Thursday 29 January 2009

जीवंत होगी उत्तराखण्ड की संस्कृति

29 jan-, रामनगर: देवों की तपोभूमि के नाम से विख्यात उत्तराखण्ड की सभ्यता एवं संस्कृति को जीवित रखने वाली राज्य स्तरीय सांस्कृतिक प्रतियोगिता सफलता के इतने आयाम अर्जित कर चुकी है कि पर्वतीय संस्कृति प्रेमी रामनगर में आयोजित होने वाली इस प्रतियोगिता को देखने व भाग लेने आज भी दूर-दूर से आते हैं। उत्तराखंड के विभिन्न अंचलों में फैली कुमाऊंनी, गढ़वाली, जौनसारी, नीतिमाणा, व्यास, चौदास भाषा में सांस्कृतिक प्रतियोगिता के जरिए रंगमंच के कलाकार पहाड़ों में प्रचलित लोक गाथाओं का मंचन कर देवभूमि की सभ्यता व संस्कृति से जन मानस को अवगत कराते हंै। सीमित संसाधनों के बावजूद पर्वतीय सांस्कृतिक समिति पर्वतीय अंचलों की इस सभ्यता को सत्रहवें वर्ष एक बार फिर से जनता के समक्ष रखेगी। कुमाऊं महोत्सव, शरदोत्सव एवं ग्रीष्मोत्सव में बेहिसाब लाखों रुपया पानी की तरह बहाया जाता है उसकी तुलना यदि रामनगर के सांस्कृतिक महोत्सव से की जाये तो यह कार्यक्रम सरकारी तामझाम से आयोजित होने वाले महोत्सवों को पीछे छोड़ देता है। राज्य स्तर की सांस्कृतिक प्रतियोगिता जो अपने जीवन का सत्रहवां बसन्त देखने जा रही है इसमें कोटद्वार, हल्द्वानी, नैनीताल, अल्मोड़ा, रानीखेत, पिथौरागढ़, जोशीमठ, चमोली, उत्तरकाशी, देहरादून आदि दूरदराज क्षेत्रों के कलाकार कुमाऊं व गढ़वाल के त्याग, बलिदान की सभ्यता व संस्कृति को अब तक इस रंगमंच के माध्यम से प्रस्तुत कर चुके है। इस बार भी पौड़ी, उत्तरकाशी, नैनीताल, देहरादून, अल्मोड़ा और रामनगर समेत कुल नौ टीमें अपनी अभिनय कला के माध्यम से उत्तराखण्ड कीं संस्कृति को उजागर करेंगी। इस वर्ष यह प्रतियोगिता 29 जनवरी से प्रारम्भ हो रही है। जिसमें प्रथम दिन सांस्कृतिक जुलूस एवं उत्तराखंड की सांस्कृतिक झांकियों का प्रदर्शन किया जायेगा जबकि 30 एवं 31 जनवरी को मुख्य प्रतियोगिता आयोजित होगी। समिति ने सांस्कृतिक जुलूस पुरस्कृत भी किया जाएगा। मुख्य प्रतियोगिता में विजेता प्रथम टीम को ग्यारह हजार एक, द्वितीय को सात हजार पांच सौ एक तथा तृतीय को पांच हजार एक रुपये नगद देने का ऐलान किया है। समिति के अध्यक्ष रमेश जुयाल, सचिव दीप जोशी ने बताया कि इस बार बिना सरकारी सहायता के इस प्रतियोगिता की सफलता के लिए सभी सदस्य जुट गये हैं।