Friday 27 March 2009

देवभूमि के लाल, दिल्ली में कमाल

उत्तराखंड कहने को यूं तो पांच लोकसभा सीटों को सिमटाए छोटा सा प्रदेश है मगर इसी उत्तराखंड ने देश को ऐसे कई कद्दावर सियासी शख्सियत दी हैं जिन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका निभाई और निभा रहे हैं। दिलचस्प तथ्य यह है कि यह सिलसिला आजादी के बाद से ही आरंभ हो गया जो अब तक अनवरत जारी है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि गढ़वाल व कुमाऊं, दोनों ही क्षेत्र राष्ट्रीय राजनीति के दिग्गजों के लिहाज से उर्वर साबित हुए हैं। राष्ट्रीय राजनीति में उत्तराखंड को एक नई पहचान दिलाने में हेमवती नंदन बहुगुणा व नारायण दत्त तिवारी का नाम बेहिचक सबसे ऊपर लिया जा सकता है। उत्तराखंड में गढ़वाल व कुमाऊं का प्रतिनिधित्व करने वाले इन दो दिग्गजों में एक दिलचस्प समानता भी रही। वह यह कि दोनों दिग्गजों ने उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री पद और केंद्र में कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों का जिम्मा भी संभाला। हालांकि श्री बहुगुणा उत्तराखंड से केवल वर्ष 1980 (इसके बाद उप चुनाव भी) में पौड़ी गढ़वाल सीट से चुनाव लड़े और जीते लेकिन उनके पर्वतीय सरोकारों से हर कोई वाकिफ है। इसी तरह नारायण दत्त तिवारी ने 1980, 96 व 99 के आमचुनाव में नैनीताल सीट से जीत हासिल की। तीन बार उत्तर प्रदेश व एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद को संभाल चुके श्री तिवारी केंद्र सरकार में उद्योग, विदेश, वाणिज्य, वित्त जैसे अहम महकमों के मंत्री रहे हैं। वर्तमान में श्री तिवारी आंध्र प्रदेश के गवर्नर हैं। देश की पहली लोकसभा में महावीर त्यागी देहरादून डिस्टि्रक्ट कम बिजनौर डिस्टि्रक्ट (नार्थ वेस्ट) कम सहारनपुर डिस्टि्रक्ट(वेस्ट) और बाद में देहरादून सीट से सांसद बने। श्री त्यागी नेहरू मंत्रिमंडल के एक अहम सदस्य रहे। इसी तरह पहली लोकसभा से चौथी लोकसभा तक गढ़वाल सीट से निर्वाचित भक्तदर्शन ने केंद्र में शिक्षा मंत्रालय संभाला। आजादी के बाद पं गोविंद बल्लभ पंत की केंद्र में भूमिका को कौन भूल सकता है हालांकि वह कभी उत्तराखंड से सांसद नहीं रहे लेकिन उनके पुत्र केसी पंत साठ व सत्तर के दशक में नैनीताल सीट से तीन बार लोकसभा पहंुचे और कई अहम जिम्मेदारियां निभाई। इमरजेंसी के बाद वर्ष 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में बीएलडी के टिकट पर मुरली मनोहर जोशी ने अल्मोड़ा संसदीय सीट पर जीत दर्ज की। श्री जोशी बतौर केंद्रीय मंत्री मानव संसाधन विकास मंत्रालय जैसी अहम जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। वर्ष 1984 व 89 में टिहरी गढ़वाल सीट से लोकसभा तक पहुंचे ब्रह्मदत्त ने केंद्र में पेट्रोलियम मंत्रालय संभाला। उत्तराखंड के दिग्गजों की केंद्र में महत्वपूर्ण भूमिका की परंपरा को आगे बढ़ाया भुवन चंद्र खंडूड़ी, बची सिंह रावत और सतपाल महाराज ने। ये तीनों दिग्गज वर्तमान में भी सक्रिय राजनीति में अपनी भूमिका सुनिश्चित कर मैदान में डटे हैं। सेना में मेजर जनरल पद से अवकाश लेने के बाद श्री खंडूड़ी वर्ष 1991, 98, 99 और 2004 में पौड़ी गढ़वाल सीट से सांसद बने। वाजपेई सरकार में पहले राज्यमंत्री और फिर बतौर कैबिनेट मंत्री जरनल खंडूड़ी ने भूतल परिवहन सरीखे अहम मंत्रालय में अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी अंजाम दिया। यही वजह रही कि वर्ष 2007 में उत्तराखंड में सत्ता में आने के बाद उन्हें भाजपा ने सांसद होने के बावजूद उत्तराखंड में मुख्यमंत्री का पद सौंपा। पौड़ी गढ़वाल सीट से वर्ष 1996 में तिवारी कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने सतपाल महाराज ने भी अपने इसी कार्यकाल में बतौर केंद्रीय राज्यमंत्री रक्षा व रेल मंत्रालय की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन किया। अल्मोड़ा सीट से लगातार चार बार वर्ष 1996,98, 99 व 2004 में सांसद बने बची सिंह रावत भी वाजपेई सरकार में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय में राज्य मंत्री रहे।

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