Thursday 22 January 2009

मंदी की मार अब पहाड़ पर

सोप स्टोन व लीसा उद्योगों पर संकट २२ jan-हल्द्वानी: आर्थिक मंदी की मार ने कुमाऊं को भी झकझोर कर रख दिया है। अल्मोड़ा मेग्नेसाइट में तो छटनी की नौबत आ ही गयी है,मंडल के पुश्तैनी धंधों पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। सोप स्टोन पाउडर की मांग घटने से इसका उत्पादन 50 फीसदी तक गिर गया है, जबकि लीसा उद्योगों की स्थिति भी इससे भिन्न नहीं है। कुमाऊं के लोगों को उपखनिज व लीसा आदि का कारोबार विरासत में मिला है। इसके लिए कच्चा माल मंडल की जमीन से ही निकलता है। इसका व्यवसाय भी कुमाऊं में काफी होता है। एक अनुमान के मुताबिक सोप स्टोन की मंडल में 22 इकाइयां हैं, जबकि लीसा के भी करीब 30 उद्योग हैं। इनमें कारोबार भी लगभग 50 करोड़ से अधिक ही होता है। हजारों की संख्या में श्रमिकों की रोजी-रोटी भी इन उद्योगों से चलती है। लेकिन विश्व में चल रही आर्थिक मंदी ने उद्योगपतियों की कमर तोड़कर रख दी है। कुमाऊं के पिथौरागढ़ व बागेश्वर में सोप स्टोन की खान हैं। यहां से इसे सोप स्टोन की मंडलभर में फैली इकाइयों में लाया जाता है। जहां इसका पाउडर तैयार किया जाता है। इसके बाद पाउडर की आपूर्ति पेपर,सोप,कास्मेटिक व प्लास्टिक के उद्योगों में होती है। मंडल से पाउडर उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश,पंजाब व गुजरात आदि राज्यों में होता है। पाउडर उद्योग से जुड़े विजय श्रीवास्तव का कहना है कि कच्चे तेल के रेट कम होने के कारण पालीमर तैयार नहीं हो पा रहा है। इसकारण पाउडर की मांग भी कम हो गयी है। क्योंकि प्लास्टिक बनाने में दोनों को ही मिलाया जाता है। वर्तमान में इसके रेट भी 25 प्रतिशत तक गिर गये हैं। इसके अलावा लीसा उद्योग का भी कमोवेश ऐसी ही स्थिति है। उद्योगों को लीसा वनविभाग उपलब्ध कराता है। इसका रोजिन व तारपीन का तेल बनाकर उद्योगपति दिल्ली, कानपुर, मुम्बई, नागपुर व इंदौर आदि शहरों में आपूर्ति की जाती है। इसका इस्तेमाल पेंट, पालिस व पेपर बनाने में होता है। बाजार में गिरावट आने के कारण इसकी मांग भी घटी है। साथ ही दाम भी गिरे हैं। उद्योगपति आलोक शारदा ने बताया कि रोजिन के रेट 42 रुपये प्रति किलो से गिरकर 36 रुपये तक पहुंच गये हैं,जबकि तेल भी 58 रुपये से 42 रुपये तक आ गया है। इनके दाम गिरने से लीसा के रेट भी गिरे हैं। आर्थिक मंदी की मार से उद्योगपतियों में खलबली मच गयी है। उनका कहना है कि मांग कम होने के कारण कुमाऊं की धरती से जुड़े इन कारोबारों से रुझान हटने लगा है, लिहाजा नये व्यवसाय की तलाश की जा रही है।

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