Saturday 24 January 2009

जहां निऱाश नही होते असहाय

हल्द्वानी विकलांगों की मदद के लिए बड़ी संख्या में संस्थाएं बनी हुई हैं तथा सरकार भी उनकी मदद करती है। लेकिन केवल अपने सदस्यों की सहायता राशि से ही विकलांगों एवं निराश्रितों की मदद करने में विकलांग कल्याण सेवा समिति का नाम अग्रणी है। विकलांग कल्याण सेवा समिति ने आज से 17 साल पहले निराश्रित, विकलांग, विधवा और वृद्धों की सेवा का बीड़ा उठाया था, जो आज भी अपनी मंथर गति से जारी है। शहर के मुखानी स्थित कार्यालय में रविवार को असहाय लोगों का तांता लगा रहता है। केवल हल्द्वानी ही नहीं, बल्कि कुमाऊं के दूर-दराज क्षेत्रों से भी लोग यहां आते हैं, जिन्हें समिति द्वारा कंबल, जूते-चप्पल, कपडे़ व बैसाखी, ट्राइसाइकिल से लेकर राशन तक दिया जाता है। समाज सेवा के लिए समिति कोई सरकारी मदद नहीं लेती और न ही कोई उद्योगपति पैसे देता है। ये व्यवस्था समिति केवल अपने सदस्यों के आर्थिक सहयोग से करती है। संस्था के संचालक राजेन्द्र सिंह नेगी हैं, जिन्हें लोग प्यार से अंकल कहते हैं। उनका पूरा जीवन विकलांगों, निराश्रितों के लिए समर्पित है। उनके ही आवास पर यह कार्यालय चलाया जाता है। इस संबंध में उन्होंने बताया कि सन् 1991 में विकलांगों की दयनीय हालत देखकर अचानक उनके अंदर सेवा का जज्बा जाग उठा। और तभी से उन्होंने एक समिति का गठन कर उनकी मदद शुरू कर दी। अब तक संस्था ने जरूरतमंदों को1500 जोड़ी बैसाखियां, 150 ट्राइसाइकिल, 77 श्रवण यंत्र व 2500 जोड़े जूते व चप्पलें बांटी हैं। इसके अलावा 10,000 लोगों के विकलांग, विधवा व वृद्धावस्था के पेंशन फार्म भरकर सम्बंधित विभाग को सौंपे हैं। श्री नेगी ने बताया कि संस्था ने 1995 से लेकर आज तक 400 निराश्रित बच्चों को कापी-किताब व फीस देने का बीड़ा भी उठाया है। संस्था समय-समय पर कुमाऊं में अलग-अलग स्थानों पर सेवा कैम्प लगाकर वहां के जरूरतमंदों को सामग्री वितरित करती है। राजेंद्र नेगी ने बताया कि संस्था विकलांगों के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र खोलने को प्रयासरत है, ताकि विकलांग, मूक बधिर वहां प्रशिक्षण लेकर आत्मनिर्भर बन सकें।

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