Tuesday 31 March 2009

सरकारी कालेजों की परीक्षा निजी संस्थानों में

, हल्द्वानी: विवादों में रहना कुमाऊं विश्र्वविद्यालय की नियति बन गयी है। बीएड परीक्षा की तिथि घोषित हो गयी है। इसके साथ ही एक नया विवाद भी खड़ा हो गया है। अब एमबी पीजी कालेज में बीएड परीक्षार्थियों ने कुलपति व उच्च शिक्षा सचिव को पत्र भेजकर निजी कालेज में परीक्षा न कराने का अनुरोध किया है। कुमाऊं विश्र्वविद्यालय की ओर से संचालित बीएड-2007 की परीक्षा 11 अप्रैल से होनी है। मंडल में पांच कालेजों को परीक्षा केन्द्र बनाया गया है। इसमें एसएसजे परिसर अल्मोड़ा व राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय पिथौरागढ़ की परीक्षा एसएसजे परिसर अल्मोड़ा में, एमबी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय हल्द्वानी, जेएन कौल भीमताल, जय अरिहंत, लालबहादुर शास्त्री तकनीकी कालेज, हल्दूचौड़, इन्सपीरेशन कालेज काठगोदाम की परीक्षा आम्रपाली संस्थान में होगी। चन्द्रावती तिवारी कन्या महाविद्यालय काशीपुर, श्रीराम संस्थान काशीपुर और सल्ट संस्थान, सल्ट की परीक्षा श्रीराम संस्थान काशीपुर में होगी। देवभूमि संस्थान रुद्रपुर, द्रोण बीएड कालेज रुद्रपुर, सरस्वती संस्थान रुद्रपुर की परीक्षा सरस्वती संस्थान रुद्रपुर में होगी। देवभूमि संस्थान बनबसा, गुरुनानक डिग्री कालेज नानकमत्ता व डा. सुशीला तिवारी डिग्री कालेज सितारगंज की परीक्षा देवभूमि संस्थान बनबसा में आयोजित होगी। परीक्षायें 11 अप्रैल से शुरू होंगी और 25 अप्रैल तक होंगी। इधर एमबी पीजी कालेज के बीएड परीक्षार्थियों ने शहर से दूर परीक्षा केन्द्र बनाये जाने पर आपत्ति जाहिर की है। इसके लिये उन्होंने कुमाऊं विश्र्वविद्यालय के कुलपति और उच्च शिक्षा सचिव को पत्र भेजकर स्ववित्तपोषित केन्द्र में परीक्षा न कराये जाने की मांग की है। कुमाऊं विश्र्वविद्यालय के सहायक कुलसचिव पीएन पंत इस पर किसी भी तरह की टिप्पणी देने से इंकार कर दिया।

राज्य को रोशन करेगा खंदूखाल

श्रीनगर गढ़वाल: सब कुछ ठीक चला तो अगले कुछ सालों में श्रीनगर का खंदूखाल उत्तराखंड सहित देशभर को रोशन करने में बड़ी भूमिका निभाएगा। यहां लगभग दो सौ करोड़ की लागत से अलग-अलग क्षमताओं के तीन विद्युत स्टेशन शुरू करने की योजना है। अच्छी बात यह है कि इन पर कार्य शुरू भी किया जा चुका है। अधिकारियों की मानें, तो वर्ष 2011 तक यह क्षेत्र इलेक्टि्रसिटी हब के तौर पर पहचान बना लेगा। उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश के तौर पर विकसित करने के लिए विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग क्षमताओं वाली परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है। इनमें श्रीनगर में 330 मेगावाट, लाता तपोवन में 171 मेगावाट, बदरीनाथ में 140 मेगावाट, विष्णुगाड़ में 520 मेगावाट, पीपलकोटी में 444 मेगावाट, बावला (नंदप्रयाग) में 300 मेगावाट, लंगासू में 141 मेगावाट, देवसारी में 300 मेगावाट, रामबाड़ा में 76 मेगावाट, सिगनौली में 99 मेगावाट क्षमता की परियोजनाएं प्रस्तावित या निर्माणाधीन हैं। ऊर्जा निगम इन परियोजनाओं को लेकर तो उत्साहित है, लेकिन अब तक यहां से मिलने वाली बिजली की आपूर्ति की व्यवस्था न होना उसकी परेशानी का सबब बनी हुई थी। अब उसकी यह समस्या हल होने वाली है। निगम ने श्रीनगर के खंदूखाल को विद्युत आपूर्ति स्टेशन के लिए चुना है। जानकारी के मुताबिक यहां करीब 18 हेक्टेअर क्षेत्र में 180 करोड़ रुपये की लागत से विद्युत स्टेशन स्थापित करने की योजना है। 400, 200 और 132 केवी क्षमता के तीन स्टेशन यहां बनने हैं। इस बारे में अधिशासी अभियंता राजकुमार ने बताया कि जलविद्युत परियोजनाओं से मिलने वाली बिजली इसी विद्युत स्टेशन के माध्यम से नेशनल ग्रिड को भेजी जाएगी। इसके लिए खंदूखाल से काशीपुर तक 400 केवी विद्युत लाइन बिछाई जाएगी। उन्होंने बताया कि यहां से 12 प्रतिशत बिजली उत्तराखंड को नि:शुल्क मिलेगी, जबकि शेष बिजली नेशनल ग्रिड में जाएगी। उन्होंने बताया कि खंदूखाल में अभी लैंड डवलपमेंट कार्य चल रहा है। खंदूखाल के अलावा पीपलकोट, कर्णप्रयाग, तपोवन, घनसाली, कौडि़याला, सतपुली और शिमली में भी अलग-अलग क्षमताओं के स्टेशन बनाए जाने की योजना है।

दरकते पहाड़, खिसकते खेत और सिसकती जिंदगी।

यहां लोक ढो रहा तंत्र का बोझ उत्तरकाशी दरकते पहाड़, खिसकते खेत और सिसकती जिंदगी। यही है पहाड़ का सच। देश आजाद हुआ तो लगा अपना राज आ गया। देखते ही देखते साठ साल गुजर गए, लेकिन यह सिलसिला नहीं टूटा। इस बीच उत्तराखंड भी बन गया, लेकिन रिसते जख्म पर मरहम तब भी नहीं लगा। आज भी उत्तरकाशी के सेवा गांव के लोग पीठ पर लोकतंत्र का बोझ ढो रहे हैं। ठेठ चढ़ाई पर चलते वक्त पैर पर फूटते छालों का दर्द इस गांव के लोग ही सह सकते हैं। पीढि़यां ऐसे ही गुजर गई और अब भविष्य भी वहीं कहानी दोहरा रहा है। चिमनी के उजाले में रेडियो पर नेताओं के भाषण उनके मनोरंजन के साधन बना हुआ है। तहसील पुरोला के ब्लाक मोरी का सेवा गांव समुद्र तल से 26 सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मुख्यालय से 178 किमी. दूर 5 सौ वर्ग मीटर में फैले गांव की कुल 382 महिला पुरुषों में मात्र 30 प्रतिशत महिला पुरुष ही साक्षर हैं, बालिका शिक्षा का यहां हाल बेहाल है। 16 फीसदी साक्षर महिलाओं में से 5वीं के बाद बालिकाएं स्कूल ही नहीं जाती। शीतकाल में यह गांव 4 से 5 महीने के बर्फ में ढक जाता है और ऐसे में गांव के लोग अपने लड़कियों को 12 किमी. दूर जूनियर शिक्षा के लिए दोणी नहीं भेजते। सड़क से 12 किमी. दूर इस गांव में बिजली आज भी नहीं पहुंची है और संचार के नाम पर यहां सिर्फ रेडियो बजता है। सेब, नाशपाती और आडू उत्पादन यहां के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन है लेकिन गांव सड़क से दूर होने के कारण उत्पादन का बड़ा हिस्सा बाजार तक नहीं पहुंच पाता। ओलावृष्टि, सूखा, वनाग्नि के समय इस गांव के लोगों के सामने पहाड़ जैसी मुश्किलें होती है और ये लोग तब गेंहू, दाल, मंडवा व आलू पर ही निर्भर रहते हैं। चांद-सितारों की बातें और विकास का ढोल पीटने वाले नेता भी सेवा गांव के पैदल रास्ते नापने से कतराते हैं। उनकी कोशिश होती है कि गांव के मतदाताओं किसी तरह वोट उन्हें दें दे। अंगूठे के बाद अब इलैक्ट्रानिक वोटिंग मशीन तक मतदान पहुंच चुका है किन्तु सेवा के ग्रामीण आज भी अंगूठा टेक ही रह गए हैं।
आजादी के छह दशक बाद भी कृषि प्रधान देश में किसानों से जुड़े मुद्दे हाशिये पर हैं। लोकशाही के नुमाइंदे हों या व्यवस्था तंत्र, उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। राजधानी देहरादून से करीब 15 किमी दूर निर्माणाधीन सहस्त्रधारा-चामासारी मोटर मार्ग से पटेरू पटाली गांव के साथ ही ग्रामीणों के खेत भी खतरे की जद में आ चुके हैं।

हरीश रावत के खिलाफ मंगलौर में मामला दर्ज

हरिद्वार, : सौ गाडि़यों के काफिले के साथ चुनाव प्रचार कांग्रेस प्रत्याशी हरीश रावत को महंगा पड़ गया। सोमवार को उनके जुलूस में बिना अनुमति सैकड़ों गाडि़यां शामिल होने के चलते मंगलौर में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी गई है। इसके अलावा आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने पर नगर पालिकाध्यक्ष कमल जौरा समेत तीन अन्य की गाडि़यां भी प्रशासन ने सीज कर दी हैं। जिला निर्वाचन अधिकारी शैलेश बगोली ने बताया कि उनके काफिले के लिए पांच गाडि़यों की आयोग ने परमीशन दी थी, लेकिन काफिले में सौ गाडि़यों से ज्यादा शामिल थीं।

Monday 30 March 2009

पंतनगर विवि देश के सर्वश्रेष्ठ तीन संस्थानों में शामिल

देहरादून, : तकनीकी शिक्षा का स्तर सुधारने को विश्र्व बैंक की मदद दूसरे फेज में जारी रहे, इसके लिए राज्य के तकनीकी शिक्षण संस्थानों को एकेडमिक आटोनामी देनी होगी। इस संबंध में महकमे के प्रस्ताव का परीक्षण सरकार कर रही है। परफारमेंस में पंतनगर विवि देश के सर्वश्रेष्ठ तीन संस्थानों में शामिल है। राज्य को विश्र्व बैंक की प्रस्तावित दूसरे चरण की इस योजना में आर्थिक मदद पाने को कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। प्रोजेक्ट के दूसरे चरण का बेसब्री से इंतजार तो किया जा रहा है, लेकिन मदद पाने के लिए उक्त सरकारी संस्थानों को एकेडमिक आटोनामी की दरकार है। महकमे के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक इस संबंध में प्रस्ताव सरकार को सौंपा गया है। इस प्रस्ताव का परीक्षण कराया जा रहा है। प्रोजेक्ट का दूसरा चरण शुरू होने की स्थिति में परफारमेंस के आधार पर पंतनगर विवि का दावा ज्यादा पुख्ता माना जा रहा है। तकनीकी शिक्षा गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम (टीईक्यूआईपी) के तहत पहले चरण में राज्य के पांच शिक्षण संस्थानों को विश्र्व बैंक ने करोड़ों रुपये की आर्थिक मदद मुहैया कराई। संस्थानों को यह राशि इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, फैकल्टी ट्रेनिंग, नेटवर्किंग व कम्युनिटी सर्विस में सदुपयोग करनी थी। सबसे ज्यादा राशि करीब 18 करोड़ गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्र्वविद्यालय पंतनगर को मिली। राज्य के लिए राहत की बात यह है कि उक्त योजना के तहत राज्य की परफारमेंस राष्ट्रीय औसत से ज्यादा रही है। इसमें पंतनगर विवि का योगदान ज्यादा है। तीन बार हुए आडिट में विवि ने दस में से औसतन 7.4 स्कोर किया। प्रोजेक्ट में चुने गए देशभर के 127 संस्थानों में भी बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले तीन संस्थानों में पंतनगर भी शामिल है। निजी संस्थान डीआईटी देहरादून को 5.5 करोड़, जीबी पंत इंजीनियरिंग कालेज घुड़दौड़ी पौड़ी को 5.3 करोड़ व राजकीय पालीटेक्निक देहरादून को 2.5 करोड़ की राशि मुहैया कराई गई। उक्त संस्थानों ने आडिट में औसत क्रमश: 5.9, 5.7 व 5.7 स्कोर किया। कुमाऊं इंजीनियरिंग कालेज द्वाराहाट को भी पहले चरण में तकरीबन 2.5 करोड़ की सहायता मिली, लेकिन बाद में प्रदर्शन दुरुस्त नहीं रहने पर उक्त कालेज लंबे समय तक प्रोजेक्ट से नहीं जुड़ सका। अब पहले चरण का प्रोजेक्ट पूरा हो चुका है। इसकी रिपोर्ट 31 मार्च तक केंद्र सरकार को भेज दी जाएगी।

Sunday 29 March 2009

सुरक्षा संभालेंगी महिलाएं

पिथौरागढ़: भारत-नेपाल सीमा पर तैनात सशस्त्र सीमा बल की महिला प्लाटून जल्दी ही सीमा पर बंदूकों के साथ नजर आएंगी। प्रथम चरण में बल में शामिल तीस महिला सैनिकों को प्रशिक्षण दिया जायेगा। यह पहला मौका होगा जब अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर महिला सैनिक हाथों में बंदूकों के साथ नजर आयेंगी। नेपाल सीमा पर सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी एसएसबी के कंधों पर है। जनपद में बल पंचेश्वर से लेकर कालापानी तक नेपाल सीमा पर पेट्रोलिंग करता है जिसके लिए भारत-नेपाल सीमा पर काली नदी किनारे बीपीओ बनाये गये हैं। सीमा के अंतर्गत भारत-नेपाल को जोड़ने वाले पांच झूला पुल हैं। जिसमें गब्र्याग के निकट सीतापुल, धारचूला, बलुवाकोट, जौलजीवी और झूलाघाट शामिल हैं। सीता पुल को छोड़कर अन्य झूलापुलों पर प्रतिदिन भारी संख्या में आवाजाही होती है।

कालेजों को फरमान, नए सत्र में प्रवेश पर रोक

गढ़वाल मंडल में सेल्फ फाइनेंस कोर्स चला रहे पौने दो सौ से ज्यादा कालेजों के हाथ-पांव फूले हुए हैं। केंद्रीय गढ़वाल विवि ने उन्हें अगले सत्र से प्रवेश प्रक्रिया रोकने के निर्देश जारी किए हैं। विवि यह फरमान तकरीबन 50 सरकारी व सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कालेजों के लिए भी जारी करने जा रहा है। गढ़वाल मंडल में एफिलिएशन के मुद्दे का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर निकल गया है। नए कालेज व सेल्फ फाइनेंस कोर्स के इच्छुक कालेज तो एफिलिएशन को तरस रहे हैं। अब गढ़वाल विवि से एफिलिएट 189 निजी कालेजों की परेशानी बढ़ गई है। इसकी वजह विवि की ओर से जारी किए गए निर्देश हैं। केंद्रीय विवि के एक्ट में फिलहाल चालू सत्र में कालेजों का एफिलिएशन जारी रखने की बात कही गई है। विवि ने अगले सत्र में कालेजों को एफिलिएशन जारी रहने के बारे में नीति तय नहीं की है। यह माना जा रहा है कि निजी कालेजों की बड़ी तादाद को साथ रखने में केंद्रीय विवि शायद ही राजी हो। शिक्षा की गुणवत्ता के लिए एफिलिएशन का दायरा बेहद सीमित अथवा खत्म भी किया जा सकता है। विवि के प्रभारी कुल सचिव प्रो. एलजे सिंह ने तमाम निजी कालेजों को पत्र जारी कर वर्ष 2009-10 में प्रवेश पर रोक लगा दी है।

नेगी दा इन गीत तू लगा

देर होली अबेर होली, होली जरूर सबेर होली . आप और हमको नेगी जी इस गीत से दिलासा दिलाते हैं, पर खुद नेगी जी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लिए अंधेर की हद तक इंतजार करना पड़ रहा है. अब नेगी जी तो पता नहीं सम्मान की कितनी फिक्र है, पर उनके सुणदरों को इस पल का बेहद इंतजार है. नेगी दा के एक ऐसे ही सुणदर संजीव कंडवाल भी इन लोगों में शामिल हैं. पेश है उनकी खैरी, नेगी दा इन गीत तू लगा ............... भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले नागरिक सम्मानों की घोषणा हुए अब अच्छा खास वक्त बीत गया है. इस पर भी काफी लिखा गया कि कश्मीर का एक शॉल व्यापारी, कारीगर के नाम पर किस तरह पद्म पुरस्कार ले उड़ा दिल्ली की लगड़ी हुकूमतों को जब तक अमर सिंह की जरूरत महसूस होगी, कोई एश्वर्या राय, बिग 'बी' या स्मॉल 'बी' बारी बारी से पुरस्कार झाटकते ही रहेंगे.खैर, इन पुरस्कारों की शुचिता बहाल करना हमारी चिंता में शामिल नहीं है, कम से कम यहां पर में 'बेमानी होते नागरिक सम्मान' जैसा लेख भी नहीं पेल रहा हूं. मैं तो इन पुरस्कारों में अपना हक तलाश रहा हूं, अपना यानि उत्तराखंड के मसलों का. मेरे से इत्तफाक रखते हों तो साथ में आएं और जो मेरी बात बंडल लगती हो तो मुझो कोसने के लिए आप स्वतंत्र हैं. .................

इस बार भी कुछ पहाड़ी जन इस लिस्ट में शामिल हैं. लेकिन इस बार भी वह नाम नहीं था, जिसे मैं हर बार 25 जनवरी की शाम अपने न्यूजरूम में खबरें लिखते वक्त दिल्ली की न्यूजएजेंसी से आने वाली खबरों में तलाशता हूं. जाने क्यूं मुझो लगता है कि मेरी तरह हजारों और पर्वतजन इस नाम को अगले दिन न्यूज पेपर में तलाशते होंगे. पर ऐसा नहीं हो पाता, साल दर साल. इन पुरस्कारों का चयन करने वाले कला, साहित्य समाज के मूर्धन्य विद्वानों से मेरा सवाल है कि अब तक मेरे नरू भै (नरेंद्र सिंह नेगी) को कोई पद्म पुरस्कार क्यूं नहीं मिला. अगर छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश के आदिवासियों के लिए तीजनबाई की पांडवानी को सम्मानित किया जाना गौरव की बात है तो हमारे नेगी दा भी लाखों उत्तराखंडवासियों के आवाज हैं. पहाड़ के किस व्यथा को उन्होंने आवाज नहीं दी. सरकारें जलागम, जंगलात जैसी नकली योजनाओं के जरिए जंगल बचाने का सपना पालती हैं, तो नेगी जी ' ना काटा तों डाल्यंू ना काट' गाते हैं. बात फिर भी समझा ना आए तो 'जिदेरी घसेरी' को भी समझााते हैं. पर्यावरण के नाम पर लेक्चर बांटने वाले तो खूब सम्मानित हुए हैं, पर लोक बोली में जंगल बचाने का सीधा संदेश देना वाला अब तक हासिए पर क्यूं है. इसलिए मेरा सवाल बनता है कि जब राष्ट्रपति भवन के सेंट्रल हाल में ज्यादातर लोक बोलियों की गूंज हो चुकी है तो फिर 'ठंडो रे ठंडो' क्यूं नहीं. .........

चलो यह बात तो दिल्ली के विद्वानों की हुई, पर अपनी देहरादून की सरकारें क्या कर रही हैं. आखिर पुरस्कारों की औपचारिक घोषणा से पहले एक बार राज्य सरकारों से भी नाम मांगे जाते हैं. फिर कैसे हर बार नेगी दा पीछे छूट जाते हैं, फिर कैसे इंकार किया जा सकता है कि पुरस्कार काम के लिए नहीं जुगाड़ के लिए दिए जाते हैं. हम नहीं कर रहे हैं कि नेगी दा को पद्म पुरस्कार मिल गया तो पुरस्कार के साथ चलने वाले सारे विवाद दूर हो जाएंगे, बावजूद इसके जब हर साल अज्ञात अल्पज्ञात और विवादित फिल्मी हस्तियों को सम्मानित होता देखता हूं तो नेगी दा की कमी मुझो कुछ ज्यादा ही खलती है.अपनी हुकूमतों से ज्यादा उम्मीद करना बेमानी है, समाज समूह का दवाब कर गया तो कहना मुश्किल है. आखिर इन्ही सरकारों की नजर में नेगी जी और एक काल गर्ल रैकेट चलाने वाला दलाल बराबरी पर खड़े हैं. याद है ना जिस साहित्य सांस्कृतिक परिषद में नेगी सदस्य रहे हैं, उसके एक सदस्य पर इसी तरह के आरोप लगे थे. ऐसे में 'सब्बी धाणी देहरादूण' पर कमेंट करने वाले नेगी को देहरादून के सत्ताधीश भला कैसे स्वीकार कर सकते हैं. बल्कि इन लोगों ने जब तब नेगी को नीचा दिखाने की कोशिश की है. 'नौछमी' ने किस तरह नेगी को अपने खर्च पर फॉरेन टूर पर जाने से रोकने की कोशिश की, मीडिया से जुड़े होने के कारण मै इस ड्रामे से बखूबी वाकिफ हूं. नौछमी तो पहाड़ी प्रतीकों के प्रतिनिधि विरोधी हैं, पर मौजूदा सरकार भी नेगी से भय खाती नजर आ रही है. और इस सरकार में पहाड़ी सरोकारों का दम भरने वाली यूकेडी भी शामिल है. इसलिए मुझे कुछ ज्यादा बुरा लग रहा है. खैर अब जो हुआ सो हुआ, हमें ठोस एक्शन प्लान के साथ काम करना होगा. हमारे अप्रवासी भाई बंद इस बारे में अच्छी पहल कर सकते हैं. अपनी सरकार के नुमाइंदों से हम इस बारे में सवाल कर सकते हैं. पहाड़ आधारित डॉटकाम पर ऑनलाइन पोल काफी नहीं होगा, हो सके ?तो कुद सार्वजनिक मंचों से इस बात को उठाई जाए. गहरी नींद में सौ रहे सत्ता के कुंभकरणों को जगाने के लिए मंडाण लगाया जाए. मांगल गाए जाए, दैणा हुंय्या दिल्ली की सरकार, दैणा हुंय्या देहरादूण की सरकार ... लेखक दैनिक जागरण ग्रुप मेरठ में सीनियर रिपोर्टर हैं. आपकी राय का इंतजार -

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Saturday 28 March 2009

हजारों मील दूर बसाया छोटा तिब्बत-वतन से दूर रहकर भी नही भूले संस्कृति

नैनीताल: चीनी सरकार के दमनात्मक रवैये के चलते पचास वर्ष पूर्व अपने वतन तिब्बत से दूर भारत पहुंचे तिब्बतियों ने जगह-जगह अपने शिविर लगाए। साथ ही भारत सरकार ने तिब्बतियों को बसाने में पूर्ण सहयोग भी दिया। देश के प्रति आभार जताते हुए नैनीताल में बसे तिब्बती अपनी परम्पराओं व संस्कृति को वतन से हजारों मील दूर रहकर भी नहीं भूले। तिब्बत पर चीन की नजर सन् 1940 में व्यापारिक गतिविधियां के दौरान पड़ी। सन् 50 तक तिब्बत के आधे भूभाग पर चीन अपना अधिपत्य कर चुका था। तिब्बत की राजधानी ल्हासा को सन् 1954 में कब्जे में ले चुका था। चीन की नीतियों के विरोध में ल्हासा में विद्रोह के स्वर गूंजने लगे थे, लेकिन धीरे-धीरे तिब्बती पलायन करने लगे। पलायन के चलते आशियाने की तलाश में भारत पहुंचे तिब्बतियों ने सरोवर नगरी नैनीताल में भी अपना घर तलाशा। न तो लाल मिट्टी की चट्टानें और ना ही सैकड़ों मीटर फैले बुग्याल लेकिन फिर भी वतन से हजारों मील दूर इन तिब्बतियों ने बसाया एक छोटा सा तिब्बत जहां पर लगभग 360 तिब्बती जन अपनी सभी धार्मिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन करते हैं। नैनीताल के सुख निवास में रंग-बिरंगी झंडियों से घिरे तिब्बतियों के गानदेन कुन क्योंप लिग बौद्घ मठ में सुबह शाम पूजा अर्चना में लीन बौद्घ भिक्षुओं को देखते ही तिब्बत का धार्मिक चित्र साफ नजर आने लगता है। तिब्बती बौद्घ मठ में अपने धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजनों में नगर के सभी वर्गो को आमंत्रित करते हैं और उनका स्वागत सत्कार भी तिब्बती परम्पराओं के अनुरूप करते हें। अतिथियों का स्वागत तिब्बतियों द्वारा हरी चाय की पत्ती, नमक, दूध व मक्खन से बनी स्वादिष्ट छा यानी नमकीन चाय से होता है। पूजा पाठ के उपरांत प्रसाद स्वरूप तिब्बती डेसिल अर्थात चावल, घी, किसमिस, चीनी, बदाम, काजू व नारियल से बने मीठे चावल का वितरण किया जाता है। तीज-त्यौहारों में पारंपरिक पोशाकों से सजी-धजी महिलाएं भी तिब्बत के रंग में डूबी नजर आती हैं। नैनीताल में अपने बच्चों की आरंभिक शिक्षा के लिए सुख निवास में ही सन् 1981 में एक विद्यालय का निर्माण किया गया। जहां निर्धन बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान की जाती है। तिब्बती परिवारों को रोजगार मुहैया कराने के उद्देश्य से सन् 1983 में उप्र के तत्कालीन गर्वनर सीपीएन सिंह ने मल्लीताल फ्लैट के समीप तिब्बती बाजार का शुभारंभ किया। जहां से सभी तिब्बती अपनी व्यापारिक गतिविधियां संचालित करते हैं। वतन से हजारों मील दूर बसे अपने आशियाने को तिब्बत का दर्जा दे चुके पेमा जी सिथर भारत को तिब्बती भाषा में फक्क यूल की संज्ञा देते हैं अर्थात देव स्थल, बौद्घों के सर्वाधिक तीर्थ स्थान भारत में ही स्थित है। पेमा के अनुसार नैनीताल में हमें तिब्बत जैसा प्यार मिलता है। लोग हमें शादी-विवाह में आमंत्रित करते हैं। हम उनके सुख-दुख के भागीदार बनते हैं। सुख निवास के वरिष्ठ तिब्बती नागरिक तैनचिन डिल्ले, रिमपोंछे, पेमा छौपल, गोनम डोल्मा व अत्तर लूडं्प आदि कहते हैं कि अब हमारा घर नैनीताल में ही है। हमारे सभी त्यौहार जैसे बुद्घ जयंती, दलाई लामा का जन्मदिन या फिर तिब्बती नव वर्ष लोसर आदि का आयोजन जब धूमधाम से यहां मनाते हैं तो हमें तिब्बत नैनीताल में नजर आता है। pahar1.blogspot.com

चार धाम यात्रा के लिए कंप्यूटरीकृत ग्रीन कार्ड होंगे इस बार

चार धाम यात्रा के लिए कंप्यूटरीकृत ग्रीन कार्ड होंगे इस बार देहरादून: चार धाम यात्रा के लिए परिवहन विभाग की तैयारियां जोरों पर हैं। इस बार विभाग ने यात्रा पर चलने वाले व्यावसायिक वाहनों के लिए कंप्यूटरीकृत ग्रीन कार्ड बनाने का निर्णय लिया है। इससे विभाग के पास यात्रा पर जाने वाली गाड़ी का पूरा ब्योरा उपलब्ध रहेगा। यात्रा के दौरान परिवहन विभाग गाडि़यों के लिए ग्रीन कार्ड जारी करता है। पूर्व में ये कार्ड हाथों से बनाए जाते थे। ऐसे में इनमें गड़बड़ी होने की आशंका भी रहती थी। जांच के दौरान कई ग्रीन कार्ड फर्जी भी पाए गए। ऐसे में फर्जी ग्रीन कार्ड को रोकने और वाहन व चालक का संपूर्ण विवरण एक ही कार्ड में डालने के लिए विभाग ने इस बार ग्रीन कार्डो को पूरी तरह कंप्यूटरीकृत बनाने का निर्णय लिया है। ग्रीन कार्ड में ड्राइवर के डीएल के साथ ही वाहन संबंधित जानकारी जैसे प्रदूषण प्रमाणपत्र की वैधता अवधि, रजिस्ट्रेशन, टैक्स, परमिट, फिटनेस और यात्रा फिटनेस आदि की संपूर्ण जानकारी होगी। यह जानकारी जानकारी कंप्यूटर में भी दर्ज होगी। यात्रा पर चलने वाले स्थानीय वाहनों के अलावा बाहर से आने वाले वाहनों को भी ये कार्ड जारी किए जाएंगे। ग्रीन कार्ड की पहली वैधता तीस जून तक रहेगी। इसके बाद आगे दो-दो माह तक इसकी समय सीमा बढ़ाए जाने का प्रस्ताव है। अपर परिवहन सचिव व अपर आयुक्त विनोद शर्मा ने बताया कि ग्रीन कार्ड का मकसद यह है कि वाहन चालक को एक बार ही सारे कागजात प्रस्तुत न करने पड़ें और जांच में भी विभाग का ज्यादा समय व्यर्थ न हो।

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पीडि़त ने धस्माना को पहचाना

करनपुर गोलीकांड:

देहरादून, : उत्तराखंड आंदोलन के दौरान वर्ष, 1994 में देहरादून के करनपुर में हुए गोलीकांड की सुनवाई के दौरान गवाह ने तत्कालीन सपा नेता व वर्तमान में कांग्रेस के प्रांतीय मीडिया प्रभारी सूर्यकांत धस्माना को पहचान लिया। गवाह ने अदालत में बयान दिया कि सूर्यकांत धस्माना ने अपने घर की छत से पुलिसकर्मियों के साथ फायरिंग की थी। राज्य आंदोलन के दौरान वर्ष, 1994 में देहरादून के डालनवाला थाना क्षेत्र के करनपुर में आगजनी व पथराव के बाद तीन आंदोलनकारियों पर फायरिंग कर दी गई थी। इस गोलीकांड में एक आंदोलनकारी राजेश रावत की मौत हो गई थी, जबकि राजीव मोहन व रविंद्र रावत घायल हो गए थे। पहले सिविल पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी, लेकिन बाद में जांच सीबीआई को सौंप दी गई। इसमें अब तक 22 लोगों की गवाही हो चुकी है। गुरुवार को सीबीआई के विशेष न्यायधीश महेश चंद्र कौशिवा की अदालत में लंबे समय बाद इस मामले की सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान पीडि़त के अलावा आरोपी सूर्यकांत धस्माना व पुलिसकर्मी भी कोर्ट में मौजूद थे। राजीव मोहन ने कोर्ट में गवाही दी कि घटना वाले दिन आगजनी व पथराव के बाद राजेश रावत और रविंद्र रावत के साथ वे पास में नन्हीं दुनिया स्कूल की गली में घुस गए। राजीव ने बताया कि तभी अपने घर की छत पर पुलिसकर्मियों के साथ मौजूद सूर्यकांत धस्माना ने उन पर फायरिंग कर दी। आठ से दस राउंड हुई फायरिंग में राजेश रावत की मौत हो गई, जबकि वे और रविंद्र गोली लगने से घायल हो गए। राजीव ने कोर्ट में सूर्यकांत धस्माना को पहचान लिया, जबकि पुलिसकर्मियों को नहीं पहचान सके। इस मामले में शुक्रवार को दूसरे पीडि़त रविंद्र रावत की गवाही होगी।

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Parvatiya Mahaparishad by Uttarachali April 04, 2009 (

Parvatiya Mahaparishad Lucknow is organizing a HOLI MILAN SAMAROH in Lucknow. It is one of the largest progamme in Lucknow by Uttarachali. Near about 1-1.5 lakh people participated in this programme in every year. Heera Singh & group is coming from Delhi and Uttaranchal Swar Sangam (USS) Lucknow and other Uttaranchali organization based in Lucknow like Sanskritik & Samajik Sansthan, Gomti Nagar is jointly participating under Parvatiya Mahaparishad' s banner. GuestsMr. Bhagat Singh Kosyari, Ex. Chief Minister, Uttaranchal as Chief GuestMr. Akhilesh Das, Ex. Central Minister, GoI, as Guest of HonorMrs. Rita Joshi Bahugura, President of Congress, U.P., as Guest of Honor Kindly note the Date, Time and Address:April 04, 2009 (Suturday) evening 06.30pm onwards. It will be over by10.00 pm because of Election code of conduct Place: Ramleela Maidan, Near Daya Nanad Girls School, Mahanagar,(Near Wireless Chouraha) Lucknow Types of ProgrammeVandana, Famous Uttaranchali Jhora, Thariya, Chapeli and other such programmes "Sincere Request". Would I request to all of you, please participate on this programme as a audiance and hope, you will encourage to the invited cultural groups from Delhi,USS & others If you have any quarry regarding the above, please let us know.

Thanks and With Regards

Mahendra Singh GailakotiOrganizing SecretaryUSS, Lucknow

Friday 27 March 2009

walk-in-interview in BEL-Ghaziabad, for Diploma holder on 30 March.

There is a walk-in-interview in BEL-Ghaziabad, for Diploma holder on 30 March.
Pl convey this to all paharis. For detail attached file. Regarda.
H.C.Kukreti
(uttarakhand first news blogs)

लोस चुनाव बाद होंगी कुविवि की परीक्षाएंबीकॉम की परीक्षाएं भी हुई स्थगित

नैनीताल। छात्र संगठनों के बढ़ते दबाव के आगे आखिरकार कुमाऊं विश्वविद्यालय प्रशासन को झाुकना पड़ा। विश्वविद्यालय प्रशासन ने चार अप्रैल से प्रस्तावित बीकॉम की परीक्षाओं को भी अब लोकसभा चुनाव के बाद ही अन्य परीक्षाओं के साथ कराने का फैसला लिया है।बता दें पूर्व में विश्वविद्यालय की परीक्षाएं १४ मार्च से प्रस्तावित थीं। इस दौरान विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं कर्मचारियों ने छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने, विवि की आर्थिक स्थिति सुधारने तथा केंद्रीय विवि की मांग को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया, पांच मार्च को शासन की ओर से कुछ मांगों को मान लेने का लिखित आश्वासन मिलने पर छह मार्च से शिक्षक-कर्मचारी काम पर लौटे। इस दौरान एक सप्ताह के भीतर विवि प्रशासन के लिए परीक्षाएं कराना काफी मुश्किल हो गया। विवि प्रशासन के सामने कुमाऊं के सबसे बड़े हल्द्वानी डिग्री कालेज के अलावा खटीमा, बागेश्वर एवं पिथौरागढ़ के भवनों के अधिग्रहण की समस्या सामने आ गई। ये भवन चुनाव के लिए अधिग्रहीत किए गए हैं। बावजूद इसके विवि प्रशासन ने चार अप्रैल से स्नातक स्तर पर कामर्स की परीक्षाएं कराने का फैसला ले लिया। इधर, परीक्षा तिथि घोषित होते ही कुमाऊं भर के छात्र संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया, इसके तहत उन्होंने कुलपति एवं कुलसचिव का घेराव भी किया। कुलसचिव बीसी जोशी ने बताया छात्र संगठनों की मांग को देखते हुए अब बीकॉम की चार अप्रैल से प्रस्तावित परीक्षाएं अन्य परीक्षाओं के साथ ही लोकसभा चुनाव के बाद ही करायी जाएंगी, परीक्षा की अगली तिथि बाद में घोषित की जाएगी।

बुर्जुगों ने चमकाया राज्य का नाम

बाजवा, रावत और सचदेवा ने फिर राष्ट्रीय स्तर पर किया कमाल दून के बुर्जुग एथलीटों ने एक बार फिर राष्ट्रीय स्तर पर कमाल किया है। उन्होंने हिसार में हुई ३०वीं मास्टर्स एथलेटि1स चैंपियनशिप में दो स्वर्ण समेत आठ पदक जीते। जबकि इसका दूसरा पहलू यह है कि प्रदेश सरकार इन चैंपियनों को उनके कमाल का इनाम नहीं दे सकी है।डीएस बाजवा, बीएस रावत, जेएस सचदेवा ऐथलेटि1स में ऐसे नाम हैं जिन्होंने राज्य को लगातार सफलताएं दिलाई हैं। तीनों ने समय-समय पर जता दिया कि उम्र उन पर भारी नहीं पड़ सकती। ट्रैक एंड फील्ड में उपल4िधयां हासिल करने के लिए उनके अंदर अभी जज्बा कायम है। यही कारण है कि डीएस बाजवा अभी तक तीन एशियन मास्टर्स एथलेटि1स चैंपियनशिप में नौ मैडल जीत चुके हैं। जबकि बीएस रावत ने दो एशियन चैंपियनशिप में तीन और सचदेवा ने एक मैडल प्राप्त किया है। अब हिसार में १९ से २२ मार्च तक हुई ३०वीं राष्ट्रीय मास्टर्स एथलेटि1स चैंपियनशिप में भी तीनों ने एक बार फिर कमाल का प्रदर्शन कर जुलाई में फिनलैंड में होने वाली वल्र्ड मास्टर्स एथलेटि1स चैंपियनशिप के लिए अपनी दावेदारी को मजबूत किया है। डीएस बाजवा ने भाला फेंक में स्वर्ण, च1का फेंक में रजत और गोला फेंक में कांस्य पदक जीता। बीएस रावत ने लंबी कूद में स्वर्ण और त्रिकूद एवं ४०० मी. दौड़ में कांस्य पदक जीता। इसी तरह जेएस सचदेवा ने १५०० मी. और ५००० मी. दौड़ में रजत पदक जीते। लेकिन लगातार सफलताएं हासिल कर रहे इन धावकों का दर्द है कि अभी तक राज्य सरकार उनकी उपल4िधयों को महत्व नहीं दे रही है। उनका कहना है कि चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए उनको अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ते हैं। सरकार अन्य खिलाडिय़ों पर पैसे बहा रही है, परंतु वेटरन खिलाडिय़ों की किसी भी स्तर पर नहीं सुनी जा रही है।

देवभूमि के लाल, दिल्ली में कमाल

उत्तराखंड कहने को यूं तो पांच लोकसभा सीटों को सिमटाए छोटा सा प्रदेश है मगर इसी उत्तराखंड ने देश को ऐसे कई कद्दावर सियासी शख्सियत दी हैं जिन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका निभाई और निभा रहे हैं। दिलचस्प तथ्य यह है कि यह सिलसिला आजादी के बाद से ही आरंभ हो गया जो अब तक अनवरत जारी है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि गढ़वाल व कुमाऊं, दोनों ही क्षेत्र राष्ट्रीय राजनीति के दिग्गजों के लिहाज से उर्वर साबित हुए हैं। राष्ट्रीय राजनीति में उत्तराखंड को एक नई पहचान दिलाने में हेमवती नंदन बहुगुणा व नारायण दत्त तिवारी का नाम बेहिचक सबसे ऊपर लिया जा सकता है। उत्तराखंड में गढ़वाल व कुमाऊं का प्रतिनिधित्व करने वाले इन दो दिग्गजों में एक दिलचस्प समानता भी रही। वह यह कि दोनों दिग्गजों ने उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री पद और केंद्र में कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों का जिम्मा भी संभाला। हालांकि श्री बहुगुणा उत्तराखंड से केवल वर्ष 1980 (इसके बाद उप चुनाव भी) में पौड़ी गढ़वाल सीट से चुनाव लड़े और जीते लेकिन उनके पर्वतीय सरोकारों से हर कोई वाकिफ है। इसी तरह नारायण दत्त तिवारी ने 1980, 96 व 99 के आमचुनाव में नैनीताल सीट से जीत हासिल की। तीन बार उत्तर प्रदेश व एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद को संभाल चुके श्री तिवारी केंद्र सरकार में उद्योग, विदेश, वाणिज्य, वित्त जैसे अहम महकमों के मंत्री रहे हैं। वर्तमान में श्री तिवारी आंध्र प्रदेश के गवर्नर हैं। देश की पहली लोकसभा में महावीर त्यागी देहरादून डिस्टि्रक्ट कम बिजनौर डिस्टि्रक्ट (नार्थ वेस्ट) कम सहारनपुर डिस्टि्रक्ट(वेस्ट) और बाद में देहरादून सीट से सांसद बने। श्री त्यागी नेहरू मंत्रिमंडल के एक अहम सदस्य रहे। इसी तरह पहली लोकसभा से चौथी लोकसभा तक गढ़वाल सीट से निर्वाचित भक्तदर्शन ने केंद्र में शिक्षा मंत्रालय संभाला। आजादी के बाद पं गोविंद बल्लभ पंत की केंद्र में भूमिका को कौन भूल सकता है हालांकि वह कभी उत्तराखंड से सांसद नहीं रहे लेकिन उनके पुत्र केसी पंत साठ व सत्तर के दशक में नैनीताल सीट से तीन बार लोकसभा पहंुचे और कई अहम जिम्मेदारियां निभाई। इमरजेंसी के बाद वर्ष 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में बीएलडी के टिकट पर मुरली मनोहर जोशी ने अल्मोड़ा संसदीय सीट पर जीत दर्ज की। श्री जोशी बतौर केंद्रीय मंत्री मानव संसाधन विकास मंत्रालय जैसी अहम जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। वर्ष 1984 व 89 में टिहरी गढ़वाल सीट से लोकसभा तक पहुंचे ब्रह्मदत्त ने केंद्र में पेट्रोलियम मंत्रालय संभाला। उत्तराखंड के दिग्गजों की केंद्र में महत्वपूर्ण भूमिका की परंपरा को आगे बढ़ाया भुवन चंद्र खंडूड़ी, बची सिंह रावत और सतपाल महाराज ने। ये तीनों दिग्गज वर्तमान में भी सक्रिय राजनीति में अपनी भूमिका सुनिश्चित कर मैदान में डटे हैं। सेना में मेजर जनरल पद से अवकाश लेने के बाद श्री खंडूड़ी वर्ष 1991, 98, 99 और 2004 में पौड़ी गढ़वाल सीट से सांसद बने। वाजपेई सरकार में पहले राज्यमंत्री और फिर बतौर कैबिनेट मंत्री जरनल खंडूड़ी ने भूतल परिवहन सरीखे अहम मंत्रालय में अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी अंजाम दिया। यही वजह रही कि वर्ष 2007 में उत्तराखंड में सत्ता में आने के बाद उन्हें भाजपा ने सांसद होने के बावजूद उत्तराखंड में मुख्यमंत्री का पद सौंपा। पौड़ी गढ़वाल सीट से वर्ष 1996 में तिवारी कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने सतपाल महाराज ने भी अपने इसी कार्यकाल में बतौर केंद्रीय राज्यमंत्री रक्षा व रेल मंत्रालय की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन किया। अल्मोड़ा सीट से लगातार चार बार वर्ष 1996,98, 99 व 2004 में सांसद बने बची सिंह रावत भी वाजपेई सरकार में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय में राज्य मंत्री रहे।

Thursday 26 March 2009

राजधानी में हाइप्रोफाइल सेक्स रैकेट

देहरादून, : राजधानी में हाइप्रोफाइल सेक्स रैकेट का पर्दाफाश करते हुए पुलिस ने देहरादून के तीन प्रापर्टी डीलरों व दो कालगर्ल को गिरफ्तार कर लिया। कालगर्ल दिल्ली व मुजफ्फरनगर की निवासी हैं। पुलिस के मुताबिक दोनों की बुकिंग 50 हजार रुपये में की गई थी। पुलिस ने पांचों आरोपियों के खिलाफ देह व्यापार अधिनियम में मुकदमा दर्ज कर लिया। उधर, सेक्स रैकैट में फंसे दोनों प्रापर्टी डीलरों को छुड़ाने के लिए कई प्रापर्टी डीलरों व राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों ने थाने में पुलिस पर दबाव बनाने का प्रयास किया।

नैनीताल से बाबा को कांग्रेस का टिकट

कांग्रेस ने नैनीताल संसदीय सीट से सिटिंग सांसद केसी सिंह बाबा को टिकट देने का निर्णय लिया है। अलबत्ता इसकी औपचारिक घोषणा अभी तक नहीं की गई है। हरिद्वार सीट से श्री हरीश रावत को टिकट देने की पार्टी ने औपचारिक घोषण कर दी

सत्ता सुख भोग रहे उक्रांद ने कार्यकर्ताओं को थमाया लालीपाप

सत्ता के चैन को तबियत बेचैन यह बात भाजपा और उक्रांद दोनों को पता है कि अब चुनावी गठबंधन संभव नहीं है। इसके बाद भी एक सीट देने के प्रस्ताव की बात समझ से परे है। माना यही जा रहा है कि सत्ता सुख भोग रहे उक्रांद के कुछ नेताओं ने सरकार से समर्थन वापसी की मांग कर रहे कार्यकर्ताओं को लालीपाप थमाया है। उक्रांद में इस समय सरकार से समर्थन वापसी का मुद्दा खासा मुखर हो रहा है। सत्ता का सुख भोग रहे कुछ नेताओं को यह रास नहीं आ रहा है। ये नेता लोस चुनाव में फ्रेंडली फाइट कर रहे हैं। इसे कार्यकर्ताओं ने स्वीकार नहीं किया तो उक्रांद के कुछ नेता अपने भाजपाई दोस्तों के साथ बैठे और एक फार्मूला निकाला। तय किया गया है कि प्रदेश भाजपा की ओर से हाईकमान को एक प्रस्ताव भेजकर एक सीट उक्रांद को देने की बात की जाएगी। ऐसे में एक सवाल खड़ा हो रहा है। भाजपा प्रत्याशी सभी सीटों पर प्रचार में जुटे हैं। फिर सरसरी तौर पर एक बार ऐसे प्रस्ताव को भाजपा हाईकमान पहले ही खारिज कर चुका है। हरिद्वार सीट पर फजीहत झेल चुकी भाजपा क्या एक बार फिर वैसे ही हालात से रूबरू होना चाहेगी। यकीनी तौर इस सवाल का उत्तर सिर्फ और सिर्फ ना ही होगा। इसके बाद भी उक्रांद नेता इस प्रस्ताव से संतुष्ट हो गए और समर्थन वापसी की बात को टाल दिया। अब कार्यकर्ता अगर फिर यही बात उठाते हैं तो उन्हें यही समझाया जाएगा कि अभी तो भाजपा उनके प्रस्ताव पर विचार कर रही है। खास बात यह भी है कि इस प्रस्ताव के बारे में निर्णय के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। पहले तो यह प्रस्ताव प्रदेश संसदीय समिति पारित करेगी, फिर केंद्र को भेजा जाएगा। हो सकता है कि उस समय तक नामांकन और नाम वापसी का वक्त ही निकल चुका हो। जाहिर है कि उक्रांद नेताओं ने भाजपा के साथ मिलकर खेले इस सियासी खेल के जरिए कार्यकर्ताओं को लालीपाप थमाया है। समय गुजरने की रफ्तार से ही कार्यकर्ताओं का आक्रोश भी धीरे-धीरे शांत हो जाएगा। इस तरह वे सत्ता सुख भोगते रहेंगे और कार्यकर्ता यूं ही ताकतें रहेंगे।

जीप खाई में गिरी, सात मरे

गोपेश्र्वर, विकासखंड घाट के थिरपाक-कांडई मोटर मार्ग पर बुधवार सायं एक जीप के गहरी खाई में गिरने से उसमें सवार सात लोगों की मौके पर मौत हो गई, जबकि दो लोग घायल हो गए। घायलों को जिला चिकित्सालय में उपचार के लिए भर्ती कराया गया है। मृतकों में छह पुरुष व एक महिला शामिल हैं। बुधवार की देर शाम कांडई पुल से मोलागाड़ जा रही जीप अचानक अनियंत्रित होकर गहरी खाई में जा गिरी। इससे उसमें सवार उमराव सिंह 60 वर्ष पुत्र वचन सिंह निवासी चाका, रतन सिंह 65 वर्ष पुत्र गोविंद सिंह निवासी मटई, ज्ञान सिंह 64 वर्ष पुत्र गोविंद सिंह निवासी मटई, मंगल सिंह 44 वर्ष पुत्र दीवान सिंह निवासी खलतरा, जीप चालक सुरेंद्र 39 वर्ष पुत्र फते सिंह, एक अन्य महिला की मौके पर ही मौत हो गई। महिला की अभी तक शिनाख्त नहीं हो पाई है।

विवादास्पद यू.टी.यू. प्रवेष परीक्षा

उत्तराखंड तकनीकि विष्वविद्यालय द्वारा होटल प्रबंधन व अन्य पाठ्यक्रमों हेतु आयोजित की जाने वाली प्रवेष परीक्षा (यू.के.एस.ई.ई.-2009) तथा नेषनल काउंसिल आॅॅफ होटल मैनेजमेंट द्वारा होटल प्रबंधन पाठ्यक्रम हेतु प्रवेष परीक्षा (जे.ई.ई.-2009) की परीक्षा तिथि (9मई) तथा समय एक ही होने के कारण होटल प्रबंधन पाठ्यक्रम में प्रवेष लेने वाले छात्रों तथा उनके अभिभावकों में असंताश व्याप्त है। इसका सीधा अर्थ यह है कि उत्तराखंड के छात्र, आई.एच.एम. देहरादून सहित अन्य ख्यातिप्राप्त सरकारी व निजि राश्ट्रीय होटल प्रबंधन संस्थानो (आई.एच.एम.) में प्रवेष से वंचित रहेंगे। विदित है कि इस वर्श उत्तराखंड तकनीकि विष्वविद्यालय द्वारा इंजीनियरिंग व होटल प्रबंधन सहित अनेक पाठ्यक्रमों हेतु स्चयं प्रवेष परीक्षा (यू.के.एस.ई.ई.-2009) लेने का निर्णय लिया गया जिसकी सूचना समाचार पत्रों में दी गई थी। इस सूचना के अनुसार 16फरवरी से आवेदन पत्र व विवरणिका अनेक डाक घरों में उपलब्ध होने थे, जोकि वास्तव में कोटद्वार डाकघर में 27फरवरी से मिलने प्रारम्भ हुए थे, साथ ही इसमे से इंजीनियरिंग का प्रवेष भी हटा दिया गया था। उत्तराखंड तकनीकि विष्वविद्यालय द्वारा जारी किया गया आवेदन पत्र व विवरणिका का मूल्य भी अन्य सभी तकनीकि विष्वविद्यालयों व सरकारी व गैर सरकारी संस्थानों की प्रवेष परीक्षाओं के आावेदन पत्रों की तुलना में सर्वाधिक (रु. 1030/-) है। क्या उत्तराखंड में रह रहे अभिभावकों की आय, अन्य सभी प्रदेषों व केन्द्र षाशित क्षेत्रों से अधिक है? देष के सर्वोच्च संस्थान जैसे आई.आई.टी. व आई.एच.एम. भी प्रवेष परीक्षाओं में इतना षुल्क नही लेते हैं। अभिभावकों को यह भी षिकायत है कि इस विष्चविद्यालय के अधिकारी किसी भी पूछताछ का उत्तर नही देते हैं। यदि षीघ्र ही उपर्लिखित प्रवेष परीक्षा में वांछनीय परिवर्तन नही किया गया तो यह इस बात का प्रमाण होगा कि उत्तराखंड तकनीकि विष्वविद्यालय अभी तक कुप्रबंधन का षिकार है तथा प्रदेष में उच्च षिक्षा के क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाने में असमर्थ है। website of UTU- http://www.uktech.in/ website of NCHMCT- http://www.nchmct.org/

.C.Kukreti

Mktg, BELKotdwara

-246149Garhwal (UK)

Wednesday 25 March 2009

कांग्रेस ने हरिद्वार सीट से पूर्व सांसद हरीश रावत को प्रत्याशी बनाना तय

: कांग्रेस ने हरिद्वार सीट से पूर्व सांसद हरीश रावत को प्रत्याशी बनाना तय कर लिया है। अलबत्ता इस बारे में अधिकृत घोषणा नहीं की गई है। पार्टी सूत्रों ने बताया कि आज लंबी मशक्कत के बाद कांग्रेस हाईकमान ने हरिद्वार संसदीय सीट से हरीश रावत के नाम पर सहमति जताई है। इस सीट पर मुख्य मुकाबला श्री रावत और ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी के बीच माना जा रहा है। हाईकमान ने हरीश के नाम की अधिकृत घोषणा अभी नहीं की है। अब एकमात्र सीट नैनीताल पर ही कांग्रेस का प्रत्याशी घोषित होना शेष रह गया है। सूत्रों के अनुसार इस सीट से केसी बाबा की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है।

उंधरयूं का बाटा’

( गांव छूटा, पहाड़ छूटा, देवदार की हवा और बांझ की जड़ों का ठंडा पानी गटकने की आदत भी छूटी। मैदान में आकर शर्मा, सिंह बनकर अपनी पहचान भी मिटा चुके हैं।)- इंटर पास करने के बाद पहली बार 13 जुलाई को सुबह नौ बजे की बस से मैं पहाड़ से निकला था। जीएमओयू की बस मैं नेगी जी का ‘ना दौड़ ना दौड़ उंधरयूं का बाटा’ गीत बज रहा था, यह गीत मुझे रुला रहा था गीत मेरी पहाड़ से विदाई की पृष्ठभूमि में बज रहा था मेरी आंख नम हो रही थी. गांव छूटा, पहाड़ छूटा, देवदार की हवा और बांझ की जड़ों का ठंडा पानी गटकने की आदत भी छूटी। मैदान में आकर शर्मा, सिंह बनकर अपनी पहचान भी मिटा चुके हैं। शुरू -शुरू के वर्षा में हर छोटी मोटी चीज छूटने का दर्द सालता रहा। यहां तक की पड़ोस के गांव के बौड़ा, का और काकी की भी याद आती रही। जो मेरे नाम के साथ मेरे पूरे परिवार का इतिहास और जमीन जायदाद- गौड़ी भैंसी के बारे में भी जानकारी रखते थे। गांव के नौनिहाल जो कई बार नंग- धडंग होकर एक साथ हाथ पकड़ खेलते रहते भी बरबश यादों में आते। गोकि वह मेरी उम्र से काफी छोटे थे। मैं उनमें खुद के बचपन को झांकने की कोशिश करता। तिबारी में दबे पांव आने वाली ‘बिरली’ याद आती, याद आता किस तरह गांव का एक मात्र पालतू कुत्ता वक्त बेवक्त भौंकता रहता। सौंण,भादौं , के महीने की घनधोर बरसात में ‘पटाल’ से लगातार गिरती धार सालों तक कानों में बजती रही। यादों का अंधड़ कई बार परदेश के दर्द को और बढ़ा जाता। मगर दिमाग में यादों को ठुंसे रखने की एक सीमा है, फिर नए सपनों के लिए भी तो दिमाग में ‘स्पेश’ रखनी है। आखिर इन सपनों को पूरा करने के लिए ही तो पहाड़ से भाग कर आए हैं। जल्द से जल्द सैलरी बढ़ानी है, फिर यहीं कहीं दिल्ली, चंडीगढ हद से हद देहरादून की पढ़ी लिखि लड़की को ‘ब्यौंली’ बनाने का सपना सच करना है। जिंदगी अतीतजीवी होकर आगे नहीं बढ़ती, पहाड़ देखने में या यूं कहें सपने में तो अच्छे लगते हैं, पर इन्हे झेलना सचमुच कठिन है। बैकग्राउंड मजबूत नहीं हो पाने के कारण मैं तो बहुत कुछ नहीं कर पाया, लेकिन बच्चों को वह सबकुछ देना है जो मुझे नहीं मिला। हां उम्र की आखिरी ढलान पर सारी जिम्मेदारी निभाकर अपने गांव में फिर बस जाउंगा। तब न मुझे कमाने की चिंता होगी, न भविष्य की। बस किसी तरह जिस जगह जन्म लिया वहीं पर खाक भी हो जाऊं। -----------॥॥॥॥ ------------॥॥॥॥॥॥॥------- अब उम्र उस मुकाम पर भी पहुंच गई है। जो सपने देखे थे वो आधे अधूरे ढंग से पूरे भी हो गए हैं। पहाड़ आज भी यादों में सताता है, सच मानो तो दर्द अब कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। पर, फिर कहीं कुछ बदल गया है। नयार, हेंवल और रवासन, भागीरथी, गंगाजी में अब तक कितना ही पानी बह चुका है। एक तो शरीर कमजोर हुआ है- ब्लडप्रेशर, यबटीज जैसी शहरी बीमारियां शरीर में घर कर गई हैं। पहाड़ की उतार चढ़ाव से घुटने में भी दर्द उभर आता है। मैं तो फिर भी यह सह लूं, पर ‘मिसेज’ का क्या करुं। वह तो सड़ी गरमी में भी ‘फ्लैट’ छोड़ने को तैयार नहीं। उसके पास कई तर्क हैं, बीमारी, मौसम और सबसे बड़ा घर खाली छोड़ने पर चोरी का। बंद घरों में चोरी की खबर वह कुछ ज्यादा ही जोर से पढ़ती है।कई बार मैं भी खुद को उसके तर्क से सहमत पाता हूं, जब वह कहती है कि पहाड़ में शौचालय तक का इंतजाम नहीं है। वहां ताजा बाजारू सब्जी और फल के लिए भी कोटद्वार, ऋषिकेश जाने वाले टैक्सी वाले की चिरौरी करनी पड़ती है। और फिर तबियत अचानक बिगड़ने पर अच्छे डॉक्टर कहां हैं, ‘धार -खाल’ के सरकारी डॉक्टर के भरोसे भला गांव में रहने का रिस्क लें। वह खुद के बजाय मुझे मेरी तबीयत का हवाला देकर रोक लेती है।कई बार सोचता हूं कि गांव में कम से कम दो कमरे और एक टायलेट का पक्का मकान बना दूं। कोई नहीं भी आए तो मैं खुद ही जाकर महीने दो महीने बिता आऊं। भतीजे की ‘ब्वारी’ दो रोटियां तो दे ही देगी, हमारी फुंगड़ी भी तो वही लोग खा रहे हैं। पर डरता हूं कि मैं तो बीमारियों का भोजन हूं, साल दो साल ही और इस धरती का वासिंदा हूं। मेरे पीछे गांव के मकान की क्या उपयोगिता, मेरे बाद बच्चे मुझे कोसेंगे ही। इस कशमकश में दिन तेजी से बीत रहे हैं, और मेरी बैचेनी भी। मैं अब भी दुविधा में झूल रहा हूं। यहां में ‘अजनबी’ हूं तो वहां पर ‘अनफिट’। मुझे पहाड़ में दिल्ली की ऐश चाहिए, पर यह संभव नहीं। आखिर वह पहाड़ है, दिल्ली नहीं। बस अब कभी कभी डीवीडी पर गढ़वाली गाने बजा कर खुद को तृप्त कर लेता हूं। घर में गढ़वाली बोली पर नियंत्रण रखने वाला मैं अकेला व्यक्ति हूं, बाकि सब ‘कटमाली’ हैं। गढ़वाली गाने सुनते वक्त मैं एक भाषायी अल्पसंख्यक की तरह भय महसूस करता हूं।आज 45 बरस बाद मेरा यह संकल्प बस सपना बन कर रहा गया। ना दौड़ ना दौड मैं अब भी सुनता हूं। यह गीत अब मुझे धिक्कारता है। संजीव कंडवाल दैनिक जागरण ग्रुप- मेरठ में वरिष्ठ उपसंपादक के पद पर कायर्रत -यदि पढकर पहाड़ की याद ताजा हो या पहाड़ आज भी यादों में सताता है तो आपने विचार मेल पर जरुर दीजिएगां आपकी राय को ब्लाक पर प्रकाशित किया जाएगां -mailmailto:-juyal2@gmail.com( यदि आपके पास भी पहाड़ से जुड़ी कोई यादगार जुडा़व या जानकारी जिसे हम आपस में बाट सके तो मेल कीजिए-) लेख पर टिप्पणी नीचे दे-

उंधारी क बाटा - साथियों का क्या कहना हैं-

आदरनीय Juyal Ji नमस्कार मैंने पहाड़ 1 मैं प्रकाशित आपका लेख उंधरयूं का बाटा pada aakhen nam ho gayei, us lekh ko maine 3 baar mai pura pada (itana roya jinta mai jis din padai puri karke pahli baar delhi ko aaya tha ). isse aage mujhe kuch nhi likha ja raha hai. aapke lekh itana aachach hai ki mere paas uske liya shabd nhi hia thank Pramod 9868905964

dear juyal ji bahut khusi huai 22 tarik ki bol likhi huai (na dhoor na dhoor)30 saal delhi rehene ke baad aaj lag raha hai ki koi hai apana jo ki bholi huai deno ki yadhi taja kara rahai hai thanks yesha laga ki yeh lekha mere jindgi per likha ho kaya aisa nahai hosakta (na dhor na dhor ukali ka bata )pahari log pahar hi mai bas jai many many thanks for you jayal ji thanks jai pahar jai uttrakhand

k s rana

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yar rula diya hai apna to four line mai every thing is your four line thanks for juyal wake up all garhwali youth gererationthanks

manoj kumar <manojgouniyal@yahoo.co.in

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Hi, You have storgly reminded everything, which I think everyone from Gadwal, after moving out of their place would have gone through, I am so touched..

umesh gusain <gusain_umesh@yahoo.co.in

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dear juyal jibahut khusi huai 22 tarik ki bol likhi huai (na dhoor na dhoor)30 saal delhi rehene ke baad aaj lag raha hai ki koi hai apana jo ki bholi huai deno ki yadhi taja kara rahai hai thanks yesha laga ki yeh lekha mere jindgi per likha ho kaya aisa nahai hosakta (na dhor na dhor ukali ka bata )pahari log pahar hi mai bas jai many many thanks for you jayal ji thanks jai pahar jai uttrakhand k s ranaJuyal ji Namaskar,App ka article pad ker dil ko buhut acha laga, Ati uttam. asa laga jase mey me he hu, hum sub uttrakhand walo ke kahne ek si hay.Jai Uttrakhand

Harish Pant

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Dear sir, बहूत खुशी हुई इस बोल्ग को पड कर वो यादे ताजी हो गयी जो कि खास कर एसी ही घट्ना मेरे साथ हुई है मे बहूत अभारी हून ,संजीव जी का जिन्होने मेरे दिल की बात चुराकर सही माने मै लिखा है. वास्तव मै कैई सप्ने सपने ही रह जाते है धन्याबाद देता हू जुयाल जी को इसी तरह से आप अपने गड्वाल की यादे ताजी काराते रहे,Thnaks,

UMESH JOSHI (9868553330)Ast. Sels Manager RAYMOND LtdNOIDA DELHI

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-Sir aapki story pari par kar kushi or parshanta bhi hoi.Aaj bhi har pahari bhai ki yahi tamna hoti hai jo aapne aapne ish lekh mein likhi.Mein Pahar par peyda nahi ho wa.Laiki mare bhi vichar aapke hi tarhe hai.Aaj ki ish tej raftar mein hum kuch pechad gaye hai.Paranto aaj bhi kuch safal pahari bhai hai jo aapne sapno ko jaroor sakar karte hai inh mein kahi mashore hastia shamil hai.mein aapka shukariya ada karta ho jo aapne ish lekh duwara mere ao mere hi tare kai pahari bhaiyo ke dil mein jagayi. Aapko Sadar ParnamBest regards

Virenaagrivirender kumar <virenaagri@yahoo.com>

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बहूत खुशी हुई इस बोल्ग को पड कर वो यादे ताजी हो गयी जो कि खास कर एसी ही घट्ना मेरे साथ हुई है मे बहूत अभारी हून जुयाल जी का जिन्होने मेरे दिल की बात चुराकर सही माने मै लिखा है. वास्तव मै कैई सप्ने सपने ही रह जाते है धन्याबाद देता हू जुयाल जी को इसी तरह से आप अपने गड्वाल की यादे ताजी काराते रहे,

ThnaksHarish kumar soniyal

Dear Juyal Ji, Aapne Har pahari ki baat ka di, aapke lekh pad kar dil main kasak se uth gayi hai. Likhte rahe bahut accha hai. Main bhi Pithoragarh ka huin aur karib 18 saalo se Delhi main huin yahi padai huee ab rojgaar bhi yagi hai. Aap likhe hain to hardaya ke kone kone tak baat pahuchati hai.

( Mohan Joshi)9990993069-

----------------------------------कंडवाल जी नमस्कार ! बहुत खूब लिखा आप ने सच में बस घर कि यादे ताज़ी हो गयी जो सुख-चैन गाव में है ओ कही नहीं हो सकता है दीपावली में पिठ्या भैलू, होली में मिलकर होली खेलना अठवाडओ में घमाचुर का मंडाण वह अपना गाँव में पानी लेने जाना, गाय चुगने जाना अपना गाँव से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता यदि हम अपने गाँव में १ साल में चार शादी भी में भी जाते है तो हँस-खेल के नाच-कूद कर कितनी बीमारी तो दूर हो जाती है एक हम यहा है न दिवाली मना सकते है न होली न किसी से मिलना न कोई पार्टी और पार्टी है भी तो जाओ खाना खाओ चले आओ लेकिन ओ मजा अपने गाव में है ओ कही नहीं हो सकता लेकिन लोगो को उकाल का रास्ता नहीं चढ़ना है पैरो में दर्द होता है जो उंदार के रस्ते गए फिर मुड़ कर भी नहीं देखा कि अपने गाँव में क्या हो रहा है (कूदी बांज पुड्या छन) अभी भी टाइम है बौडी के आ जाओ अपने पहाड़ आप को आवाज दे रहे है ( धै लगानी छान डाडी-काठी कि बौडी कि ये जावा) एक दिन आएगा जब आप बहार वाले अपने उत्तराखंड में बस जायेंगे और हमें फिर जगह नहीं मिलेगा! नौकरी के लिए हमें जाना पड़ता है लेकिन फिर वापस नहीं आना..............कंडवाल जी आप से हमें ये सिख मिली कि अभी भी यदि हम कही दूर परदेश में जाकर बस गए तो लौट कर अपना देवभूमि उत्तराखंड को न भूले नहीं तो एक दिन हमें भी इसी तरह से पचाताप होगा जिस तरह से आप को हो रहा है! धन्यबादअपणु मूलक गाँव सी बढिक कुछ नी छ ये संसार मालोग बिचार कण बाघन चन बघाद पानी का धार मा !अपना मनखी उन्द भगणा छान बिदेशी बस्या छ्न घर मा चला दग्डियो बौढीक जौला, रोपणी लगौला स्यार मा !!(¨`·.·´¨)`·.¸(¨`·.·´¨)(¨`·.·´¨)¸.·´ ~~~

Pushkar Rana ~~~`·.¸.·´ <<<>>

>Rajesh said...kya baat he sanjeev ji, bahut acchaaapnay to sab kuch yaad dila diya realy i am feeling different kah nahi sakta abhi me 28 year ka hun but mera lagav gaun se he waha ka watawaran sab kuch acha thanda pani thandi hawa wo dhund, apna bachpan yaad aa jata he aur aankh bhar aati he rona aata he realy, wo din baday hi achay thay jab school pada kartay they na koi tension na fikr school jana wapas aana ma ke haath ka khan sara pariwar tha ek saath wo din kabhi nahi bhul paunga me, asli maza tabhi tha school phir ghar khelna kudna aur masti baarish me bhi football khella kartay the koi fikar nahi ki tabiyat kharab hogi kuch nahi bas khelna masti, realy thankfull to u sanjeev ji ki aapan ithkga achu lekh hum the pano ku mouka dyai..............March 19, 2009 10:05 PM

Rajesh said...gaun me kya yaad nahi aata sab kuch abhut he acha lagta he yaad aatay he gaun ke din garmi ke dino me danda jana kaful khana hisar ke ped, daanda gaur charnu the jaan dagdiyon dagri, aur bhi bahut kuch phir ghar aakar pandyara me nahen dagdiyon dagri, kya yaad ni aandu pahad ku..........March 19, 2009 10:15 PM

Manber said...Mai bahut hi emotional ho gaya ishe padkar. Mai bhi apne pahad ko bahut miss karata hun un sabhi cheejo ko jo gaon mein hoti hain."Aaj na jaani kile gaon ki aad aani cha"

March 20, 2009 1:44 AM Mr. Rakesh: Very nice article or uttaranchal or any pahari's life truth. It is really very real and emotional. Good blog and effort God blessMrs. Pandey Dear Juyal JieThanks.You have recalled my old memories also.I am a retired Fauji of Garhwal still trying to do something for my children. I passed my education after joining Force & learn Hindi & English I think to do something for the village poor people. But I am also one of them, how can manage. Only can give good wishes. Our people are still far behind in comparison to others although well educated but due to lack of oppertunity & source.We can not manage both end with the micro income.I learn recently computer e.mail etc. but do not know hindi script.Again thanks for a lovely script.-- Thanks & RegardsB S BishtGhaziyabad (UP) (INDIA)

prakash kumar <prakashkumar216@gmail.com>toपहाड़1 <juyal2@gmail.com> dateThu, Mar 26, 2009 at 5:48 AMsubjectRe: पहाड़1mailed-bygmail.com hide details 5:48 AM (12 hours ago) Reply prakash kumar said...gaun me kya yaad nahi aata sab kuch abhut he acha lagta he yaad aatay he gaun ke din garmi ke dino me danda jana kaful khana hisar ke ped, daanda gaur charnu the jaan dagdiyon dagri, aur bhi bahut kuch phir ghar aakar pandyara me nahen dagdiyon dagri, kya yaad ni aandu pahad ku..

thanksprakashkumar

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Adarniya Sanjeev ji Saadar Namaskar, aaj apka bichaar paidi ki man gad gad hoyi gaya. Sach bolan ta apna mera aknon ma ansso chhaliki geni. Aaj office ma comuter on karda hi apki mail padi. bahut khushi hoyi. Hum logu ko apni bhasha wa sanskriti zinda rakhana ke bahut awasaykta cha. mi jyada ni likhnu chandu , bichaar ta bindi likhana cha par samay ki kami cha . apna udgar rakhna ku bahut bahut dhanyabad. Subhash KukretiFaridabad

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Dear Kandwal Ji, You have done a remarkable job by writing such a beautiful article on thesweet memory of our Pahar. I am really thankful to you and greatlyappreciate your writing skils. On going through your article it recollectmy memories and I am of the same views / ideas. I could not do anything formy village since long. Thanks once again and appreciate your memories. With best wishes, (B.S.Negi

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Tuesday 24 March 2009

स्टेडियम के लिए अभी करना होगा छह माह और इंतजारश्रीनगर।

खेलने तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के लिए नैथाना और रानीहाट के खेल प्रेमियों को स्टेडियम के लिए कम से कम अभी छह माह और इंतजार करना होगा। श्रीनगर जल विद्युत परियोजना की कार्यदायी संस्था जीवीके द्वारा नैथाना में बेहतर स्टेडिमय निर्माण का कार्य जोरों पर है। क्षेत्र के युवा प्रतिभाओं को बेहतर मंच प्रदान करने के लिए कंपनी इस स्टेडिमय का निर्माण कर रही है।नैथाना में अलकनंदा के समीप वर्षों से बजर पड़ी लगभग 1० नाली भूमि पर जीवीके कंपनी द्वारा स्टेडिमय निर्माण किया जा रहा है। जबकि उ1त भूमि ग्रामीणों की गौचरान की भूमि थी और स्टेडिमय निर्माण की प्रक्रिया आरंभ होने से ग्रामीणों के सामने चारे की समस्या भी उत्पन्न हो रही है। बावजूद नैथाना तथा रानीहाट के लोगों को इस स्टेडिमय निर्माण होने से क्षेत्र में खेल प्रतिभाओं को बढ़ावा मिलने के साथ ही सामाजिक गतिविधियां बढऩे की उ6मीद जता रहे हैं। मनमोहन सिंह रावत का कहना है कि स्टेडियम निर्माण के धुल से क्षेत्र के लोगों को भारी दि1कतें झोलनी पड़ रही है, लेकिन जब यह स्टेडियम पूर्ण रूप से अस्तित्व में आ जाएगा, निश्चित ही क्षेत्र को नई पहचान भी मिलेगी। 1योंकि इस पूरे क्षेत्र में कही भी स्टेडियम नहीं है। जीवीके कंपनी के सीईओ संतोष रेड्डी ने कहा कि स्टेडिमय निर्माण का कार्य प्रगति पर है और छह माह के अंतर्गत निर्माण कार्य पूर्ण होने की उ6मीद है।

इंटरमीडिएट के चार विषयों की परीक्षाएं स्थगितउ8ाराखंड

बोर्डटिहरी गढ़वाल में प्रश्नपत्र चोरी का असर रामनगर। गढ़वाल मंडल के टिहरी जिले में उ8ाराखंड बोर्ड परीक्षा के चार विषयों के प्रश्नपत्र चोरी होने से महकमे में हड़कंप मच गया। विभागीय अधिकारियों ने इन चारों विषयों की परीक्षा स्थगित कर दी हैं। मामले की जांच पड़ताल के लिए बोर्ड के अपर सचिव दामोदर पंत घटनास्थल की ओर रवाना हो गए हैं।उ8ाराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद के संयुक्त सचिव प्रदीप रावत ने बताया रविवार रात चोरों ने टिहरी जिले के राइका कुंड भरपूरखाल में कार्यालय और अलमारी के दरवाजे तोड़ डाले। चोरों ने वहां रखे इंटरमीडिएट गणित, संस्कृत, अर्थशास्त्र और अंग्रेजी के प्रश्नपत्र चोरी कर ले गए। इंटर गणित की परीक्षा सोमवार की दूसरी पाली में सायं दो से पांच बजे तक होनी थी, लिहाजा गणित समेत इसी पाली में २५ मार्च को पूर्व निर्धारित संस्कृत, २६ को अर्थशास्त्र, २८ को अंग्रेजी विषय की परीक्षाएं स्थगित कर दी गयी हैं, जबकि सोमवार को इंटर गृहविज्ञान, कृषि गणित एवं प्रारंभिक सां2ियकी पंचम प्रश्नपत्र, कृषि शस्य विज्ञान षष्टम प्रश्नपत्र की परीक्षाएं पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत हुईं। इंटरमीडिएट समाजशास्त्र विषय की परीक्षा मंगलवार को ही होगी, जबकि स्थगित विषयों की परीक्षा तिथि शीघ्र घोषित की जाएगी। सचिव एनसी कबड़वाल ने बताया परीक्षाओं की गरिमा, गोपनीयता बनाए रखने के हरसंभव प्रयास किए जाएंगे। उधर, टिहरी के जिला शिक्षाधिकारी रामअवध प्रसाद ने बताया यह विद्यालय देवप्रयाग 4लाक के दूरस्थ गांव में स्थित है। चोरों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर वहां के केंद्र व्यवस्थापक, कस्टोडियन समेत दोनों रात्रि चौकीदारों से पूछताछ की जा रही है। शिक्षा विभाग के साथ ही पुलिस और जिला प्रशासन के अधिकारी भी मौके पर पहुंचे हैं।

हाईकोर्ट ने खारिज की अमरमणि की जमानत याचिकानैनीताल।

कवियत्री मधुमिता शु1ला हत्याकांड में सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले के बाद आजीवन कारावास की सजा काट रहे उ8ार प्रदेश के पूर्व मंत्री और विधायक अमरमणि त्रिपाठी को हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली है। सोमवार को हाईकोर्ट में अमरमणि की जमानत अर्जी पर हुई सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति बीसी कांडपाल और न्यायमूर्ति सुधांशू धूलिया की संयु1त खंडपीठ ने जमानत प्रार्थना पत्र के साथ-साथ सजा स्थगित करने संबंधी प्रार्थना पत्र को भी खारिज कर दिया।उल्लेखनीय है कि कवियत्री मधुमिता शु1ला हत्याकांड के आरोप में पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि समेत रोहित चतुर्वेदी एवं संतोष राय को सीबीआई की विशेष अदालत ने २४ अ1तूबर २००७ को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जिसके बाद चारों आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। इस अपील में अमरमणि की ओर से जमानत दिए जाने हेतु प्रार्थना पत्र भी दिया गया था। पिछले सप्ताह चुनाव में भागीदारी की बात कहते हुए अमरमणि की ओर से जमानत प्रार्थना पत्र पर जल्द सुनवाई का अनुरोध किया गया था। इसके साथ ही अमरमणि की ओर से सजा स्थगित करने के लिए भी एक प्रार्थना पत्र न्यायालय में दिया गया था। सोमवार को मामले में अमरमणि की ओर से बहस करते हुए यूपी के पूर्व महाधिव1ता विरेंद्र भाटिया व वरिष्ठ अधिव1ता विनोद प्रकाश श्रीवास्तव ने अमरमणि को मामले में आपराधिक षड्यंत्र में झाूठा फंसाने का आरोप लगाते हुए जमानत की मांग की। उन्होंने कहा प्रथम सूचना रिपोर्ट में अमरमणि नामजद नहीं हैं और उनके खिलाफ कोई सबूत भी नहीं है। न्यायालय को बताया गया कि मामले के पांचवें अभियु1त प्रकाश पांडे को निचली अदालत ने साक्ष्य के अभाव में निर्दोष माना है। याची के अधिव1ताओं ने कहा अमरमणि आगामी लोकसभा चुनाव में भागीदारी करना चाहते हैं जिसके लिए उनकी सजा को स्थगित किया जाना जरूरी है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का उदाहरण देते हुए बताया कि ऐसे कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में सजा को स्थगित किया है। जमानत का विरोध करते हुए सीबीआई के अधिव1ता और मृतका की बहिन निधि शु1ला के अधिव1ता पीएस अधिकारी ने मामले को जमानत के योग्य नहीं बताया। उन्होंने न्यायालय को बताया कि २९ अप्रैल २००४ को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अमरमणि को जमानत दे दी थी, जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद २६ सितंबर २००५ को अमरमणि की जमानत निरस्त कर दी थी। दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायालय की संयु1त खंडपीठ ने अमरमणि के जमानत प्रार्थना पत्र के साथ-साथ उनकी सजा स्थगित करने संबंधी प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया।

नैनो की लांचिंग से सिडकुल प्लांट में दीवाली

नैनो की लांचिंग से सिडकुल प्लांट में दीवालीप्लांट में उमड़ा नैनो के दीदार को लोगों का हुजूम हल्द्वानी/रुद्रपुर। लखटकिया कार नैनो की मुंबई में लांचिंग से सिडकुल स्थित टाटा कारखाने में उत्सव जैसा माहौल रहा। अधिकारियों और कर्मचारियों ने एक दूसरे को मिठाई खिलाकर प्रोजे1ट की सफलता पर खुशी मनाई। कंपनी के कई अधिकारी मुंबई के संपर्क में रहे। आम आदमी के सपनों की कार से मुंबई में पर्दा उठने के बाद ग्राहकों में जबर्दस्त उत्साह दिखा। पंतनगर प्लांट में भी नैनो के दीवार के लिए लोगों में उत्साह रहा।सपनों की लखटकिया कार नैनो के निर्माण को लेकर टाटा ग्रुप को खासी मश1कत करनी पड़ी। कंपनी ने पश्चिम बंगाल के सिंगूर में नैनो निर्माण का कारखाना स्थापित किया पर तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी के विरोध पर सिंगूर से इसे हटाना पड़ा। बाद में पंतनगर सिडकुल स्थित टाटा कारखाने में नैनो का निर्माण शुरू किया गया। निर्माण की रस्साकसी को लेकर नैनो प्रोजे1ट सुर्खियों में रहा और लोगों में सपनों की कार देखने की उत्सुकता बढ़ गई। सोमवार को मुंबई में टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा ने नैनो के तमाम रहस्यों से पर्दा उठाया। पंतनगर में निर्मित नैनो का सफल ट्रायल के बाद उसे देश की आर्थिक राजधानी मुंबई भेजा रहा है। पंतनगर प्लांट अफसरों ने नैनो प्रोजे1ट की सफलता पर खुशी जाहिर करते हुए मिठाइयां बांटी। सिडकुल के क्षेत्रीय प्रबंधक एनसी पंत ने बताया कि टाटा के नैनो प्रोजे1ट से राज्य सरकार को करीब दो सौ करोड़ राजस्व मिलेगा।

बद्री-केदार के कपाट खुलते ही यात्रियों को चमाचम व्यवस्था

कपाट खुलते ही मिलेगी चमाचम व्यवस्थाजीएमवीएन १५ दिन पहले ही पूरी कर लेगा बद्री-केदार के कपाट खुलते ही यात्रियों को चमाचम व्यवस्था मिलेगी। परिवहन से लेकर गढ़वाल मंडल विकास निगम (जीएमवीएन) के रेस्ट हाउस पूरी तरह तैयार कर दिए जाएंगे। इसके लिए जीएमवीएन की ओर से कर्मियों को १५ दिन पहले रवानगी की बात की जा रही है। इसके लिए कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों तक को निर्देश दे दिया गया है।पिछले साल तक कपाट खुलने के बाद जीएमवीएन तैयारियां शुरू करता था। ऐसे में कपाट खुलने के अगले १० दिनों तक काफी परेशानी उठानी पड़ती थी। परिवहन से लेकर ठहरने और खाने-पीने तक के लिए दि1कतें उठानी पड़ती थी, लेकिन इस वर्ष निगम की ओर से नया प्रयोग किया जा रहा है। इसके लिए निगम की ओर से कपाट खुलने के पहले ही पूरी तैयार कर ली जाएगी। खासतौर पर यात्रा मार्ग पर स्थित ८९ रेस्ट हाउसों, कैंटिनों और बर्फ की सफाई ठीक से कर ली जाएगी। निगम के जीएम युगल किशोर पंत ने बताया कि यात्रा सीजन के लिए यह कवायद पहली बार की जा रही है, जिससे खासतौर पर देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले लोगों को परेशानी न उठानी पड़े। उन्होंने बताया कि यात्रा की सुगमता के लिए निगम द्वारा टूअरों, आवास गृहों का आरक्ष्ज्ञण की सुविधा इंटरनेट के माध्यम से उपल4ध करा जा रही है।

नैनो से दो सौ करोड़ कमाएगा उत्तराखंड!

नैनो की बिक्री से उत्तराखंड को भी उम्मीद है कि यह कार सरकार को करीब 200 करोड़ की कमाई कर दे सकती है। उत्तराखंड को आशा है कि टाटा मोटर्स अधिकतर नैनो कारें उत्तराखंड से बेचेगा। उत्तराखंड सरकार ने हाल में पंतनगर में शुरू टाटा मोटर्स डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लि. को पत्र लिखकर अपनी अधिकतर कारें उत्तराखंड से ही बेचने का अनुरोध किया है। सरकार को आशा है कि पंतनगर के टाटा के कारखाने में बन रही नैनो कारों और अन्य वाहनों की बिक्री से उसे 12.5 प्रतिशत वैट के जरिए 100 से 200 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय हो सकती है। अपर आयुक्त वाणिज्य कर यूएस बिष्ट का कहना है उत्तर भारत में नैनो पंतनगर से ही वितरित की जानी है, इसलिए फैक्ट्री से बाहर आने पर लगने वाले 12.5 प्रतिशत वैट से उत्तराखंड की सीधी कमाई होगी। अगर स्टाक ट्रांसफर किया गया तो उत्तराखंड को लाभ नहीं होगा। मालूम हो कि टाटा मोटर्स को इकाई स्थापित करने के लिए पंतनगर में सरकार ने उसे हजार एकड़ कृषि भूमि आवंटित की है। इसके अलावा पिछले साल डिस्ट्रीब्यूशन इकाई स्थापित करने के लिए टाटा को 20 एकड़ और फिर विस्तार के लिए 40 एकड़ अतिरिक्त भूमि दी गई थी। सिंगुर कांड के बाद टाटा ने पंतनगर में अस्थायी तौर पर नैनो निर्माण शुरू किया था। हाल ही में प्रदेश सरकार ने टाटा मोटर्स से पंतनगर में स्थायी तौर पर नैनो उत्पादन करने का अनुरोध किया है। मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे ने हाल में मीडिया को बताया था कि टाटा पंतनगर इकाई को स्थायी इकाई बना सकता है। वैसे नैनो अप्रैल के पहले हफ्ते से टाटा डीलरों के शोरूम में डिस्पले के लिए आएगी। दूसरे हफ्ते में इसकी बुकिंग शुरू हो जाएगी। टाटा मोटर्स को उम्मीद है एक साल में एक लाख नैनो बाजार में आ जाएंगी। नैनो के शुरुआत में तीन माडल होंगे-नैनो बेस, सीएक्स मिड लेवल और एलएक्स टाप लेवल माडल। पुणे से आने वाली नैनो की एक्स फैक्ट्री कीमत एक लाख से ज्यादा नहीं होगी। बुकिंग फार्म एसबीआई, वेस्टसाइड, क्रोमा स्टोर्स और टाटा मोटर्स के 400 डीलरों से मिल सकेंगे। यह लांचिंग से केवल 14 दिन तक मिलेंगे।

Remarks on Dr. Pratibha Naithani in JBU (24th Feb, 09)

This refers the remark of Shri Ramesh Rautela ,’Mukhya Mantri gaye par Pratibha naithani ke Ghar hi kyon Gaye’I did not understand the intention and reason for Shri Rautela accusing Chief Minister’ for his visit to Dr Pratibha Naithani.Paraiba Naithani is one of the celebrity of India and she belongs to a Gadhwali family. What is wrong there for Chief Minister visiting to such a famous lady of India? India Today positioned Pratibha Naithani among twenty one strongest women of India from a public survey, which means Pratibha is a well known figure of India . It is one of the main duties of a Chief Minister to pay a courtesy visit to such a dignity related to his/her state .Millions of Uttrakhandis are definitely proud of Pratibha Naithani and she is the symbol and inspiration for our pride too. I have been touring many places and meet people and when I say that Dr Pratibha Naithani is from our caste, area, or state, non-Uttrakhandis appreciate our community ,which has such a bold daughter. Dr. Pratibha Naithani provides our community a medium of recognition.Shri Rautela commented, “ kya is pariwar ka koi vaykti itna khyati prapt hai ki hum uske bare men nahi jante”If Rautela Jee does not know about the fame of Dr. Pratibha Naithani then Rautela Jee (if I am not mistaken , he is a social worker ) should be blamed and criticized for his utter ignorance about our famous people (migrated Gadhwali of Mumbai) .Shri Rautela jee also stressed on non contribution of Naithani family for Uttarakhand state movement. People may contribute our society from many angles , means or ways and how can we gratify only to separate state movement members and not other personalities who provided us fame, wealth, recognition etc.As far as CM’s willingness or unwillingness for visiting to late Shri arjun Singh Gusain’s house is concerned, it can not be compared with CM’s visit to Dr Pratibha’s house; because CM might be motivated by his political bondage or prejudices (Gusain jee (UKD) fought parliamentary election against a BJP candidate ). If we cant reach such a height of fame, where Dr Pratibha Naithani has reached we don’t have any right to criticize the credentials of Dr Pratibha Naithani (directly or indirectly). I don’t think there is much contribution of Uttrakhandis on the fame of Dr Pratibha that we dare to criticize her specially in comparison to other Uttrakhandis

Regard

sbhishma kukreti

भूख

जब कोइ मुझ से पूछता है कि,क्या, तुमने . कभी नियति को देखा है ?तो, न जाने क्यूँ तब मेरी निगाहें बरबस मेरी हथेलियों कि रेखाओ पर जाकर टिक जाती है औरढ़ुढ़ने लगती है उन रेखाओ के बीच फसेमेरे मुक्कदर को ... सुना है रेखाए भाग्य कीप्रतिबिम्ब होती है जिसमे छुपा होता है हर एक का कल कल किसने देखा है आज जिंदा रहूंगा तो कल देखूंगा ना ? अगर बच गया तो,फिरसे सारे सब्द , नियति ,सयम ,परितार्नाये रचने लगेगे अपने अपने चकबयूह मुझे घेरने का ! इससे अछा तो मैअपनी हथेलियों को बांध करदू ना बजेगी बांस , ना बजेगी बांसुरी आज फसर के सो जाता हूँ कल की कल देखेंगे नियति से कल निपट लेगे !

पराशर

थल सेना में जीडी, लिपिक,टैकनिकल की भती गौचर में -३.४.९ सें ८.४.९ तक

Monday 23 March 2009

अब आपको दून का केसर मिलेगा.

चौंक गए न, कहां तो केसर का नाम लेते ही कश्मीर का नाम अपने आप ही जुड़ जाता है और यहां हम बात कह रहे हैं दून के केसर की. यह संभव हुआ है यहां के साइंटिस्ट्स व फार्मर्स की मेहनत व हौसले की बदौलत. इन फ्यूचर नहीं, इस साल भी उन्होंने दून में केसर उपजाया है. इस मेडिसीनल प्लांट्स की खेती को लेकर एफआरआई के वैज्ञानिकों में भी खुशी व्याप्त है. कीमती केसर Crotus Sativus बॉटनिकल नाम है केसर का. केसर को बलव‌र्द्धक मेडिसीन के रूप में जाना जाता है, जिसकी कीमत इस समय इंटरनेशनल मार्केट में करीब तीन लाख रुपए प्रति केजी है. केसर के प्रॉडक्शन में बागवान ग्रामोद्योग संस्थान ने खासी सफलता हासिल की है. हालांकि बागवान ग्रामोद्योग संस्थान ऐसे ही मेडिसीन प्लांट्स को पिछले कई वर्षो से उत्पादन करते आया है. लेकिन केसर का उत्पादन किसी संस्थान द्वारा अपने गार्डन में पहली बार किया गया है. ग्रामोद्योग संस्थान की प्रमुख श्रीमती कला बिष्ट ने बताया कि इस सक्सेस के लिए एफआरआई ने भी संस्थान के प्रयासों की सराहना की है. एफआरआई के डायरेक्टर डॉ. एसएस नेगी ने भी केसर की प्रोडक्शन का विजिट किया

नैनो: ऊधम सिंह नगर भी गौरवान्वित

रुद्रपुर: सपनों की कार नैनो की लांचिंग को लेकर जहां देशवासी रोमांचित हैं वहीं ऊधमसिंह नगर के लोग गौरवान्वित भी है। इसकी वजह साफ है कि दुनिया की सबसे सस्ती कार निर्माण का सौभाग्य इस जिले को प्राप्त हो रहा है। टाटा के पंतनगर प्लांट में तो हर एक अधिकारी तथा श्रमिक प्रफुल्लित है। टाटा मोटर्स लिमिटेड के अध्यक्ष रतन टाटा ने लखटकिया कार नैनो को बीते वर्ष नवरात्र में लांच करने की योजना बनायी थी, लेकिन सिंगुर विवाद से इसमें व्यवधान आ गया। टाटा ने इसके निर्माण के लिए गुजरात में साणंद जगह तो चुनी, किंतु लांचिंग के लिए हाल फिलहाल नैनो उत्पादन की जिम्मेदारी पंतनगर के प्लांट को सौंप दी। हालांकि यहां कंपनी का व्यावसायिक वाहनों के निर्माण का प्लांट स्थापित है जबकि नैनो पैसेंजर यूनिट से संबंधित है। इसके बावजूद इसका निर्माण यहां प्रारंभ हुआ और पूरे देश के नागरिकों खासकर मीडिया की निगाह पंतनगर पर केंद्रित हो गयी। पंतनगर प्लांट में मूलत: टाटा ऐस व मैजिक जैसे व्यावसायिक वाहनों का उत्पादन होता है। इस वर्ष डेढ़ लाख ऐस व मैजिक निर्माण का लक्ष्य है। इन दोनों के उत्पादन के मध्य नैनो का भी निर्माण चल रहा है। वर्तमान में रोजाना 15-20 नैनो कारों का निर्माण हो रहा है। नैनो की लांचिंग 23 मार्च को मुंबई में होनी है। लांचिंग के लिए यहां बनी नैनो कारें कंटेनरों के जरिए मुंबई पहुंच गयी हैं। इसके अलावा दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता जैसे मेट्रो शहरों में पहुंचाई जा रही हैं। सूत्रों के मुताबिक विभिन्न रंगों में ये कारें तीन वर्जनों सामान्य, सेमी डीलक्स तथा डीलक्स में है। सामान्य की फिलहाल लागत 1.3 लाख बताई गयी है। सेमी डीलक्स में एसी लगा है जबकि डीलक्स में एसी, हीटर के साथ ही पॉवर विंडों की सुविधा भी है। इनकी लागत पौने दो लाख के करीब बताई जा रही है। सूत्रों के अनुसार नैनो से राज्य सरकार को एक्साइज डयूटी आदि से भी अच्छी आय अर्जित होगी। यदि कार निर्माण का कारखाना यहां लगता तो उत्तराखंड को 350 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष की आय होती। कंपनी देहरादून तथा हरिद्वार में भी अपना शोरूम स्थापित करने की तैयारी में है। नैनो की लांचिंग के मद्देनजर स्थानीय प्लांट में खुशी का माहौल है।

अब किताबों में पढि़ये भारत-तिब्बत व्यापार

, हल्द्वानी : भारत-तिब्बत (हुणदेश) व्यापार अब किताबों में पढ़ने को मिलेगा। रविवार को शहर में आयोजित एक कार्यक्रम में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर प्रकाशित तीन पुस्तकों का विमोचन किया गया। इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि पुस्तके प्रकाशित होने से व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। रविवार को दुर्गा सिटी सेंटर में आयोजित पुस्तकों को विमोचन मुख्य अतिथि शेर सिंह रावत पूर्व संयुक्त सचिव (भारत सरकार) एवं मुख्य सूचना आयुक्त आरएस टोलिया ने किया। श्री रावत ने कहा कि तिब्बत व्यापार आजादी से पूर्व से ही भारत एवं तिब्बत के बीच व्यावसायिक गतिविधियों का आधार रहा है। हुणदेश (जिसे अंग्रेजी हुकूमत के 19 वीं सदी में उत्तर भारत में प्रभुत्व जमाने के बाद तिब्बत कहा जाने लगा) के साथ कुमाऊं गढ़वाल के व्यावसायिक संबंध रहे हैं।

मनमोहक: नैनीताल में रविवार की सुबह नैनी झील के ऊपर बादलों ने अपनी अद्भूत रंगों की छटा ऐसी बिखेरी कि मानो किसी चित्रकार ने नैनी झील को अपने कैनवास पर

खाल और धार करेंगे बेड़ा पार

चुनाव के उतार-चढ़ाव का भौतिक परीक्षण पौड़ी सीट में अपने ही ढंग से होगा। मैदान में सरपट दौड़ने का सुख गिनती के मौकों पर ही मिलेगा, जबकि अधिकतर समय पहाड़ों की विकट परिस्थितियों से ही जूझना पड़ेगा। अंतिम गांव नीति-माणा से लेकर पंच केदार व पंच प्रयाग के दर्शन करने होंगे। पौड़ी-पौड़ी चढ़ता जा, मतदाता का नाम जपता जा की तर्ज पर कभी पहाड़ की चोटियों(धार) पर चढ़ना पड़ेगा तो घाटियों (गाड़) तक उतरने में भी फुर्ती दिखानी होगी। पौड़ी संसदीय सीट खाल और धार का ऐसा मेल है, जो प्रत्याशियों को पसीना निकालता रहा है। यहां गुमखाल, परसुंडाखाल, नौगांवखाल जैसे दर्जनों खाल हैं। राज्य की यह ऐसी अकेली सीट है, जो पांच जिलों में फैली है और उस पर भी तुर्रा यह कि नब्बे प्रतिशत से अधिक भूभाग पहाड़ी है। तिब्बत से लगी सैकड़ों किलोमीटर की अंतरराष्ट्रीय सीमा है तो उत्तर प्रदेश के मैदानों से सटा इलाका भी। इस विस्तृत भू-भाग में फैले हैं छोटे-छोटे गांव, कस्बे और शहर। जितने रंग पौड़ी के भूगोल में हैं शायद उतने ही इसके मिजाज में भी शामिल हैं। सुदूर उत्तर में हिमालय की गोद में भोटिया जनजाति का आधार है। मध्य में राठ और रामनगर क्षेत्र में कुमाऊं की खुशबू। ऐसे में चुनावी ज्ञानेंद्री इतनी संवेदनशील होनी चाहिए कि सारा ज्ञान चुनावी कंट्रोल रूम में एकत्र हो सके। क्योंकि इस सीट पर ज्ञान-ध्यान से ही नैया पार लग पाएगी। पहाड़ की खेती और वोटों की प्रकृति बिलकुल एक जैसी है। किसानों के पास बिखरी जोतें हैं और चकबंदी की उसमें कोई गुंजाइश नजर नहीं आती। ऐसे ही वोट भी इकाई व दहाई के अंक में इस तरह बिखरे हैं कि उनकी ताकत का अंदाज ही नहीं लग पाता। शहर-कस्बों के शोर पर इस वोट की खामोशी भारी पड़ती रही है। यदि जनसंख्या घनत्व के हिसाब से देखें तो यह चमोली में 48, पौड़ी में 129, रुद्रप्रयाग में 120, देवप्रयाग व नरेंद्रनगर में 117 व रामनगर में करीब 177 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। इसके संकेत स्पष्ट हैं कि पहाड़ों में एक-एक वोट के लिए कई किलोमीटर की पद यात्रा करनी होगी। पौड़ी सीट पर साक्षरता का गणित भी रोचक है। चमोली में साक्षरता का प्रतिशत 75.4, रुद्रप्रयाग में 73.6, पौड़ी में 77.5, नरेंद्रनगर व देवप्रयाग में 62.4 तथा रामनगर में करीब 67 है। पौड़ी में सबसे अधिक साक्षर पुरुष 90.9 तथा महिला 65.7 प्रतिशत हैं। इस जनपद की तुलना में अन्य चार जनपदों में साक्षरता का प्रतिशत कम है। देवप्रयाग क्षेत्र में महिलाओं का साक्षरता प्रतिशत पचास से भी कम है। इस सीट पर महिलाओं की औसत साक्षरता 60 प्रतिशत से अधिक तथा पुरुषों की 88 प्रतिशत से ज्यादा है। यह साक्षरता दर परिपक्व जनादेश देने में अहम भूमिका निभाएगी। पौड़ी सीट के बारे में एक तथ्य यह भी है कि यहां राजनीतिक जागरूकता इतनी है कि लोगों को गांवके राजनीतिक समीकरण अमेरिका की नीतियों से हल करने की आदत है। खेत-खलिहान, चौपाल और पंचायत में चुनावी जोड़-घटाव लोगों की दिनचर्या का हिस्सा रहा है। मनीआर्डर संस्कृति के चलते गांवों में महिलाओं पर काफी कुछ निर्भर रहता है। सेना में सेवा देने वालों की संख्या इस सीट पर ठीकठाक है। करीब 17 प्रतिशत से अधिक सैनिक व पूर्व सैनिक मतदाता समय-समय पर नेताओं को अपने वजूद का अहसास कराते रहे हैं। ऐसे में इस सीट का चुनावी खेल विशिष्टता व रोचकता से भरपूर हैं।

सबसे प्यारी मेरी मां

वो दिन लद गए जब पहाड़ की महिलाएं पूरी तरह पुरुषों पर निर्भर थीं।

चार धाम यात्रा:यात्रा पैकेज टूर की नई दरें जारी

इस दौर में भगवान के दर्शन करना भी महंगा होता जा रहा है। चार धाम यात्रा सीजन नजदीक आते ही गढ़वाल मंडल विकास निगम ने अपने यात्रा पैकेज टूर की नई दरें जारी कर दी हैं। वर्ष, 2009-10 के लिए जो दरें तय की गई हैं, वे पिछली दरों के मुकाबले पांच से 35 प्रतिशत ज्यादा हैं। हालांकि दरों में की गई इस वृद्धि के पीछे महंगाई के साथ ही निगम की परिवहन सेवाओं व पर्यटक आवास गृहों में बढ़ाई गई यात्री सुविधाएं प्रमुख कारण हैं। जीएमवीएन के जरिये भगवान बदरी-केदार व गंगोत्री-यमुनोत्री की तीर्थ यात्रा करने वालों को इस बार यात्रा के दौरान ज्यादा बेहतर सुविधाएं मिलेंगी। यात्रियों को इसके लिए ज्यादा कीमत भी चुकानी होगी। निगम के पर्यटन अनुभाग ने चार धाम यात्रा के अपने पैकेज टूर की दरों में पांच से 35 प्रतिशत तक की वृद्धि की है। दिल्ली-चार धाम-दिल्ली के जिस पैकेज टूर की दर वर्ष 2008-09 में प्रति व्यक्ति 13,930 थी, अब वह बढ़कर 16,500 रुपये कर दी गई है। इसी तरह ऋषिकेश-चार धाम-ऋषिकेश का पैकेज टूर 10,360 रुपये से बढ़कर 12,940 रुपये हो गया है। दिल्ली से बदरीनाथ-केदारनाथ पैकेज टूर की दर में 35 फीसदी, तो ऋषिकेश से बदरीनाथ-केदारनाथ के टूर की दरों में 28 फीसदी की वृद्धि की गई है। इसी तरह अन्य पैकेज टूर की दरें भी बढ़ाई गई हैं। निगम के महाप्रबंधक (पर्यटन) जुगल किशोर पंत का कहना है कि श्रद्धालुओं को ज्यादा आरामदेह यात्रा कराना निगम का उद्देश्य है। लिहाजा, पिछले वर्ष के मुकाबले पर्यटक आवास गृहों व पर्यटन सेवाओं में बेहतर सुविधाएं जुटाई गई हैं। इन सुविधाओं के सापेक्ष ही यात्रा दरों में वृद्धि की गई

Sunday 22 March 2009

मेजर बिष्ट ने बढ़ाया उत्तराखंड का मान

बहादुरी के लिए ऱाष्ट्रपति ने दिया शौयॅ चक्र अल्मोड़ा देवली खेत के नाफणा गांव के निवासी मेजर सुंदर सिंह बिष्ट को १९ माचॅ २००९ को ऱाष्ट्रपति ने असीम बहादुरी के लिए उन्हे शौयॅ चक्र प्रदान किया । इससे पहले भी उन्हे बहादुरी के लिए कई सम्मान मिल चुके हैं ।

Friday 20 March 2009

उंधरयूं का बाटा’

( गांव छूटा, पहाड़ छूटा, देवदार की हवा और बांझ की जड़ों का ठंडा पानी गटकने की आदत भी छूटी। मैदान में आकर शर्मा, सिंह बनकर अपनी पहचान भी मिटा चुके हैं।)-

इंटर पास करने के बाद पहली बार 13 जुलाई को सुबह नौ बजे की बस से मैं पहाड़ से निकला था। जीएमओयू की बस मैं नेगी जी का ‘ना दौड़ ना दौड़ उंधरयूं का बाटा’ गीत बज रहा था, यह गीत मुझे रुला रहा था गीत मेरी पहाड़ से विदाई की पृष्ठभूमि में बज रहा था मेरी आंख नम हो रही थी. गांव छूटा, पहाड़ छूटा, देवदार की हवा और बांझ की जड़ों का ठंडा पानी गटकने की आदत भी छूटी। मैदान में आकर शर्मा, सिंह बनकर अपनी पहचान भी मिटा चुके हैं। शुरू -शुरू के वर्षा में हर छोटी मोटी चीज छूटने का दर्द सालता रहा। यहां तक की पड़ोस के गांव के बौड़ा, का और काकी की भी याद आती रही। जो मेरे नाम के साथ मेरे पूरे परिवार का इतिहास और जमीन जायदाद- गौड़ी भैंसी के बारे में भी जानकारी रखते थे। गांव के नौनिहाल जो कई बार नंग- धडंग होकर एक साथ हाथ पकड़ खेलते रहते भी बरबश यादों में आते। गोकि वह मेरी उम्र से काफी छोटे थे। मैं उनमें खुद के बचपन को झांकने की कोशिश करता। तिबारी में दबे पांव आने वाली ‘बिरली’ याद आती, याद आता किस तरह गांव का एक मात्र पालतू कुत्ता वक्त बेवक्त भौंकता रहता। सौंण,भादौं , के महीने की घनधोर बरसात में ‘पटाल’ से लगातार गिरती धार सालों तक कानों में बजती रही। यादों का अंधड़ कई बार परदेश के दर्द को और बढ़ा जाता। मगर दिमाग में यादों को ठुंसे रखने की एक सीमा है, फिर नए सपनों के लिए भी तो दिमाग में ‘स्पेश’ रखनी है। आखिर इन सपनों को पूरा करने के लिए ही तो पहाड़ से भाग कर आए हैं। जल्द से जल्द सैलरी बढ़ानी है, फिर यहीं कहीं दिल्ली, चंडीगढ हद से हद देहरादून की पढ़ी लिखि लड़की को ‘ब्यौंली’ बनाने का सपना सच करना है। जिंदगी अतीतजीवी होकर आगे नहीं बढ़ती, पहाड़ देखने में या यूं कहें सपने में तो अच्छे लगते हैं, पर इन्हे झेलना सचमुच कठिन है। बैकग्राउंड मजबूत नहीं हो पाने के कारण मैं तो बहुत कुछ नहीं कर पाया, लेकिन बच्चों को वह सबकुछ देना है जो मुझे नहीं मिला। हां उम्र की आखिरी ढलान पर सारी जिम्मेदारी निभाकर अपने गांव में फिर बस जाउंगा। तब न मुझे कमाने की चिंता होगी, न भविष्य की। बस किसी तरह जिस जगह जन्म लिया वहीं पर खाक भी हो जाऊं। -----------॥॥॥॥ ------------॥॥॥॥॥॥॥------- अब उम्र उस मुकाम पर भी पहुंच गई है। जो सपने देखे थे वो आधे अधूरे ढंग से पूरे भी हो गए हैं। पहाड़ आज भी यादों में सताता है, सच मानो तो दर्द अब कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। पर, फिर कहीं कुछ बदल गया है। नयार, हेंवल और रवासन, भागीरथी, गंगाजी में अब तक कितना ही पानी बह चुका है। एक तो शरीर कमजोर हुआ है- ब्लडप्रेशर, यबटीज जैसी शहरी बीमारियां शरीर में घर कर गई हैं। पहाड़ की उतार चढ़ाव से घुटने में भी दर्द उभर आता है। मैं तो फिर भी यह सह लूं, पर ‘मिसेज’ का क्या करुं। वह तो सड़ी गरमी में भी ‘फ्लैट’ छोड़ने को तैयार नहीं। उसके पास कई तर्क हैं, बीमारी, मौसम और सबसे बड़ा घर खाली छोड़ने पर चोरी का। बंद घरों में चोरी की खबर वह कुछ ज्यादा ही जोर से पढ़ती है।कई बार मैं भी खुद को उसके तर्क से सहमत पाता हूं, जब वह कहती है कि पहाड़ में शौचालय तक का इंतजाम नहीं है। वहां ताजा बाजारू सब्जी और फल के लिए भी कोटद्वार, ऋषिकेश जाने वाले टैक्सी वाले की चिरौरी करनी पड़ती है। और फिर तबियत अचानक बिगड़ने पर अच्छे डॉक्टर कहां हैं, ‘धार -खाल’ के सरकारी डॉक्टर के भरोसे भला गांव में रहने का रिस्क लें। वह खुद के बजाय मुझे मेरी तबीयत का हवाला देकर रोक लेती है।कई बार सोचता हूं कि गांव में कम से कम दो कमरे और एक टायलेट का पक्का मकान बना दूं। कोई नहीं भी आए तो मैं खुद ही जाकर महीने दो महीने बिता आऊं। भतीजे की ‘ब्वारी’ दो रोटियां तो दे ही देगी, हमारी फुंगड़ी भी तो वही लोग खा रहे हैं। पर डरता हूं कि मैं तो बीमारियों का भोजन हूं, साल दो साल ही और इस धरती का वासिंदा हूं। मेरे पीछे गांव के मकान की क्या उपयोगिता, मेरे बाद बच्चे मुझे कोसेंगे ही। इस कशमकश में दिन तेजी से बीत रहे हैं, और मेरी बैचेनी भी। मैं अब भी दुविधा में झूल रहा हूं। यहां में ‘अजनबी’ हूं तो वहां पर ‘अनफिट’। मुझे पहाड़ में दिल्ली की ऐश चाहिए, पर यह संभव नहीं। आखिर वह पहाड़ है, दिल्ली नहीं। बस अब कभी कभी डीवीडी पर गढ़वाली गाने बजा कर खुद को तृप्त कर लेता हूं। घर में गढ़वाली बोली पर नियंत्रण रखने वाला मैं अकेला व्यक्ति हूं, बाकि सब ‘कटमाली’ हैं। गढ़वाली गाने सुनते वक्त मैं एक भाषायी अल्पसंख्यक की तरह भय महसूस करता हूं।आज 45 बरस बाद मेरा यह संकल्प बस सपना बन कर रहा गया। ना दौड़ ना दौड मैं अब भी सुनता हूं। यह गीत अब मुझे धिक्कारता है।

संजीव कंडवाल

दैनिक जागरण ग्रुप- मेरठ में वरिष्ठ उपसंपादक के पद पर कायर्रत -यदि पढकर पहाड़ की याद ताजा हो या पहाड़ आज भी यादों में सताता है तो आपने विचार मेल पर जरुर दीजिएगां आपकी राय को ब्लाक पर प्रकाशित किया जाएगां -mailto:-juyal2@gmail.com( यदि आपके पास भी पहाड़ से जुड़ी कोई यादगार जुडा़व या जानकारी जिसे हम आपस में बाट सके तो मेल कीजिए-)

लेख पर टिप्पणी नीचे दे-

उंधारी क बाटा -क्या है पहाड़ के प्रति लोगों का लगाव

dear juyal ji bahut khusi huai 22 tarik ki bol likhi huai (na dhoor na dhoor)30 saal delhi rehene ke baad aaj lag raha hai ki koi hai apana jo ki bholi huai deno ki yadhi taja kara rahai hai thanks yesha laga ki yeh lekha mere jindgi per likha ho kaya aisa nahai hosakta (na dhor na dhor ukali ka bata )pahari log pahar hi mai bas jai many many thanks for you jayal ji thanks jai pahar jai uttrakhand k s rana Juyal ji Namaskar, App ka article pad ker dil ko buhut acha laga, Ati uttam. asa laga jase mey me he hu, hum sub uttrakhand walo ke kahne ek si hay. Jai Uttrakhand Harish Pant Dear sir, बहूत खुशी हुई इस बोल्ग को पड कर वो यादे ताजी हो गयी जो कि खास कर एसी ही घट्ना मेरे साथ हुई है मे बहूत अभारी हून ,संजीव जी का जिन्होने मेरे दिल की बात चुराकर सही माने मै लिखा है. वास्तव मै कैई सप्ने सपने ही रह जाते है धन्याबाद देता हू जुयाल जी को इसी तरह से आप अपने गड्वाल की यादे ताजी काराते रहे, Thnaks, UMESH JOSHI (9868553330)Ast. Sels Manager RAYMOND LtdNOIDA DELHI ------------ Sir aapki story pari par kar kushi or parshanta bhi hoi.Aaj bhi har pahari bhai ki yahi tamna hoti hai jo aapne aapne ish lekh mein likhi.Mein Pahar par peyda nahi ho wa.Laiki mare bhi vichar aapke hi tarhe hai.Aaj ki ish tej raftar mein hum kuch pechad gaye hai.Paranto aaj bhi kuch safal pahari bhai hai jo aapne sapno ko jaroor sakar karte hai inh mein kahi mashore hastia shamil hai.mein aapka shukariya ada karta ho jo aapne ish lekh duwara mere ao mere hi tare kai pahari bhaiyo ke dil mein jagayi. Aapko Sadar ParnamBest regardsVirenaagri virender kumar <virenaagri@yahoo.com>

बहूत खुशी हुई इस बोल्ग को पड कर वो यादे ताजी हो गयी जो कि खास कर एसी ही घट्ना मेरे साथ हुई है मे बहूत अभारी हून जुयाल जी का जिन्होने मेरे दिल की बात चुराकर सही माने मै लिखा है. वास्तव मै कैई सप्ने सपने ही रह जाते है धन्याबाद देता हू जुयाल जी को इसी तरह से आप अपने गड्वाल की यादे ताजी काराते रहे, Thnaks Harish kumar soniyal

Dear Juyal Ji, Aapne Har pahari ki baat ka di, aapke lekh pad kar dil main kasak se uth gayi hai. Likhte rahe bahut accha hai. Main bhi Pithoragarh ka huin aur karib 18 saalo se Delhi main huin yahi padai huee ab rojgaar bhi yagi hai. Aap likhe hain to hardaya ke kone kone tak baat pahuchati hai.

( Mohan Joshi)9990993069

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कंडवाल जी नमस्कार ! बहुत खूब लिखा आप ने सच में बस घर कि यादे ताज़ी हो गयी जो सुख-चैन गाव में है ओ कही नहीं हो सकता है दीपावली में पिठ्या भैलू, होली में मिलकर होली खेलना अठवाडओ में घमाचुर का मंडाण वह अपना गाँव में पानी लेने जाना, गाय चुगने जाना अपना गाँव से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता यदि हम अपने गाँव में १ साल में चार शादी भी में भी जाते है तो हँस-खेल के नाच-कूद कर कितनी बीमारी तो दूर हो जाती है एक हम यहा है न दिवाली मना सकते है न होली न किसी से मिलना न कोई पार्टी और पार्टी है भी तो जाओ खाना खाओ चले आओ लेकिन ओ मजा अपने गाव में है ओ कही नहीं हो सकता लेकिन लोगो को उकाल का रास्ता नहीं चढ़ना है पैरो में दर्द होता है जो उंदार के रस्ते गए फिर मुड़ कर भी नहीं देखा कि अपने गाँव में क्या हो रहा है (कूदी बांज पुड्या छन) अभी भी टाइम है बौडी के आ जाओ अपने पहाड़ आप को आवाज दे रहे है ( धै लगानी छान डाडी-काठी कि बौडी कि ये जावा) एक दिन आएगा जब आप बहार वाले अपने उत्तराखंड में बस जायेंगे और हमें फिर जगह नहीं मिलेगा! नौकरी के लिए हमें जाना पड़ता है लेकिन फिर वापस नहीं आना..............कंडवाल जी आप से हमें ये सिख मिली कि अभी भी यदि हम कही दूर परदेश में जाकर बस गए तो लौट कर अपना देवभूमि उत्तराखंड को न भूले नहीं तो एक दिन हमें भी इसी तरह से पचाताप होगा जिस तरह से आप को हो रहा है! धन्यबाद अपणु मूलक गाँव सी बढिक कुछ नी छ ये संसार मालोग बिचार कण बाघन चन बघाद पानी का धार मा !अपना मनखी उन्द भगणा छान बिदेशी बस्या छ्न घर मा चला दग्डियो बौढीक जौला, रोपणी लगौला स्यार मा !!

(¨`·.·´¨)`·.¸(¨`·.·´¨)(¨`·.·´¨)¸.·´ ~~~ Pushkar Rana ~~~`·.¸.·´ <<<>>>

Rajesh said... kya baat he sanjeev ji, bahut acchaaapnay to sab kuch yaad dila diya realy i am feeling different kah nahi sakta abhi me 28 year ka hun but mera lagav gaun se he waha ka watawaran sab kuch acha thanda pani thandi hawa wo dhund, apna bachpan yaad aa jata he aur aankh bhar aati he rona aata he realy, wo din baday hi achay thay jab school pada kartay they na koi tension na fikr school jana wapas aana ma ke haath ka khan sara pariwar tha ek saath wo din kabhi nahi bhul paunga me, asli maza tabhi tha school phir ghar khelna kudna aur masti baarish me bhi football khella kartay the koi fikar nahi ki tabiyat kharab hogi kuch nahi bas khelna masti, realy thankfull to u sanjeev ji ki aapan ithkga achu lekh hum the pano ku mouka dyai.............. March 19, 2009 10:05 PM Rajesh said... gaun me kya yaad nahi aata sab kuch abhut he acha lagta he yaad aatay he gaun ke din garmi ke dino me danda jana kaful khana hisar ke ped, daanda gaur charnu the jaan dagdiyon dagri, aur bhi bahut kuch phir ghar aakar pandyara me nahen dagdiyon dagri, kya yaad ni aandu pahad ku.......... March 19, 2009 10:15 PM Manber said... Mai bahut hi emotional ho gaya ishe padkar. Mai bhi apne pahad ko bahut miss karata hun un sabhi cheejo ko jo gaon mein hoti hain."Aaj na jaani kile gaon ki aad aani cha" March 20, 2009 1:44 AM

Mr. Rakesh: Very nice article or uttaranchal or any pahari's life truth. It is really very real and emotional. Good blog and effort God bless

Mrs. Pandey

Dear Juyal Jie Thanks. You have recalled my old memories also. I am a retired Fauji of Garhwal still trying to do something for my children. I passed my education after joining Force & learn Hindi & English I think to do something for the village poor people. But I am also one of them, how can manage. Only can give good wishes. Our people are still far behind in comparison to others although well educated but due to lack of oppertunity & source. We can not manage both end with the micro income. I learn recently computer e.mail etc. but do not know hindi script. Again thanks for a lovely script. -- Thanks & Regards B S BishtGhaziyabad (UP) (INDIA)

कनाड़ा मे भी पहाड़ की धूम-

पाराशर गौड़ की पुस्तक “उकाल-उंदार” का लोकार्पण किया गया। “उकाल-उंदार” गढ़वाली की कविताओं और उनके हिन्दी अनुवाद का द्विभाषीय संकलन है; और इसी कारण से यह अनूठी पुस्तक है क्योंकि अभी तक भारत से बाहर प्रकाशित इस शैली की यह पहली पुस्तक है। पाराशर गौड़ ने हिन्दी राइटर्स गिल्ड को इस नये प्रयास की नींव डालने के लिए धन्यवाद और बधाई दी। उन्होंने कहा कि लोक भाषा को जिस तरह से विदेश में मान मिला है वैसा तो भारत में भी नहीं मिलता। इसके पश्चात उन्होंने अपनी पुस्तक में से चार कविताओं का पाठ किया। सुमन कुमार घई ने पुस्तक के विषय में बोलते हुए बताया कि इस पुस्तक के लेखन का काल १९६५ से १९७५ है। इस पुस्तक की अधिकतर कविताएँ उतरांचल की माँग के जनान्दोलन से उत्पन्न हुई हैं। कविताओं में आंचलिक आक्रोश, कुंठा और विवशता की अभिव्यक्ति है। पाराशर गौड़ का कवि के रूप में एक अपरिचित रूप है क्योंकि इस समय वह व्यंग्य-हास्य और कोमल भाव की कविताओं के लिए जाने जाते हैं। डॉ. शैलजा सक्सेना ने पुस्तक की चर्चा करते हुए कहा कि इन कविताओं में व्यक्त आक्रोश केवल उत्तरांचल का आक्रोश नहीं अपितु उस काल के हर युवा का आक्रोश है। राजनैतिक व्यवस्था, भ्रष्टाचार और लालफीताशाही से कुंठित समाज का आक्रोश है। उन्होंने पाराशर जी को धन्यवाद दिया कि हिन्दी कविता में आंचलिक शब्दों के प्रयोग से उन्होंने हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है। अगले चरण में जसबीर कालरवि ने अपनी लोकार्पित पुस्तक “रबाब” में से दो रचनाएँ सुनाईं और दो नई कविताएँ सुनाईं। कैनेडा के हिन्दी साहित्य जगत में जसबीर कालरवि का नाम नया है। उनकी कविताओं में एक नई ताज़गी है और क्योंकि वह मूलतः पंजाबी के कवि हैं; तो उनकी कविता में पंजाबी का रंग आ जाना स्वाभाविक ही है और इससे उनका लेखन हिन्दी साहित्य के जानकारों को सुखद विस्मय की अनुभूति देता है।
कनाड़ा से परासर गौड़

Wednesday 18 March 2009

राष्ट्रीय धरोहर बनेगा कैलास यात्रा का प्राचीन पथ

पिथौरागढ़: संस्कृति विभाग ने कैलाश मानसरोवर यात्रा के प्राचीन मार्ग को राष्ट्रीय धरोहर में शामिल करने की मंशा जतायी है। यह मार्ग भारत-तिब्बत सीमा पुलिस ने पिछले साल खोजा था। मंत्रालय ने इस बाबत विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। मालूम हो कि भारत-तिब्बत सीमा पुलिस की सातवीं वाहिनी मिर्थी के कमांडेंट एपीएस निंबाडिया की पहल पर 2008 में प्राचीन कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग की खोज की गई थी। गाला से काठगोदाम तक 260 किमी लंबे इस पैदल मार्ग की खोज के लिए गठित आईटीबीपी के जवानों की टीम को खासी मशक्कत करनी पड़ी थी। लंबे समय से उपयोग में न आने के कारण यह मार्ग कई स्थानों पर नाममात्र का रह गया है। मार्ग के किनारे जिन धर्मशालाओं का जिक्र किया जाता था वह भी केवल अवशेष के रूप में मिलीं। कैलास यात्रा के संचालन में प्रमुख भूमिका निभाने वाली आईटीबीपी का इस मार्ग की खोज का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक आपदा के दौरान प्रचलित मार्ग के अवरुद्ध होने पर यात्रा को प्राचीन मार्ग से संचालित करने का था। आईटीबीपी को इस मार्ग की खोज में मिली सफलता के बाद अब संस्कृति विभाग ने भी रुचि दिखाई है। वाहिनी के कमांडेंट निंबाडिया ने बताया कि प्रदेश के संस्कृति विभाग ने प्राचीन मार्ग के संबंध में उनसे विस्तृत जानकारी मांगी है। सरकार ने पत्र के माध्यम से इस प्राचीन मार्ग को राष्ट्रीय धरोहर में शामिल करने की मंशा जताई है। इस संबंध में शीघ्र ही संस्कृति मंत्रालय को पूरी जानकारी दे दी जायेगी।

लोस चुनाव से अटकी विश्वविद्यालय परीक्षा

हल्द्वानी: कुमाऊं विश्र्वविद्यालय ऊहापोह की स्थिति में हैं। पहले विश्र्वविद्यालय शिक्षकों व कर्मचारियों की हड़ताल से परीक्षा तिथि टल गयी और अब चुनाव तिथि तय होने से परीक्षा तिथि घोषित नहीं हो पा रही है। प्रशासन के जवाब के इंतजार में विवि किसी भी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहा है। इस स्थिति से लाखों छात्र-छात्रायें भविष्य को लेकर आशंकित हैं। कुमाऊं विश्र्वविद्यालय ने एक महीने पहले ही 15 मार्च परीक्षा तिथि घोषित कर दी थी। विश्र्वविद्यालय में शिक्षकों व कर्मचारियों के आंदोलन के चलते निर्धारित समय से परीक्षा नहीं हो सकी। इस तिथि को टाल दिया गया। अब लोकसभा चुनाव की तिथि घोषित हो गयी है। कुमाऊं में एमबी पीजी कालेज हल्द्वानी, राजकीय महाविद्यालय पिथौरागढ़, राजकीय महाविद्यालय, बागेश्र्वर को चुनाव कार्यालय बनाये जाने को लेकर विश्र्वविद्यालय प्रशासन असमंजस में है। विश्र्वविद्यालय महाविद्यालयों को चुनाव कार्यालय बनाये जाने को लेकर असमंजस में है। इसके लिये जिलाधिकारियों को पत्र भी लिखा गया है, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिल सका है। इस स्थिति से परेशान विश्र्वविद्यालय चुनाव तिथि घोषित नहीं कर पा रहा है। कुमाऊं विश्र्वविद्यालय के कुलसचिव बीसी जोशी का कहना है कि जिलाधिकारी को पत्र भेजा है। इसका जवाब आने के बाद ही परीक्षा तिथि निर्धारित होगी।

दिल्ली-नैनीताल एसी बस सेवा शुरू

नैनीताल: परिवहन निगम ने मंगलवार से नैनीताल व दिल्ली के बीच वातानुकूलित बस सेवा का संचालन शुरू कर दिया है। यह बस हर दिन दोपहर 12.30 बजे नैनीताल से प्रस्थान कर रात्रि 9 बजे दिल्ली पहुंचेगी। दूसरे दिन सुबह सात बजे दिल्ली से प्रस्थान कर सायं चार बजे नैनीताल पहुंचेगी। निगम के मंडलीय प्रबंधक (संचालन) मुकुल पंत ने बताया कि स्थानीय लोगों व पर्यटकों की डिमांड को देखते हुए इस सेवा संचालन किया गया है।

सियासत: बदले अपने व पराए के मायने

देहरादून, यह सियासत में ही संभव है कि अपने ही अपनों के खिलाफ काम करें और पराए मदद के लिए अपनों का ही साथ छोड़ने को तैयार हो जाए। हालात ये हैं कि ऐसा करने के लिए विधायकों ने दलीय निष्ठा और अनुशासन को भी तार-तार करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। पहले बात सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की। पिछले कई रोज से साफ दिख रहा था कि निर्दलीय व उत्तराखंड क्रांति दल के विधायकों की वजह से सरकार किसी संकट में घिर सकती है। इसके बाद भी भाजपाई विधायक मुन्ना सिंह चौहान चुनावी माहौल में भाजपा के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बयानबाजी शुरू कर दी। अब बताया जा रहा है कि अंदरखाने पांच और विधायक भी सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करने की तैयारी में हैं। संकट के समय में अपने भी विरोध पर आमादा हो जाए यह तो सियासत में ही संभव है। अब बात उक्रांद की। इस दल के विधायक भले ही सरकार का समर्थन कर रहे हैं पर भाजपा की तुलना में इन्हें गैर ही कहा जाएगा। इस दल में हालात भाजपा से एकदम उलट हैं। उक्रांद नेता कई रोज से सरकार से समर्थन वापसी की बातें कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि पार्टी के आम कार्यकर्ताओं की राय भी यही है पर इस दल के तीन में से दो विधायक अपने दल की बात सुनने की बजाय सरकार का समर्थन करते रहने के पक्षधर हैं। सूत्रों की मानें तो आने वाले समय में ये दो विधायक (एक काबीना मंत्री समेत) सरकार की खातिर अपने दल को भी छोड़ सकते हैं। है न मजे की बात। सियासत के इस खेल में अपने और पराए के मायने ही बदल दिए हैं। किसी को भी न तो अपनों की परवाह है और न ही अपने दल के प्रति निष्ठा की। कहा जा रहा है कि आने वाले समय में सियासत में इससे भी ज्यादा दिखाई देने वाला है।

गढ़वाल की नारी, आधी आबादी पर पड़ेगी भारी

, देहरादून पौड़ी संसदीय सीट पर महिला मतदाताओं का जादू सिर चढ़कर बोलेगा। सर्विस मतदाताओं की भी चुनावी खेल को बनाने-बिगाड़ने में अहम भूमिका रहेगी। इस सीट की श्रीनगर में सर्वाधिक तथा देवप्रयाग विधानसभा में सबसे कम मतदाता हैं। रोचक तथ्य यह है कि 14 विधानसभाओं में से 11 में महिला मतदाताओं का वर्चस्व है। पौड़ी सीट पर मतदाताओं का गणित कई सवालों को जन्म देने वाला है। हालांकि इस बार सीट की शक्ल कुछ नई है पर हालात में कोई खास बदलाव नहीं आया है। पिछले आम चुनाव में पौड़ी सीट पर 1081299 मतदाता थे, जिनकी संख्या बढ़कर 1085310 पहुंच गई है। संख्या में केवल 4011 की बढ़ोतरी हुई है। पिछले चुनाव की तर्ज पर ही इस बार महिला वोटरों की संख्या ज्यादा है। यहां पुरुष मतदाताओं की संख्या 506307 तो महिला की 537404 हैं। इस श्रेणी में 31097 महिला मतदाता अधिक हैं। अब बात सर्विस मतदाताओं की। इनकी संख्या 12321 से बढ़कर 41599 पहुंच गई है। इसमें 29764 पुरुष तथा 11835 महिला मतदाता है। सामान्य व सर्विस मतदाताओं को मिलाकर जो परिदृश्य बना है, उसमें भी पुरुषों की तुलना में 13168 महिला मतदाता अधिक है। पौड़ी सीट में जो 14 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं, उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि दो तिहाई से अधिक सीटों पर महिला मतदाता अधिक हैं। 11 विधानसभा में महिला मतदाताओं का वर्चस्व है। इसमें बद्रीनाथ, थराली, कर्णप्रयाग, केदारनाथ, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग, यमकेश्वर, पौड़ी, चौबट्टाखाल, श्रीनगर व लैंसडौन शामिल हैं। नरेंद्रनगर, कोटद्वार व रामनगर ही ऐसी सीटें हैं, जहां पुरुष मतदाताओं की संख्या अधिक है। एक तरह से मामूली तौर पर तराई के साथ लगे तीन विधानसभा क्षेत्रों में ही पुरुष बढ़त बना पाए हैं, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में महिलाएं ही भारी पड़ी हैं। सर्विस मतदाताओं की संख्या राज्य के अन्य लोकसभा क्षेत्रों की तुलना में काफी अधिक है, जिसकी चुनाव में विशेष भूमिका रहेगी। यह भी रोचक है कि उन्हीं क्षेत्रों में सर्विस मतदाता अधिक हैं, जहां महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक है। कुल मिलाकर महिलाओं के मूड का इस सीट के चुनावी समर पर खासा असर रहेगा।

प्रवेश बच्चे का, पढ़ाई कर रहे हैं अभिभावक

Mar 18, हरिद्वार। पब्लिक स्कूलों में एडमिशन का दौर शुरू हो गया है। हर मां-बाप की कोशिश है कि उनके बच्चे का प्रवेश अच्छे पब्लिक स्कूल में हो जाए। इसलिए वे पढ़ाई कर रहे हैं। अब आप सोचेंगे कि बच्चों का प्रवेश पब्लिक स्कूल में ही क्यों? बच्चे का प्रवेश ही तो कराना है। स्कूल सरकारी हो या पब्लिक, लेकिन ऐसा नहीं है। कंपटीशन के दौर में हर कोई अपने बच्चों को प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूल में पढ़ाना चाहता है। इन स्कूलों में बच्चों के एडमिशन के लिए अभिभावकों को दिमागी कसरत भी जमकर करनी होती है। स्कूलों में मोटी फीस देनी हो। हर हाल में एडमिशन तो पब्लिक स्कूल में ही कराना है। अब जब बात स्टेटस सिंबल की हो तो कोई समझौता भी नहीं किया जा सकता। इसके लिए एडमिशन के समय होने वाले साक्षात्कार से लेकर सभी प्रकार की तैयारियों में अभिभावक जुट गए हैं। सभी अभिभावक अपना आईक्यू लेवल बढ़ाया जाने के फेर में पड़ें हैं। प्रवेश के समय पर होने वाले साक्षात्कार के लिए मां-बाप जोर शोर से जुट गए हैं। यानि बच्चे को पढ़ाना है तो अभिभावकों को भी अपडेट होना पढ़ता है। आवास विकास निवासी चित्रा गौतम अपने चार वर्षीय पुत्र के एडमिशन के लिए विशेष तैयारी कर रहीं हैं। वह कहती हैं कि इस समय तो बस अच्छे पब्लिक स्कूल में बेटे का एडमिशन कराना ही प्राथमिकता है। अनविका शर्मा के पिता की यही कोशिश हैं की उनकी बेटी का एडमिशन हो जाए। अभिषेक वर्मा के पिता रमेश वर्मा भी कुछ ऐसा ही कहते हैं। वह कहते हैं कि बच्चे के भविष्य का सवाल है। तैयारी तो करनी ही पड़ेगी। अंबिका के अभिभावक अनू-मयंक साहू भी अपना ज्ञान बढ़ाने में लगे हैं। वे कहते हैं एडमिशन तो बच्चे का है, लेकिन पढ़ना तो हमें ही है। मयंक कहते हैं आज के कंपटीशन के दौर में अभिभावक को जागरूक होना जरूरी है।

रीठासाहिब में बैशाखी मेले की तैयारियां शुरू

Mar 18, लोहाघाट (चंपावत)। मीठे रीठे के चमत्कार के लिए प्रसिद्ध गुरूद्वारा श्री रीठासाहिब में इस वर्ष होने वाले बैशाखी मेले की तैयारियां युद्ध स्तर पर शुरू हो गयी हैं। मेले को इस बार आकर्षक रूप दिया जायेगा। कार सेवा प्रमुख बाबा तरसेम सिंह के नेतृत्व में इन दिनों विभिन्न निर्माण कार्य किए जा रहे है। मंगलवार के तड़के से ही यहा के लंगर हॉल के भवन में कंकरीट करने का कार्य शुरू किया गया। जिसमें बड़ी संख्या में कार सेवकों ने हिस्सा लिया। नानकमत्ता से बाबा टहल सिंह, दिल्ली से बाबा सुरेन्द्र सिंह, बाबा बचन सिंह, पीलीभीत से बाबा पाल सिंह के अलावा पंजाब, यूपी, बिहार, हरियाणा एवं उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों से सात सौ कारसेवक इस कार्य में देर रात तक जुटे रहे। इग्लैंड से आए तीर्थयात्रियों एवं महिलाओं ने भी कार सेवा में हिस्सा लिया। कार सेवा के लिए नानकपुरी टाडा से कार सेवकों का जत्था भी पहुंचा हुआ है। गुरूद्वारा प्रबंधक जत्थेदार बाबा श्याम सिंह की पहल पर गुरूद्वारा परिसर में पर्यटन विभाग द्वारा हाईटैक शौंचालय, मुख्य प्रवेश द्वार एवं स्नान घाट का भी निर्माण किया जा रहा है। कार सेवा प्रमुख बाबा तरसेम सिंह ने बताया कि इस वर्ष गुरूद्वारे द्वारा 50 हजार तीर्थयात्रियों के ठहरने एवं उनके लंगर की व्यवस्था की गई है। इस स्थान में मेले के प्रति देश विदेश के तीर्थयात्रियों के रूझान को देखते हुए इस वर्ष मेले की अवधि को बढ़ाये जाने पर विचार चल रहा है।

जनपद के कई गांवों में बाघ का आतंक

Mar 18, बागेश्वर। जनपद के कई गांवों में बाघ का आतंक जारी है। जिस कारण गांवों में भय का माहौल व्याप्त है। ग्रामीणों की मांग के बाद भी विभाग इसे गम्भीरता से नहीं ले रहा है। जिस कारण ग्रामीणों में भय व्याप्त है। बाघ ने गत दिवस भटखोला गांव में दो बकरियों को अपना शिकार बना लिया। जनपद के भटखोला गांव में गत दिवस बाघ ने गौशाले में घुसकर देवेंद्र सिंह व नंदन सिंह की बकरियों को अपना निवाला बना दिया ग्रामीणों ने बताया कि काफी हो हल्ला मचाने के बाद भी बाघ नहीं भागा। ग्राम प्रधान हेमा देवी ने बताया कि क्षेत्र में बाघ दिन दहाड़े घूम रहा है जिससे गांव में भय बना हुआ है उन्होंने वन विभाग से प्रभावित पशु पालकों को मुआवजा प्रदान किए जाने व बाघ को पकड़ने के लिए पिंजरा लगाए जाने की मांग की है। इसके अलावा विकास खंड के जौलकांडे, गरुड़ की देवनाई घाटी में भी बाघ का आतंक छाया हुआ है जिस कारण गांवों में बच्चों का स्कूल जाना दूभर हो गया है। ग्रामीणों ने कहा कि इस संबंध में कई बार वन विभाग को अवगत करा दिया है तथा अधिकारियों ने पूर्व में गांव में पिंजरा लगाए जाने का आश्वासन दिया था परंतु अब तक पिंजरा नहीं लगाया गया है उन्होंने विभाग से शीघ्र पिंजरा लगाने की मांग की है कहा कि भविष्य में किसी पर अगर बाघ ने हमला किया तो इसके जिम्मेदार वन विभाग के अधिकारी रहेगे।

कुसुम हत्याकांड: सिविल पुलिस को सौंपे प्रकरण

Mar 18, नई टिहरी (टिहरी गढ़वाल)। जाखणीधार प्रंखंड के पुनाडू गांव में युवती की हत्या के मामले में ग्रामीणों ने जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक से मिलकर मामले को राजस्व पुलिस से सिविल पुलिस को स्थानांतरित करने की मांग की। गौरतलब है कि ग्यारह मार्च को जाखणीधार प्रखंड के पुनाडू गांव में शादी से इंकार करने पर ज्यौतर लाल की 20 वर्षीय पुत्री कुसुम की धारदार हथियार से हत्या कर दी थी। हत्यारोपी कोटी गांव निवासी दिनेश लाल ने स्वयं को भी घायल कर दिया था। मामले में राजस्व पुलिस ने आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। फिलहाल आरोपी दून चिकित्सालय में भर्ती है। मृतका के परिजनों व ग्रामीणों का कहना है कि आरोपी पर नजर रखने के लिए मात्र एक होमगार्ड तैनात किया गया है। उन्होंने आशंका है कि आरोपी वहां से फरार हो सकता है। इस मामले को लेकर ग्रामीणों के एक प्रतिनिधिमंडल ने दुग्ध संघ अध्यक्ष धन सिंह नेगी के नेतृत्व में जिलाधिकारी सौजन्या व पुलिस अधीक्षक से मुलाकात की। उन्होंने मामला राजस्व पुलिस से नागरिक पुलिस के हवाले किए जाने की मांग की। इस पर प्रतिनधिमंडल को पुलिस कप्तान ने आश्वासन दिया कि सिविल पुलिस इस काम में राजस्व पुलिस का पूरा सहयोग करेगी। प्रतिनधिमंडल में चंदन सिंह, फूल दास, रणवीर सिंह, कुंदन दास, मकान लाल, राकेश लाल, रामदास, विजय दास आदि शामिल

पुण्यतिथि पर स्व: बहुगुणा को दी भावपूर्ण श्रद्धांजलि

Mar 18, नई टिहरी (टिहरी गढ़वाल)। बीसवीं पुण्यतिथि पर हेमवती नंदन बहुगुणा को याद किया गया। वक्ताओं ने कहा कि बहुगुणा की सोच के अनुरूप ही पहाड़ का विकास किया जाना चाहिए। बहुगुणा स्मृति समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रघुनाथ सिंह राणा ने कहा कि बहुगुणा के विचारों की प्रासंगिकता आज पहले से ज्यादा बढ़ गयी है। कांग्रेस जिलाध्यक्ष कीर्ति सिंह नेगी ने कहा कि हेमवती नंदन बहुगुणा ने पहाड़ के विकास के लिए जितने कार्य किए उसे भुलाया नहीं जा सकता। विक्रम सिंह नेगी ने कहा कि अलग राज्य बनने के बाद लोगों की उम्मीदें बढ़ी है। बहुगुणा के विचारों को आत्मसात कर ही लोगों की अपेक्षाएं पूरी की जा सकती हैं। प्रतापनगर के ब्लाक प्रमुख पीसी रमोला व जाखणीधार के प्रमुख जगदम्बा रतूड़ी ने कहा कि बहुगुणा पहाड़ के सच्चे हितैषी थे। इस अवसर पर गोपाल चमोली, शेखर बहुगुणा, डा. बीना जोशी, मोहन सिंह रावत आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन युवक कांग्रेस के जिलाध्यक्ष राकेश राणा ने किया। उत्तरकाशी। पुण्य तिथि पर जिला कांग्रेस कमेटी ने स्व. बहुगुणा को श्रद्धांजलि अर्पित की। श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में कांग्रेस जिलाध्यक्ष घनानंद नौटियाल, चतर सिंह रावत, रमेश सेमवाल, दिनेश गौड़, जीतेन्द्र पंवार, धीरज देवी, रामनारायण नौटियाल, मनोज मिनान, तिलक चंद, गजेन्द्र गुसांई शामिल थे।

शासन -प्रशासन की उपेक्षा झेल रहा है गुप्तकाशी

गुप्तकाशी (रुद्रप्रयाग)। प्रसिद्ध तीर्थ धाम केदारनाथ को यातायात से जोड़ने वाले रुद्रप्रयाग-गौरीकुण्ड राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित गुप्तकाशी कस्बे के सौंदर्यीकरण की मांग क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों ने की है। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि शासन- प्रशासन क्षेत्र के विकास के प्रति उदासीन बने हुए हैं। केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव होने के साथ ही गुप्तकाशी कस्बे में भगवान विश्वनाथ का प्रसिद्ध मंदिर भी है, इसके अलावा कई ग्रामीणों क्षेत्रों का यह मुख्य केन्द्र है, लेकिन यहां तमाम अव्यवस्थाएं होने से लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। सड़क की दुर्दशा, पार्किंग का अभाव और सफाई की लचर व्यवस्थाओं से लोग परेशान हैं। इसके साथ ही शासन-प्रशासन की उपेक्षा के कारण यहां के पौराणिक, धार्मिक और पर्यटक स्थल लोगों की नजरों से दूर रहे हैं। जिसका क्षेत्र के विकास में विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता दिनेश प्रसाद व क्षेत्र पंचायत सदस्य कमल रावत ने कहा कि यहां व्याप्त समस्याओं के निराकरण के लिए शासन-प्रशासन को कई बार अवगत कराया गया, लेकिन आज तक इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि गुप्तकाशी क्षेत्र केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव भी है साथ ही यहां कई खूबसूरत पर्यटक स्थल भी हैं, लेकिन सुविधाओं का अभाव सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है। उन्होंने कहा कि नगर में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए तीर्थ यात्रियों को मूलभूत सुविधाएं देने के साथ ही कस्बे का सौंदर्यीकरण किया जाना जरूरी है। उन्होंने शासन-प्रशासन से इसके लिए ठोस कदम उठाने की मांग की है।

फार्मेसिस्ट के भरोसे चल रहा है चिकित्सालय

Mar 18, रुद्रप्रयाग। राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय स्वीली-सेम चिकित्सक व स्टाफ की कमी से जूझ रहा है। आलम यह है कि एक फार्मेसिस्ट के भरोसे चिकित्सालय चल रहा है। समुचित स्वास्थ्य सुविधा न मिलने से क्षेत्रीय जनता को उपचार के लिए जिला चिकित्सालय जाने को मजबूर होना पड़ रहा है। क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से स्थापित राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय स्वीली-सेम चार वर्ष बाद भी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा है। चिकित्सालय आज भी दो कमरों के किराए के भवन में चल रहा है। चिकित्सालय स्टाफ की कमी जूझ रहा है। आलम यह है कि चिकित्सालय केवल एक फार्मेसिस्ट व एक वार्ड ब्वाय के भरोसे चल रहा है। चिकित्सालय में समुचित स्वास्थ्य सुविधाएं ने मिलने से ग्रामीणों को छोटी -छोटी बीमारियों के उपचार के लिए जिला चिकित्सालय जाना पड़ रहा है। क्षेत्रीय निवासी राजेन्द्र कप्रवान, जयपाल सिंह पंवार, दिनेश रावत आदि का कहना है कि इस आयुर्वेदिक चिकित्सालय में रौठिया, डुंगरी, स्वीली, सेम, दरमोला एवं तरवाडी सहित कई गांवों से ग्रामीण उपचार के लिए आते हैं, लेकिन सुविधाएं न मिलने से उन्हें मजबूर अन्य चिकित्सालयों में जाना पड़ रहा है। उन्होंने मांग की कि चिकित्सालय में चिकित्सक व स्टाफ की तैनाती की जाय। जिससे ग्रामीणों को स्वास्थ्य सुविधा मुहैया हो सके। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर शीघ्र चिकित्सालय में डाक्टर और स्टाफ की नियुक्ति नहीं की गई तो ग्रामीण आंदोलन को बाध्य होंगे।