम में तालमेल बनाना लोक निर्माण विभाग के लिए खासा मुश्किल हो रहा है। कच्चे मार्गों को पक्का करने तथा सड़कों की राइडिंग क्वालिटी सुधारने के लिए एडीबी ने राज्य के लिए 550 मिलियन डालर की वित्तीय सहायता मंजूर की है। इस काम में सबसे बड़ी बाधा अनुकूल मौसम की है, जिसके कारण एडीबी की सहायता से होने वाले कार्य समय से पूरे नहीं हो पा रहे हैैं। यूं तो निर्माण खंडों की संख्या बढ़ाकर भी 13 कर दी गई है। इसके बावजूद पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकांश समय ऐसा रहता है, जब सड़क निर्माण का कार्य करना मुश्किल रहता है। पिछले वर्ष कई महीने तो वर्षा के कारण सड़क निर्माण का कार्य आगे नहीं बढ़ पाया। निर्माण एजेंसियों की कार्यशैली पर मुख्यमंत्री को भी नाराजगी व्यक्त करनी पड़ी। गत सितंबर के बाद सड़क निर्माण के कार्य में तेजी आई है और पिछले चार महीने में अधिकांश कार्य निपटाया गया है। वित्तीय वर्ष 2008-09 में यह स्थिति रही कि बजट प्रावधान 936.51 करोड़ के सापेक्ष अगस्त तक केवल 24 प्रतिशत का ही उपयोग किया जा सका था। शेष धनराशि का उपयोग छह महीने में किया गया।

कैलास-मानसरोवर: चुड़कानी व बड़े का रहेगा बोलबाला

-कुमाऊंनी भोजन व नाश्ते का लुत्फ उठायेंगे श्रद्धालु -यात्रा की तैयारियां अंतिम चरण में, दिल्ली में बैठक जल्द -आयुर्वेदिक तेल की मसाज मिटायेगी थकान हल्द्वानी/नैनीताल प्रसिद्ध कैलास-मानसरोवर यात्रा की तैयारियां अंतिम चरण में पहुंच चुकी हैैं। विभिन्न विभागों की संयुक्त बैठक जल्द ही दिल्ली में होने वाली है। इस बार श्रद्धालु पूरी तरह कुमाऊंनी संस्कृति में सराबोर रहेंगे। श्रद्धालुओं के लिए भोजन में चुड़कानी व बड़ा मिलेगा। साथ ही आयुर्वेदिक तेल की मसाज उनकी थकान मिटायेगी। कुमाऊं मंडल विकास निगम के तत्वावधान में होने वाली चीन व भारत के आपसी समन्वय का प्रतीक धार्मिक कैलास मानसरोवर यात्रा की तैयारियां भी अंतिम चरण में पहुंच चुकी हैैं। इस बार यात्रा एक जून से ही शुरू करने का निर्णय लिया गया है। इसमें श्रद्धालुओं के 16 दल शामिल होंगे। प्रत्येक दल में 60-60 श्रद्धालु रखने की योजना बनायी जा रही है। हालांकि चेतलकोट में भूस्खलन होने से यात्रा पर सवालिया निशान लग गया था। लेकिन अधिकारियों को यात्रा शुरू होने तक मार्ग पर यातायात सुचारु होने की उम्मीद है। विपरीत परिस्थितियों में वैकल्पिक मार्गों के प्रस्ताव भी तैयार किये गये हैैं। सूत्रों के मुताबिक यात्रा शुरू होने से पहले सीमांत जिले पिथौरागढ़ के प्रशासन, कुमाऊं मंडल विकास निगम, आईटीबीपी, हार्ट लंग केयर सेंटर दिल्ली व बीएसएनएल सहित विभिन्न विभागों व संस्थाओं की दिल्ली में बैठक होती है। इसमें यात्रा की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जाता है। यह बैठक भी जल्द होने वाली है। इधर, कुमाऊं मंडल विकास निगम ने यात्रा को इस बार अधिक आकर्षक बनाने के इंतजाम भी किये हैैं। योजना है कि श्रद्धालु कुमाऊं में आकर पूरी तरह यहीं के रंग में सराबोर रहें। इस बारे में निगम के महाप्रबंधक अशोक जोशी ने बताया कि श्रद्धालुओं को काला सोयाबीन, चुड़कानी, मड़ुवा व बड़े आदि कुमाऊंनी डिश भोजन व नाश्ते में परोसी जायेंगी। इसके अलावा रास्ते में श्रद्धालुओं के मसाज की भी व्यवस्था की जा रही है। इसके लिए आयुर्वेदिक तेल बनाने वाली केरल की एक कंपनी से बात चल रही है। श्रद्धालुओं का स्वागत बुरांश के जूस से किया जायेगा और उन्हें रास्ते में मट्ठा भी पीने को मिलेगा। उन्होंने बताया कि इस बार श्रद्धालुओं को बसों के स्थान पर इनोवा से लाने व ले जाने का निर्णय पहले ही लिया जा चुका है। :::1350 श्रद्धालुओं ने किया आवेदन::: नैनीताल: पवित्र कैलास मानसरोवर यात्रा के लिए इस बार 1350 श्रद्धालुओं ने आवेदन किया है। कुमाऊं मंडल विकास निगम के प्रबंध निदेशक सचिन कुर्वेे ने बताया कि 1350 श्रद्धालुओं ने यात्रा के लिए आवेदन किया है। पहले तीन बैचों में शामिल यात्रियों का पहला स्वास्थ्य परीक्षण दिल्ली में 15 मई को होगा। दूसरा स्वास्थ्य परीक्षण भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के कैंप नाभीढांग में होगा। यात्रियों को विदेश मंत्रालय द्वारा टेलीग्राम भेज दिए गए हैं। सभी आवेदकों को पांच हजार रुपए की धनराशि जमा करनी होगी, पहले स्वास्थ्य परीक्षण में सफल होने के बाद दूसरे खर्च देय होंगे। उन्होंने बताया कि पहले मेडिकल परीक्षण के बाद ही यात्रा में जाने वालों की सूची फाइनल होगी। श्री कुर्वे ने बताया कि निगम की ओर यात्रा की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। बहरहाल विदेश मंत्रालय की सक्रियता के बाद यात्रा की तैयारियों को लेकर निगम प्र्रबंधन की निगाहें यात्रा मार्ग की व्यवस्थाओं पर टिकी हैं।

--अब सुरंग से जाएंगी गाडिय़ां

-जिलाधिकारी ने सादे समारोह में किया सुरंग का लोकार्पण उत्तरकाशी, शिवनगरी उत्तरकाशी में अब यात्रियों का प्रवेश सुरंग से होगा। जिलाधिकारी डा. बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने करीब सात करोड़ की लागत से बने 360 मीटर लंबी ज्ञानसू-ताम्बाखाणी सुरंग का लोकार्पण किया। वर्ष 2003 में वरुणावत त्रासदी से शिवनगरी का आधा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था। तब गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर ज्ञानसू-ताम्बाखाणी में भूस्खलन की संवेदनशीलता और बरसात में अक्सर सड़क पर वरुणावत का मलबा जमा होने से मार्ग बंद हो जाता था। इस पर भू-वैज्ञानिकों ने ट्रीटमेंट में सुरंग निर्माण की अनुमति दे दी। सुरंग निर्माण में अभी लाइनिंग का निर्माण शेष है, लेकिन यातायात की संभावनाओं व यात्रा निर्विघ्न चलाने के उद्देश्य से सुरंग का रविवार को एक सादे समारोह में लोकार्पण किया गया। जिलाधिकारी ने बताया कि वरुणावत ट्रीटमेंट के तहत श्सुरंग का लाइनिंग कार्य ही शेष है। अन्य कार्य पूरे कर लिए गए हैं।

-होम थियेटर में दिखेंगे मेले और उत्सव

-हाई प्रोफाइल टूरिज्म के लिए पर्यटन विभाग की कवायद -अनछुए पर्यटक स्थलों की वीडियो के जरिये देंगे जानकारी हरिद्वार : देवभूमि के सुरम्य पर्यटक स्थलों के दीदार अब पर्यटन विभाग के होम थियेटर में किए जा सकेंगे। खास तौर पर सूबे के अनछुए पर्यटक स्थलों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पर्यटकों को रूबरू कराने के लिए यह कवायद शुरू की जा रही है लेकिन होम थियेटर की सुविधा हासिल करने से पहले पर्यटकों को विभाग द्वारा तय मानक पूरे करने होंगे। जिला पर्यटन विभाग के कार्यालय में इस होम थियेटर को लगाने की तैयारी चल रही है। इसका प्रस्ताव शासन को जिले से ही भेजा गया था। होम थियेटर में पर्यटन विभाग या उसके द्वारा अधिकृत एजेंसी द्वारा तैयार चारधाम यात्रा सहित सूबे के प्रमुख मेले व उत्सव, साहसिक खेलों, धार्मिक यात्राओं, पर्यटकीय गतिविधियों आदि के वीडियो सीडी दिखाए जाएंगे। खास तौर पर सूबे के अनछुए पर्यटक स्थलों से वीडियो के जरिये पर्यटकों को रूबरू कराया जाएगा। उल्लेखनीय है कि राज्य में ऐसे अनेक रमणीक और अनूठे स्थल हैं जो विश्व पर्यटन में पहचान बना सकते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में ये स्थल अभी पर्यटकों की नजरों से ओझाल हैं। होम थियेटर की सुविधा के जरिये पर्यटकों को उन स्थलों की जानकारी दी जाएगी। वीडियो में स्थानीय जलवायु, जीव जंतुओं सहित परंपराओं व लोक संस्कृति के दर्शन होने पर सैलानियों को खुद को वहां के परिवेश के अनुकूल ढालने में भी मदद मिलेगी। यह सुविधा 'हाई प्रोफाइल' टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिये शुरू की जा रही है इसलिये इसे हासिल करने को पर्यटकों को विभाग द्वारा तय मानक पूरे करने होंगे। आधिकारिक एजुकेशनल व एडवेंचर एक्टिविटी टूर से जुड़े लोगों को भी यह सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। सीजन के दौरान सुबह आठ से छह बजे तक यह सुविधा उपलब्ध रहेगी। जिला पर्यटन अधिकारी वाईके गंगवार ने बताया कि हरिद्वार पर्यटन कार्यालय में स्थित सूचना केंद्र के साथ ही होम थियेटर की स्थापना पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण तथा इस यात्रा सीजन में एक अनूठा प्रयास है। उन्होंने बताया कि मई माह से ही पर्यटकों को यह सुविधा मिलनी शुरू हो जायेगी।

-केदारनाथ धाम के कपाट 30 को खुलेंगे

रुद्रप्रयाग: भगवान केदारनाथ की उत्सव डोली पंच केदार गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर से वैदिक मंत्रोचारण के बाद सैकड़ों भक्तों की उपस्थिति में हिमालय को रवाना हो गई। उत्सव डोली विभिन्न गांवों से होते हुए 30 अप्रैल को केदारनाथ पहुंचेगी। इसी दिन सुबह केदारनाथ धाम के कपाट खुल जाएंगे। रविवार पूर्वाहृन ग्यारह बजे भोले बाबा की उत्सव डोली ने सैकड़ों भक्तों के जय भोले के उद्दघोषों व मद्रास बटालियन की धार्मिक धुनों के साथ ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ से प्रस्थान किया। बाबा की उत्सव डोली विद्यापीठ होते हुए दोपहर एक बजे विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी पहुंची। 27 अप्रैल को केदार बाबा की उत्सव डोली गुप्तकाशी से प्रस्थान कर नाला, नारायणकोटी, खुपेरा, ब्यूंग और मैखंडा, फाटा पहुंचेगी। 28 अप्रैल को फाटा से प्रस्थान कर बडासू, रामपुर, सोनप्रयाग, गौरीकुंड पहुंचेगी। 29 अप्रैल को गौरीकुण्ड से प्रस्थान कर सांय को केदारपुरी पहुंचेगी। 30 अप्रैल को सुबह वैदिक मंत्रोचारण के बाद 6.50 बजे केदारनाथ के कपाट खुलेंगे।

जूता संस्कृति ... " बहस "

जूते चप्पलो में हो गई बहस छिड गई लड़ाई लगे करने दोनों अपनी अपनी बडाई ! चप्पले बोली ........यदपि, देखने में हम कोमल , नाजुक , कमजोर है ध्यान रहे ... हमारे किस्से जगत मशहूर है ! आम आदमी से लेकर मंत्री संत्री , नेता हमें अपने साथ रखने पर मजबूर है ! नेता जी ... नेताजी तो, .. हमें बड़े प्यार से दुलारते है पुचकारते है और बड़े सामान के साथ हमें पार्लियामेंट तक ले जाते है येसा नहीं ........ हम भी आडे वक़्त उनके काम आते है ! टेलीबिजन , अखबारों में आये दिन हमारी तस्बीरे छपती है जब जब हम पार्लियामेन्ट में एक दुसरे पर बरसती है ! वे जूते से बोली .. है तुम्हरा, येसा कोई किस्सा ? जो , संसद में लिया हो तुमने कभी हिस्सा ?????? जूत्ता बोला ... बस ... तुम में यही तो कमी है बात को पेट में पचा नहीं पाती हो युही खामखा ,,, चपड चपड़ करती रहती हो ! सुनो चाहिए हम रबड़ के हो या हो, चाँद के सारे मुरीद है हमारे यंहा से वंहा तक के ! जब जब मै चलता हूँ या चलूँगा ..... अच्हे आछो के मुँह बंद हो जायेग इसीलिए तो सब कहते है यार, चांदी का मारो तो सब काम हो जायेगे ! पटवारी से लेकर ब्यापारी तक , सिपाही से लेकर मंत्री तक सब हमारे कर्ज़दार है तभी तो, लोग कहते है जूत्ता ... बड़ा दुमदार है रही हिस्से किस्से की बात तमाशा देखना और देखोगे आज के बाद संसद में तुम नहीं , हम ही हम चलेगे ! ये किस्सा तो अपने देश में द्खोगे ही संसार में भी नाम कमाउगा देख लेना दुनिया के अखबारों के फ्रंट पेज पर अपनी तस्स्बीर छपाउगा ! देखा नहीं , इराक में क्या हुआ बुश पर कौन चला ? .... मै चिदम्बर, अडवानी और अब मनमोहन पर भी कौन चला मै ? पराशर गौर-कनाड़ा से

Saturday 25 April 2009

हिमनगरी में देशी-विदेशी पर्यटकों की आमद बढ़ी प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत विदेशी सैलानी मुनस्यारी: मौसम खुशगवार होते ही हिमनगरी मुनस्यारी में देशी-विदेशी पर्यटक पहुंचने शुरू हो गये हैं। पिछले चार दिनों से मौसम के साफ रहने से बर्फ से लकदक हिमालय की चोटियां पर्यटकों के लिये खासी आकर्षण का केन्द्र बनी हैं। ऊंची चोटियों में हिमपात और निचले इलाकों में बूंदाबांदी के बाद मुनस्यारी का प्राकृतिक सौन्दर्य और निखर गया है। साफ मौसम यहां आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों को खासा आकर्षित कर रहा है। अप्रैल माह में साढ़े चार सौ से अधिक सैलानी यहां के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठा चुके हैं। इस माह सर्वाधिक आमद बंगाली पर्यटकों की रही। पर्यटकों को पंचाचूली की चोटियां सर्वाधिक प्रभावित कर रही हैं। इसके अतिरिक्त पर्यटक खलियाटाप, डांडाधार स्थित नंदादेवी मंदिर भी भारी संख्या में पहुंच रहे हैं। इन स्थलों से हिमालय श्रृंखला सहित अल्मोड़ा जनपद का नजारा भी देखने को मिलता हे। इस वर्ष पर्यटकों की आमद से होटल एसोसिएशन खासा उत्साहित है। एसोसिएशन के अध्यक्ष जेएस रावत और महासचिव पूरन चन्द्र पांडेय ने बताया कि यहां आने वाले पर्यटकों के लिये विशेष इंतजाम किये गये हैं।

घर में ही फंसे क्षत्रप

साथी की मदद को मांद से बाहर आने की जुटा ही नहीं पा रहे हिम्मत इस बार चुनाव का अंदाज ही कुछ निराला है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्र्रेस दोनों ही दलों के क्षत्रप अपनों घरों में ही फंसे है। पड़ोस की सीट पर जाकर पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में कुछ कर दिखाने की कुव्वत तो है पर अपनी ही फिक्र में इस कदर मशगूल हैं कि बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रहे हैं। नतीजा यह है कि पार्टी के स्टार प्रचारकों पर ही सभी की नजरें टिकीं हैं। दिग्गज भी हंै और जनता के बीच प्रभाव भी। इसके बाद भी अपनी पार्टी या फिर अपने साथी प्रत्याशी के लिए कुछ करने की स्थिति में नहीं हैैं। जी हां, उत्तराखंड के सियासी महासमर में इस मर्तबा इलाकई क्षत्रपों की कुछ ऐसी ही तस्वीर उभर रही है। पहले बात पौड़ी सीट की। भाजपा ने यहां से टीपीएस रावत को प्रत्याशी बनाया है। ये जनाब कांग्र्रेस की सरकार में पूरे पांच साल कई खास मंत्रालय संभाले रहे। फिर पिछले सवा साल से भाजपा के टिकट पर सांसदी भी कर रहे हैैं। पूर्व सैन्य अफसर होने के नाते इनकी अपील पूर्व सैनिकों पर असरकारी हो सकती है। मौजूदा टिहरी सीट में देहरादून पहले पौड़ी सीट का हिस्सा था। इस लिहाज से नेताजी अन्य सीटों पर भी प्रभाव छोड़ सकते थे पर ऐसा हो नहीं पा रहा है। अपने घर में ही इस कदर फंसे हैैं कि पड़ोस में झाांकने तक का वक्त नहीं है। इसी सीट से कांग्र्रेस प्रत्याशी सतपाल महाराज आध्यात्म क्षेत्र में भी पहचान रखते हैैं। फिर केंद्र में राज्यमंत्री रहने के साथ ही पौड़ी सीट से कई चुनाव लड़ चुके हैैं। महाराज कम-से-कम हरिद्वार और टिहरी के देहरादून वाले हिस्से में अपील कर सकते हैैं। धार्मिक प्रवचन करने वाले ये नेताजी कुमाऊं में भीड़ खींचने की कुव्वत रखते है। अपने फेर में ऐसे फंसे कि इन्हें भी मांद से निकलने का अभी तक वक्त नहीं मिल सका है। टिहरी सीट से चुनाव लड़ रहे विजय बहुगुणा की गिनती भी सूबाई क्षत्रपों में की जाती है। फिर पिता स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा की राजनीतिक विरासत भी उन्होंने ही संभाल रखी है। कई मायनों में श्री बहुगुणा पौड़ी संसदीय सीट पर खासे इफेक्टिव साबित हो सकते हैं पर अभी तक उन्हें अपना क्षेत्र संभालने में ही पसीना आ रहा है। पौड़ी जाकर महाराज की मदद करने की बात ही बेमानी हो रही है। इस सीट से भाजपा ने निशानेबाज जसपाल राणा को खड़ा किया है। निश्चित रूप से वे एक सेलेब्रिटी हैैं पर भाजपा उन्हें इस रूप में प्रोजेक्ट ही नहीं पा रही है। फिर पहली बार चुनावी समर में कूदे जसपाल का अपने घर में ही पूरा समय दे पाना मजबूरी बनता जा रहा है। हरिद्वार से चुनाव लड़ रहे हरीश रावत की यूं तो पूरे प्रदेश में पहचान है पर नैनीताल और अल्मोड़ा संसदीय सीटों पर उनका खासा प्रभाव माना जाता है। श्री रावत हरिद्वार में इस कदर उलझो हैैं कि अल्मोड़ा से चुनाव लड़ रहे अपने प्रिय शिष्य प्रदीप टम्टा की चाहते हुए भी मदद नहीं कर पा रहे हैं। आलम यह है कि नेताजी ने अपने खास लोगों को प्रदेशभर से बुलाकर हरिद्वार में जिम्मेदारी थमा दी। हां, एक बार अल्मोड़ा का दौरा करके शिष्य को यह समझााने की कोशिश जरूर कर डाली जमे रहो, सब ठीक होगा। जाहिर सी बात है कि पहले अपना घर मजबूत किया जाएगा। नैनीताल सीट से भाजपा प्रत्याशी बची सिंह रावत यूं तो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैैं पर इस समय उनके लिए अपना संसदीय क्षेत्र ही प्रदेश बन चुका है। चार बार सांसद और एक बार केंद्र में राज्य मंत्री रह चुके बचदा को प्रदेश अध्यक्ष के नाते पूरे उत्तराखंड में घूमना था पर इस समय तो वे अपने पुराने क्षेत्र अल्मोड़ा तक के लिए समय नहीं निकाल पा रहे है। बचदा ने प्रत्याशी के नामांकन वाले रोज कुछ घंटों के लिए अल्मोड़ा जाकर रस्म अदायगी जरूर कर दी है। भाजपा ने काबीना मंत्री अजय टम्टा को प्रदेश में सूबे में दलित नेता के रूप में प्रोजेक्ट किया था। मंशा चुनाव में दलित वोटों को रिझााने की थी। बाद में श्री टम्टा को अल्मोड़ा सीट से प्रत्याशी क्या बनाया, वे संसदीय सीट से बाहर निकलना ही भूल गए। जाहिर है कि किसी के पास किसी के लिए वक्त ही नहीं है। हर कोई फंसा है तो बस अपने ही क्षेत्र में। अब यह तो चुनाव परिणाम ही बताएगा कि सूबाई क्षत्रपों की यह रणनीति कितनी कारगर रही। -------- ये हैैं सूबाई स्टार भाजपा- मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी और सांसद भगत सिंह कोश्यारी कांग्र्रेस- प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य और नेता प्रतिपक्ष डा. हरक सिंह रावत उक्रांद- कबीना मंत्री दिवाकर भट्ट और पूर्व विधायक काशी सिंह ऐरी

राजधानी रिपोर्ट: नहीं मिलेगा एकतरफा स्टे

याची ने हाईकोर्ट में दाखिल की कैबिएट सरकार नहीं खोलना चाहती रिपोर्ट का पिटारा सूचना आयोग के खिलाफ हाईकोर्ट जाने की है तैयारी देहरादून, दीक्षित आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करने के मामले में राज्य सूचना आयोग के फैसले पर सरकार स्टे लेने की तैयारी में है। उधर, याची से हाईकोर्ट में कैबिएट दाखिल करके सरकार की योजना पर पानी फेर दिया है। अधिवक्ता नदीमुछद्दीन की अपील पर सुनवाई करते हुए राज्य के मुख्य सूचना आयुक्त डा. आरएस टोलिया ने सरकार को निर्देश दिए हैैं कि स्थायी राजधानी के मामले पर दीक्षित आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए। चुनाव की इस बेला में सरकार इस पिटारे को खोलना ही नहीं चाहती है। सूत्रों ने बताया कि सूचना आयोग के स्पष्ट निर्देश के बाद सरकार ने हाईकोर्ट जाने की तैयारी की है। सरकार की मंशा सूचना आयोग के आदेश पर स्थगनादेश हासिल करने की है। इस दिशा में काम भी शुरू हो गया था। इधर, अधिवक्ता नदीम ने उच्च न्यायालय में कैबिएट दाखिल कर दी है। इसमें कहा गया है कि अगर सरकार सूचना आयोग के आदेश पर स्थगनादेश चाहे तो निर्णय देने से पहले उनका पक्ष भी सुना जाए। जाहिर है कि कैबिएट के बाद सरकार के लिए एकतरफा स्टे आर्डर ले पाना अब संभव ही नहीं होगा।

यमुनोत्री: यात्रियों के साथ अन्य का भी होगा बीमा

-जिलाधिकारी की पहल पर शुरू हुई बीमा योजना -घोड़ा-खच्चर संचालकों को भी मिलेगा लाभ उत्तरकाशी, यमुनोत्री यात्रा मार्ग पर दुर्घटनाओं की संभावना के मद्देनजर इस बार यमुनोत्री यात्रियों के साथ ही घोड़ा-खच्चर और उनके संचालकों का भी बीमा करवाया जाएगा। विश्व प्रसिद्ध धाम यमुनोत्री यात्रियों को विशेष बीमा पालिसी 'टेंडर मेड ग्राफ एक्सीडेंट पालिसी' का लाभ देने का निर्णय लिया गया है। जानकीचट्टी से यमुनोत्री तक के छह किमी पैदल मार्ग पर जोखिमों की कमी नहीं है। जिलाधिकारी डा. बीवीआरसी पुरुषोत्तम की पहल पर जिला पंचायत ने यमुनोत्री यात्रा पर जानकीचट्टी से यमुनोत्री तक के रिस्क को कवर करने के लिए बीमा पालिसी लागू की है। इसके लिए यात्री से 20 रुपए की धनराशि ली जाएगी। दुर्घटना व यात्रा के दौरान साधारण मौत हो जाने पर परिजनों को 50 हजार रुपए तक की बीमा राशि दी जाएगी। घोड़ा-खच्चर संचालक की मौत पर परिजनों को भी 50 हजार रुपए की राशि मिलेगी। दुर्घटना में घायल होने पर को राशि देय नहीं होगी। जिलाधिकारी की मौजूदगी में जिला पंचायत अध्यक्ष नारायण सिंह चौहान ने योजना का शुभारंभ किया।

उक्रांद: जारी है सियासी ड्रामा

देहरादून का उत्साह स्वभाविक था या फिर रुद्रपुर में किया गया हंगामा एक हफ्ते पहले दिवाकर भटट के मंत्री पद से इस्तीफे की खबर मिलते ही उक्रांद कार्यकर्ताओं के चेहरों पर मुस्कान लौट आई थी। नारे गूंजे 'उक्रांद अभी जिंदा है'। इसके ठीक विपरीत रुद्रपुर में कार्यकर्ताओं ने इस्तीफा वापस लेने की मांग पर घेराव कर दिया। अब सवाल यह खड़ा हो रहा है कि इनमें से कौन सी प्रतिक्रिया दल के अनुकूल है। खास बात यह है कि इस मुद्दे पर नेताओं में भी एक राय नहीं है। भाजपा सरकार से समर्थन वापसी उक्रांद के लिए यक्ष प्रश्न बन गया है। यह सवाल तो समर्थन देने के साथ ही उठना शुरू हो गया था। इस लोकसभा चुनाव में समझाौते पर उक्रांद को दरकिनार करने के भाजपाई स्टैंड के बाद यह और तीखा हो उठा। इसी बीच दिवाकर भट्ट ने अचानक ही पार्टी के केंद्रीय कार्यालय पहुंच कर अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी। इस पर वहां मौजूद कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया देखने लायक थी। उत्साहित कार्यकर्ताओं ने नारा दिया 'उक्रांद अभी जिंदा है'। रुद्रपुर में कार्यकर्ताओं का रुख इसके ठीक विपरीत दिखाई दिया। उक्रांद अध्यक्ष डा.नारायण सिंह जंतवाल ने नामांकन के बाद समर्थन वापसी के सवाल पर दल के पदाधिकारियों के साथ गुफ्तगू शुरू की। इसी बीच मौजूद कार्यकर्ताओं ने इस्तीफा वापस लो के नारे लगाने शुरू कर दिए। दबाव बनाने के लिए दिवाकर का घेराव भी किया। अब सवाल उठ रहा है कि वास्तव में उक्रांद का प्रतिनिधित्व केंद्रीय कार्यालय में हुई प्रतिक्रिया करती है या फिर रुद्रपुर की। समर्थन वापसी के मुद्दे पर जनवरी में देहरादून में हुए महाधिवेशन की अनुगूंज तो मुख्यालय से मिलती जुलती थी पर इस्तीफे की वापसी पर आई यह प्रतिक्रिया एक नया सवाल उठा रही है। खास बात यह भी है कि उक्रांद नेताओं की आफ द रिकार्ड बातें भी आपस में एक राय नहीं बनाती और कोई नेता इस मुद्दे खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। -------- बोलने ही नहीं दिया: भट्ट देहरादून: काबीना मंत्री दिवाकर भट््ट कहते हैं कि दून में हुए महाधिवेशन में उन कार्यकर्ताओं को बोलने ही नहीं दिया गया, जो समर्थन के पक्षधर थे। रुद्रपुर की प्रतिक्रिया इसका प्रमाण है। उनका कहना है कि वे अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री को दे चुके हैैं। अब उन्हें निर्णय लेना है। साथ ही उक्रांद को कई और सवालों पर भी सोचना होगा। समर्थन वापसी के बाद सरकार की अस्थिरता के असर से उक्रांद भी नहीं बच सकता। ------- उचित नहीं पद स्वीकारना: ऐरी देहरादून: वरिष्ठ नेता काशी सिंह ऐरी का कहना है कि उक्रांद के आम कार्यकर्ता का मन है कि अब सरकार में कोई पद स्वीकार करना दल की प्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं होगा। इसी का सम्मान करते हुए वे अपने दायित्व से इस्तीफा दे चुके हैैं।

क्या लाशों का पानी पीते रहेंगे हम

हल्द्वानी: दावे, वादे और आरोप-प्रत्यारोप के इस चुनावी संग्राम में वे मुद्दे गायब दिख रहे हैं, जिन से हल्द्वानी की तीन लाख की आबादी कई साल से जूझ रही है। गौला नदी किनारे जलने वाले शवों से प्रदूषित होने वाला पानी शहर की तीन लाख आबादी पीती है। यह पानी कब बड़े हादसे को जन्म दे दे, यह बात प्रशासनिक तंत्र भी जानता है और जनता के नुमाइंदे भी। लेकिन चुनाव में इसका जिक्र किसी की जुबां पर नहीं है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार हल्द्वानी की जनसंख्या भले ही डेढ़ लाख के करीब हो। मगर अब यह संख्या दोगुनी हो चुकी है। गेट वे ऑफ कुमाऊं कहलाने के साथ-साथ हल्द्वानी उन सभी पर्यटन स्थलों को जाने का द्वार है, जहां देशी ही नहीं विदेशी भी हर माह आते-जाते हैं। लेकिन इसी द्वार में निवास करने वाली जनता की अपनी कई ऐसी व्यवहारिक दिक्कतें भी हैं। यह समस्या है पानी की, जो पहाड़ से शुद्ध जल के रूप में आता है लेकिन हल्द्वानी के लोगों तक पहुंचते-पहुंचते पूरी तरह प्रदूषित हो जाता है। रानीबाग में गोला नदी किनारे चित्रशिला घाट है, जहां शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है। लेकिन शव जलने के बाद राख धीरे-धीरे पानी के साथ बहकर शहर की ओर बह जाती है। नदी में शवों की अधजली लकडि़यां जहां-तहां देखी जा सकती हैं। हालांकि यह पानी काठगोदाम में लगे वर्षो पुराने फिल्टरेशन प्लांट में शुद्ध होकर आबादी तक पहुंचता है, लेकिन इस प्रक्रिया में भी इतने छेद हैं कि पानी पूरी तरह शुद्ध हो ही जाता है दावे के साथ फिर भी नहीं कहा जा सकता। इसके अलावा शहर में वर्षो पुरानी बिछी सीवर लाइनें और पेयजल पाइप लाइनें भी इतनी जर्जर हैं कि फिल्टरेशन प्लांट के शुद्धता के दावे को मान भी लिया जाये तो यही सीवर लाइनें जहां-तहां पेयजल पाइप लाइनों को प्रदूषित कर रही हैं। कुल मिलाकर यहां की आबादी के लिए यह पानी किसी न किसी रूप में मीठे जहर से कम नहीं है। समाधान के रूप में समय-समय पर यहां की जनता ने विद्युत शवदाह गृह बनाने अथवा दाह संस्कार का स्थान सर्वसम्मिति से हटा देने की मांग उठाई। इस दिशा में पालिका प्रशासन तो जल संस्थान अथवा जलनिगम ने कागजी खानापूरी की भी। लेकिन इच्छाशक्ति के अभाव में यह प्रक्रिया कागजों से बाहर आज तक नहीं निकल पायी है। जबकि स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक शहर की बड़ी आबादी हर समय पेट की बीमारियों से ग्रस्त रहती है। ऐसे में सियासी दलों के एजेंडे में यह समस्या हो अथवा न हो, लेकिन जनता की जुबां पर यह समस्या जरूर है।

विकास होंगे भगत के राजनीतिक उत्तराधिकारी

हल्द्वानी: आखिर वनमंत्री बंशीधर भगत के बेटे विकास भगत ने भी राजनैतिक डोर थाम ली है। सादे समारोह में उन्होंने भाजयुमो की सदस्यता ग्रहण की। पेशे से उद्योगपति विकास ने कहा कि उनका राजनैतिक मकसद जनहित के कार्यो को आगे बढ़ाना रहेगा। वनमंत्री श्री भगत ने राजनीति की लंबी पारी खेली है, वर्तमान में भी उनकी पहचान उत्तराखंड के जाने-माने राजनीतिज्ञों में की जाती है। लेकिन अपने बड़े परिवार में श्री भगत का कोई राजनैतिक उत्तराधिकारी नहीं था। लिहाजा वह जनहित के सभी काम अकेले ही निपटाते थे। इस समस्या के निस्तारण के लिए भाजपा नेता लंबे अरसे से वनमंत्री के बेटे विकास भगत को राजनीति में लाने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन सिडकुल में निजी उद्योग चलाने में व्यस्त विकास राजनीति में आने की जल्दबाजी में नहीं थे। भारी मशक्कत के बाद पार्टीजनों को शुक्रवार को विकास को भाजपा में लाने की कामयाबी मिल गयी। प्रदेशाध्यक्ष बची सिंह रावत, विधायक गोविंद बिष्ट, ब्लाक अध्यक्ष राजेन्द्र बिष्ट आदि ने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। इस अवसर पर भाजयुमो के जिलाध्यक्ष प्रकाश रावत ने विकास को मोर्चा का ब्लाक उपाध्यक्ष घोषित करते हुए कहा कि युवाओं के जुड़ने से भाजपा को मजबूती मिलेगी। भाजपा में शामिल होने के बाद उत्साहित विकास ने कहा कि अभी तक वह अप्रत्यक्ष रूप से जनसेवा का काम करते रहे हैं। लेकिन अब वह पार्टी को मजबूत करने में हर संभव मदद करेंगे। साथ ही जनता व अपने पिता के बीच कड़ी बनने की भी कोशिश करेंगे। जनहित कायरें को उन्होंने अपनी प्राथमिकता बताया।

म्युचुअल ट्रांसफ र मामले में कोर्ट का स्थगनादेशदेहरादून,

: उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के बीच म्युचुअल ट्रांसफर के एक मामले में नैनीताल हाईकोर्ट ने स्थगनादेश दिया है। गौरतलब है कि दोनों राज्यों के बीच म्युचुयल ट्रांसफर के हजारों मामले हैं। अपर सचिव एमसी जोशी ने म्युचुअल ट्रांसफर के एक मामले नैनीताल हाईकोर्ट की शरण ली थी। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि म्युचुअल ट्रांसफर की व्यवस्था सेवा नियमावली में नहीं है। केंद्र सरकार ने भी दोनों राज्यों को म्युचुअल ट्रांसफर करने के निर्देश नहीं दिए हैं। ऐसे में इस आदेश को स्टे किया जाता है। इधर, कोर्ट के संज्ञान में यह भी लाया गया कि उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड के बीच म्युचुअल ट्रांसफर के हजारों मामले हैं। इस पर कोर्ट का कहना था कि ये मामले कोर्ट के संज्ञान में नहीं हैं। लिहाजा इन मामलों पर अभी कोई निर्णय नहीं दिया जा सकता है। इस बारे में अपर सचिव (कार्मिक) सौरभ जैन ने बताया कि हाईकोर्ट का आदेश सरकार को मिल गया है। इसका अनुपालन किया जा रहा है। इस मामले में प्रभावित व्यक्ति आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है।

Friday 24 April 2009

जैसे ही , इल्कशन की हुई घोषणा -

जैसे ही , इल्कशन की हुई घोषणा उमिद्वारो का तांता लगने लगा था जिसे हमने , कभी नहीं देखा था वो , सबसे आगे खडा था ! पार्टिया ......अपने अपने उमीद्वारो कोजनता में भुनाने लग गई थी उनके काले कारनामो पे सफेदिया पोतने लगी थी ! सभाओ का .........आयोजनों पर आयोजन होने लगे थेछुट भया नेता ......दिगज नेताओं के चप्पल उठाने लगे थे ! उमीद्वारो का परिचय मंच से दिया जाने लगा नेता उनके बारे में कहने लगा ये .................इस इलाके के माने ( वो गुंडा था) हुए है इनकी तस्बीरे तो ,अखबारों में की बार छापी है ! ये उमीद्वार .... जो आप देख रहे है ये आप के लिए ना सही परपार्टी के लिए की बार अंदर बाहर आते जाते रहे है समया साक्षी और जनता गवा है पुलिस चोकी इनका मायका और जेल इनकी ससुराल है ! बिपक्षी ......इनकी इस छबी को पचा नहीं पा रही है इनपे आरोप पे आरोप लगाए जा रही है की... ये ...गौ-चारा , रेप , मर्डरो में लिप्त है एसा प्रचार कर रही है ! अरे भाई .....किसिना किसी को तो वो चारा खाना ही था उसको ... कहिना कही तो ठिकाना लगाना ही था ! रही...................... " रेप और मर्डरो " की बात तो, हम साफ़ साफ़ कहते है ये तो हमारी पार्टी का सिम्बल भी है हमारी मैनोफैसटो में भी है जो जितना करेगा, करवाएगा उतना ही उंचा पद पायेगा हम आप को चेतावनी देते है और चिला चिल्लाकर कहते है ! बिपक्षी सुन ले .......... और , आप देख ले ....आप वोट दे या ना दे आप वोट डाले या न डाले आप का पडेगा - पडेगा हम दावे से कहते है हमारा ये उमीद्वार ......... जीतेगा और जीतेगा 1 लेखक-

पराशर गौड़ कनाड़ा से (जिन्होने पहली गढ़वाली फिल्म जग्वाल से पहाड़ की सिनेमा को नई पहचान दी)

उक्रांद प्रकरण: बचदा ने भेजी जंतवाल को पाती

देहरादून। रिश्तों में आई तल्खी को कम करने की नीयत से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बची सिंह रावत ने उक्रांद अध्यक्ष नारायण सिंह जंतवाल को एक पाती भेजी है। इसमें तमाम पुरानी बातों को याद दिलाते हुए कहा गया है कि गठबंधन तो पांच साल के लिए किया गया था। काबीना मंत्री डा.निशंक ने इस पत्र का मजमून पढ़कर सुनाया। इसमें कहा गया है कि राज्य विरोधी ताकतों को सत्ता से बाहर रखने के लिए भाजपा और उक्रांद ने नौ बिंदुओं के आधार पर गठबंधन किया था। सरकार ने इन सभी बिंदुओं पर निष्ठा के साथ काम किया गया। वर्तमान राजनीतिक हालात में जरूरत इस बात की है कि वोटों का विभाजन न हो और सूबे की सरकार राज्यवासियों के हित में काम करती रहे। यही गठबंधन धर्म का तकाजा भी है। बचदा ने लिखा है कि काबीना मंत्री दिवाकर भंट्ट और वरिष्ठ नेता काशी सिंह ऐरी के इस्तीफा देने पर अफवाहों का बाजार गर्म हो रहा है। इससे गठबंधन पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं। अगर समझौते के बारे में कोई संशय हो या फिर कोई अन्य शंका तो इस बारे में फिर से बैठकर समाधान का कोई रास्ता तलाशा जा सकता है। उम्मीद है कि विषय की गंभीरता को देखते हुए आप फिलहाल छाए संशय के बादल समाप्त करने की दिशा में काम करेंगे।

कर्णप्रयाग तक पहुंच सकती है ट्रेन: खुराना

हरिद्वार। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन एसएस खुराना ने कहा राज्य सरकार यदि सहयोग करे तो ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेल पहुंचाने की योजना पर अमल किया जा सकता है। हरिद्वार रेलवे स्टेशन पर कुंभ कार्यो का निरीक्षण करने पहुंचे खुराना ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि रेलवे की ओर से स्टेशन पर हर जरूरी व्यवस्थाएं की जा रही हैं। कुंभ के दौरान स्टेशन पर स्निफर डॉग की तैनाती की जाएगी। सुरक्षा के लिए बाहर से भी सुरक्षा बल तैनात किए जाएंगे। कुंभ में जरूरत के अनुसार स्पेशल ट्रेनें चलाई जाएंगी। उन्होंने कहा कि स्टेशन के विस्तारीकरण का कार्य तेजी से चल रहा है। अब तक 40 करोड़ की लागत के कार्य किए जा चुके हैं। लक्सर-हरिद्वार ट्रैक को और बेहतर बनाने के लिए विद्युतीकरण किए जाने की योजना पर विचार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि इसके बाद लक्सर-हरिद्वार ट्रैक के दोहरीकरण की जरूरत महसूस नहीं होगी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन के लिए सर्वे किया जा रहा है। यदि राज्य सरकार अनुदान के रूप में 50 प्रतिशत सहायता राशि देती है तो इस योजना पर अमल किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि वे अगले दो दिन में देहरादून में मुख्य सचिव से मुलाकात कर देवबंद-रुड़की रेल लाइन, रोड पर ओवर ब्रिज व वन विभाग से संबंधित समस्याओं को लेकर बातचीत करेंगे। पत्रकार वार्ता के दौरान जीएम रेलवे विवेक सहाय, चीफ ऑपरेशन मैनेजर वीके राय, चीफ कामर्शियल मैनेजर एचओ पुनिया, डीआरएम ओमकार सिंह, डीके मेहता, रेनु पी छिब्बर भी मौजूद

Thursday 23 April 2009

मेरठ में दिखी उत्तराखंडी संस्कृति की झलक

गढ़वाली लोकगीत व नृत्य ने समां बांधा

मेरठ, ऐतिहासिक नौचंदी मेले में दिन-प्रतिदिन दर्शकों की भीड़ बढऩे लगी है। मंडप में गढ़वाली लोकगीत और नृत्य ने समां बांधा रूपकुंड सांस्कृतिक कला मंच के कलाकारों ने 'गढ़वाली लोकगीत' कार्यक्रम में उत्तराखंडी संस्कृति की झालक पेश की। कार्यक्रम का उद्घाटन एडीश्नल कमिश्नर वाणिज्य कर कृष्णकांत वैदिक ने किया। उनके साथ एडीश्नल कमिश्नर ओपी रतूड़ी भी मौजूद रहे। सबसे पहले महावीर, मनोज, सुरेन्द्र कमांडो, मोहन पंवार, अनीता, रेखा और मुन्नी ने 'ऋषि नृत्य' स्वागत गान पेश किया। इसके बाद नंदराजजात की झाांकी पेश की गयी। सुरेन्द्र कमांडों ने नुक्कड़ों पर होने चर्चाओं पर आधारित हास्य नोटिका पेश की तो दर्शक लोटपोट हो गये। मनोज प्रभाकर, रेवा आदि ने 'धनिया को बीज......' लोकगीत पर नृत्य पेश कर समां बांधा तो मोहन पंवार ने पशु-पक्षियों की आवाज से दर्शकों का आश्चर्य चकित कर दिया। गोपाल राम एंड मोहन पार्टी द्वारा गोलू देवता, भैरव और गणदेव आदि पर आधारित कार्यक्रम भी दर्शकों को पसंद आया। मनोज एंड पार्टी ने गढ़वाली लोकनृत्य पेश किया। पंचनाम देवताओं का नाच भी दर्शकों को पसंद आया।

Wednesday 22 April 2009

म्यार पहाड़-

मेरा पहाड़ लेकिन ऐसा कहने से ये सिर्फ मेरा होकर नही रह जाता ये तो सबका है वैसे ही जैसे मेरा भारत हर भारतवासी का भारत। खैर पहाड़ को आज दो अलग-अलग दृष्टियों से देखने की कोशिश करते हैं एक कल्पना के लोक में और दूसरा सच्चाई के धरातल में। जिनकी नई-नई शादिया होती हैं हनीमून के लिए उनमें ज्यादातर की पहली पसंद या दूसरी पसंद होती है कोई हिल स्टेशन। बच्चों की गरमियों की छुट्टी होती है उनकी भी पहली या दूसरी पसंद होता है कोई हिल स्टेशन अब बूढे़ हो चले है धरम्-करम् करने मन हो चला है तो भी याद आता है म्यार पहाड़ चार धाम की यात्रा के लिए। पहाड़ की खूबसूरती होती ही ऐसी है जो किसी को भी बरबस अपनी तरफ आकर्षित कर ले। कलकल बहती नदियां झरझर गिरते झरने, चीड़ वन से आती बयार, बाज-काफल के हरे-भरे जंगलों से कोयल की मीठी-मीठी कुहू-कुहू एवं घूघतियां की घुरू-घुरू यहां के वातावरण को लय प्रदान करती हैं तो शीतल बयार से वल्लरियों का झूमना हर मोड़ पर सरिता जल का लचकना आदि ताल देती है! वे ऊची-ऊची पहाड़िया सर्दियों में बर्फ से ढकी वादिया पहाड़ों को चूमने को बेताब दखिते बादल मदमस्त किसी अल्हड़ सी भागती पहाड़ी नदिया साप की तरह भागती हुई दिखाई देती सड़कें, कहीं दिखाई देते वो सीढ़ीनुमा खेत तो कहीं दिल को दहला देने वाली घाटिया जाड़ों की गुनगुनी धूप और गर्मियों की शीतलता। शायद यही सब है जो लोगों को अपनी ओर खींचता है, बरबस उन्हें आकर्षित करता है अपने तरफ आने को। लेकिन पहाड़ में रहने वालों के लिए एक पहाड़ी के लिए ये शायद रोज की ही बात हो। मेरा पहाड़ से क्या रिश्ता है ये बताना मैं आवश्यक नही मानता पर पहाड़ मेरे लिए मा का आचल है मिट्टी की सौधी महक है, हिसालू मे टूटे मनके है काफल को नमक-तेल में मिला कर बना स्वादिष्ट पदार्थ है। किलमोड़ी और घिघारू के स्वादिष्ट जंगली फल है, भट की चुणकाणी है घौत की दाल है मूली-दही डाल के साना हुआ नीबू है बेड़ू पाको बारामासा है मडुवे की रोटी है, मादिरा का भात है घट का पिसा हुआ आटा है ढिटालू की बंदूक है पालक का कापा है दाणिम की चटनी है। मैं पहाड़ को किसी कवि की आखों से नयी-नवेली दुल्हन की तरह भी देखता हू जहा चीड़ और देवदार के वनों के बीच सर-सर सरकती हुई हवा कानों मं फुसफुसा कर ना जाने क्या कह जाती है और एक चिन्तित और संवेदनशील व्यक्ति की तरह भी जो जनजंगल जमीन की लड़ाई के लिए देह को ढाल बनाकर लड़ रहा हैलेकिन मैं नही देख पाता हू पहाड़ को तो...........डिजिटल कैमरा लटकाये पर्यटकों की भाति जो हर खूबसूरत दृश्य को अपने कैमरे में कैद कर अपने दोस्तों के साथ बाटने पर अपने को तीस-मारखा समझने लगता है। पहाड़ शवि की जटा से निकली हुई गंगा हैकालिदास का अट्टाहास है पहाड़ सत्य का प्रतीक है, जीवन का साश्वत सत्य है। कठिन परिस्थितियों मं भी हॅस-हॅस कर जीने की कला सीखने वाली पाठशाला है गाड़ गध्यारों और नौले का शीतलनिर्मल जल है, तिमिल के पेड़ की छाह है बाज और बुरांस का जंगल है आदमखोर लकड़बघ्घों की कर्मभूमि है। मिट्टी में लिपटे सिगणे के लिपोड़े को कमीज की बांह से पोछते नौनिहालों की क्रीड़ा स्थली है। गोबर की डलिया सर में ले जाती महिला की दिनचर्या है। पिरूल सारती, ऊंचे-ऊंचे भ्योलों में घास काटती औरत का जीवन है। कैसे भूल सकता है कोई ऐसे पहाड़ को, पहाड़ तूने ही तो दी थी मुझे कठोर होकर जीवन की आपाधापियों से लड़ने की शिक्षा। कैसे भूल सकता हे मैं असोज के महीने में सिर पर घास के गट्ठर का ढोना असोज में बारिश की तनिक आशंका से सूखी घास को सार के फटाफट लूटे का बनाना फटी एड़ियों को किसी क्रीम से नही बल्कि तेल की बत्ती से डामना फिर वैसलीन नही बल्कि मोम-तेल से उन चीरों को भरना, लीसे के छिलुके से सुबह-सुबह चूल्हे का जलाना, जाड़े के दिनों में सगड़ में गुपटाले लगा के आग का तापना, “भड्डू” में पकी दाल के निराले स्वाद को पहचानना, तू शिकायत कर सकता है पहाड़............कि भाग गया मैं परवासी हो गया, भूल गया मैं .................लेकिन तुझे क्या मालूम अभी भी मुझे इच्छा होती है “गरमपानी” के आलू के गुटके और रायता खाने की अभी भी होली में सुनता हू तारी मास्साब की वो होली वाली कैसेट............अभी भी दशहरे में याद आते हैं सीता का स्वयंबर अंगद रावण संवाद”...................लक्ष्मण की शक्ति अभी भी ढूंढता हू एंपण से सजे दरवाजे और घर के मन्दिर अभी भी त्योहार में बनते हैं घर में पुए बड़े कहा भूल पाऊंगा मैं वो बाल मिठाई और सिगौड़ी मामू की दुकान के छोले और जग्गन की कैन्टीन के बिस्कुट। तेरे को लगता होगा ना कि मैं भी पारखाऊ के बड़बाज्यू की तरह गप मारने लगा लेकिन सच कहता हू यार अभी भी जन्यू-पुन्यू में जनेऊ बदलता हू चैत में भिटौली भेजता हू घुघतिया उत्रायणी में विशेष रूप से नहाता हे (हा काले कव्वा काले कव्वा कहने में शर्म आती है, झूठ क्यों बोलू) तेरी भौजी मुझे पिछौड़े और नथ में ही ज्यादा अच्छी लगती है। यहा प्रदेश में शकुनाखर तो नही होता पर जोशी ज्यू को बुला कर दक्षिणा दे ही देता हू तू तो मेरा दगड़िया रहा ठहरा, अब तेरे को ना बोलू तो किसे बोलू तू बुरा तो नही मानेगा ना। मैं आऊगा तेरे पास, गोलू जी के थान पूजा दूगा....नारियल घंटा चढ़ाऊगा.....बाहर से जरूर बदल गया हू पर अंदर से अभी भी वैसा ही हू रे....तू फिर्क मत करना हा.... ये भावनायें हर उस पहाड़ी की है जिसके रोम-रोम में पहाड़ रचा-बसा है और ये नराई अकेले की नराई नही है ये उन सब पहाड़ियों की नराई है जो पहाड़ से बहुत दूर चले आये हैं। अपने पहाड़ में एक कहावत है पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ में नही रूकती। ये सिर्फ एक कहावत नही पहाड़ का सच है, क्योंकि पानी नदियों के रास्ते नीचे मैदानों में चला जाता है और जवानी यानिकि नवयुवक और नवयुवतिया रोजगार की तलाश में पहाड़ से दूर चले जाते हैं। पहाड़ से दूर-दराज गावों में तो हालात और भी चिंताजनक है और यह तब है जब हमें आजादी मिले लगभग 60 साल तो हो ही गये हैं। इन गावों से ज्यादातर युवक भारतीय सेनाओं में भर्ती होकर चले जाते हैं रह जाती हैं महिलायें बच्चे और बूढे़। पहाड़ी शहरों में भी ऐसे कोई उद्योग-धन्धे नही जो युवाओं को रोक सके, जिन्दगी की सच्चाई के सामने पहाड़ का प्यार ज्यादा दिनों तक टिक नही पाता। लेकिन दूर जाने पर भी एक पहले प्यार की तरह यह प्यार आखिरी वक्त तक दिल में बसा रहता है। यहा प्यार उन लोगों से दूर जाने के बाद भी पहाड़ के लिए कुछ न कुछ करवाता रहता है और पहाड़ इस आस में खामोश खड़ा इंतजार करता रहता है अपने बच्चों का शायद एक दिन कही तो वापस लौटे और मुझे ना पा कही फिर से वापस ना चले जायें। पहाड़ों में शायद यही आवाज अब भी गूजती रहती है वादिया मेरा दामनरास्ते मेरी बाहें जाओ मेरे सिवा तुम कहा जाओगे। अगर आप अभी तक कभी म्यार पहाड़ में नही आये तो आओ और थोड़ा सा मेरे पहाड़ का ठंडा पानी तो कम से कम पी लो। खुद ही आपके मन से निकलने लगेगा............. धन मेरो पहाड़ा मैं तेरी बलाई लियोना जन्मा-जन्मा मैं तेरी सेवा में रूना।। महेन्द्र सिंह गैलाकोटी संगठन मंत्री उत्तराचल स्वर-संगम लखनऊ फोन- 09235838619

हौसले और जज्बे को सलाम

दून के स्लम्स में रहने वाले बच्चों ने. कूड़ा बीनने वाले ये बच्चे कब प्राइमरी बोर्ड के टॉपर बन गए किसी को पता ही नहीं चला. कूड़ा बीनते-बीनते इनकी मैथ और इंगलिश में कब इतनी पकड़ बन गई कि इन्होंने बोर्ड के एग्जाम में 99 परसेंट नंबर गेन किए किसी को पता भी नहीं चला. स्लम्स की लाइफ से ऊपर कहते हैं विजडम या टैलेंट किसी ग्रुप विशेष की पहचान नहीं होती, यह किसी में भी हो सकता है. चाहे वह हाई-फाई सोसाइटी का हो या फिर स्लम्स की गंदगी में जीने वाले बच्चे. इसी को सच कर दिखाया है दून के स्लम्स में रहने वाले बच्चों ने. कूड़ा बीनने वाले ये बच्चे कब प्राइमरी बोर्ड के टॉपर बन गए किसी को पता ही नहीं चला. कूड़ा बीनते-बीनते इनकी मैथ और इंगलिश में कब इतनी पकड़ बन गई कि इन्होंने बोर्ड के एग्जाम में 99 परसेंट नंबर गेन किए किसी को पता भी नहीं चला. स्लम्स की लाइफ से ऊपर जैसे ही स्लम एरिया में घुसते हैं सामने से बच्चों की आवाज आती है कि भइया क्या आपको पुड़िया लेनी है? छोटे-छोटे बच्चों में भी नशे की लत इस कदर हावी है कि कोई सोच भी नहीं सकता. लेकिन रंजीता और रोमा नाम की इन दो बच्चियों ने ऐसा कारनामा किया है कि कोई भी वाह किए बिना नहीं रह सकता. जी हां इन दोनों ने प्राइमरी बोर्ड में पूरे दून में टॉप किया है. बांड फाउंडेशन सोसाइटी ने इन बच्चों को ऐसा तराशा कि आज उन्होंने अपने मां-बाप और पूरे स्लम्स का नाम ऊंचा कर दिया. Math, english पर मजबूत पकड़ इन दोनों बच्चियों की मैथ और इंगलिश में इतनी अच्छी पकड़ है कि देखकर हैरान हो जाएं. बांड फाउंडेशन सोसाइटी की फाउंडर श्रावणी सरकार का कहना है कि इन दोनों बच्चियों को जो भी काम दिया जाता है, वह चुटकियों में पूरा कर देती हैं. उन्होंने बताया कि रोमा ने इंगलिश में 99 परसेंट तो रंजीता ने मैथ में 87 परसेंट मा‌र्क्स गेन कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. पेरेंट्स करते हैं मजदूरी इन दोनों बच्चियों के पेरेंट्स मजदूरी कर अपने बच्चों का पेट पालते हैं. रोमा के पिता सुरेश मजदूरी करते हैं तो माता कला देवी सिलाई कर घर का गुजारा चलाती हैं. वहीं रंजीता के पिता बुद्धन और माता रजिया देवी भी मेहनत मजदूरी कर घर का खर्च चलाते हैं. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके बच्चे एक दिन उनका नाम रोशन करेंगे. बनना चाहती हैं रोल मॉडल दोनों बच्चियों में कुछ करने का ऐसा जज्बा है कि दोनों ही महिलाओं और पूरे स्लम्स के बच्चों के लिए रोल मॉडल बनना चाहती हैं. रंजीता का कहना है कि वह कुछ ऐसा करना चाहती हैं कि लोग उनके नाम को याद रखें. रोमा का भी कुछ ऐसा ही सपना है कि वह एक दिन कुछ ऐसा कर जाए कि पूरी दुनिया उनकी वाह-वाह करे.

उत्तराखँड में विकसित हो मनोरंजन उद्योग : यतीन्द्र

कोटद्वार- कई लोकप्रिय सीरियलों का सफल निर्देशन कर चुके यतींद्र रावत ने उत्तराखँड के ख्यातिप्राप्त कलाकारों की कमेटी बनाकरयहां मनोरंजन उद्योग विकसित किए जाने पर जोर दिया है। मूलरूप से संगलाकोटी क्षेत्र के ग्राम गुडिंडा निवासी यतींद्र रावत शक्तिमान, दीवार, युग, तलाक क्यों?, मर्यादा, सौतेला, हमारी बहू तुलसी, चांद के पार चलो, सौतन, साजन आदि कई सीरियलों में निर्देशन कर रजतपट पर अपना लोहा मनवा चुके हैं। यहां एक मुलाकात में उन्होंने कहा कि कला हर व्यक्तित में मौलिक रूप से होती है। जरूरत है कि वातावरण तैयार कर उसे निखारा जाए। कमजोर पारिवारिक पृष्ठभूमि के बावजूद मायावी नगरी में अपने पैर जमाने के पीछे उन्होंने दृढ़ संकल्प शक्ति बताया। कहा कि में कलाकारों के प्रोत्साहन के लिए मनोरंजन कर में कटौती के साथ ही फिल्म व सीरियल निर्माण के लिए स4िसडी की व्यवस्था की जानी चाहिए। इस मौके पर सहारा-वन पर चल रहे सीरियल घर एक सपना के निर्देशक प्रभात रावत, रंगकर्मी विजेंद्र चौधरी आदि भी मौजूद थे।

गणतंत्र दिवस परेड में अब उत्तराखंड एनसीसी का भी अपना बैंड का बैड़ होगा

स्कूल घोड़ाखाल के बैंड के प्रस्ताव को मिली स्वीकृति

एनसीसी का भी अपना बैंड होगा। सैनिक स्कूल घोड़ाखाल का बैंड गणतंत्र दिवस परेड में एनसीसी के बैंड के तौर पर भूमिका के अपर महानिदेशक ने इसके लिए अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है। इसके साथ ही उन्होंने उत्तराखंड एनसीसी को देश के छह सर्वश्रेष्ठ एनसीसी बटालियनों में से एक करार दिया।एनसीसी महानिदेशालय के अपर महानिदेशक मेजर जनरल अशोक सिन्हा ने अपने एक दिवसीय निरीक्षण दौरे के दौरान उत्तराखंड एनसीसी को खुद के बैंड की सौगात दी है। उन्होंने सैनिक स्कूल घोड़ाखाल के बैंड को उत्तराखंड एनसीसी के बैंड के तौर पर इस्तेमाल किए जाने के उत्तराखंड एनसीसी निदेशालय के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान कर दी है। उत्तराखंड एनसीसी को देश के सर्वश्रेष्ठ छह एनसीसी बटालियनों में से एक करार देते हुए उन्होंने कहा कि इतनी कमियों के बावजूद इतनी उपल4िध पाना काबिले तारीफ है। लेकिन उत्तराखंड सरकार को इसकी बेहतरी के लिए कुछ कदम उठाने चाहिए। उत्तराखंड एनसीसी में कैडेटों की स्ट्रेंथ इतनी बढ़ गई है कि इसे अपग्रेड करके बटालियन बना दिया जाना चाहिए लेकिन जमीन की अनुपल4धता के कारण स्टॉफ नहीं बढ़ाया जा पा रहा है। यहां की कंपनी पर इतना भार है कि कैडेटों की पर्याप्त ट्रेनिंग देने में दि1कत पेश आ रही है। इसलिए वो प्रदेश सरकार निदेशालय और हैंगर बनाने के लिए जमीन देने की मांग करते हैं। इससे पंतनगर एयर विंग में कैडेटों को हवाई ट्रेनिंग भी दी जा सकती है। मेजर जनरल सिन्हा ने कहा कि एनसीसी कैडेट उत्तराखंड जैसे प्रदेश के लिए काफी सहायक सिद्ध हो सकते हैं, 1योंकि इस प्रदेश में प्राकृतिक आपदा के साथ अन्य तरह की घटनाएं ज्यादा घटित होती हैं। ऐसे में प्रशिक्षित एनसीसी कैडेट काफी बेहतर ढंग से काम कर सकते हैं। इस मौके पर एनसीसी निदेशालय उत्तराखंड के उप महानिदेशक ब्रिगेडियर पीपीएस पाहवा, गल्र्स बटालियन के कर्नल एके गुप्ता समेत बटालियन के सभी अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित थे। इसके पूर्व लक्ष्मी रोड स्थित ११ यूके गल्र्स बटालियन एनसीसी पहुंचने पर कैडेटों ने सलामी दी।

गब्बर सिंह को अपनों ने ही भुलायारितलिंग परेड को नहीं पहुंची गढ़वाल राइफल्स

चंबा। प्रथम विश्व युद्ध के नायक रहे विक्टोरिया क्रॉस विजेता गब्बर सिंह को गढ़वाल राइफल के जवान हर वर्ष उनके स्मारक पर आकर रितलिंग परेड देकर उनका स6मान बढ़ाने के साथ ही उनके संघर्षों को याद करते आए थे। लेकिन इस बार गढ़वाल राइफल द्वारा यह परंपरा भी नहीं निभाई गई। २१ अप्रैल १८९५ को चंबा के मज्यूड़ गांव में जन्मे इस रणबांकुरे ने प्रथम विश्व युद्ध में जर्मन सेना के जिस दुर्ग को ब्रिटिश सेना नहीं भेद पाई उस पर अपनी युद्ध कौशलता से क4जा दिला दिया था। मरणोंपरांत उन्हें ब्रिटिश सेना के सर्वोच्च वि1टोरिया क्रॉस मेडल से नवाजा गया। तब से २१ अप्रैल को उनके चंबा स्थित स्मारक पर गढ़वाल राइफल द्वारा रेतलिंग परेड कर उन्हें सलामी दी जाती रही है। लेकिन इस बार सेना से कोई भी उन्हें याद करने नहीं पहुंचा। जिस पर लोगों ने काफी नाराजगी व्य1त की।वीसी ग4बर सिंह मेले में उमड़े लोगचंबा। वि1टोरिया क्रॉस विजेता वीसी ग4बर सिंह नेगी की याद में हर वर्ष लगने वाले मेले में लोगों की खूब भीड़ रही। सुबह से ही गांवों से बच्चे और महिलाएं बड़ी उत्सुकता के साथ मेले में पहुंचने लगे थे। गढ़वाल राइफल का नाम विश्वभर में रोशन करने वाले ग4बर सिंह की कुर्बानी को याद करते हुए क्षेेत्र के लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए उनके संघर्षों को याद किया। उनकी याद में यहां लगने वाले मेले में खूब भी़ड रही। महिलाओं और बच्चों ने खरीदारी की। वीसी ग4बर सिंह चौक से लेकर मसूरी रोड, गुल्डी रोड, गजा रोड और पुरानी टिहरी रोड मेलार्थियों के हुजूम से खचाखच 5ारी रही।

Tuesday 21 April 2009

JOBS – IND UTTARAKHAND STATE INFRASTRUCTURE DEVLOPMENT LTD- DEHRADUN -

चुनाव लडऩे को रच डाला बेटे के अपहरण का ड्रामा

-रुपयों के इंतजाम के फेर में नेताजी पहुंचे सीखचों के पीछे- खुद को राष्ट्रवादी जनता पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बताया आरोपी ने- कोटद्वार, जागरण कार्यालय: पार्लियामेंट की सीढिय़ां चढऩे का ख्वाब संजोना एक नेताजी को महंगा पड़ गया। चुनाव लडऩे के लिए नेताजी ने रुपये की व्यवस्था के लिए जाल तो बुना, लेकिन वह उल्टा पड़ गया और वह खुद ही इसमें उलझाकर रह गए। नतीजतन, नेताजी लोकसभा तो नहीं, जेल जरूर पहुंच गए हैं। पौड़ी गढ़वाल जिले के रिखणीखाल प्रखंड के सिद्धपुर के ग्राम मेलपुर के रहने वाले इन नेताजी का नाम है जानकी प्रसाद उनियाल। खुद को राष्ट्रवादी जनता पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बताने वाले नेताजी लोकसभा में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने की चाहत पाले हुए थे, लेकिन चुनाव लडऩे के लिए आर्थिक कमजोरी आड़े आ रही थी। इस कमी को पूरा करने के लिए नेताजी ने अपने ही बेटे के अपहरण का ड्रामा रच डाला, लेकिन पासा उल्टा पड़ गया और नेताजी का सपना टूट गया। अब नजर डालते हैं घटनाक्रम पर, आठ अप्रैल को रिखणीखाल प्रखंड के ग्राम मेलपुर निवासी जानकी ने पुलिस को फोन पर सूचित किया कि वह राष्ट्रवादी जनता पार्टी से गढ़वाल संसदीय सीट से प्रत्याशी है और उसकी पत्नी व बारह वर्षीय पुत्र का एक पूर्व प्रधान ने हत्या की नीयत से अपहरण कर लिया है। चुनावी मौसम और प्रत्याशी से जुड़ी बात होने के कारण पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया। पुलिस ने मौखिक सूचना के आधार पर ही पूर्व प्रधान के खिलाफ अपहरण का मुकदमा पंजीकृत कर लिया। विवेचना आगे बढऩे पर पता चला कि जानकी की पत्नी बच्चे के साथ अपनी ननद के पास ग्राम बड़खेत में है। पुलिस ने ग्राम बड़खेत से दोनों को बरामद भी कर लिया। पूछताछ में महिला ने बताया कि उसके पति ने महिला मंगल दल से पंद्रह हजार रुपये चुनाव लडऩे के लिए लाने भेजा था। साथ ही रुपये न लाने पर जान से मारने की धमकी भी दी। महिला मंगल दल से रुपये न मिलने के बाद उसने ननद के पास जाने का फैसला कर लिया और अपनी सास को भी वहीं बुला लिया। दूसरी ओर, अपहरण के आरोपी पूर्व प्रधान मोहनलाल ने बताया कि जानकी ने उससे चुनाव लडऩे के लिए 25 हजार रुपये वसूलने का प्रयास किया। मना करने पर उसे जान से मारने, झाूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी दी। जांच के बाद मामला साफ होने पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर जानकी को गिरफ्तार कर लिया।

कई मैदानों पर एक ही 'खेल'

कई मैदानों पर एक ही 'खेल'चुनाव में उतरे खेल संघों से जुड़े कांग्रेस, भाजपा, बसपा व यूकेडी के नेता

, देहरादून राजनीतिक दलों के नेता केवल चुनाव ही नहीं, कई मैदानों पर खेल रहे हैैं। कोई तीरंदाजी को आगे बढ़ा रहा है तो कोई हाकी की बागडोर संभाले है। राफ्टिंग, निशानेबाजी, फुटबाल, वेट लिफ्टिंग व बाडी बिल्डिंग समेत अनेक एसोसिएशनों के फलक पर नेता चमक बिखेर रहे हैैं। क्रिकेट पर कब्जे को लेकर नेताओं में होड़ है। यह खेल ही ऐसा है, जिसमें नाम, काम व दाम का जलवा है। अब चुनाव का मौसम है तो ऐसे में खेल संघों की प्रतिबद्धता भी किसी न किसी पाले में झाुक गई है। राजनीति का खेल हो या खेल की राजनीति, दोनों में ही सियासी दलों से जुड़े नेता व कार्यकर्ता अपनी क्षमता का लोहा मनवा रहे हैैं। खूबसूरती देखिए कि खिलाड़ी राजनीतिक दलों में शामिल होकर जनता की सेवा को बेताब हैैं तो नेता मैदान कब्जाने को बेचैन हैं। अब मल्टीपल टेस्ट का दौर है और ऐसे में देश की सियासत और खेलों को लेकर जो कुछ हो रहा है, उसके पीछे आठ वर्ष की आयु का यह छोटा प्रदेश तेजी से भाग रहा है। राज्य में विभिन्न खेलों की 34 एसोसिएशन पंजीकृत हैैं। अधिकतर में राजनीतिक दलों से जुड़े नेताओं की संख्या ठीकठाक है। सांसद, विधायक, मंत्री व पूर्व मंत्री इन संघों की शान बने हैैं। भाजपा, कांग्रेस, बसपा व उक्रांद के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं का संघों में खासा निर्णायक दखल है। अधिकतर एसोसिएशन ऐसी हैैं, जहां नेता व अफसर ऊंचे तथा खेल की बारीकी जानने वाले निचले पायदान पर हैैं। नेताओं की मुहिम को आगे बढ़ाने में उनका सहयोग बड़ी संख्या में आईएएस, आईपीएस, सेना के सेवानिवृत्त अफसर व खेल की राजनीति के धुरंधर कर रहे हैैं। कुल मिलाकर खेल संघों का जो चित्र उभर रहा है, उसमें नेताओं व अफसरों की जुगलबंदी ही अधिक है। खिलाड़ी तो तभी याद आते हैैं, जब खेल से संबंधित तकनीकी पेच को हल करना हो। अब बात क्रिकेट की। क्रिकेट को लेकर वजूद में आए संघों के बीच उत्तराखंड पालिटिकल लीग (यूपीएल) जारी है। तीनों संघ इस बात को लेकर एक दूसरे पर बाउंसर फेंक रहे हैैं कि वे ही क्रिकेट की राजनीति समझाते हैैं। क्रिकेट, राजनीति व ग्लैमर का रिश्ता ही ऐसा बन गया है कि नेता किसी भी हालत में उस पर कब्जा करना चाहते हैैं। क्रिकेट के लिए राज्य में कुछ हुआ हो या नहीं पर राजनीति खूब हुई। भाजपा और कांग्रेस के नेता इस खेल में महारथी की भूमिका में है, जबकि खिलाड़ी उनके सारथी बने हैैं। आठ वर्ष में क्रिकेट को बीसीसीआई से नहीं जोड़ पाए। क्रिकेट भले ही हार रहा हो पर नेता जीत का जश्न मनाने में जुटे हैैं। अब खेल संघों की सेवा के बदले मेवा हासिल करने का मौका आ गया है। विभिन्न खेल संघों से जुड़े केसी सिंह बाबा(कांग्रेस), जसपाल राणा(भाजपा), नारायण पाल(बसपा) व शैलेश गुलेरी(उक्रांद) चुनाव मैदान में हैैं। जाहिर है कि खेल संघों से जुड़े लोगों उनके इर्द-गिर्द भी हैैं। इसके साथ ही राजनीतिक दलों के नेताओं व कार्यकर्ताओं की एक लंबी फेहरिस्त है। इनमें से कई स्टार प्रचारक भी हैैं। राजनीतिक दलों का प्रभाव ही है कि खेल संघों का झाुकाव भी किसी ने किसी ओर बन गया है। ऐसे में खेल की राजनीति धीरे-धीरे परवान चढ़ती जा रही है।

जल, जंगल, जमीन बने चुनाव का मुख्य मुद्दा

उत्तराखंड नदी बचाओ आंदोलन ने जारी किया जन घोषणापत्रदेहरादून, : चुनाव के इस मौसम में भले ही सियासी दल और प्रत्याशी वोटरों को रिझााने के लिए उन मुद्दों को उछाल रहे हों, जिनसे उनके वोटों में इजाफा होगा, लेकिन पर्यावरणप्रेमी भी मौके की नजाकत भांप नसीहत दे रहे हैं कि पर्यावरण से जुड़े मसले भी चुनाव के मुद्दे बनने चाहिए। पर्यावरणरणविद सुंदर लाल बहुगुणा के बाद अब उत्तराखंड नदी बचाओ आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं ने यह आवाज बुलंद की है। उत्तराखंड नदी बचाओ आंदोलन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि जल, जंगल और जमीन पर जनता काअधिकार चुनाव का मुख्य मुद्दा बनना चाहिए। सोमवार को इन कार्यकर्ताओं ने जनता व सियासी दलों को जागरूक करने की पहल की और जन घोषणा पत्र जारी किया। गांधी पार्क में आयोजित कार्यक्रम में नदी बचाओ आंदोलन के सुरेश भाई ने कहा कि यह घोषणा पत्र टोलियों के जरिए गांव-गांव पहुंचाया जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रदेश के सभी प्रमुख दल जनता के मुद्दों पर गंभीर नहीं हैं। पिछले दिनों उन्होंने नदियों के मुद्दे को लेकर सभी सियासी दलों के विधायकों से संपर्क कर उन्हें इन मुद्दों पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया था, मगर उसमें महज एक विधायक शामिल हुए। उन्होंने कहा कि जल, जंगल और जमीन पर जनता का अधिकार होना चाहिए। सरकार को कोई भी बड़ी परियोजना बनाने से पहले स्थानीय जनता की राय लेनी चाहिए। प्रदेश में 200 बांध बन रहे हैं, लेकिन प्रभावित लोगों के पुनर्वास व रोजगार नीति पर बात नहीं हो रही। बदलता पर्यावरण भी जल संकट खड़ा कर रहा है। सरकार को पारंपरिक जल स्रोत संरक्षित करते हुए प्रकृति से सामंजस्य बिठाती एक हिमालय नीति बनानी चाहिए। जनकवि अतुल शर्मा ने कहा कि यह घोषणा पत्र इसलिए जारी किया गया क्योंकि जल, जंगल और जमीन सियासी दलों की चिंता में शामिल नहीं। हमने लोक सभा चुनाव के लिए 'हमारा वोट, हमारी मर्जी, हमारा गांव हम सरकार, गांव में लाओ ग्रामस्वराज' का नारा भी दिया है, ताकि देश में सच्चा लोकतंत्र स्थापित हो। स्वाधीनता सेनानी रमा शर्मा ने घोषणा पत्र को मतदाताओं को असली मुद्दों पर सोचने के लिए जागरूक करने की महत्वपूर्ण पहल बताया। इस मौके पर प्रेम पंचोली आदि भी मौजूद थे।

मां पूर्णागिरि धाम के अस्तित्व पर संकट के बादल

= भूगर्भ वैज्ञानिकों ने दिए संकेत = सुरक्षा को लेकर शासन प्रशासन गंभीर = फरवरी में आ गई थी मुख्य मंदिर में दरार

,टनकपुर: देश के सुविख्यात मां पूर्णागिरि धाम के नीचे चट्टान में आई दरार से धाम के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। भू-गर्भ वैज्ञानिकों ने मंदिर व इसके आसपास अधिक दबाव पढऩे से खतरे के संकेत दिए हैं। शासन-प्रशासन चट्टान में आई दरार को पाटने के लिए खासा गंभीर नजर आ रहा है। चम्पावत जिले के मैदानी क्षेत्र टनकपुर से 21 किमी दूर मां पूर्णागिरि का धाम है। इस धाम में प्रतिवर्ष पचास लाख से भी अधिक श्रद्धालु शीश नवाने आते है। पिछले कुछ समय से मुख्य मंदिर के ठीक नीचे चट्टान में दरार आने से मंदिर को खतरा पैदा हो गया है। जिससे श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर सवालिया निशान लग रहे हैं। पर्यटन मंत्री प्रकाश पंत के निर्देश पर चट्टान में आई दरार की वजह को तलाशने के लिए इसी वर्ष 25 फरवरी को आईआईटी रूड़की से आए भूगर्भीय वैज्ञानिक एनब्लादन ने मुख्यमंदिर की पहाड़ी में आई दरार का सर्वे किया था। प्रशासन को सौंपी रिपोर्ट में उन्होंने मंदिर व उसके आसपास अधिक दबाव बढऩे पर खतरे के संकेत दिए। वहीं मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे के निर्देश पर पिछले माह 28 मार्च को देहरादून से आए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के अधीक्षण अभियंता नरेन्द्र सिंह, भूवैज्ञानिक मणिकणिका मिश्रा व लोक निर्माण विभाग के ईई विजय कुमार ने भी चट्टान में आई दरार का सर्वे किया था। इस टीम ने भी स्वीकारा कि चट्टान में अधिक भार देने से कभी भी खतरा पैदा हो सकता है। इन रिपोर्टों को गंभीरता से लेते हुए चम्पावत के जिलाधिकारी अवनेन्द्र नयाल ने पूर्णागिरि मेला शुरू होने से पूर्व में विभिन्न विभागों के अधिकारियों और धाम के पुजारियों की बैठक में स्पष्ट किया था कि मेले में भीड़भाड़ को देखते हुए मुख्य मंदिर से पचास मीटर नीचे बैरियर लगाकर एक बार में पांच से दस तीर्थ यात्रियों को ही दर्शन के लिए आने दिया जाएगा। वे तीर्थयात्री मंदिर के दर्शन पंाच फिट दूर से ही कर पाएंगे, लेकिन श्रद्धालुओं की लगातार भीड़भाड़ को देखते हुए इस आदेश का पालन मुख्य मंदिर में नही दिखाई दे रहा है। पूर्णागिरि मेले का संचालन करने वाले जिला पंचायत ने इस बार मेले की अवधि बारह मार्च से छह जून तक निर्धारित की है। इन दिनों देश के कोने से श्रद्घालु हर रोज मां पूर्णागिरि धाम के दर्शन को पहुंच रहे है। धाम पर दबाव पढऩे से खतरा बना हुआ है। मुख्य मंदिर के नीचे आने जाने वाली सीढिय़ों के संकरी होने से तथा नीचे गहरी खाई होने के कारण भगदड़ मचने की स्थिति में कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। डीएम श्री नयाल का कहना है कि बीते ढाई वर्षों से चट्टान में दरार का मामला प्रकाश में आया है। शासन व पर्यटन विभाग मंदिर के नीचे आई दरार को जोडऩे के लिए विशेष कार्य योजना बना रही हैं। उन्होंने कहा कि अगले मई माह से विशेषज्ञों की निगरानी में चट्टान में आई दरार को पाटने का काम शुरू किया जाएगा। डीएम ने कहा कि श्रद्घालुओं को धाम में सुव्यवस्थित तरीके से दर्शन कराए जा रहे है। जिससे चट्टान पर दबाव न पड़े। भूगर्भ वैज्ञानिक एनब्लादन कहते हैं कि चट्टान में दरार किन कारणों से आई है इसका अध्ययन किया जा रहा है और शीघ्र ही इसका खुलासा कर दिया जाएगा। अलबत्ता धाम के पुजारियों ने भी दरार को शीघ्र पाटने की मांग शासन प्रशासन से की है।

बद्री विशाल परंपरा हजारों साल पुरानी ऐतिहासिक परंपरा आज भी यथावत् जारी

दुनियाभर में मशहूर हजारों साल पुरानी उत्तराखंड की ऐतिहासिक और धार्मिक गाडू घडी तेल कलश शोभा यात्रा की अनोखी परंपरा आज भी परंपरागत तरीके से चल रही है। उत्तराखंड के टिहरी के नरेश के राजमहल नरेन्द्र नगर में इस कार्यक्रम की शुरूआत होती है1 सर्वप्रथम विश्व ख्याति प्राप्त बद्रीनाथ धाम के कपाट खोलने की तिथि राजमहल के राजा वर्तमान में मनुजेन्द्र शाह. द्वारा घोषित की जाती है । तिथि घोषित होने के बाद महारानी वर्तमान में माला राजलक्ष्मी. और राजमहल की कुंवारी राज कन्याओं द्वारा तिल का तेल निकालकर गाडू घडे में रखा जाता है ।इस गाडू घडेको सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित किया जाता है1 भगवान् बद्री विशाल के कपाट खुलने से सोलह दिन पहले बद्रीनाथ धाम के पुजारियों का एक जत्था उनके मूल गांव डिम्मर सिमली. से गाजे बाजे के साथ राजमहल..नरेन्द्र नगर .टिहरी. के लिये रवाना होता है । राजमहल पहुंचने पर पुजारियों का भव्य स्वागत एवं आदर सत्कार किया जाता है1 इस जत्थे की अगुवायी डिम्मर उमा पंचायत के अध्यक्ष करते हैं। इस तेल कलश शोभा यात्रा का प्रतिनिधित्व डिम्मर. उमा. रवि ग्राम. जोशीमठ. सिरतोली. पाखी. जयकण्डी. नाकोट. कोला डुंग्री. राइखो. मज्याणी तथा लंगासू से आये पुजारी करते हैं। तेल कलश यात्रा का प्रथम चरण टिहरी के राजदरबार नरेन्द्र नगर से शुरू होकर रिषिकेश. शिवपुरी. देवप्रयाग तथा कर्णप्रयाग होते हुए पुजारियों के मूलग्राम डिम्मर में समाप्त होता है1यहां पर स्थानीय पुजारी की देखरेखमें में नित्य पूजा एवं भाग के विधि..विधान के साथ चौरी नामक स्थान पर तेल कलश को श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ रखा जाता है1 यहीं पर 27 अप्रैल तक नित्य पूजा एवं भाग की परंपरा चलती है।गाडू घडी तेल कलश यात्रा के दूसरे चरण में 28 अप्रैल को डिम्मर कर्णप्रयाग. के लक्ष्मी नारायण एवं खाडू देवता के मंदिर से सुबह आठ बजे बद्रीनाथ धाम के लिये रवाना होती है1 दूसरे चरएण की यात्रा प्रारंभ होकर शिमली बाजार पहुंचने पर इसयात्रा का भव्य स्वागत एवं पूजा..अर्चना श्रृद्धालुओं द्वारा की जाती है। यहां पर से तेल कलश शोभा यात्रा कर्णप्रयागकालेश्वर. लंगासू. नंदप्रयाग में ठाणा. चमोली. विरही. पीपलकोटी. पाखी तथा टंगणों आदि स्थानों से होते हुए रात्रि विश्राम के लिये जोशीमठ के नृसिंह मंदिर में पहुंचती है । मार्ग में यात्रा को अल्प समय के लिये भक्तों के दर्शनार्थ रोका जाता है तथा रात में पूजा..अर्चना की जाती है । अगले दिन प्रात तेल कलश शोभा यात्रा श्री बद्रीनाथ जी के मुख्य पुजारी श्री रावल जी तथा शंकराचार्य की गद्दी पांडुकेशर के लिये रवाना होती है। पांडुकेशर में रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन 30 अप्रैल को सुबह तेल कलश. रावल जी. शंकराचार्य की गद्दी एवं उद्धव जी की डोली के साथ अपने अंतिम पड$ाव भगवान् बद्री विशाल जी के लिये रवाना हो जाती है । जहां पर भगवान् बद्री विशाल के कपाट खुलने तक रात भर पूजा-अर्चना की जाती है। अगले दिन भोर में भगवान् बद्रीनाथ जी के कपाट खुलने पर बद्रीनाथ जी के अभिषेक पर प्रतिदिन यह तिल का तेल उपयोग में लाया जाता है।

Monday 20 April 2009

खतरे में नैनीताल: दरक सकता है बलिया नाला!

-करोड़ों खर्च होने के बाद भी भू-स्खलन का खतरा आशंका: कई गांव की करीब 20 हजार आबादी आ सकती है खतरे की जद में -भाजपा विधायक ने शासन को लिखी चिट्ठी, आशंका जताई हल्द्वानी: बलिया नाला एक बार फिर नैनीताल के लिए खतरा बन गया है। नाले के आसपास पहाड़ों में पड़ी दरारें बढ़ती जा रही हैैं। साथ ही धीमी गति से भू-स्खलन भी हो रहा है। खतरा नजर भले ही न आ रहा हो मगर बरसात के समय तबाही मचा सकता है। भाजपा विधायक ने भी भयावह होती स्थिति से शासन को अवगत करा दिया है। नैनीताल की विश्व प्रसिद्ध झाील का लुत्फ उठाने देश ही नहीं बल्कि विश्वभर के लोग हर साल और हर समय आते हैैं। इस झाील में पानी संतुलन से अधिक न हो, इसके लिए बलिया नाला निकाला गया है। जो झाील से ब्रेबरी पुल तक है। यह नाला अंग्र्रेजों ने निकाला था। इस नाले में होकर झाील का पानी रानीबाग में आकर गौला नदी में मिलता है। चार साल पहले इस नाले को 15.56 करोड़ के प्रोजेक्ट से तैयार किया गया है। बावजूद इसमें भू-स्खलन की स्थिति बनी रहने से इसकी गुणवत्ता पर उंगलियां उठा रही है। सिंचाई विभाग के सूत्र बताते हैैं कि वीरभट्टी, कृष्णापुर, रहीश होटल का क्षेत्र, राजकीय इंटर कालेज और आलूखेत में पड़ी दरारें अभी तक ज्यों की त्यों हैैं। यह हाल गरमी के समय में है। यह हाल बढ़ती आबादी और आवागमन से बढ़ते बोझा से पैदा हो रही है। स्थिति से भाजपा विधायक खडग़ सिंह बोहरा ने भी शासन को अवगत करा दिया है। उन्होंने अपने पत्र में कहा है कि बलिया नाला नैनीताल की नींव है। उसमें करोड़ों खर्च के बावजूद भू-स्खलन की स्थिति बनी हुई है। नाले की तली और साइडें वीरभट्टी तक पक्की है। नाले की बुनियाद और उसके दोनों ओर की पहाडिय़ों का भारी कटाव व धसाव अभी भी हो रहा है, जो नैनीताल के लिए कभी खतरा बन सकता है। इस स्थिति को गंभीरता से लिए बिना अगर झाील संरक्षण योजना या फिर जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन के तहत कार्य कराये जा रहे हैैं, तो वह सभी कार्य व्यर्थ हैं। इधर, राज्य उद्यमिता विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष डा.रमेश पांडे ने फोन पर बताया कि आधा दर्जन इलाके खतरे में हैैं। इस बाबत तत्कालीन कांग्र्रेस सरकार में उन्होंने मुख्यमंत्री को लिखकर दिया था, जिसमें उन्होंने रोप-वे की तर्ज पर स्वीडन अथवा और कहीं विदेश के इंजीनियर बुलाकर मजबूती से काम कराने की मांग की गई थी। इंसेट:::::::::शासन ने मांगी डीपीआर हल्द्वानी: सिंचाई विभाग उत्तर परिक्षेत्र के मुख्य अभियंता एबी पाठक भी नाले की कमजोरी स्वीकारते हैैं। उनका कहना है कि झाील से लेकर करीब डेढ़ किमी तक नाले का तल कुछ साल पहले पक्का कर दिया था। बाकी हिस्सा कच्चा है। जहां पहाड़ कमजोर हैैं वहां भू-स्खलन की स्थिति से हालत चिंताजनक हो जाती है। विभाग पूरी नजर रखे हुए है। शासन ने भी बलिया नाले की डीपीआर मांगी है, इस पर जल्द अध्ययन कर रिपोर्ट भेजी जा रही है।